जज लोया के केस में कल बेहद चौकाने वाला खुलासा सामने आया है, जिसके बारे में बात करने को देश के मुख्य मीडिया को सांप सूंघ गया है. कल पता चला है कि जज लोया की संदिग्ध मृत्यु के बाद के अगले दो सालों में उनसे जुड़े उनके मित्रों की संदिग्ध मृत्यु हुई है यह कुछ ऐसा ही है जैसे ‘व्यापम’ में एक के बाद एक हुई हत्याओं का सिलसिला सामने आया था.
कल कपिल सिब्बल ने भी कुछ इसी तरह महत्वपूर्ण तथ्यों पर रोशनी डाली है. लेकिन सबसे पहले यह खुलासा दिल्ली से दूर महाराष्ट्र के अहमदनगर में सामने आया जहां शब्दगन्ध साहित्य सम्मेलन में बोलते हुए मुम्बई हाईकोर्ट के जस्टिस बी जी कोलसे ने कहा कि “जज लोया को बेहद सुनियोजित तरीके से मारा गया है और उनसे पहले उनके दो न्यायाधीश मित्रो की भी इसी तरह से हत्या की गयी, जिसके वह खुद गवाह है.”
उन्होंने यह भी कहा कि “जज लोया को मनचाहा फैसला सुनाने की एवज में 100 करोड़ रुपये ऑफर किये गए थे.” उन्होंने कहा कि “यह बात उन्हें उन दो न्यायाधीश मित्रों ने ही बताई थी.”
ठीक यही बात जज लोया की बहन अनुराधा बियाणी ने भी कही थी कि न्यायाधीश न्यायमूर्ति मोहित शाह ने अनुकूल फैसला देने के एवज में लोया को 100 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की थी. अनुराधा बियाणी ने बताया था कि अपनी मौत से कुछ हफ्ते पहले लोया ने उन्हें यह बात बताई थी, जब उनका परिवार गाटेगांव स्थित अपने पैतृक निवास पर दिवाली मनाने के लिए इकट्ठा हुआ था.
कल कपिल सिब्बल ने भी जस्टिस बी जी कोलसे की ही बात दोहराई. उन्होंने कहा कि “29 नवंबर 2015 को खांडेल्कर को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की आठवीं मंजिल से नीचे गिरा दिया गया था. जहां उनकी मौत हो गयी. उसके बाद उसके अगले साल रिटायर्ड जज तोंगरे ने भी बताया कि उनकी जान को खतरा है. इस सिलसिले में उन्होंने दो लोगों के नाम भी लिए थे. जो उन्हें लगातार धमकी दे रहे थे. फिर 16 मई 2016 को उनकी भी मौत हो गयी. वो रेल से यात्रा कर रहे थे तभी ऊपरी बर्थ से गिरकर उनका स्पाइनल कार्ड टूट गया और उनकी भी मौत हो गयी.”
कहते हैं कि कानून से जुड़े इन दोनों ही मित्रों के साथ जज लोया ने सोहराबुद्दीन का केस डिस्कस किया था. दरअसल लोया के पास फैसले का एक ड्राफ्ट भेजा गया था, जिसके बारे में उनसे कहा गया था कि 31 अक्तूबर के पहले उसी को फैसला बनाकर वो सुना दें.
इस पर लोया ने श्रीकांत खांडेल्कर से मिलकर उनसे मदद मांगी थी और उनसे पूछा कि इसमें क्या करना ठीक रहेगा. इसके बाद इस मसले पर किसी वरिष्ठ वकील से मिलकर सलाह मशविरा करने के लिए श्रीकांत खांडेल्कर, तोंगरे और एक अन्य मित्र सतीश ने दिल्ली आने का फैसला लिया. लेकिन जब आने का वक्त हुआ तो उस समय खांडेल्कर का कोई मामला कोर्ट में आ गया लिहाजा वो नहीं आ सके. लेकिन तोंगरे और सतीश दिल्ली आए और यहां एक होटल में रुके. सिब्बल का कहना है कि “उनके पास उनकी फ्लाइट के टिकट और होटल में रुकने के सबूत मौजूद हैं.”
यहां आकर इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण से मुलाकात की. लेकिन प्रशांत ने कहा कि इस ड्राफ्ट के आधार पर कोई मामला नहीं बनता है, लिहाजा इस पर कोई केस नहीं दर्ज हो सकता है. उसके बाद ये लोग लौट गए और उसके बाद जज लोया की संदिग्ध मृत्यु सामने आयी.
कुछ 15 दिन पहले जज लोया के दोस्त और लातूर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष उदय गवारे ने भी जज लोया की मौत को संदिग्ध बताया था और कहा था कि उन्हें यकीन है कि यह पूर्वनियोजित हत्या ही है. गवारे ने लोया के साथ वकालत की पढ़ाई की थी, साथ ही कुछ समय साथ काम भी किया था.
उन्होंने बताया, “जिस दिन लोया का निधन हुआ, उसी दिन कई न्यायाधीशों सहित कई लोगों ने मुझे कहा कि लोया को धोखा दिया गया है. यह मामला इतना संवेदनशील था कि कोई भी शिकायत दर्ज करने की हिम्मत नहीं करता.” उदय गवारे कहते हैं कि “गांधी चार गोली से मरे या तीन गोली से इसकी जांच आज हो सकती है, लेकिन तीन साल पहले लोया की मौत की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए ?”
दरअसल जज लोया का केस ‘टिप ऑफ द आइसबर्ग’ है. यह केस न्यायपालिका में कैंसर की तरह फैल भ्रष्टाचार और सत्तासीन लोगों के माफिया राज का एक छोटा सा उदाहरण है … यह बताता है कि सुप्रीम कोर्ट के चार जस्टिस ने लोकतंत्र के खतरे में होने की बात ऐसे ही नहीं कर दी है …
इस बेहद महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर स्वतंत्र पत्रकारिता के झंडाबरदार प्रतिष्ठानों ओर देश की वृहद न्यायपालिका से जुड़े लोगों की चुप्पी घोर आश्चर्य का विषय है.
श्रीकांत वर्मा की एक कविता याद आती हैं
‘कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाये
मगध को बनाये रखना है तो
मगध में शांति रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है, मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहां रहेगी?’
(गिरीश मालवीय की टाईमलाईन से साभार)
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