Home कविताएं जब हिसाब मांगता है समय

जब हिसाब मांगता है समय

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एक वक्त आता है
जब कुछ भी काम नहीं आता
न कोई बहाना
न कोई चालाकी
न तर्क न कुतर्क
न भाषण न संभाषण
न गोली न बंदूक
न फौज न चाटुकार
राजदंड से लिपटा हुआ
तुह्मारा अजगर सा अस्तित्व
सबकुछ लील जाने की व्यग्रता
संविधान के पन्नों को
थूक सने ऊंगलियों से पलट कर
आत्मरक्छा के प्रावधानों को
ढूंढ़ने की कोशिश
कुछ भी काम नहीं आता
क्योंकि उस वक्त
हिसाब मांगने वाला
तुह्मारी बनाई हुई
जाँच एजेन्सियां नहीं
अदालतें और गले में पट्टा डाले
पुलिस नहीं
उस वक्त
हिसाब मांगता है
बस समय
अविचलित, अक्षय
निर्मम समय

  • सुब्रतो चटर्जी
    2016 मेंं रचित.

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