हबीबगंज रेलवे-स्टेशन का नाम बदलकर अब ‘रानी कमलापति’ रखा जा है औऱ रानी कमलापति के पति का नाम ‘निजाम शाह’ था. इतिहास के पन्ने पलटने पर ज्ञात होता है कि सन् 1600 से 1715 तक गिन्नौरगढ़ किले पर गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा तथा भोपाल पर भी उन्हीं का शासन था। गोंड राजा निजाम शाह की सात पत्नियां थीं, जिनमें कमलापति सबसे सुंदर थी.
विदित हो कि मुस्लिम नाम होने के कारण 14 नवंबर 2021 को हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन कर दिया गया, जो भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जो खुद को बादशाह समझता है, मुसलमानों के प्रति नफरतों के कारण आये दिन किसी न किसी शहर, प्रांंत, जिलों का नाम बदलते जा रहे हैं. इसी कड़ी में अब एक नया नाम जुड़ गया है – हबीबगंज रेलवे स्टेशन.
नफरती घोड़े पर सवार नरेंद्र मोदी ने 15 नवंबर 2021 को भोपाल में पुनर्विकसित रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया, इसका नाम बदलकर भोपाल रियासत की अंतिम हिंदू रानी गोंड समाज की गौरव रानी कमलापति के नाम पर रखा दिया है. पर नफरती भेड़िया लोगों से यह छुपा रहा है कि रानी कमलापति का पति एक मुसलमान ‘निजाम शाह’ ही थे, जिसकी वह 7वीं रानी थी.
यहां तक की निजाम शाह की खुद के भतीजे द्वारा हत्या कर दिये जाने के बाद एक मुसलमान ने ही रानी कमलापति की हिफाजत की और उस हत्यारे भतीजे को मौत के घाट उतारा. बहरहाल, मामला इतना आसान भी नहीं है. दरअसल, रानी कमलापति की इज्जत आफजाई के बतौर जो कदम नफरती भेड़िया नरेन्द्र मोदी ने उठाया है, उसका एक दूसरा पहलू भी है, जिसे गिरीश मालवीय ने बड़ी ही बारीकी से उठाया है –
क्या आप जानते हैं कि भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को उद्घाटन किया. उस रेलवे स्टेशन का 49 प्रतिशत मालिकाना हक एक विदेशी कम्पनी इंटरअप इंक के पास है ? जी हां यह सच है ! निजीकरण के ऐसे ही साइड इफेक्ट्स होते हैं, कब कम्पनियां देशी से विदेशी बन जाए पता ही नहीं चलेगा ! दरअसल जिसे नए भारत का नया रेलवे स्टेशन बताया जा रहा है, वह भारत का सबसे पहला प्राइवेट रेलवे स्टेशन है. यह स्टेशन पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर आधारित है.
इसी साल अगस्त में दैनिक भास्कर में एक खबर छपी कि अमेरिकी फंड हाउस इंटरअप इंक ने भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन को विकसित कर रही बंसल पाथवे में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी 915 करोड़ रुपए में खरीद ली है. अमेरिकी ग्रुप इंटरअप ने बंसल पाथवे का मूल्यांकन 1870 करोड़ रुपए आंका था और 915 करोड़ रुपए देकर उसने ग्रुप में 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल कर ली है, यानी टेक्निकली जो भी बंसल पाथवे की प्रॉपर्टी है, उसमें अमेरिकी ग्रूप इंटरअप इंक की 49 प्रतिशत भागीदारी है.
इस खरीद को मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा फॉरेन इन्वेस्टमेंट बताया जा रहा था लेकिन मीडिया अब आपको यह तथ्य बताना भूल गया. वैसे इस अमेरिकी ग्रुप इंटरअप्स इंक का रिकॉर्ड भी संदिग्ध है. यदि कोई पत्रकार ढंग से इस कम्पनी की छानबीन करे तो और भी कई हैरतअंगेज जानकारियां सामने आ सकती हैं.
मार्च 2017 को भारतीय रेलवे द्वारा मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित हबीबगंज को पूर्ण रूप से पहले निजी रेलवे स्टेशन के तौर पर विकसित करने का निर्णय लिया गया. भारतीय रेलवे द्वारा रेलवे स्टेशन की देख-रेख के समस्त अधिकार प्राइवेट कम्पनी बंसल ग्रुप को सौंपे गये और रेलवे स्टेशन से लगी बेशकीमती जमीन बंसल ग्रुप के हवाले कर दी गयी.
समझौते के अनुसार इस निजी रेलवे स्टेशन पर रेलवे केवल गाड़ियों का संचालन करेगी तथा पूरे रेलवे स्टेशन का संचालन प्राइवेट कंपनी बंसल ग्रुप करेगा. इस समझौते के अनुसार हबीबगंज रेलवे स्टेशन पर गाड़ियों की पार्किंग से लेकर खान-पान तक बंसल ग्रुप के अधीन ह. बंसल ग्रुप को रेलवे स्टेशन की ज़मीन की कमर्शियल स्पेस की लीज 45 साल के लिए मिली है.
बंसल ग्रुप के साथ पीपीपी मॉडल पर समझौते के तहत तीन वर्ष में बंसल हैथवे को इस रेलवे स्टेशन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना था. यानी मार्च 2020 तक यह तैयार हो जाना था लेकिन यह प्रोजेक्ट लेट हो गया और नवम्बर 2021 में यह पूरा तैयार हुआ है.
2018 में जैसे ही इस बंसल ग्रुप ने रिडेवलपमेंट के लिए जैसे ही रेलवे स्टेशन का अधिपत्य हासिल किया, उसने हबीबगंज स्टेशन पर पार्किंग के रेट अचानक पांच गुना तक बढ़ा दिए उसने 24 घण्टे के लिए दो पहिया वाहन चालकों से रेलवे स्टेशन में पार्किंग के 235 रुपए और चार पहिया वाहन चालकों से 590 रुपए वसूलने शुरू कर दिए. बाद में जनप्रतिनिधियों ने रेलवे विभाग से इसकी शिकायत की तब रेट कम किया गया.
इतना ही नही बंसल पाथवे हबीबगंज लिमिटेड द्वारा हबीबगंज स्टेशन परिसर में कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के बेसमेंट निर्माण के लिए मंजूरी से अधिक खुदाई की गयी, इस शिकायत पर खनिज विभाग द्वारा जांच की गई तो पाया कि कंपनी के पास 2 हजार घनफीट के खुदाई की मंजूरी की तुलना में 10 गुना अधिक खुदाई की गई थी. यही नहीं इस खुदाई से निकले खनिज को बाद में रेलवे के निर्माण कार्य में इस्तेमाल करना था लेकिन इसे बाजार में बेचा गया.
ऐसी रिपोर्ट हमारा मीडिया क्यों नहीं देता समझ में नहीं आता. सिर्फ वाहवाही करना ही हमारे मीडिया का दायित्व रह गया है ?
जनता के टैक्स के 100 करोड़ रुपये की लागत से एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं देकर यह रानी कमलापति स्टेशन निजी हाथों में बेच दिया गया है. यह ठीक उसी तर्ज पर किया गया है, जिसमें चंद रोज पहले ही 400 करोड़ रुपये से जयपुर एयरपोर्ट को बेहतरीन बनाकर अदानी के हाथों बेच दिया गया था.
राजस्थान पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस एयरपोर्ट के विकास के लिए साल 2015-17 के बीच रन-वे निर्माण, ई-कैटेगिरी लाइटिंग सिस्टम पर 139.1 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इसके बाद साल 2016 में कार्गो कॉम्प्लेक्स पर 21 करोड़ रुपए खर्च हुए। तीसरा, साल 2018-19 के बीच नाले का निर्माण और मरम्मत पर 8.84 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे.
वहीं, 2018-19 के बीच टर्मिनल 1 की मरम्मत, हैरिटेज लुक पर 67.20 करोड़ का खर्च किया गया था। सभी को मिला दें तो पिछले पांच साल में इस एयरपोर्ट को संवारने में कुल 398.07 करोड़ रुपए खर्च किये गए. पिछले 5 सालों के दौरान इस एयरपोर्ट के विकास पर करीब 398 करोड़ रुपये खर्चने के बाद अब इसे अडानी ग्रुप को सौंप दिया गया, इसी पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार ने अडानी समूह को फायदा पहुंचाने के लिए ही ये तमाम सुधार करने हेतु इतने पैसे खर्चे ताकि इन सभी सुविधाओं के बढ़ने के बाद अडानी ग्रुप को एयरपोर्ट की हालत सुधारने के लिए ज्यादा पैसे नहीं खर्चने होंगे और मुफ्त में मोटी कमाई होती रहेगी. यही कारण है कि हबीबगंज रेलवे स्टेशन को रानी कमलापति के नाम से बदल देने से रानी कमलापति का सम्मान नहीं बढ़ा अपितु उन्हें अब दुबारा विदेशियों के हाथों नरेन्द्र मोदी ने निलाम कर दिया.
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