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ब्रह्मांड की उत्पत्ति : महाविस्फोट का सिद्धांत

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ब्रह्मांड की उत्पत्ति : महाविस्फोट का सिद्धांत

‘सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था. छिपा था क्या कहां, किसने देखा था. उस पल तो अगम, अटल जल भी कहां था.’

-ऋग्वेद (10:129), सृष्टि सृजन का सूक्त

लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी यह श्रुति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी इसे रचित करते समय थी. सृष्टि की उत्पत्ति आज भी एक रहस्य है. सृष्टि के पहले क्या था ? इसकी रचना किसने, कब और क्यों की ? ऐसा क्या हुआ जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ ? अनेकों अनसुलझे प्रश्न हैं जिनका एक निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं है. कुछ सिद्धांत है जो कुछ प्रश्नों का उत्तर देते हैं और कुछ नये प्रश्न खड़े करते हैं. सभी प्रश्नों के उत्तर देने वाला सिद्धांत अभी तक सामने नहीं आया है. सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त सिद्धांत है – महाविस्फोट सिद्धांत (The Bing Bang Theory) का.

महाविस्फोट सिद्धांत (The Bing Bang Theory)

1929 में एडवीन हब्बल ने एक आश्चर्यजनक खोज की. उन्होने पाया की अंतरिक्ष में आप किसी भी दिशा में देखे आकाशगंगायें और अन्य आकाशीय पिंड तेजी से एक दूसरे से दूर हो रहे हैं. दूसरे शब्दों में ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है. इसका मतलब यह है कि इतिहास में ब्रह्मांड के सभी पदार्थ आज की तुलना में एक दूसरे से और भी पास रहे होंगे. और एक समय ऐसा रहा होगा जब सभी आकाशीय पिंड एक ही स्थान पर रहे होंगे, लेकिन क्या आप इस पर विश्वास करेंगे ?

ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति (महाविस्फोट से लेकर)

तब से लेकर अब तक खगोल शास्त्रियों ने उन परिस्थितियों का विश्लेषण करने का प्रयास किया है कि कैसे ब्रह्मांडीय पदार्थ एक दूसरे से एकदम पास होने की स्थिति से एकदम दूर होते जा रहे हैं.

इतिहास में किसी समय, शायद 10 से 15 अरब साल पूर्व, ब्रह्मांड के सभी कण एक दूसरे से एकदम पास पास थे. वे इतने पास पास थे कि वे सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर. सारा ब्रह्मांड एक बिन्दु की शक्ल में था. यह बिन्दु अत्यधिक घनत्व (infinite density) का, अत्यंत छोटा बिन्दु (infinitesimally small ) था.

ब्रह्मांड का यह बिन्दु रूप अपने अत्यधिक घनत्व के कारण अत्यंत गर्म (infinitely hot) रहा होगा. इस स्थिति में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है. यह वह स्थिति है जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है. काल या समय भी इस स्थिति में रुक जाता है, दूसरे शब्दों में, काल और समय के कोई मायने नहीं रहते है.* इस स्थिति में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार होना शुरू हुआ. एक महाविस्फोट के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ और ब्रह्मांड में पदार्थ ने एक दूसरे से दूर जाना शुरू कर दिया.

  • महा विस्फोट के 10-43 सेकंड के बाद, अत्यधिक ऊर्जा (फोटान कणों के रूप में) का ही अस्तित्व था. इसी समय क्वार्क , इलेक्ट्रान, एन्टी इलेक्ट्रान (पोजीट्रान) जैसे मूलभूत कणों का निर्माण हुआ. इन कणों के बारे हम अगले अंकों मे जानेंगे.
  • 10-34 सेकंड के पश्चात, क्वार्क और एन्टी क्वार्क जैसे कणों का मूलभूत कणों के अत्याधिक उर्जा के मध्य टकराव के कारण ज्यादा मात्रा में निर्माण हुआ. इस समय कण और उनके प्रति-कण (1) दोनों का निर्माण हो रहा था, इसमें से कुछ एक कण और उनके प्रति-कण(2) दूसरे से टकरा कर खत्म भी हो रहे थे. इस समय ब्रम्हांड का आकार एक संतरे के आकार का था.
  • 10-10 सेकंड के पश्चात, एन्टी क्वार्क क्वार्क से टकरा कर पूर्ण रूप से खत्म हो चुके थे, इस टकराव से फोटान का निर्माण हो रहा था. साथ में इसी समय प्रोटान और न्युट्रान का भी निर्माण हुआ.
  • 1 सेकंड के पश्चात, जब तापमान 10 अरब डिग्री सेल्सीयस था, ब्रह्मांड ने आकार लेना शुरू किया. उस समय ब्रह्मांड में ज्यादातर फोटान, इलेक्ट्रान, न्युट्रीनो (3) और उनके प्रतिकणों के साथ में कुछ मात्रा में प्रोटान तथा न्युट्रान थे.
  • प्रोटान और न्युट्रान ने एक दूसरे के साथ मिल कर तत्वों (elements) का केन्द्र (nuclei) बनाना शुरू किया, जिसे आज हम हाइड्रोजन, हीलीयम, लिथियम और ड्युटेरीयम के नाम से जानते हैं.
  • जब महाविस्फोट के बाद तीन मिनट बीत चुके थे, तापमान गिरकर 1 अरब डिग्री सेल्सीयस हो चुका था. तत्व और ब्रह्मांडीय  विकिरण (cosmic radiation) का निर्माण हो चुका था. यह विकिरण आज भी मौजूद है और इसे महसूस किया जा सकता है.
  • आगे बढ़ने पर 300,000 वर्ष के पश्चात, विस्तार करता हुआ ब्रह्मांड अभी भी आज के ब्रह्मांड से मेल नहीं खाता था. तत्व और विकिरण एक दूसरे से अलग होना शुरू हो चुके थे. इसी समय इलेक्ट्रान, केन्द्रक के साथ में मिल कर परमाणु का निर्माण कर रहे थे. परमाणु मिलकर अणु बना रहे थे.
  • इस के 1 अरब वर्ष पश्चात, ब्रह्मांड का एक निश्चित-सा आकार बनना शुरू हुआ था. इसी समय क्वासर, प्रोटोगैलेक्सी (आकाशगंगा का प्रारंभिक रूप), तारों का जन्म होने लगा था. तारे हाइड्रोजन जलाकर भारी तत्वों का निर्माण कर रहे थे.
  • आज महाविस्फोट के लगभग 14 अरब साल पश्चात की स्थिति देखे – तारों के साथ उनका सौर मंडल बन चुका है. परमाणु मिलकर कठिन अणु बना चुके है, जिसमें कुछ कठिन अणु जीवन ( उदाहरणत: Amino Acid) के मूलभूत कण हैं. यही नहीं काफी सारे तारे मर कर श्याम विवर (black hole) बन चुके हैं.

ब्रह्मांड का अभी भी विस्तार हो रहा है, और विस्तार की गति निरंतर बढ़ती जा रही है. विस्तार होते हुये ब्रह्मांड की तुलना आप एक गुब्बारे से कर सकते हैं. जिस तरह गुब्बारे को फुलाने पर उसकी सतह पर स्थित बिन्दु एक दूसरे से दूर होते जाते हैं उसी तरह आकाशगंगायें एक दूसरे से दूर जा रही है. यह विस्तार कुछ इस तरह से हो रहा है, जिसका कोई केन्द्र नहीं है. हर आकाशगंगा दूसरी आकाशगंगा से दूर जा रही है.

वैकल्पिक सिद्धांत (The Alternative Theory)

इस सिद्धांत के अनुसार काल और अंतरिक्ष एक साथ महाविस्फोट के साथ प्रारंभ नहीं हुये थे. इसकी मान्यता है कि काल अनादि है, इसका ना तो आदि है ना अंत. आयें इस सिद्धांत को जाने.

आकाशगंगाओं (Galaxy) और आकाशीय पिंडों का समुह अंतरिक्ष में एक में एक दूसरे से दूर जाते रहता है. महाविस्फोट के सिद्धांत के अनुसार आकाशीय पिण्डों की एक दूसरे से दूर जाने की गति महाविस्फोट के बाद के समय और आज के समय की तुलना में कम है.

इसे आगे बढाते हुये यह सिद्धांत कहता है कि भविष्य में आकाशीय पिंडों का गुरुत्वाकर्षण इस विस्तार की गति पर रोक लगाने मे सक्षम हो जायेगा. इसी समय विपरीत प्रक्रिया का प्रारंभ होगा अर्थात संकुचन का. सभी आकाशीय पिंड एक दूसरे के नजदीक और नजदीक आते जायेंगे और अंत में एक बिन्दु के रुप में संकुचित हो जायेंगे. इसी पल एक और महाविस्फोट होगा और एक नया ब्रह्मांड बनेगा. विस्तार की प्रक्रिया एक बार और प्रारंभ होगी. यह प्रक्रिया अनादि काल से चल रही है.

हमारा विश्व इस विस्तार और संकुचन की प्रक्रिया में बने अनेकों विश्व में से एक है. इसके पहले भी अनेकों विश्व बने हैं और भविष्य में भी बनते रहेंगे. ब्रह्मांड के संकुचित होकर एक बिन्दु में बन जाने की प्रक्रिया को महासंकुचन (The Big Crunch) के नाम से जाना जाता है. हमारा विश्व भी एक ऐसे ही महासंकुचन में नष्ट हो जायेगा, जो एक महाविस्फोट के द्वारा नये ब्रह्मांड को जन्म देगा. यदि यह सिद्धांत सही है तब यह संकुचन की प्रक्रिया आज से 1 खरब 50 अरब वर्ष पश्चात प्रारंभ होगी.

यथास्थिति सिद्धांत (The Quite State Theory)

महाविस्फोट का सिद्धांत सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत है लेकिन सभी वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं. वे मानते हैं कि ब्रह्मांड अनादि है, इसका ना तो आदि है ना अंत. उनके अनुसार ब्रह्मांड का महाविस्फोट से प्रारंभ नहीं हुआ था, ना इसका अंत महासंकुचन से होगा.

यह सिद्धांत मानता है कि ब्रह्मांड का आज जैसा है वैसा ये हमेशा से था और हमेशा ऐसा ही रहेगा, लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है, इसलिए हम इन सिद्धांतों पर चर्चा नहीं करेंगे. यहां अभी आगे हम महाविस्फोट और भौतिकी के मूलभूत सिद्धांतों की विस्तार से चर्चा करेंगे, जो कि सर्वाधिक मान्य है.

महाविस्फोट का सिद्धांत (The Big Bang Theory)

किसी बादलों और चांदरहित रात में यदि आसमान को देखा जाये तब हम पायेंगे कि आसमान में सबसे ज्यादा चमकीले पिंड शुक्र, मंगल, गुरु, और शनि जैसे ग्रह हैं. इसके अलावा आसमान में असंख्य तारे भी दिखाई देते है जो कि हमारे सूर्य जैसे ही है लेकिन हम से काफी दूर हैं. हमारे सबसे नजदीक का सितारा प्राक्सीमा सेंटारी हम से चार प्रकाश वर्ष (10) दूर है.

हमारी आंखों से दिखाई देने वाले अधिकतर तारे कुछ सौ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं. तुलना के लिये बता दें कि सूर्य हम से केवल आठ प्रकाश मिनट और चांद 14 प्रकाश सेकंड की दूरी पर है. हमें दिखाई देने वाले अधिकतर तारे एक लंबी पट्टी के रूप में दिखाई देते हैं, जिसे हम आकाशगंगा कहते हैं, जो कि वास्तविकता में चित्र में दिखाये अनुसार पेचदार (Spiral) हैं. इस से पता चलता है कि ब्रह्मांड कितना विराट है !

महाविस्फोट के बाद ब्रह्मांड का विस्तार
महाविस्फोट के बाद ब्रह्मांड का विस्तार

महाविस्फोट का सिद्धांत ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में सबसे ज्यादा मान्य है. यह सिद्धांत व्याख्या करता है कि कैसे आज से लगभग 13.7 खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ. इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिन्दु से हुई थी.

हब्बल के द्वारा किया गया निरीक्षण और ब्रह्मांडीय सिद्धांत(२) (Cosmological Principle) महाविस्फोट के सिद्धांत का मूल है. 1919 में ह्ब्बल ने लाल विचलन(1) (Red Shift) के सिद्धांत के आधार पर पाया था कि ब्रह्मांड फैल रहा है, ब्रह्मांड की आकाशगंगायें तेजी से एक दूसरे से दूर जा रही है.

इस सिद्धांत के अनुसार भूतकाल में आकाशगंगायें एक दूसरे के और पास रही होंगी, और ज्यादा भूतकाल में जाने पर यह एक दूसरे के अत्यधिक पास रही होंगी. इन निरीक्षण से यह निष्कर्ष निकलता है कि ब्रम्हांड ने एक ऐसी स्थिति से जन्म लिया है जिसमें ब्रह्मांड का सारा पदार्थ और ऊर्जा अत्यंत गर्म तापमान और घनत्व पर एक ही स्थान पर था. इस स्थिति को ‘गुरुत्विय  सिन्गुलरीटी’ (Gravitational Singularity) कहते हैं.

महा-विस्फोट, यह शब्द उस समय की ओर संकेत करता है जब निरीक्षित ब्रह्मांड का विस्तार प्रारंभ हुआ था. यह समय गणना करने पर आज से 13.7  खरब वर्ष पूर्व (1.37×1010) पाया गया है. इस सिद्धांत की सहायता से जार्ज गैमो ने 1948 में ब्रह्मांडीय  सूक्ष्म तरंग विकिरण (cosmic microwave background radiation-CMB)(3) की भविष्यवाणी की थी, जिसे 1960 में खोज लिया गया था. इस खोज ने महा-विस्फोट के सिद्धांत को एक ठोस आधार प्रदान किया.

महा-विस्फोट का सिद्धांत अनुमान और निरीक्षण के आधार पर रचा गया है. खगोलशास्त्रियों का निरीक्षण था कि अधिकतर निहारिकायें (nebulae)(4) पृथ्वी से दूर जा रही है. उन्हें इसके खगोल शास्त्र पर प्रभाव और इसके कारण के बारे में ज्ञात नहीं था. उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था कि ये निहारिकायें हमारी अपनी आकाशगंगा के बाहर है. यह क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है एक रहस्य था.

1927 में जार्जस लेमिट्र ने आईन्साटाइन के सापेक्षता के सिद्धांत (Theory of General Relativity) से आगे जाते हुये फ़्रीडमैन-लेमिट्र-राबर्टसन-वाकर समीकरण (Friedmann-Lemaître-Robertson-Walker equations) बनाये. लेमिट्र के अनुसार ब्रह्मांड  की उत्पत्ति एक प्राथमिक परमाणु से हुयी है. इसी प्रतिपादन को आज हम महा-विस्फोट का सिद्धांत कहते हैं. लेकिन उस समय इस विचार को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया.

इसके पहले 1925 में हब्बल ने पाया था कि ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा अकेली नहीं है, ऐसी अनेकों आकाशगंगायें हैं. जिनके बीच में विशालकाय अंतराल है. इसे प्रमाणित करने के लिये उसे इन आकाशगंगाओं के पृथ्वी से दूरी गणना करनी थी. लेकिन ये आकाशगंगायें हमें दिखायी देने वाले तारों की तुलना में काफी दूर थी. इस दूरी की गणना के लिये हब्बल ने अप्रत्यक्ष तरीका प्रयोग में लाया.

किसी भी तारे की चमक (brightness) दो कारकों पर निर्भर करती है, वह कितना दीप्ति (luminosity)  का प्रकाश उत्सर्जित करता है और कितनी दूरी पर स्थित है. हम पास के तारों की चमक और दूरी की ज्ञात हो, तब उनकी दीप्ति की गणना की जा सकती है. उसी तरह तारे की दीप्ति ज्ञात होने पर उसकी चमक का निरीक्षण से प्राप्त मान का प्रयोग कर दूरी ज्ञात की जा सकती है. इस तरह से हब्ब्ल ने नौ विभिन्न आकाशगंगाओं की दूरी का गणना की.(11)

1929 में हब्बल इन्हीं आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर दूरी की गणना कर रहे थे, वह हर तारे से उत्सर्जित प्रकाश का वर्णक्रम और दूरी का एक सूचीपत्र बना रहे थे. उस समय तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड में आकाशगंगायें बिना किसी विशिष्ट क्रम के ऐसे ही अनियमित रूप से विचरण कर रही है.

उसका अनुमान था कि इस सूची पत्र में उसे समान मात्रा में लाल विचलन(1) और बैगनी विचलन मिलेगा, लेकिन नतीजे अप्रत्याशित थे. उन्हें लगभग सभी आकाशगंगाओं से लाल विचलन ही मिला. इसका अर्थ यह था कि सभी आकाशगंगायें हम से दूर जा रही है.

सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक खोज यह थी कि यह लाल विचलन अनियमित नहीं था. यह विचलन उस आकाशगंगा की गति के समानुपाती था. इसका अर्थ यह था कि ब्रह्मांड स्थिर नहीं है और आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है. इस प्रयोग ने लेमिट्र के सिद्धांत को निरीक्षण से प्रायोगिक आधार दिया था. यह निरीक्षण आज हब्बल के नियम के रूप मे जाना जाता है.

हब्बल का नियम और ब्रह्मांडीय सिद्धांत(2) ने यह बताया कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है. यह सिद्धांत आईन्स्टाईन के अनंत और स्थैतिक ब्रह्मांड के विपरीत था.

इस सिद्धांत ने दो विरोधाभाषी संभावनाओं को हवा दी थी. पहली संभावना थी, लेमिट्र का महा-विस्फोट सिद्धांत जिसे जार्ज गैमो ने समर्थन और विस्तार दिया था. दूसरी संभावना थी, फ़्रेड होयेल का स्थायी स्थित माडल (Fred Hoyle’s steady state model), जिसमें दूर होती आकाशगंगाओं के बीच में हमेशा नये पदार्थों की उत्पत्ति  का प्रतिपादन था.

दूसरे शब्दों में, आकाशगंगायें एक दूसरे से दूर जाने पर जो खाली स्थान बनता है, वहां पर नये पदार्थ का निर्माण होता है. इस संभावना के अनुसार मोटे तौर पर ब्रह्मांड हर समय एक जैसा ही रहा है और रहेगा. होयेल ही वह व्यक्ति थे जिन्होने लेमिट्र का महाविस्फोट सिद्धांत का मजाक उड़ाते हुये बिग बैंग आईडिया का नाम दिया था.

काफी समय तक इन दोनों माड्लों के बीच में वैज्ञानिक विभाजित रहे लेकिन धीरे-धीरे वैज्ञानिक प्रयोगों और निरिक्षणों से महाविस्फोट के सिद्धांत को समर्थन बढता गया. 1965 के बाद ब्रह्मांडीय सुक्षम तरंग विकिरण (Cosmic Microwave Radiation) की खोज के बाद इस सिद्धांत को सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत का दर्जा मिल गया. आज की स्थिति में खगोल विज्ञान का हर नियम इसी सिद्धांत पर आधारित है और इसी सिद्धांत का विस्तार है.

महा-विस्फोट के बाद शुरुआती ब्रह्मांड समांगी और सावर्तिक रूप से अत्यधिक घनत्व का और ऊर्जा से भरा हुआ था. उस समय दबाव और तापमान भी अत्यधिक था. यह धीरे-धीरे फैलता गया और ठंडा होता गया. यह प्रक्रिया कुछ वैसी थी जैसे भाप का धीरे-धीरे ठंडा हो कर बर्फ में बदलना. अंतर इतना ही है कि यह प्रक्रिया मूलभूत कणों (इलेक्ट्रान, प्रोटान, फोटान इत्यादि) से संबंधित है.

प्लैंक काल(5) के 10-35 सेकंड के बाद एक संक्रमण के द्वारा ब्रह्मांड की काफी तीव्र गति से वृद्धी (exponential growth) हुई. इस काल को अंतरिक्षीय स्फीति (cosmic inflation) काल कहा जाता है. इस स्फीति के समाप्त होने के पश्चात, ब्रह्मांड का पदार्थ एक क्वार्क-ग्लूवान प्लाज्मा की अवस्था में था, जिसमें सारे कण तेज गति करते रहते हैं. जैसे जैसे ब्रह्मांड का आकार बढ़ने लगा, तापमान कम होने लगा. एक निश्चित तापमान पर जिसे हम बायरोजिनेसीस संक्रमण कहते हैं,  ग्लुकान  और क्वार्क  ने मिलकर  बायरान ( प्रोटान  और  न्युट्रान ) बनाये. इस संक्रमण के दौरान किसी अज्ञात कारण से कण और प्रति कण (पदार्थ और प्रति पदार्थ) की संख्या मे अंतर आ गया.

तापमान के और कम होने पर भौतिकी के नियम और मूलभूत कण आज के रूप में अस्तित्व में आये. बाद में प्रोटान और न्युट्रान ने मिलकर  ड्युटेरीयम  और  हिलीयम  के केंद्रक बनाये, इस प्रक्रिया को  महाविस्फोट आणविक संश्लेषण (Big Bang nucleosynthesis) कहते हैं.

जैसे जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, पदार्थ की गति कम होती गई और पदार्थ की उर्जा गुरुत्वाकर्षण में तब्दील होकर विकिरण की ऊर्जा से अधिक हो गयी. इसके 300,000 वर्ष पश्चात इलेक्ट्रान और केण्द्रक ने मिलकर परमाणु (अधिकतर हाइड्रोजन) बनाये. इस प्रक्रिया में विकिरण पदार्थ से अलग हो गया. यह विकिरण ब्रह्मांड में अभी तक ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण  (cosmic microwave radiation) के रूप में बिखरा पड़ा है.

कालांतर में थोड़े अधिक घनत्व वाले क्षेत्र गुरुत्वाकर्षण के द्वारा और ज्यादा घनत्व वाले क्षेत्र में बदल गये. महा-विस्फोट से जो पदार्थ एक दूसरे से दूर जा रहा था, वही गुरुत्वाकर्षण इन्हें पास खिंच रहा था. जहां पर पदार्थ का घनत्व ज्यादा था वहां पर गुरुत्वाकर्षण बल ब्रह्मांड के प्रसार के लिये कारणीभूत बल से ज्यादा हो गया. गुरुत्वाकर्षण बल की अधिकता से पदार्थ एक जगह इकठ्ठा होकर विभिन्न खगोलीय पिंडों का निर्माण करने लगा. इस तरह गैसों के बादल, तारों, आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय पिंडों का जन्म हुआ, जिन्हें आज हम देख सकते हैं.

आकाशीय पिंडों के जन्म की इस प्रक्रिया की और विस्तृत जानकारी पदार्थ की मात्रा और प्रकार पर निर्भर करती है. पदार्थ के तीन संभव प्रकार है शीतल श्याम पदार्थ (cold dark matter)(6)तप्त श्याम पदार्थ (hot dark matter) तथा बायरोनिक पदार्थ. खगोलीय गणना के अनुसार शीतल श्याम पदार्थ की मात्रा सबसे ज्यादा (लगभग 80%) है. मानव द्वारा निरीक्षित लगभग सभी आकाशीय पिंड बायरोनिक पदार्थ(8) से बने हैं.

श्याम पदार्थ की तरह आज का ब्रह्मांड एक रहस्यमय प्रकार की ऊर्जा, श्याम ऊर्जा (dark energy)(6) के वर्चस्व में है. लगभग ब्रह्मांड की कुल ऊर्जा का 70% भाग इसी ऊर्जा का है. यही ऊर्जा ब्रह्मांड के विस्तार की गति को एक सरल रैखिक गति-अंतर समीकरण से विचलित कर रही है, यह गति अपेक्षित गति से कहीं ज्यादा है.

श्याम ऊर्जा अपने सरल रूप में आईन्स्टाईन के समीकरणों में एक  ब्रह्मांडीय स्थिरांक  (cosmological constant) है लेकिन इसके बारे में हम जितना जानते है उससे कहीं ज्यादा नहीं जानते हैं. दूसरे शब्दों में भौतिकी में मानव को जितने बल (9) ज्ञात हैं वे सारे बल और भौतिकी के नियम ब्रह्मांड के विस्तार की गति की व्याख्या नहीं कर पा रहे हैं. इसे व्याख्या करने क एक काल्पनिक बल का सहारा लिया गया है, जिसे श्याम ऊर्जा कहा जाता है.

यह सभी निरीक्षण  लैम्डा सी डी एम माडेल  के अंतर्गत आते हैं, जो महाविस्फोट के सिद्धांत की गणीतिय रूप से छह पैमानों पर व्याख्या करता है. रहस्य उस समय गहरा जाता है जब हम शुरूआत की अवस्था की ओर देखते हैं. इस समय पदार्थ के कण अत्यधिक ऊर्जा के साथ थे. इस अवस्था को किसी भी प्रयोगशाला में प्राप्त नहीं किया जा सकता है.

ब्रह्मांड के पहले 10-33 सेकंड की व्याख्या करने के लिये हमारे पास कोई भी गणितिय या भौतिकिय माडेल नहीं है, जिस अवस्था का अनुमान ब्रहृत एकीकृत सिद्धांत (Grand Unification Theory)(7) करता है. पहली नजर में आईन्स्टाईन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत एकगुरुत्विय बिन्दु (gravitational singularity) का अनुमान करता है, जिसका घनत्व अपरिमित (infinite) है. इस रहस्य को सुलझाने के लिये क्वांटम गुरुत्व के सिद्धांत की आवश्यकता है. इस काल (ब्रह्मांड के पहले 10-33 सेकंड) को समझ पाना विश्व के सबसे महान अनसुलझे भौतिकिय रहस्यों में से एक है.

सन्दर्भ –

(1) कण और प्रति-कण: पदार्थ के हर मूलभूत कण का प्रतिकण भी होता है. जैसे इलेक्ट्रान के लिये एन्टी इलेक्ट्रान (पाजीट्रान), प्रोटान-एन्टी प्रोटान, न्युट्रान-एन्टीन्युट्रान इत्यादि. जब एक कण और उसका प्रतिकण टकराते है दोनों ऊर्जा(फोटान) में बदल जाते है. यदि आपको कभी आपका एन्टी मनुष्य मिले तब आप उससे हाथ मिलाने की गलती ना करें, आप दोनों एक धमाके के रूप में ऊर्जा में बदल जायेंगे.

(2) ये भी एक रहस्य है कि ब्रह्मांड के निर्माण के समय कण और प्रतिकण दोनों बने, लेकिन कणों की मात्रा इतनी ज्यादा क्यों है ? क्या प्रति ब्रह्मांड (Anti Universe) का भी अस्तित्व है ?

(3) न्युट्रीनो का मतलब न्युट्रान नहीं है, ये इलेक्ट्रान के समान द्रव्यमान रखते है लेकिन इन पर आवेश (+/-) नहीं होता है.

(1) लाल विचलन (Red Shift) के बारे मे यहां देखे.

(2) ब्रह्मांडीय सिद्धांत (Cosmological Principle) : यह एक सिद्धांत नहीं एक मान्यता है। इसके अनुसार ब्रह्मांड समांगी(homogeneous) और सावर्तिक(isotrpic) है. एक बड़े पैमाने पर किसी भी जगह से निरीक्षण करने पर ब्रह्मांड हर दिशा में एक ही जैसा प्रतीत होता है.

(3) ब्रह्मांडीय  सूक्ष्म तरंग विकिरण(cosmic microwave background radiation-CMB): यह ब्रह्मांड के उत्पत्ति के समय से लेकर आज तक सम्पूर्ण ब्रह्मांड मे फैला हुआ है। इस विकिरण को आज भी महसूस किया जा सकता है।

(4) निहारिका (Nebula) : ब्रह्मांड में स्थित धूल और गैस के बादल।

(5) प्लैंक काल: मैक्स प्लैंक के नाम पर , ब्रह्मांड के इतिहास मे 0 से लेकर 10-43 (एक प्लैंक इकाई समय), जब सभी चारों मूलभूत बल(गुरुत्व बल, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर आणविक आकर्षण बल और मजबूत आणविक आकर्षण बल) एक संयुक्त थे और मूलभूत कणों का अस्तित्व नहीं था.

(6) श्याम पदार्थ (Dark Matter) और श्याम ऊर्जा(dark energy) इस पर पूरा एक लेख लिखना है.

(7) ब्रहृत एकीकृत सिद्धांत(Grand Unification Theory) : यह सिद्धांत अभी अपूर्ण है, इस सिद्धांत से अपेक्षा है कि यह सभी रहस्य को सुलझा कर ब्रह्मांड उत्पत्ति और उसके नियमों की एक सर्वमान्य गणितिय और भौतिकिय व्याख्या देगा.

(8) बायरान : प्रोटान और न्युट्रान को बायरान भी कहा जाता है। विस्तृत जानकारी पदार्थ के मूलभूत कण लेख में.

(9) भौतिकी के मूलभूत बल :गुरुत्व बल, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर आणविक आकर्षण बल और मजबूत आणविक आकर्षण बल

(10) एक प्रकाश वर्ष : प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गयी दूरी। लगभग 9,500,000,000,000 किलो मीटर। अंतरिक्ष में दूरी मापने के लिये इस इकाई का प्रयोग किया जाता है.

(11) आज हम जानते है कि अत्याधुनिक दूरबीन से खरबों आकाशगंगाये देखी जा सकती है, जिसमे से हमारी आकाशगंगा एक है और एक आकाशगंगा में भी खरबों तारे होते है। हमारी आकाशगंगा एक पेचदार आकाशगंगा है जिसकी चौड़ाई लगभग हजार प्रकाश वर्ष है और यह धीमे धीमे घूम रही है। इसकी पेचदार बाँहों के तारे 1,000,000 वर्ष में केन्द्र की एक परिक्रमा करते है। हमारा सूर्य एक साधारण औसत आकार का पिला तारा है, जो कि एक पेचदार भुजा के अंदर के किनारे पर स्थित है.

  • आशीष श्रीवास्तव
    सूचना प्रौद्योगिकी में 22 वर्षों से कार्यरत. विज्ञान पर शौकिया लेखन : विज्ञान आधारित ब्लाग ‘विज्ञान विश्व’ तथा खगोल शास्त्र को समर्पित ‘अंतरिक्ष.’ एक संशयवादी (Skeptic) व्यक्तित्व!

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