रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शशिकांत दास जी से प्रभावित, प्रफ्फुलित और संतुष्ट होते हुये मोदीजी ने उनका कार्यकाल अगले 3 वर्षों के लिये और बढ़ा दिया है. वैसे तो शशिकांत दास जी देश के 25वें गवर्नर हैं लेकिन मेरी ख्याल से इतिहास की डिग्री लेकर रिज़र्व बैंक के गवर्नर बनने वाले शायद पहले व्यक्ति हो सकते हैं.
नोटबन्दी में भी इनकी बड़ी भूमिका बताई जाती है, जिसका परिणाम आपके समक्ष है. अर्थव्यवस्था/जीडीपी/महंगाई की बात ही क्या करूं क्योंकि आप उसे तथ्यात्मक नजरिये से देखने या समझने की बजाय आलोचनात्मक दृष्टि से देखेंगे. लेकिन इतना समझ लीजिए कि आखिर बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों को दरकिनार कर इनको तबज्जो क्यों मिली ?
एक छोटा-सा आंकड़ा बता रहा हूं बाक़ी जवाब खुद ढूंढें. सन 1947 से 2014 तक भारत पर 52 लाख करोड़ का कर्ज़ था. 7 सालों में यानि 2014 से 2021 तक अब यह कर्ज़ 116 लाख करोड़ हो गया है. 7 सालों में 64 लाख करोड़ का कर्ज़, क्या आपको अचंभित नहीं करता ? क्या कोई बड़ा प्रोजेक्ट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, रोजगार हब स्थापित हुआ ?
आपको हैरानी होगी कि 2014 में कोई 24 करोड़ गरीब थे, जो राशन लेते थे, आज 80 करोड़ को राशन दिया जा रहा है. इस हिसाब से 2029 तक ‘150 करोड़’ को राशन देना पड़ेगा. भुखमरी के मामले में भारत 2015 में 55वें स्थान पर था पिछले 6 सालों में 101 पर पहुंच गया. यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल से भी हार गये लेकिन हमें बुरा सिर्फ क्रिकेट में हारने से लगता है ?
वैसे बुरा नहीं लगेगा किसी को क्योंकि हमारे देश का अर्थशात्र ही ऐसा है. फिर इतिहास, भूगोल, विज्ञान, राजनीति इन सब पर क्या ही कहना ! काबिल और जानकारों को पदों पर टिकने ही नहीं दिया जाता है, डिपार्टमेंट चाहे कोई भी हो. समझौते वाले या फिर अपने वाले दो किस्म के लोग ही पदासीन, सत्तासीन रह सकते हैं. जिस देश में मुद्दे, आंकड़े, तर्क और तथ्य महत्वपूर्ण नहीं होंगे उसके भविष्य का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता हैं.
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पूरी हिंदी मीडिया से यह खबर गायब है एसबीआई की पूर्व चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य अब मुकेश अंबानी के रिलायंस इंडस्ट्रीज में 5 साल के लिए इंडिपेंडेंट डायरेक्टर हो गयी है.
आपको याद नही होगा इसलिए आपको याद दिलाने का यह उचित समय है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य के कार्यकाल मे ही रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के साथ जियो पेमेंट्स बैंक एसबीआई के साथ ज्वाइंट वेंचर में एक्टिव पार्टनर बन गया था.
जियो पेमेंट बैंक में एसबीआई की सिर्फ 30 फीसदी हिस्सेदारी दी गयी जबकि 70 फीसदी हिस्सेदारी रिलायंस इंडस्ट्रीज को दे दी गयी थी. गजब की बात तो यह है कि जियो पेमेंट बैंक लिमिटेड को नोटबंदी के ठीक दो दिन बाद ही 10 नवंबर, 2016 को आधिकारिक तौर पर निगमित किया गया था.
इस समय मार्केट में मिल रहे तगड़े कॉम्पिटिशन के बावजूद एसबीआई का पेमेंट स्पेस में 30% मार्केट शेयर है. एक तरह से थाली में सजाकर एसबीआई के कस्टमर को जिओ को परोस दिया गया था, यह कमाल अरुंधति भट्टाचार्य जी ने ही किया था.
अरुंधति द्वारा जियो पेमेंट बैंक को एसबीआई के बड़े नेटवर्क का फायदा जो दिलवाया गया उस अहसान को आज मुकेश अम्बानी ने चुका दिया है. यह बिल्कुल इस हाथ ले और उस हाथ दे वाला मामला है.
कुछ समय पहले सिर्फ कागजों में बन रहे जिओ इंस्टिट्यूट को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दिया था. उसके पीछे की असली वजह यह थी कि जिन्होंने ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस’ की नीति बनाई थी, वह विनय शील ओबरॉय जी मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग में मार्च, 2016 में एचआरडी सेक्रटरी थे और वही रिटायरमेंट के तुरंत बाद रिलायंस में एजुकेशन के क्षेत्र में एडवाइजर के पद पर जॉइन हो गए थे ओर उन्होंने ही पूरा प्रजेंटेशन तैयार करवाया था.
इतना खुले आम भ्रष्टाचार हो रहा है लेकिन मजाल है कि गोदी में बैठा हुआ मीडिया इसके खिलाफ तो छोड़िए, इस बात को ढंग से रिपोर्ट कर देना तक जरूरी नही समझ रहा है.
- आर. पी. विशाल, अजय कुमार सिंह
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