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मिलिंद तेलतुंबड़े और उनके साथी : भारत के आसमान में चमकता लाल सितारा

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मिलिंद तेलतुंबड़े और उनके साथी : भारत के आसमान में चमकता लाल सितारा

रितेश विद्यार्थी

मुझे इस बात का गर्व है कि मैं मिलिंद की मां हूं. मेरे बेटे ने बाबा साहब अम्बेडकर के सपनों को जमीन पर उतारने के लिए अपने जीवन की कुर्बानी दी है.

– मिलिंद तेलतुंबड़े की 90 वर्षीय मां

बाबा साहेब अम्बेडकर के रिश्तेदार, दलित एक्टिविस्ट व वामपंथी बुद्धिजीवी प्रो. आनंद तेलतुंबड़े के भाई और सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय कमेटी के सदस्य कॉमरेड मिलिंद तेलतुंबड़े की शहादत एक दिन शोषणविहीन व समतामूलक समाज का आपका सपना जरूर पूरा होगा और पूरी दुनिया में साम्यवाद का लाल सूरज उगेगा कॉमरेड.
लाल सलाम !

भावभीनी श्रद्धांजलि !

13 नवंबर 2021 को एक कथित मुठभेड़ में 26 माओवादियों को पूरे प्री-प्लानिंग के साथ घेरकर उनकी हत्या कर दी गयी. सरकार के अनुसार करीब 100 माओवादी गढ़चिरौली के जंगलों में कैम्प किये हुए थे, जहां कुख्यात C- 60 बटालियन के लगभग 500 जवानों ने मिलकर इस जघन्य कार्यवाई को अंजाम दिया.

स्वतंत्र पत्रकारों के मुताबिक यह कार्यवाई एकदम सुबह में की गई जब ज्यादातर माओवादी अभी सो रहे थे या फिर नाश्ता वगैरह कर रहे थे. घटनास्थल से इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं. पत्रकारों के मुताबिक यह जनसंहार गढ़चिरौली में नहीं बल्कि महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ की जंगलों में हुई है. सरकार पूरे घटनाक्रम की झूठी जानकारी पेश कर रही है.

कुछ लोगों के मुताबिक माओवादियों का कोई मानवाधिकार नहीं होता, उनकी हत्या जायज है. उस पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए क्योंकि माओवादी भारत के संविधान को नहीं मानते. लेकिन मुख्य सवाल तो यह है कि क्या भारत सरकार भारत के संविधान को मानती है ? अगर मानती है तो भारत का संविधान कब यह कहता है कि जो संविधान को नहीं मानेगा, उसको घेरकर उसकी हत्या कर दी जाएगी ?

सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार अगर कहीं भी पुलिस द्वारा किसी की हत्या होती है तो सबसे पहले पुलिस वालों पर एफआईआर दर्ज किया जाना चाहिए और एक स्वतंत्र मजिस्ट्रेट द्वारा मामले की जांच होनी चाहिए कि क्या वह सचमुच में एक मुठभेड़ था या पुलिस झूठ बोल रही है ? (People’s Union for Civil Liberties vs. Union of India, 2014).

इन मारे गए 26 माओवादियों में एक नाम कॉमरेड मिलिंद तेलतुंबड़े का भी है, जो आज से 57 साल पहले महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में एक दलित खेतिहर मजदूर परिवार में जन्मे थे और माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के सदस्य थे. एक दलित और मजदूर परिवार में जन्म लेने की वजह से उन्होंने जातीय उत्पीड़न और आर्थिक उत्पीड़न दोनों को भली-भांति महसूस किया था.

मिलिंद तेलतुंबड़े प्रसिद्ध दलित चिंतक प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े के छोटे भाई हैं, जिन्हें भीमा कोरेगांव के मामले में फर्जी तरीके से फंसाकर जेल में बंद किया गया है. आनंद तेलतुंबड़े बाबा साहब अम्बेडकर के पोती के पति व वंचित अघाड़ी संगठन के संस्थापक प्रकाश अम्बेडकर के बहनोई हैं.

अपनी SSC की पढ़ाई पूरी करने के बाद मिलिंद ने ITI किया था. मिलिंद उन लोगों में नहीं थे जिन्हें अपने आस-पास के शोषण-उत्पीड़न से कोई फर्क नहीं पड़ता है, जो केवल अपने बारे में सोचते हैं. बाबा साहब अम्बेडकर से प्रेरणा लेकर उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत दलितों और गरीबों के हक के लिए लड़ने से शुरू की.

एक इलेक्ट्रिशियन की नौकरी करते हुए उन्होंने महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के खदान मजदूरों के बीच काम करना शुरू किया. कुछ वर्षों बाद वो मशहूर वकील और क्रांतिकारी-वामपंथी संगठन अखिल महाराष्ट्र कामगार यूनियन के राज्य सचिव सुजान अब्राहम के संपर्क में आये. धीरे-धीरे वो माओवादी विचारधारा से प्रभावित होते चले गए और माओवादियों के संगठन इंडियन माइन वर्कर्स फेडरेशन से जुड़ गए.

उन्होंने कुछ समय तक नौजवान भारत सभा (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष के तौर पर भी काम किया. महाराष्ट्र के शहरी इलाकों और खासकर दलितों के बीच क्रांतिकारी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में इनका महत्वपूर्ण रोल रहा. इन के प्रभाव में ढेर सारे युवक-युवतियां क्रांतिकारी आंदोलन की ओर खींचते चले आए.

2004 में इन्हें माओवादियों की महाराष्ट्र राज्य कमेटी का सचिव चुना गया. 2016- 2017 में ये सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय कमेटी के सदस्य बने और इन्हें पार्टी की ओर से महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ज़ोन की जिम्मेदारी दी गयी. देखते ही देखते मिलिंद तेलतुंबड़े भारत की इस सड़ी-गली व्यवस्था और फासीवादी भारतीय राज्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए.

मिलिंद बचपन से ही बहुत खुशमिजाज व हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे. 1996 में जब उन्होंने घर छोड़ा तो किसी ने यह नहीं सोचा था कि वो इस सड़ी-गली व्यवस्था को बदलने के लिए व एक समतामूलक समाज की स्थापना के लिए अपनी जिंदगी दाव पर लगा देंगे.

मिलिंद ने एक शोषणविहीन समाज की स्थापना के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया. आज जब भारत का दलित आंदोलन और वामपंथी आन्दोलन दोनों भटकाव व अवसरवाद के शिकार हैं, तब मिलिंद की शहादत भारत की शोषित- पीड़ित व दलित आबादी को एक क्रांतिकारी दिशा दिखाती है.

माओवादी आंदोलन पर जब भी बात होती है तो बहुत ही धूर्ततापूर्ण ढंग से उसे हिंसक और भटका हुआ साबित कर दिया जाता है. उसके राजनीतिक और वैचारिक पक्षों पर कोई बात नहीं होती. माओवादी क्या चाहते हैं ? उनका दर्शन क्या है ? उनकी राजनीति क्या है ? इस बात पर कोई बात नहीं होती.

इस पर कभी बात नहीं होती कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा समेत मध्यभारत के आदिवासी बहुल इलाके में क्यों 6 लाख से ज्यादा की संख्या में सैन्य बलों को लगाया है ? क्यों ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाकर आदिवासियों के 600 गांव उजाड़ दिए गए ? क्यों आये दिन आदिवासी महिलाओं का सैन्य बलों द्वारा बलात्कार किया जाता है ? क्यों लाखों आदिवासी माओवादियों के नेतृत्व में हथियार उठा चुके हैं ?

बस्तर जिले के सिलगेर में पिछले 6 महीनों से वहां के आदिवासी सैन्य कैम्पों के खिलाफ क्यों आंदोलन कर रहे हैं ? उत्तर साफ है आदिवासियों के पांव के नीचे अरबों डॉलर का कच्चा माल छुपा हुआ है, जिस पर साम्राज्यवादी देशों और देशी-विदेशी कंपनियों की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है. यदि इसे लूटना है और इसका दोहन करना है तो आदिवासियों को उनकी उस जमीन से हटाना पड़ेगा, जिस पर वो सदियों से बसे हुए हैं.

माओवादी आंदोलन एक राजनैतिक आंदोलन है जो कि उनके इस लूट में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है. इसलिए भारत सरकार एक के बाद एक माओवादियों के जनप्रतिरोध को कुचलने के लिए ऑपरेशन समाधान, ऑपरेशन प्रहार नाम से नए-नए अभियान चला रही है. देश का संविधान आदिवासी इलाकों में लागू नहीं होता. आदिवासियों के हित में बना कोई भी अधिनियम आज आदिवासी इलाकों में लागू नहीं है, चाहे वो झारखंड हो या छत्तीसगढ़ हो या कोई और आदिवासी बहुल इलाका.

हकीकत तो यह है कि आज आदिवासियों के सामने सशस्त्र संघर्ष के अलावा संघर्ष का और कोई रास्ता शेष नहीं छोड़ा गया है. यह सरकार अपने ही देश के असंतुष्ट लोगों से वार्ता करने के लिए तैयार नहीं है. यह सिर्फ ताकत के बल पर अपने विरोध में उठे सभी आवाज़ों को कुचल देना चाहती है. यह मुर्दा शांति चाहती है, न्यायपरक शांति कभी नहीं.

मिलिंद तेलतुंबड़े यह मानते थे कि युद्धों का अंत होना चाहिए लेकिन उनका यह स्पष्ट मानना था कि शोषक वर्गों द्वारा जनता पर थोपे गए अन्यायपूर्ण युद्धों को सिर्फ और सिर्फ जनता के क्रांतिकारी जन युद्धों से ही खत्म किया जा सकता है. कॉमरेड मिलिंद तेलतुंबड़े और जन मुक्ति के लिए शहादत देने वाले सभी साथियों को लाल सलाम !

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