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‘मैं आज भी सत्ता में नहीं हूं’ हद दर्जे की नाटकबाजी

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'मैं आज भी सत्ता में नहीं हूं' हद दर्जे की नाटकबाजी

विष्णु नागर

मान्यवर, पिछली बार ‘मन की बात’ में आपने कहा : ‘मैं आज भी सत्ता में नहीं हूं और भविष्य में सत्ता में जाना नहीं चाहता हूं. मैं सिर्फ सेवा में रहना चाहता हूं. मेरे लिए ये पद, ये प्रधानमंत्री, ये सारी चीजें सत्ता के लिए हैं ही नहीं, सेवा के लिए है.’

ऐसा है माननीय आप केवल नरेन्द्र मोदी होते, भाजपा के नेता होते, उसके अध्यक्ष होते तो आप अपने को कितना भी हास्यास्पद बनाते, दुःख न होता मगर खुशी भी न होती. पर आप संयोग से प्रधानमंत्री हैं और आप अभी कम से कम ढाई साल और इस पद को ‘शोभायमान’ या जो कुछ भी आप अभी तक करते रहे हैं, करते रहेंगे.

इसलिए आप जब हास्यास्पद हो जाते हैं तो महोदय, दुःख होता है. ऐसा लगता है जैसे मैं खुद हास्यास्पद हो चुका हूं. इस देश के 130 करोड़ लोग हास्यास्पद हो चुके हैं, हमारा लोकतंत्र हास्यास्पद हो चुका है.

हममें से अधिकांश ने आपकी पार्टी को वोट देने का पाप सपने तक में नहीं किया है. फिर भी यह जिलल्त भोगनी पड़ रही है, इसलिए माननीय-विमाननीय और भी बुरा लगता है वरना इसे अपना ही पाप मान कर झेलते रहते. आप प्रधानमंत्री हो तो हम ये तो नहीं कह सकते कि आप चूंकि हास्यास्पदता की सारी सीमाएं लांघ रहे हो, इसलिए आज से आप हमारे प्रधानमंत्री नहीं हो.

आप हममें से किसी को देशद्रोही, नक्सली, बांग्लादेशी, आंदोलनजीवी आदि कह और कहलवा सकते हो, जिसको चाहे हममें से जेल भिजवा सकते हो पर हममें से कोई लाख आपको भलाबुरा कहे मगर ये तो नहीं कह सकता कि आप देश के प्रधानमंत्री नहीं हो यानी हमारे प्रधानमंत्री नहीं हो. और हो तो माननीय हमारी इज्जत बचाना भी आपका एक काम है.

आपने कहा, मैं प्रधानसेवक हूं तो हमने यह कड़ुआ घूंट पी लिया, ऊपर से थोड़ा पानी पी लिया. सब ठीक हो गया. अब भी आपने इतना ही कहा होता कि मैं राजनीति में सेवा के लिए आया हूं तो माननीय इतना सफेद राजनीतिक झूठ चल जाता. आपको विशेष रूप से जनता ने कुछ ज्यादा ही झूठ बोलने की इजाज़त दे रखी है, इसलिए और भी मजे से चल जाता.

मगर महाशय आपने तो सारी लिमिट क्रास कर दी. कहा कि मैं आज भी सत्ता में नहीं हूं, सत्ता में जाना भी नहीं जाना चाहता हूं, ये नाटक क्या है महोदय ? नाटक बहुत हो चुका ये सब. अब इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि आप सत्ता में ही हो और कहीं नहीं हो.

आज तक के किसी भी प्रधानमंत्री से ज्यादा आप सत्ता में हो. आप कहीं और हो ही नहीं सकते. सत्ता ही आपकी दिनचर्या है. आपका नाश्ता, खाना, पीना, सोना, गाना-बजाना सब सत्ता है. सत्ता ही आपका साबुन, तेल, पावडर-वावडर सब है.

सत्ता के जल में ही आप नहाते हो. सत्ता का ही आप पूजा-पाठ, ध्यान, मनन, सेवन, खेवन करते हो. सत्ता ही आपका पलंग, कुर्सी, सोफासेट है. किसी प्रधानमंत्री ने इतना हाय सत्ता, हाय सत्ता नहीं किया, जितना आपने किया है अपने इन साढ़े सात सालों में. आपने इसी सत्ता के मद में सारे हिंदुस्तानियों का जीना हराम कर रखा है और आप कहते हो – ‘मैं सत्ता में न हूं, न जाना चाहता हूं !’

क्या आपको ही यह बताऊं कि आपने किस-किस तरह जीना हराम कर रखा है ? जीना हराम करना भी छोटी बात है महोदय, आपने तो मरना तक हराम कर रखा है. लोग तड़प तड़प कर मरे हैं कोरोना से और उन्हें इनसान की तरह मरने और अंतिम संस्कार तक का मौका नहीं दिया है आपने, और आप कहते हो, ये पद, ये प्रधानमंत्री सारी चीजें सत्ता के लिए नहीं हैं तो क्या भजन करने के लिए हैं ? भजन करके क्या इस देश में इतनी नफरत पनपाई जा सकती थी ?

वाकई भजन करना है तो महाशय घर में करो, मंदिर में करो, प्रधानमंत्री निवास उसकी जगह नहीं है. तपस्या के बारे में आप बताते हो कि आपने हिमालय में की है तो फिर वहीं जा कर करो, मगर हमारे करोड़ों रुपये लुटाकर नहीं.

और सच्ची तपस्या तो यह होगी माननीय कि जीवन का एक शतक पूरा करने की तरफ बढ़ रही अपनी मां की सेवा अहमदाबाद जा कर करो और अपनी पत्नी को भी वहीं बुला लो. दोनों मिलकर उनकी सेवा करो. बहुत कम लोगों को यह सौभाग्य प्राप्त होता है.

71 के खुद हो चुके हो, जाओ अब तो कुछ करो. देश की सेवा करने को उत्सुक तो बहुत से हैं और आपसे बेहतर कर लेंगे. मां की सेवा से आपको ट्रेनिंग मिलेगी कि सेवा क्या होती है. अंबानी-अडानी की सेवा, सेवा नहीं होती.

पर खैर आपको यह सब नहीं करना है पर हद दर्जे की नाटकबाजी भी मत करो. सेवा तो आप उन्हीं की कर सकते हो, जिनकी करते रहे हो इसलिए मैं सत्ता में नहीं हूं, न जाना चाहता हूं वगैरह मत कहा करो. हास्यास्पद बने बिना भी प्रधानमंत्री बने रहना इस देश में संभव है. पहले के प्रधानमंत्रियों ने यह रास्ता दिखाया है.

सबके पास आंखें हैं, कान हैं, नाक है, दिमाग है, लोगों को बेवकूफ मत समझो. सब देख रहे हैं कि मोदी क्या है. अपने को ही होशियार मत समझो. लोगों के पेट पर जब लात पड़ती है तो सेवक और मेवक का फर्क नजर आ जाता है.

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सरकारी विज्ञापनों का दुरुपयोग सरकारी दल इतना अधिक करते हैं कि और तो कोई क्या करेगा. सुप्रीम कोर्ट ही कुछ कर सकती है. आजकल लगभग रोज मोदी जी और आदित्यनाथ जी द इंडियन एक्सप्रेस और अन्य अखबारों के मुखपृष्ठ पर छाये रहते हैं. आज तीन पेज का विज्ञापन है अखबार में. अखबार की खबरें अंदर है. विज्ञापन सबसे ऊपर है. शीर्ष पर अखबार का नाम न हो तो पता भी न चले कि यह आज का अखबार है.

दो दिन से गोरखपुर-गोरखपुर हो रहा है, विकास-विकास हो रहा है. कल-परसों से कहीं और का ‘विकास’ शुरू हो जाएगा. वैसे भी दिल्ली की मेट्रो हो या सड़कें आदित्यनाथ जी और मोदी जी के ‘कीर्तिमानों’ से लदीफंदी रहती हैं. टीवी देखो तो वहां भी यही. ऐसा लगता है विकास बरस रहा है. ‘विकास’ यूपी में हो रहा है, उसकी बरसात दिल्ली में हो रही है.

अधिक गंभीर बात यह है कि चुनावी विज्ञापन सरकारी पैसे से हो रहे हैं. यानी प्रदेश की जनता की जेब काटकर हो रहे हैं. और रोज जनता का पैसा इस तरह लुटाने का अधिकार इन्हें क्यों होना चाहिए ? फिर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कहीं उद्घाटन या शिलान्यास के लिए जाते हैं तो उनके लिए तमाम इंतजामात पर रोज करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. ‘लाभार्थियों’ को सरकारी बसों से ढोकर लाया जाता है, खिलाया-पिलाया जाता है.

इस तरह का खर्च तमाम सरकारी विभागों के बजट से किया जाता है. नतीजा नया एम्स खुलता है और उसमें पर्याप्त डाक्टर, बाकी स्टाफ और आवश्यक उपकरण नहीं होते. साधारण अस्पतालों की हालत इससे भी बुरी होती है. स्कूलों में अध्यापक नहीं, भवन नहीं, जरूरी सु्विधाएं नहीं. यही हालत हर क्षेत्र का होता है. चूंकि विकास है नहीं, इसलिए विकास का विज्ञापन अधिक है, इसलिए लुंगी और जालीदार टोपी जैसे सांप्रदायिक वक्तव्य इन सरकारी आयोजनों तक में हैं.

विकास के फर्जी दावे हैं. इतने विज्ञापन देकर पूरे मीडिया को भी साधा जाता है कि वह सच्चाई पर पर्दा डालता रहे. ‘विकास’-‘विकास’ करता रहे. जनता के धन से ही जनता को ही बेवकूफ बनाया जाता है, ऐश किया-करवाया जाता है. जनविरोधी सरकारी खर्च जनता के धन से ही ठाठ से किया जाता है और यह लोकतंत्र है, लोकतंत्र पर भारी भारी भाषण हैं. ये राजतंत्र है या लोकतंत्र ?

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ROHIT SHARMA

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