Home गेस्ट ब्लॉग ये है आपकी राजनीति, साम्प्रदायिकता, अर्थव्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था और विकास की

ये है आपकी राजनीति, साम्प्रदायिकता, अर्थव्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था और विकास की

11 second read
0
0
226

ये है आपकी राजनीति, साम्प्रदायिकता, अर्थव्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था और विकास की

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार

‘धन’ शब्द धान से बना है. पहले जो किसान मेहनत करके ज़्यादा धान उगा लेता था, उसे धनवान कहते थे. बाद में मुद्रा अर्थात पैसे का अविष्कार हुआ. पैसे को वस्तुओं या सेवा के बदले लिया दिया जाने लगा. तब से माना जाने लगा कि पैसा वस्तुओं का प्रतिनिधि है.

वस्तुओं की कीमत पैसे से नापी जाती है, जैसे पहले एक रूपये में दस किलो अनाज आता था, अब डेढ़ सौ रूपये में दस किलो अनाज आता है तो अनाज की कीमत बढ़ गयी. या कहिये कि पैसे की कीमत गिर गयी. तो असल में पैसे की कीमत गिरने से अनाज की कीमत बढ़ गयी.

किसी चीज़ की कीमत तब घटती है जब उसकी मात्रा ज़्यादा बढ़ जाती है. जैसे पैसे की मात्रा ज़्यादा हो गयी तो पैसे की कीमत घट गयी. परिणाम स्वरूप वस्तुओं का मोल बढ़ गया, इसे ही आप महंगाई कहते हैं. इसे अर्थशास्त्र में मुद्रास्फीति कहा जाता है. अर्थात वस्तुओं और सेवाओं के मुकाबले मुद्रा का ज़्यादा हो जाना.

मान लीजिए मेरे पास सौ करोड़ रूपये हैं. मैंने सुबह बैंक में फोन करके सौ करोड़ रुपयों के शेयर्स खरीद लिए. शाम को मैंने दस प्रतिशत बढे हुए रेट पर वो शेयर बेच दिए. शाम तक मेरे पास दस करोड़ रूपये का मुनाफा आ गया. इस मामले में मैंने ना तो किसी वस्तु का उत्पादन किया, ना ही किसी सेवा का उत्पादन किया लेकिन मेरे पास दस करोड़ रूपये बढ़ गए.

पैसे मेरे बैंक में ही हैं. अब मैं चेक से उन पैसों से अनाज भी खरीद सकता हूं. मैं अनाज मंडी में खरीदे गए सारे अनाज को खरीद लेता हूं. बाजार में बिक्री के लिए अनाज नहीं जाने देता, इससे अनाज की मांग बढ़ जाती है. इससे अनाज की कीमत बढ़ जाती है.

अनाज की कीमत दस करोड़ एक दिन में कमाने वाले के लिए नुकसानदायक नहीं है लेकिन सौ रुपया रोज़ कमाने वाले मजदूर के लिए नुकसानदायक होगी. अनाज उगाने वाले किसान को ज़्यादा पैसा मिलेगा लेकिन चूंकि पैसे की कीमत तो गिर ही चुकी है इसलिए उसे उस पैसे की बदले में कम सामान मिलेगा. तो पूंजी बैठे-बैठे पैसे को बढ़ाने की ताकत किसी के हाथ में दे देती है. उसका पैसा तेज़ी से बढ़ता जाता है लेकिन मेहनत करने वाले मजदूर या मेहनत से उत्पादन करने वाले किसान का पैसा तेज़ी से नहीं बढ़ता इसलिए यह तबका इस अर्थव्यवस्था में गरीब बन जाता है.

शेयर खरीदने के लिए मुझे बैंक क़र्ज़ देता है. मैं चाहूं कितनी ही कंपनियां बना सकता हूं. मैं चाहूं तो अपनी ही कम्पनी के शेयर भी खरीद सकता हूं. बैंक में किसान और मजदूर का भी पैसा जमा है. किसान और मजदूर के बैंक में जमा पैसे से मैं अपनी ही कंपनी के शेयर खरीदता हूं. खुद ही उनके रेट बढाता हूं. खुद ही मुनाफ़ा कमाता हूं और मेरे पास पैसा बढ़ता जाता है.

उधर किसान का अनाज नहीं बढ़ रहा इसलिए उसके पास पैसा भी नहीं बढ़ेगा. मैं इस पैसे से नेता, अफसर और पुलिस को खरीद लूंगा. मैं इस पैसे से अपना कारखाना लगाने के लिए किसान की ज़मीन पुलिस के दम पर छीन लूंगा. अब मेरे पास बिना काम किये रोज़ करोड़ों रूपये आते जायेंगे.

अब सरकार पुलिस और जेल-अदालत मेरे बिना मेहनत से कमाए हुए धन की सुरक्षा करेगी, जो गरीब इस तरह से मेरे धन कमाने को गलत मानेगा उसे सरकार जेल में डाल देगी. अब नौजवानों को रोज़गार मेरे ही कारखाने या दफ्तर में मिलेगा. अब कालेज में नौजवानों को वही पढ़ाया जाएगा जिसकी मुझे ज़रूरत होगी. अब नौजवान मेरी सेवा करने के लिए पढेंगे. अब बच्चों की शिक्षा मेरे कहे अनुसार चलेगी.

मैं टीवी के चैनल भी खरीद लूंगा. अब टीवी आपको मेरा सामान खरीदने के लिए प्रेरित करेंगे. मैं शापिंग मॉल भी खरीद लूंगा. मैं छोटी दुकाने बंद करवा दूंगा. अब आप मेरे ही कारखाने या दफ्तर में काम करेंगे और मेरे ही शापिंग मॉल में जाकर खरीदारी करेंगे.

मैं ही एक हाथ से आपको पैसे दूंगा और दूसरे हाथ से पैसे ले लूंगा. आप दिन भर मेरे लिए काम करेंगे. अब आप मेरे गुलाम हो जायेंगे. अब मैं आपकी जिंदगी का मालिक बन जाऊँगा. अब मैं करोड़ों लोगों की जिंदगी का मालिक बन जाऊँगा. अब आपको वहाँ रहना पड़ेगा जहां मेरा आफिस या कारखाना है. आपके रहने की जगह मैं निर्धारित करूँगा.

आपको मैं उतनी ही तनख्वाह दूंगा जिसमे आपका परिवार जी सके. आप अपनी बेसहारा बुआ, मौसी या माता-पिता को अपने साथ नहीं रख पायेंगे तो आपके परिवार का साइज़ भी मैं तय करूँगा.

अब आप मेरे लिए काम करते हैं. आपके बच्चे मेरे लिए पढते हैं. आप मेरी पसंद की जगह पर रहते हैं. अब मैं जिस पार्टी को चाहे टीवी की मदद से आपके सामने महान पार्टी के रूप में पेश कर देता हूं. आप उसे वोट भी दे देते हैं.

मैं साम्प्रदायिकता का इस्तेमाल करके आपको मेरे लिए फायदेमंद पार्टी को वोट देने के लिए मजबूर करता हूं. मैं अफ्रीका में अलग-अलग कबीलों को आपस में लड़वाता हूं. मैं भारत में अलग-अलग संप्रदायों को लड़वाता हूं और फिर बड़े कबीले की तरफ मिल कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेता हूं.

भारत में अभी बड़ा कबीला हिंदू है इसलिए मैं हिंदुओं की साम्प्रदायिकता को भड़का कर अपने गुलाम नेता को सत्ता में बैठा देता हूं. पाकिस्तान में मैं मुसलमान साम्प्रदायिकता को भडकाता हूं क्योंकि पाकिस्तान में बड़ा कबीला मुसलमान हैं. ये रही हकीकत आपकी राजनीति, साम्प्रदायिकता, अर्थव्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था और विकास की.

2

(सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक संदेश से) सोचिए, आपस में लड़ने के बजाय गंभीरता से विचार कीजिए. आप देश के सबसे युवा देश के नागरिक हैं, जिनमें अपार संभावनाएं हैं इसलिए उलझिए कम, उससे ज़्यादा सोचिए. भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत को ‘पागलपन’ बताने वाले कौन लोग थे ? देश के क्रांतिकारियों के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ देने वाले कौन लोग थे ? भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों के लिए कैम्प लगाकर रंगरूटों की भर्ती करने वाले कौन लोग थे ? आंदोलन का बहिष्कार करने वाले कौन लोग थे ? महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रचने वाले कौन लोग थे ?

महात्मा गांधी जैसे विश्व-पुरुष की हत्या के बाद देश भर में मिठाई बांटने वाले कौन लोग थे ? महात्मा के हत्यारे को देशभक्त बताने वाले कौन लोग हैं ? हत्यारे के नाम पाठशाला बनाने वाले कौन लोग हैं ? 40 जवानों की मौत के बाद खुशी से वॉट्सएप्प करने वाले कौन लोग हैं ? जवानों की शहादत पर ‘we won like crazy’ का गाना गाने वाले कौन लोग हैं ? देश के 40 जवानों की लाश पर ‘बिग मैन’ को चुनाव जीतने का गणित लगाने वाले कौन लोग हैं ?

महात्मा गांधी कहते थे कि पापी से नहीं, पाप से घृणा करो. विचारधारा को मानने वाले से नहीं, उस विचारधारा से घृणा करो. उनसे सवाल पूछो कि करीब 90 बरस में ‘ऐतिहासिक नफरत’ के अलावा इस विचारधारा की उपलब्धि क्या है ? ये अगर राष्ट्रवाद है तो ये किसका प्रतिनिधित्व करता है ? गांधी का ? भगत सिंह का ? अशफाक उल्लाह खान का ? अब्दुल गफ्फार खान का ? नेहरू का ? पटेल का ? गोखले का ? हजारों-हजार शहीदों का ? किसका ?

ये नफरत और घिनौनेपन की विरासत आप कहां से लाए हैं, जिसे राष्ट्रवाद बता रहे हैं ? देश के युवाओं को देश के नाम पर नफरत का कारोबार थमा दिया जाएगा और वे इसे पाक-पवित्र राष्ट्रवाद मानकर सिर-माथे पर उठा लेंगे ? ठहरिए और सोचिए, कोई संगठित और सियासी विचारधारा आपको धर्म-मिश्रित उन्माद से भरा हुआ क्यों देखना चाहती है ?

Read Also –

 

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…