16 साल की उम्र में चंगेज़ खां ने बोरते से शादी की लेकिन दुश्मन मेर्किट उनकी पत्नी को उठाकर ले गए. उनकी पत्नी को मेर्किट के बलात्कार से एक संतान हुई – जोची. कुछ सालों बाद जब चंगेज़ खां ज़बरदस्त युद्ध जीत कर अपनी पत्नी को वापस लाने जाते हैं, तब ना सिर्फ अपनी पत्नी बोरते को बल्कि उसकी संतान ‘जोची’ को भी लेकर आते हैं और अपनी ही संतान सा प्यार, दुलार और सम्मान देते हैं.
आगे चलकर भी ता-उम्र बोरते उनकी महारानी बनी रहतीं हैं और वे जोची को कईं राज्यों का प्रमुख बनाकर सौतेला बाप होते हुए भी एक बेहतरीन पिता की भूमिका निभाते हैं. वे अपनी पत्नी के साथ हुए अत्याचार और बलात्कार के लिए उसे न तो दोषी मानते हैं, न अग्निपरीक्षा मांगते हैं और ना ही दुश्मन की संतान से नफ़रत कर पाते हैं, पत्नी से उनके प्रेम पर कोई भी पुरुषवादी घृणा हावी तक न हो पाई.
इस बात में कोई दो राय नही कि चंगेज़ खां बेहद ख़ौफ़नाक लड़ाकू थे, लेकिन प्रेम की समझ उसमें हमारे किसी भी मिथकीय मर्यादा पुरुषोत्तम से बहुत अधिक थी. इसीलिये जब तक हम दुनिया के बारे में नहीं जानेंगे, अपनी कपोल कल्पनाओं में विश्वगुरु बने रहेंगे और पूरी दुनिया के सामने हंसी का पात्र.
जब मर्यादा पुरुषोत्तम चंगेज़ खां ने जोची को अपना उत्तराधिकारी बनाया
बीबीसी के लिखता है – जब चंगेज़ ख़ां की उम्र 60 साल से ऊपर हो गई तो उन्होंने अपने शिविर में अपनी पहली बीवी के गर्भ से पैदा हुए चार बेटों जोची, ओग़दाई, चुग़ताई और तोली को बुलवाया और ख़ास बैठक की, इसमें उनके उत्तराधिकारी के नाम का फ़ैसला होना था.
चंगेज़ ख़ां ने इस बैठक की शुरुआत में कहा, ‘अगर मेरे सब बेटे सुल्तान बनना चाहें और एक-दूसरे के मातहत काम करने से इनकार कर दें तो फिर क्या ये वही बात नहीं होगी जो पुरानी कहानियों के दो सांपों के बारे में कही जाती है, जिसमें से एक के कई सिर और एक दुम और दूसरे का एक सिर और कई दुमें थी ?
चंगेज़ ख़ान ने कहानी सुनाई कि जब कई सिरों वाले सांप को भूख लगती थी और वह शिकार के लिए निकलता था तो उसके कई सिर आपस में एकराय नहीं हो पाते थे कि किस तरफ़ जाना है. आख़िर कई सिरों वाला सांप भूख से मर गया जबकि कई दुमों वाला आराम से ज़िंदगी गुज़ारता रहा.
उसके बाद चंगेज़ ने अपने सबसे बड़े बेटे जोची ख़ान को बोलने के लिए बुलाया. इसके मुताबिक़ पहले बोलने का हक़ देने का मतलब ये था कि बाक़ी भाई जोची की सत्ता क़बूल कर लें
ये बात दूसरे नंबर वाले बेटे चुग़ताई को हज़म नहीं हो सकी. वह उठ खड़ा हुआ और अपने पिता से कहा, ‘क्या इसका मतलब है कि आप जोची को अपना उत्तराधिकारी बना रहे हैं ? हम किसी नाजायज़ औलाद को अपना प्रमुख कैसे मान सकते हैं ?’ चुग़ताई का इशारा 40 साल पुरानी उस घटना की ओर था जब चंगेज़ की पहली पत्नी बोरता ख़ातून को चंगेज़ के विरोधी क़बीले ने अग़वा कर लिया था.
जोची का जन्म
बोरता 1161 में ओलखोंद क़बीले में पैदा हुई थी जो तैमूजिन (चंगेज़ ख़ान का असली नाम) के बोरजिगन क़बीले का सहयोगी था. उन दोनों की बचपन ही में मंगनी हो गई थी, जबकि शादी उस वक़्त हुई जब बोरता की उम्र 17 और चंगेज़ की उम्र 16 बरस थी. बोरता को फ़र का कोट बतौर दहेज़ दिया गया.
शादी के चंद ही दिन बाद विरोधी क़बीले ने कैंप पर धावा बोल दिया. तैमूजिन अपने छह छोटे भाइयों और मां समेत फ़रार होने में कामयाब हो गए, लेकिन उसकी दुल्हन पीछे ही रह गई. विरोधी क़बीला वास्तव में बोरता के लिए ही आया था.
कहानी कुछ यूं है कि तैमूजिन की मां एक विरोधी क़बीले से संबंध रखती थी और उसे तैमूजिन के पिता ने अग़वा करके अपनी बीवी बना लिया था. वह क़बीला इस बात को बरसों बाद भी भुला नहीं पाया था और वह बोरता को उठाकर तैमूजिन की मां के बदले लेना चाहता था. बोरता एक बैलगाड़ी में छिप गई, लेकिन उसे विरोधी क़बीले ने ढूंढ निकाला और घोड़े पर डालकर साथ ले गए.
तैमूजिन ने अपनी दुल्हन को खोजने की कोशिश जारी रखी. वह ख़ानाबदोश मरकद क़बीला था जो एशिया के हज़ारों मील के क्षेत्र में फैले मैदानों में जाता था. वह जहां-जहां जाता था तैमूजिन कुछ फ़ासले से उनके पीछे होता था. इसी दौरान उसने इधर-उधर से साथी भी इकट्ठा करना शुरू कर दिया. उस दौरान तैमूजिन कहता था, ‘मरकदों ने सिर्फ़ मेरा शिविर ही सूना नहीं किया बल्कि सीना चीरकर मेरा दिल भी निकाल ले गए हैं.’
आख़िरकार जब मरकद क़बीला 400 किलोमीटर दूर साइबेरिया की बैकाल झील के क़रीब पहुंचा तो तैमूजिन ने अपने दो साथियों के साथ छापा मारकर बोरता को दुश्मनों से छुड़ा लिया. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस घटना का चंगेज़ ख़ान की ज़िंदगी में बड़ा महत्व है, क्योंकि इसने उन्हें उस रास्ते पर डाल दिया जिस पर आगे चलकर उन्होंने दुनिया के बड़े हिस्से पर राज किया.
बोरता को छुड़ाते-छुड़ाते आठ महीने गुज़र चुके थे और उनकी वापसी के कुछ ही अरसे के बाद जोची का जन्म हुआ. उस समय भी कई बार कानाफूसियां हुईं, लेकिन चंगेज़ ने हमेशा जोची को अपना बेटा ही माना और यही वजह है कि अब वह अपनी ज़िदंगी के आख़िरी दौर में उसी को उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे.
जोची को उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे चंगेज खां
लेकिन उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि 40 बरस बाद यही घटना उनके गले की हड्डी बन जाएगी और उनके अपने बेटे उनके सामने एक बेटे की पहचान को लेकर उन्हें दुविधा में डाल देंगे.
चुग़ताई ने जब जोची पर आरोप लगाया तो जोची चुप न बैठ सका. उसने उठकर चुग़ताई को थप्पड़ दे मारा और दोनों भाइयों में हाथापाई हो गई. दरबारियों ने बड़ी मुश्किल से दोनों को छुड़ाया. चंगेज़ ख़ान को अंदाज़ा हो गया कि उनके मरने के बाद तीनों छोटे बेटे कभी भी जोची को बतौर राजा स्वीकार नहीं कर सकेंगे और आपस में लड़कर उसकी सल्तनत को तबाह कर देंगे.
अब चुग़ताई ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसको छोटे भाइयों ने तुरंत समर्थन दे दिया. उसने बीच का रास्ता पेश किया कि न वह, न जोची बल्कि तीसरे नंबर वाले भाई ओग़दाई को बादशाह बना दिया जाए.
चंगेज़ ख़ान को चोट तो गहरी लगी थी, लेकिन कोई और चारा नहीं था. उन्होंने कहा, ‘धरती मां व्यापक है और इसकी नदियां और झीलें बेशुमार हैं. एक दूसरे से दूर-दूर तंबू स्थापित करें और अपनी-अपनी सल्तनतों पर राज करें.’
तथाकथित मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र
भारतीय काल्पनिक कथा में जिस मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जिक्र किया गया है, वहां भी ठीक यानी लगभग ऐसी ही घटना का वर्णन है, जब रामचंद्र की पत्नी सीता को रावण नामक प्रतिस्पर्धी ने जबरन उठा लिया था.
रामचन्द्र ने भी चंगेज खां की भांति उसका पीछा किया और रावण के चंगुल से सीता को आजाद कराया. लेकिन पुरुषसत्तात्मक समाज के उपज रामचन्द्र ने सीता को चंगेज खां की भांति सहज स्वीकार नहीं किया, अपितु उसने सीता को अग्नि परीक्षा देने के लिए बाध्य किया.
अग्नि परीक्षा के उपरांत भी रामचन्द्र ने जब सीता को वापस लेकर आया तो उसने महज लोकोपवाद के कारण उसे जबरन जंगल में निष्कासित कर दिया. यहां तक कि बाद में जब सीता के दोनों बच्चों ने खुद को रामचन्द्र का पुत्र बताया तब भी राम ने इसके प्रमाण के लिए सीता को अग्नि परीक्षा देने के लिए बाध्य किया. अपने पुत्रों के हित खातिर अग्नि परीक्षा देने के बाद सीता ने आत्महत्या कर लिया.
तय करो मर्यादा पुरुषोत्तम कौन, नकली राम या असली चंगेज ?
भारतीय पितृसत्तात्मक समाज के ठेकेदारों ने मिथकीय राम के तथाकथित मर्यादा पुरुषोत्तम की नकली छबि के सहारे देश के तमाम मेहनतकश वर्गों (महिलाओं समेत) को गुलाम बनाये रखने के दुश्चक्र का सूत्रपात किया है. आज सबसे बड़ी जरूरत है कि राम जैसे मिथकीय पात्रों के सहारे गढ़ी जा रही गुलामी की नई परम्पराओं को ध्वस्त कर, पितृसत्तात्मक समाज को ध्वस्त कर एक नई समाजवादी व्यवस्था को सृजित करने की लड़ाई को जारी रखा जाये.
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