केरल में महात्मा गांधी विश्वविद्यालय की छात्रा दीपा पी मोहनन अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल में बैठी थी. दलित पीएचडी छात्रा दीपा पी मोहनन का कहना है कि ‘महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के वीसी साबू थॉमस, प्रोफेसर नंदकुमार कलारिकल, जो एक सीपीआईएम नेता भी हैं और सरकार खुद जिम्मेदार होगी अगर उन्हें कुछ होता है.’
दीपा जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था जिसके कारण उन्होंने विरोध किया. उन्हें रिसर्च फेलोशिप नहीं दी गई थी. उन्हें अपने शोध कार्यों के लिए प्रयोगशाला सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी. दीपा द्वारा सामना किया गया संस्थागत शोषण और भेदभाव बेहद चौंकाने वाला है.
एससी-एसटी आयोग और केरल उच्च न्यायालय द्वारा विश्वविद्यालय को दीपा के शोध में तेजी लाने का आदेश देने के बावजूद, अधिकारियों की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है. दीपा ने हमेशा एमजीयू की सत्तारूढ़ माकपा लॉबी का विरोध करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अपनी दलित पहचान का उत्थान किया और उनके कुलीन रवैये पर भी सवाल उठाया.
अब विश्वविद्यालय के अधिकारी सत्तारूढ़ माकपा सरकार के समर्थन से दीपा से बदला ले रहे हैं. दीपा ने पहले विश्वविद्यालय से जातिगत भेदभाव के बारे में शिकायत की थी और विश्वविद्यालय की जांच रिपोर्ट कहती है कि प्रोफेसर नंदकुमार कलारीक्कल, जो एमजीयू के सिंडिकेट सदस्य भी हैं, दोषी हैं.
विश्वविद्यालय की जांच रिपोर्ट में राज्य पुलिस को एससी, एसटी एक्ट के तहत नंदकुमार के खिलाफ संज्ञान लेने की भी सिफारिश की गई है लेकिन उस प्रस्ताव को भी पलट दिया गया. इन्हीं परिस्थितियों में दीपा ने सीधे विरोध प्रदर्शन किया. दीपा की हालत गम्भीर है. वह दूसरी रोहित वेमुला न बने इसलिए दीपा को न्याय दिलाने हेतु सभी को मुखर होना चाहिए.
- आर. पी. विशाल
Read Also –
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]