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सुधा भारद्वाज के जन्म दिन पर : सड़ चुकी न्यायपालिका का प्रतीक

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सुधा भारद्वाज के जन्म दिन पर : सड़ चुकी न्यायपालिका का प्रतीक

Kanak Tiwariकनक तिवारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, छत्तीसगढ़

भीमा कोरेगांव के मामले में अनावश्यक रूप से गिरफ्तार मानव अधिकार कार्यकर्ताओं में एक सुधा भारद्वाज के बारे में मैं शुरू से बता दूं. सुधा और मेरा बहुत पुराना परिचय है. दुर्ग जिले में राजहरा में श्रमिक आंदोलन के बहुत बड़े नेता शंकर गुहा नियोगी आपातकाल के पहले से मेरे बहुत करीब रहे हैं. मैं लगातार उनकी मदद करता रहा, उनकी यूनियन की, उनकी सहकारी समितियों की. नियोगी से घरोबा जैसा हो गया था. उनकी हत्या कर दी गई. इसका दुख और क्रोध आज तक हम लोगों को है. उनके सहयोगी सुधा भारद्वाज, अनूप सिंह, विनायक सेन, गणेशराम चौधरी, शेख अन्सार, सहदेव साहू, जनकलाल ठाकुर तथा कई और मित्र हुए. आत्मीय रिश्ता परिवार की तरह होता गया. वह अनौपचारिकता कायम है.

सुधा वकालत में भी मेरे ऑफिस में जूनियर रही. हमने कई मुकदमे साथ किए. मेरे एक और जूनियर रहे गालिब द्विवेदी ‘बंटी’ ने एक दिलचस्प टिप्पणी की है – ‘जैसे हम लोग आपकी डांट से डरते थे, वैसे ही सुधा दीदी भी डरती थी. बहुत सी फाइलों के बीच में काम करते करते थककर सोफे पर कुछ देर सो जाती थी और कहती थी देखना सर आएंगे तो डांट पड़ेगी कि यह काम नहीं किया, वह काम नहीं किया. वी लव यू सर हम सबका सौभाग्य है कि हमें आपका साथ एवं आपका सानिध्य प्राप्त हुआ है.’

बस्तर में टाटा और एस्सार स्टील के लगने वाले कारखानों को चुनौती देने वाली हमने सुधा के नाम से जनहित याचिका दायर की. कई जनहित के मामले भी बस्तर के आदिवासियों के पक्ष में हिमांशु कुमार की पहल पर किए. जस्टिस राजेंद्र सच्चर और वकील कन्नाबिरन, राजेंद्र सायल, विनायक सेन और सुधा भारद्वाज के कारण मैं कई बार पीयूसीएल के कार्यक्रमों में गया हूं. मैं विनायक सेन का भी वकील रहा हूं. उन्हें नक्सलवादी कहा गया. बहुत मुश्किल से उनकी सुप्रीम कोर्ट में जमानत हुई. कुछ और वकील, पत्रकार, छात्र पिछले वर्ष आंध्रप्रदेश से तेलंगाना से छत्तीसगढ़ में गिरफ्तार किए गए. उनके मामले की भी छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में पैरवी की.

जिसे नक्सलवादी साहित्य कहते हैं, उसमें से बहुत-सा तो सरकारी अधिनियमों के तहत ही छपता है, उसे कोई जप्त नहीं कर सकता. मामलों में पुलिस उल्टा ही कहती रहती है. छत्तीसगढ़़ जनसुरक्षा विशेष अधिनियम में डॉक्टरों, कलाकारों, लेखकों, दर्जियों को पकड़ लिया जाता रहा है. छत्तीसगढ़ में सरकार के प्रोत्साहन से तथाकथित सलवा जुडूम नाम का कांग्रेस द्वारा समर्थित वितंडावाद हुआ था, उसकी हम सब ने मुखालफत की थी. अदालत तक गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने उस सलवा जुडूम के पूरे सरंजाम को ध्वस्त कर दिया. नंदिनी सुंदर ने इस संबंध में महत्वपूर्ण काम किया है. मेधा पाटकर ने भी, अरुंधती राय ने भी, सुधा भारद्वाज ने भी, बहुत लोगों ने. डा. ब्रह्मदेव शर्मा से कई मामलों में इसी तरह के मामलों में सक्रिय संबंध हम लोगों का रहा है.

सुधा चाहती तो बहुत ऐशो आराम का जीवन व्यतीत कर सकती थी. चाहती तो बहुत से शहरी लोगों की तरह आंदोलन करती. शोहरत भी पाती, दौलत भी पाती, फिर भी गरीबों की नेता बनी रहती लेकिन उसने वैभव और शहरी ठाटबाट की जिंदगी छोड़ दी. उसने गरीबी से अपनी जिंदगी, जो तारीफ के काबिल है, चलाई है. छत्तीसगढ़ से दिल्ली चली गईं अपने निजी कारणों से. कुछ पारिवारिक कारण भी थे. उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया है. उसका जीवन संवारती रही. मैं उसके पहले से बीमार चल रहा था. बहुत भावुक होकर मैंने फोन भी किया था. लिखा भी था, मेरी छोटी बहन को. काश ! सुधा छत्तीसगढ़ से नहीं जाती. सुधा भारद्वाज की तरह के उदाहरण हिंदुस्तान में उंगलियों पर गिने जाएंगे, इससे ज्यादा मैं क्या कहूं.

सुधा भारद्वाज की अर्णव गोस्वामी के गोदी मीडिया ट्रोल आर्मी के द्वारा चरित्र हत्या की कोशिश की जाती रही है. कुछ बातें और बताऊंगा. कुछ वर्षों पहले छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस और कुछ जजों ने सुधा को लेकर मुझसे बात की थी. वे चाहते थे कि सुधा छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में जज बनने के लिए अपनी स्वीकृति दे दे. सुधा ने विनम्रतापूर्वक इनकार किया. मैंने सुधा से पूछा भी था, तो हंस कर टाल गई. उसने कहा आप जानते हैं, यह काम मैं नहीं कर पाऊंगी. मुझे जो काम करना है, वह मैं ठीक से कर रही हूं. मैं भी जानता था, वह इस काम के लिए नहीं बनी है. फिर भी उसकी योग्यता और क्षमता को देखकर मैंने सिफारिश करने की कोशिश जरूर की थी.

सुधा एक आडंबररहित सीधा-सादा जीवन जीती रही है. उनमें दु:ख और कष्ट सहने की बहुत ताकत है. यूनियन में, संगठन में मतभेद भी होते थे. बहुत से मामलों को सुलझाने में मैं खुद भी शरीक रहा हूं. बहुत अंतरंग बातें मुझे बहुत सी कई मित्रों के बारे में मालूम है. कुल मिलाकर सब एक परिधि के अंदर रहते थे, उसके बाहर नहीं जाते थे. जैसे बर्तन आपस में रसोई घर में टकरा जाते होंगे लेकिन एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते. ऐसे बहुत से साथियों के बारे में भ्रम फैलाया जाता रहा है. अफवाह फैलाने वाले खराब किस्म के घटिया लोग हैं.

मैं तो कांग्रेस पार्टी का पदाधिकारी रहकर भी कांग्रेस की सत्ता के जमाने में नियोगी के कंधे से कंधा मिलाकर सरकारी आदेशों और व्यवस्था का विरोध करने सहयोग करता था. मुझे किसी का भय नहीं था. कांग्रेस पार्टी ने भी कभी मुझे काम करने से नहीं रोका. यह ईमानदार मजदूर लोगों का एक संगठन है, पारदर्शी लोगों का. जब से यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बिकाऊ हो गया है, घटिया हो गया है, सड़ा हो गया है, तब से इस तरह की हरकतें वह कर रहा है. न्याय व्यवस्था भी सड़ गई है. जस्टिस कृष्ण अय्यर ने तो न्यायपालिका नामक संस्था को ही अस्तित्वहीन कह दिया है.

कई साथियों सहित सुधा की जमानत तक नहीं होने से मुझे भारतीय न्याय व्यवस्था पर भरोसा घटा है. उनके प्रकरण तो न्यायिक अन्याय की श्रेणी के हैं. बेइन्साफ मशीनरी में इन्साफ कैसे मिल पाएगा ?

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