मैं समझा नहीं पाया
मेरे द्वारा लाये गए क़ानून जनहित में हैं
जनता नहीं मानी
भड़का दिया विरोधियों ने जनता को.
जनता को सेना की बूटें नहीं समझा पाईं
रास्ते में तनी सीमेंटेड कीलें भी नहीं, मौंतें भी नहीं.
तमाम आतंक ने नहीं समझा पाया जनता को
हमारे दल जनता में गए उसे समझाने
लेकिन जनता ने उन्हें भगा दिया
हमारे लोगों ने समझ लिया
जनता समझ गई है कि वो नहीं समझेगी
हमारा समझाना.
हम ने जनता को विरोधियों के फैलाये भ्रम से
बहुत निकालना चाहा, पर विफल रहा.
हमने बड़े बड़े गोडाम, बड़े बड़े डिटेंशन सेंटर
बना के रख लिये थे
लेकिन जनता ने वहाँ पनाह लेना नहीं चाहा.
हमने फ़िलहाल जनता के भ्रम के सामने हार मान ली
वापस ले लिये वो क़ानून
जिसे वो काले कहे पडी है.
जनता मेरे पेंदे के नीचे की धधकती आग हो गई है
हमारा जनता को समझाना जारी है…
- वासुकि प्रसाद ‘उन्मत्त’
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