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नई शिक्षा नीति के राजमार्ग पर चलकर ‘विश्वगुरु’ होने की मंजिल

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नई शिक्षा नीति के राजमार्ग पर चलकर 'विश्वगुरु' होने की मंजिल

नई शिक्षा नीति के आने के बाद किस तरह हमें जबरदस्ती ‘विश्वगुरु’ बनाया जा रहा है, CBSE बोर्ड की परीक्षा के तरीके से इसे समझा जा सकता है. जिन लोगों को यकीन नहीं होता था कि नई शिक्षा नीति के राजमार्ग पर चलकर हम ‘विश्वगुरु’ होने की मंजिल तक पहुंच पायेंगे, वैसे सारे लोगों की आंखें इस नायाब तरीके को देखकर फटी रह जायेंगी.

अभी CBSE का टर्म एग्जाम हो रहा है. यह परीक्षा ऑब्जेक्टिव हो रही है, अगली परीक्षा सब्जेक्टिव होगी. परीक्षा अपने ही स्कूल में देनी है अर्थात होम सेंटर पर. परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र एक घंटा पहले बोर्ड के वेबसाइट से स्कूल को डाउनलोड कर लेना है और एक घंटे में स्कूल को अपने साधन से उसका फोटो कॉपी सारे बच्चों के लिए तैयार कर देना है.

एक विषय का प्रश्रपत्र 8-10 पृष्ठों का होता है. इसका मतलब है कि अगर किसी विद्यालय में एक हजार परीक्षार्थी हैं तो विद्यालय को एक घंटे में दस हजार पृष्ठों की फोटो कॉपी तैयार कर लेनी है. अब कौन मशीन होगी जो एक घंटे में दस हजार फोटो कॉपी तैयार कर देगी ?

लेकिन यह बोर्ड की चिंता का विषय नहीं है. लेकिन बोर्ड का आर्डर ही जब इस प्रकार का है तो उसके पालन के लिए स्कूलों ने 8-10-12 तक मशीनें खरीदी हैं. फिर भी एक घंटे में सारे प्रश्नपत्र का फोटो कॉपी करके नत्थी करना संभव नहीं हो रहा है तो प्रश्नपत्रों के पन्ने बारी-बारी से परीक्षार्थियों को पहुंचाये जा रहे हैं.

यह तो बात हुई परेशानी की लेकिन ‘विश्वगुरु’ बनने के लिए परेशानियां तो झेलनी ही पड़ती है. हमको उम्दा ‘राष्ट्रभक्ति’ का परिचय भी देना है इसलिए ‘सरकार के सारे कामों की सराहना जरूरी है’, मानकर दिक्कतों की चर्चा छोड़कर परीक्षा की गुणवत्ता को देखने चलते हैं.

बोर्ड की परीक्षा अपने ही विद्यालय में उन्हीं शिक्षकों की निगरानी में ली जानी है, जिन शिक्षकों ने उन्हें अब तक पढ़ाया है. CBSE के अधिकांश विद्यालय निजी हैं और उन विद्यालयों के स्वयंभू ‘निदेशकों’ (मालिकों) ने विद्यालयों को किराना की दूकान बना रखा है. अर्थात ग्राहकों को आकर्षित करना और मुनाफा कमाना. तो इस बात में संदेह करने की गुंजाइश नहीं है कि वे स्कूल मालिक अपने अधीनस्थ शिक्षकों का उपयोग परीक्षा में बच्चों को सही उत्तर बताने में करते होंगे.

बात इतनी ही नहीं है. डेढ़ बजे परीक्षा खत्म होने के बाद तीन बजे तक उन्हीं शिक्षकों को कॉपी का मूल्यांकन करके नंबर को बोर्ड के वेबसाइट पर अपलोड भी कर देना है. यह तो अकल्पनीय ही लगता है कि डेढ़ घंटे में हजारों बच्चों के सैकड़ों प्रश्नों का मूल्यांकन करके और प्रत्येक प्रश्न के अंक को कागज पर अंकित करके अपलोड कर दिया जाय, लेकिन हो ऐसा ही रहा है.

अब एक और बात है. परीक्षार्थियों को उत्तर पुस्तिका में प्रश्नों के सही विकल्प को रंगना है लेकिन उसके नीचे सही विकल्प का क्रम लिखना भी है और इसके बाद ‘#’ और ‘*’ के विकल्पों को चिह्नित भी करना है. यदि परीक्षार्थी ने किसी प्रश्न के c विकल्प को रंगा है और लिखने की जगह पर b लिखा है तो b के आधार पर ही उसके उत्तर को सही या गलत माना जायेगा, c के आधार पर नहीं. फिर उन्हें अपने उत्तर को सही ठहराने के लिए # और * को भी चिह्नित करना है.

यह परीक्षार्थियों की परेशानी का जिक्र हुआ कि एक ही प्रश्न के उत्तर उन्हें कितने ढंग से देना है. लेकिन देश को ‘विश्वगुरु’ बनाने के लिए बच्चे-बच्चियां यह परेशानी भी उठा लें तो बुरा नहीं है. लेकिन लोचा इसके बाद है.

स्कूल की ओर से परीक्षार्थियों को निर्देश दे दिया जाता है कि वे केवल उत्तर को रंगने का काम करें, उत्तर की क्रम संख्या और # और * को नहीं लिखें-रंगें, क्योंकि विकल्पों को रंगने के आधार पर अंक नहीं दिए जाने हैं; अंक विकल्पों के क्रम लिखने और #, * को चिह्नित करने के आधार पर दिए जाने हैं.

यह काम वह स्वयंभू ‘निदेशक’ सारे शिक्षकों से उत्तरपुस्तिका जमा लेने के बाद करवाता है. वह इसलिए कि उसके स्कूल का रिजल्ट अच्छा हो, ज्यादा नामांकन हो और विविध प्रकार के शुल्कों के माध्यम से ज्यादा उगाही कर सके.

अर्थात पहले केवल पढ़ाई ही लुटेरों को सौंपी गई थी, अब परीक्षा भी उन्हीं लुटेरों को सौंप दी गई है. तो अब लूट, अशिक्षा और भ्रष्टाचार के इस नए राजमार्ग पर चलकर ही हमें ‘विश्वगुरु’ होना है.

  • अनिल कुमार राय

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