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2021 रसायन नोबेल पुरस्कार : बेजामिन लिस्ट तथा डेविड मैकमिलन

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2021 रसायन नोबेल पुरस्कार : बेजामिन लिस्ट तथा डेविड मैकमिलन
2021 रसायन नोबेल पुरस्कार : बेजामिन लिस्ट तथा डेविड मैकमिलन

आशीष श्रीवास्तव
सूचना प्रौद्योगिकी में 22 वर्षों से कार्यरत. विज्ञान पर शौकिया लेखन : विज्ञान आधारित ब्लाग ‘विज्ञान विश्व’ तथा खगोल शास्त्र को समर्पित ‘अंतरिक्ष.’ एक संशयवादी (Skeptic) व्यक्तित्व.

वर्ष 2021 का रसायन नोबेल पुरस्कार बेजामिन लिस्ट(Benjamin List) तथा डेविड मैकमिलन (David W.C. MacMillan) को दिया गया है. नोबेल कमेटी के अनुसार इस वर्ष का रसायन नोबेल पुरस्कार अणुओं के निर्माण के उपकरण (development of asymmetric organocatalysis) के लिए दिया गया है.

रसायन शास्त्री छोटे अणुओं को जोड़ कर नए बड़े अणुओं का निर्माण करते रहते हैं, लेकिन इन अदृश्य अणुओं को मनचाहे तरीके से नियंत्रित कर मनचाहा अणु बनाना कठिन है. बेंजामिन लिस्ट तथा डेविड मैकमिलन को 2021 का रसायन नोबेल पुरस्कार अणुओं के निर्माण के लिए एक नए उपकरण बनाने के लिए दिया जा रहा है, जिसे ऑरगनोकेटेलिसिस (organocatalysis) कहते हैं. इस विधि का प्रयोग फार्मास्युटिकल उद्योग में नई दवाओं के अणुओं के निर्माण में होगा. साथ में यह रसायन शास्त्र को पर्यावरण मित्र बनाएगा.

बहुत से उद्योग तथा शोध क्षेत्र रसायनज्ञ द्वारा नए और सक्रिय अणुओं के निर्माण की क्षमता पर निर्भर करते हैं. ये अणु कुछ भी हो सकते हैं, जिनमें सौर पैनल में प्रकाश अवशोषण करने वाले अणु, बैटरी में ऊर्जा संग्रहीत करने वाले अणु या दौड़ने के जूते निर्माण में प्रयोग होने वाले अणु या किसी बीमारी को रोक सकने की क्षमता रखने वाले अणु भी शामिल होते हैं.

यदि हम प्रकृति द्वारा इन अणुओं के निर्माण की क्षमता को हमारी अपनी क्षमता से तुलना करें तो हम अब भी पाषाण युग में हैं. जैव विकास ने बहुत से महत्वपूर्ण उत्पाद बनाए हैं जो अन्य अणुओं के निर्माण में उपकरण के रूप में प्रयुक्त होते हैं, जैसे एन्जाइम्स, जोकि ऐसी विशाल आणविक संरचना बनाते हैं जिससे जीवन को आकार, रंग और गुण मिलते हैं.

आरंभ में जब रसायनज्ञों ने इन रासायनिक मास्टरपीसों को अलग किया तो वे उन्हें प्रशंसा से निहारते रह गए. इन रसायनज्ञों के औजारों के बक्सों में आणविक संरचनाओं के निर्माण के लिए ऐसे हथौड़े और छेनी थे जो भोथरे और अविश्वसनीय थे, जब भी वे प्राकृतिक अणुओं के निर्माण की कोशिश करते थे, इन औजारों के प्रयोग से बहुत से अनुपयोगी सहउत्पाद बनाते थे और उत्पाद भी अनगढ़ होते थे.

बेहतर रसायन विज्ञान के नए उपकरण

रसायन वैज्ञानिकों द्वारा जोड़े गए हर नए उपकरण ने आणविक संरचना के निर्माण में सटीकता और अचूकता बढ़ाई है. धीमे-धीमे ही सही रसायन विज्ञान छेनी से पत्थर में अनगढ़ आकार देने से आगे बढ़कर उत्तम शिल्प कौशल तक पहुंच गया है. यह मानवता के लिए बहुत बड़ी सफलता है और इनमें से बहुतों उपकरणों को रसायन नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है.

बहुत से अनु दो प्रकार में होते हैं, जिसमें एक दूसरे की दर्पण प्रतिकृति होती है. इन दोनों का शरीर पर भिन्न प्रभाव होता है. उदाहरण के लिए लाइमोनेने अणु के एक प्रकार की सुगंध नींबू के जैसे होती है जबकि उसकी दर्पण प्रतिकृति की संतरे के जैसे.

2021 में जिस खोज के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है उसने आणविक संरचनों के निर्माण की विधियों को नई ऊंचाई दी है. इसने रसायन विज्ञान को अधिक पर्यावरण अनुकूल बनाया है. इस विधि से असममितीय अणुओं का निर्माण आसान हुआ है. रसायन निर्माण के समय दो तरह के अणुओं के निर्माण की संभावना होती है. ये दोनों अणु हमारे दोनों हाथों के जैसे एक दूसरे कि दर्पण प्रतिकृति हो सकते हैं लेकिन रसायनशास्त्रियों विशेषत: दवा उद्योग को इन दो दर्पण प्रतिकृति अणुओं में से एक ही अणु चाहिए होता है. लेकिन केवल एक विशिष्ट अणु का निर्माण आसान नहीं था, इसके लिए कुशल विधि खोजना मुश्किल था.

बेंजामिन लिस्ट तथा डेविड मेकमिलन द्वारा खोजी गई विधि असममितीय ऑरगेनोकेटेलिसिस इन कार्यों के लिए सरल और सटीक है. लोग यह सोचने लगे कि यह आइडिया इसके पहले किसी ने क्यों नहीं सोचा.

ऐसा क्यों ? इसका कोई सरल उत्तर नहीं है, इसके लिए हमें इसके इतिहास में जाना होगा. सबसे पहले हमें दो शब्दों को समझना होगा जिन्हें उत्प्रेरण (catalysis) और उत्प्रेरक (catalyst) कहते हैं.

उत्प्रेरक (catalyst) रासायनिक प्रक्रिया को तेज करते हैं

19वीं सदी में जब रसायन वैज्ञानिक भिन्न तरह के रसायनों द्वारा एक दूसरे से की जाने वाली प्रक्रियाओं का अध्ययन कर रहे थे, तब उन्होंने कुछ विचित्र खोजें की. उदाहरण के लिए जब हाइड्रोजन पेरोक्साइड (H2O2) के बीकर में जब उन्होंने चांदी डाली तो हाइड्रोजन पेरोक्साइड टूटकर पानी (H2O) तथा ऑक्सीजन (O2) बनाने लगी लेकिन चांदी जिसने इस प्रक्रिया को आरंभ किया था, कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

इसी तरह से अंकुरित होते हुए अन्न से प्राप्त एक पदार्थ आसानी से स्टार्च को ग्लूकोज में बदल सकता है.

1835 में स्वीडिश वैज्ञानिक जैकब बरजेलियस (Jacob Berzelius) ने इन सभी प्रकियाओं में एक पैटर्न देखा. उस वर्ष के रायल स्वीडिश विज्ञान अकादमी के शोध पत्र में उन्होंने भौतिकी और रसायन विज्ञान में नई प्रगति की चर्चा करते हुए उन्होंने ‘रासायनिक प्रक्रिया निर्माण’ करने वाले एक नए ‘बल’ के बारे में लिखा.

उन्होंने ऐसे ही उदाहरणों की सूची दी जिसमें किसी एक पदार्थ की उपस्थिति ने रासायनिक प्रक्रिया आरंभ कर दी थी. उन्होंने यह बताया कि मान्यता के विपरीत यह दुर्लभ ना होकर एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है. उन्होंने कहा कि ऐसे पदार्थ उत्प्रेरक बल (catalytic force) रखते हैं और इनकी उपस्थिति में आरंभ होने वाली प्रक्रिया उत्प्रेरण (catalysis) होती है.

उत्प्रेरक प्लास्टिक, इत्र और स्वादिष्ट भोजन का निर्माण करते हैं

बरजेलियस के समय से अब तक रसायन वैज्ञानिकों की परखनली से बहुत पानी बह चुका है. अब उन्होंने ऐसे हजारों उत्प्रेरक खोज निकाले हैं जो अणुओं को तोड़ सकते हैं या जोड़ सकते हैं. इन सभी उत्प्रेरकों की सहायता से हम हमारी रोजमर्रा के जीवन में प्रयुक्त होने वाली ढेर सारी चीजों का निर्माण करते हैं जैसे दवाएं, प्लास्टिक, इत्र तथा भोजन में स्वाद लाने वाली सामग्री. यह माना जाता है कि विश्व के कुल सकल उत्पाद का 35 प्रतिशत इन्हीं रासायनिक उत्प्रेरकों की सहायता से उत्पन्न होता है.

सैद्धांतिक रूप से 2000 से पहले खोजे गए सारे उत्प्रेरक एक या दो समूहों में ही थे, वे या तो धातु थे या एंजाइम. धातुएं अकसर बेहतरीन उत्प्रेरक होती है क्योंकि उनमें रासायनिक प्रक्रिया के दौरान अस्थायी रूप से इलेक्ट्रान अवशोषण या प्रदान करने की विशिष्ट क्षमता होती है. इससे किसी अणु के मध्य परमाणुओं के मध्य बॉन्ड कमजोर होता है, जो बॉन्ड सामान्य रूप से मजबूत होता है इनके साथ टूट जाता है और नए बॉन्ड बनाते हैं.

लेकिन सारे धात्विक उत्प्रेरक के साथ समस्या है कि वे ऑक्सीजन और जल के साथ तीव्र प्रक्रिया करते हैं. इनके साथ कार्य करने के लिए आवश्यक है कि उन्हें ऑक्सीजन और जल मुक्त वातावरण चाहिये. बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन के लिए यह बहुत कठिन है. दूसरा अधिकतर उत्प्रेरक धातुएं पर्यावरण के लिए हानिकारक भारी धातुएं हैं.

जीवन के उत्प्रेरक अद्भुत शुद्धता से कार्य करते हैं

दूसरे तरह के उत्प्रेरक प्रोटीन से बने होते हैं जिन्हें एन्जाइम्स कहते हैं. सभी जीवित प्राणियों में हजारों एंजाइम होते हैं जो जीवन के लिए आवश्यक रासायनिक प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं. इनमें से कुछ एन्जाइम्स असंमितिक उत्प्रेरण (asymmetric catalysis) के विशेषज्ञ हैं वे सैद्धांतिक रूप से दो संभव दर्पण प्रतिकृति अणुओं में से एक ही का निर्माण करते हैं.

इसके अतिरिक्त वे एक श्रृंखला में कार्य कर सकते हैं जिसमें एक एंजाइम का कार्य समाप्त होने पर दूसरा कार्य आरंभ कर देता है. इस तरह से अत्यधिक जटिल अणुओं का निर्माण बड़ी आसानी और शुद्धता से कर सकते हैं, उदाहरण के लिए कॉलेसटराल, क्लोरोफिल.

एन्जाइम्स इतने कुशल उत्प्रेरक है कि 1990 में मानवता के लिए आवश्यक रासायनिक प्रक्रियाओं के लिए नए एन्जाइम्स बनाने का प्रयास किया. इनमें से एक वैज्ञानिक समूह स्क्रीप्पस शोध संस्थान दक्षिण केलीफोर्निया (Scripps Research Institute in southern California) में कार्लोस बरबास III(Carlos F. Barbas III.) के नेतृत्व में कार्य कर रहा था. बेंजामिन लिस्ट इसी संस्थान में पोस्ट डाक्टरल अध्ययन कर रहे थे, उन्हीं के आइडिया ने इस क्षेत्र में ऐसी क्रांतिकारी खोज की, जिससे उन्हें रसायन में नोबेल मिला.

बेंजामिन लिस्ट ने हटकर सोचा

बेंजामिन लिस्ट ने उत्प्रेरक एंटीबाडी (catalytic antibodies) पर कार्य किया था. सामान्यत: एण्टीबॉडी बाह्य वायरस या बैकटेरिया से जुड़कर उन्हें नष्ट करने का कार्य करती है लेकिन स्क्रीप्पस के वैज्ञानिकी ने उन्हें बदल कर रासायनिक प्रक्रियाओं के उत्प्रेरण के लिए बनाया.

उत्प्रेरक एंटीबाडी पर कार्य करते समय बेंजामिन लिस्ट सोचना आरंभ किया कि एंजाइम वास्तविकता मे कार्य कैसे करते हैं. सामान्यतः वे महाकाय अणु होते हैं जोकि सैकड़ों अमीनो एसीड अणुओं से बने होते हैं. इन एन्जाइमों में इन अमीनो एसीड के साथ रासायनिक प्रक्रिया को तेज करने वाली धातुएं भी होती है लेकिन एंजाइम बिना धातु की मदद के रासायनिक प्रक्रियाओं को तीव्र करती है. इसके बजाय रासायनिक प्रक्रिया एक या एकाधिक अमीनो अम्ल से संचालित होती है.

बेंजामिन की हटकर सोच थी कि क्या किसी रासायनिक प्रक्रिया के उत्प्रेरण के लिए अमीनो अम्ल का एंजाइम का भाग होना आवश्यक है ? या केवल एक अमीनो अम्ल या इसके जैसे अणु वही कार्य कर सकते हैं ?

और मिला क्रांतिकारी परिणाम

बेंजामिन जानते थे कि 1970 के आरंभ में प्रोलाइन (proline) अमीनो अम्ल का उत्प्रेरक के रूप में प्रयोग किया गया था, लेकिन यह 25 वर्ष अधिक पुरानी बात थी. यदि वह प्रयोग सफल रहा होगा तो उस पर किसी ने आगे भी कार्य किया होगा.

बेंजामिन जानते थे कि 1970 के आरंभ में प्रोलाइन (proline) अमीनो अम्ल का उत्प्रेरक के रूप में प्रयोग किया गया था, लेकिन यह 25 वर्ष अधिक पुरानी बात थी. यदि वह प्रयोग सफल रहा होगा तो उस पर किसी ने आगे भी कार्य किया होगा.

बेंजामिन की सोच थी कि इस पर अधिक कार्य नहीं हुआ था क्योंकि यह सफल प्रयोग नहीं था. बिना किसी वास्तविक अपेक्षा के उन्होंने अलडोल प्रक्रिया (aldol reaction) में प्रोलाईन उत्प्रेरक का प्रयोग किया, इसमें दो भिन्न अणुओं के कार्बन परमाणुओं के मध्य बांड बनाना था. यह एक सरल प्रयास था, और आश्चर्यजनक रूप से ये सरल रूप से कार्य कर गया.

बेंजामिन ने अपना भविष्य दांव पर लगाया

अपने इस प्रयोग में बेंजामिन ने पाया कि प्रोलाइन ना केवल एक कुशल उत्प्रेरक है बल्कि अमीनो अम्ल स्वतंत्र रूप से असममितीय उत्प्रेरण कर दो दर्पण प्रतिकृति अणुओं में से एक का निर्माण कर सकते हैं.

प्रोलाइन का उत्प्रेरक के रूप मे प्रयोग करने वाले वैज्ञानिकों के प्रथम समूह की अपेक्षा बेंजामिन लिस्ट इस के महत्व को बेहतर रूप से समझ रहे थे. धात्विक और एंजाइम उत्प्रेरकों की तुलना मे प्रोलाइन रसायन वैज्ञानिकों के लिए किसी स्वप्न का सच हो जाना था. यह उत्प्रेरक सरल, सस्ता और पर्यावरण के लिए हानिरहित था.

जब उन्होंने अपनी इस खोज को 2000 में प्रकाशित किया तब लिस्ट ने कहा था कि ऑर्गेनिक अणुओं की सहायता से असममितीय उत्प्रेरण बहुत सारी संभावनाओं को लिए हुए नई अवधारणा है. इसका डिजाइन तथा उत्प्रेरकों का चयन हमारे भविष्य के लक्ष्यों में से एक है.

डेविड मैकमिलन ने संवेदनशील धातुओं का साथ छोड़ा

दो वर्ष पहले डेविड मैकमिलन हार्वर्ड से बारकले आए थे. हार्वर्ड में वे धातुओं के प्रयोग से असममितीय उत्प्रेरण पर कार्य कर रहे थे. उस समय यह वह क्षेत्र था जिसमें वैज्ञानिकों द्वारा बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा था. डेविड मैकमिलन ने नोट किया कि विकसित किये गए उत्प्रेरकों का उद्योगों में बहुत कम प्रयोग होता है.

उन्होंने सोचना आरंभ किया कि ऐसा क्यों ? उन्होंने सोच कि संवेदनशील धातुएं उत्प्रेरक के रूप में बहुत मुश्किल होती है और महंगी होती है. ऑक्सीजन और जल के बिना इनके कार्य करने का वातावरण का निर्माण प्रयोगशाला में आसान है लेकिन औद्योगिक पैमाने पर बहुत कठिन है.

उन्होंने सोचा कि बेहतर उत्प्रेरकों के निर्माण के लिए धातुओं को छोड़ना होगा, और हार्वर्ड के साथ उन्होंने धातुओं का साथ भी छोड़ दिया.

और उन्होंने एक सरल उत्प्रेरक का निर्माण किया

अब डेविड मैकमिलन ने धातुओं के जैसे सरल ऑर्गेनिक अणुओं के निर्माण की सोची जो अस्थाई रूप से इलेक्ट्रान ले या दे सके. जब हम ऑर्गेनिक अणुओं की बात करते हैं तो ध्यान में रखिए कि सारा जीवन ऑर्गेनिक अणुओं से ही निर्मित है. वे कार्बन अणुओं की स्थाई संरचना है. इन कार्बन संरचनाओं से सक्रिय रसायन जुडते हैं और इन रसायनों में अक्सर ऑक्सीजन, नाइटोजन, सल्फर या फास्फोरस होता है.

ऑर्गेनिक अणु सरल और सामान्य तत्वों से बने होते हैं लेकिन उनकी संरचना के अनुसार वे बहुत ही जटिल गुणधर्म रख सकते हैं. डेविड मेकमिलान के रसायन शास्त्र के ज्ञान ने उन्हें बताया कि किसी कार्बनिक अणु द्वारा उत्प्रेरक के रूप मे कार्य करने के लिए उसे कम से कम एक आयन निर्माण करना होगा. इसके लिए नाइट्रोजन परमाणु चाहिए जो इलेक्ट्रान के लिए आसक्ति रखता है.

उन्होंने सही गुणधर्मों वाले कई कार्बनिक अणुओं का चयन किया और उनके द्वारा डाइल्स एकडेर प्रक्रिया संचालन की क्षमता का निरीक्षण किया जिसमें कार्बन परमाणुओं के छल्ले बनाते हैं. जैसा कि उन्होंने सोच था और उन्हें विश्वास था, इसने सफलतापूर्वक कार्य किया. इनमें से कुछ ऑर्गेनिक अणु असममितिक उत्प्रेरण के लिए सक्षम थे, जिसमें दो दर्पण प्रतिकृति अणुओं में से एक का निर्माण होता है.

डेविड मैकमिलन ने नामकरण किया ऑरगनोकेटेलिसिस

जब डेविड मैकमिलन ने अपने परिणामों को प्रकाशित करने की सोची तो उन्होंने महसूस किया कि इस प्रक्रिया का कोई नाम होना चाहिये. इसके पहले भी उत्प्रेरण के लिए ऑर्गेनिक अणुओं का प्रयोग हुआ था लेकिन वे छिटपुट प्रयास थे. किसी ने भी इसके पहले इसे बड़े पैमाने पर प्रयोग के बारे में नहीं सोचा था.

डेविड मैकमिलन ने जब इस प्रक्रिया के लिए नाम खोजना आरंभ किया तो उनका उद्देश्य था कि अन्य वैज्ञानिकों को पता चले कि बहुत से ऑर्गेनिक उत्प्रेरक खोजे जाने बाकी हैं इसलिए उन्होंने नाम चुना – ऑरगनोकेटेलिसिस !

ऑरगनोकेटेलिसिस का प्रयोग बढ़ा

बेंजामिन लिस्ट और डेविड मैकमिलन ने स्वतंत्र रूप से उत्प्रेरण के लिए एक नई विधि खोजी थी. 2000 के पश्चात इस क्षेत्र में बहुत कार्य हुआ है, जिसमें लिस्ट और मैकमिलन की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. उन्होंने ढ़ेर सारे सस्ते और स्थाई ऑरगनोकेटेलिस्ट डिजाइन किये जोकि बहुत सारी रासायनिक प्रक्रियाओं को संचालित कर सकती है.

ऑरगनोकेटेलिस्ट ना केवल सरल अणु होते हैं, वे प्राकृतिक उत्प्रेरकों के जैसे श्रृंखला में कार्य कर सकते हैं. इसके पहले रासायनिक उत्पादन प्रक्रिया में हर चरण में माध्यमिक उत्पादों को अलग कर साफ करना होता था अन्यथा अनावश्यक सहउत्पादों का ढेर लग जाता था. इस प्रक्रिया में हर चरण में ढ़ेर सारी सामग्री व्यर्थ भी होती थी.

ऑरगनोकेटेलिस्ट के प्रयोग से उत्पादन के बहुत से चरण एक के बाद एक लगातार किये जा सकते हैं. इस लगातार प्रक्रिया में सामग्री की बर्बादी और अनावश्यक सहउत्पादों का निर्माण काम होता है.

स्ट्रेचनीन उत्पादन अब 7000 गुणा बेहतर है

1952 में जब स्ट्रेचनीन का निर्माण हुआ तो उसे तैयार करने के लिए 29 भिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं की आवश्यकता हुई. इसमें भी शुरुवाती सामग्री का 0.0009 भाग ही उत्पाद बन पाया, 99.9991 % भाग व्यर्थ गया था.

2011 मे ऑरगनोकेटेलिस्ट के प्रयोग से स्ट्रेचनीन के निर्माण मे 12 भिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं की आवश्यकता हुई और यह पुरानी प्रक्रिया से 7000 गुण अधिक कुशल थी.

ऑरगनोकेटेलिसिस की दवा निर्माण मे महत्वपूर्ण भूमिका

ऑरगनोकेटेलिसिस की दवा निर्माण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका है. इस प्रक्रिया में असममितीय उत्प्रेरण की आवश्यकता होती है. अब तक जिन प्रक्रियाओं का प्रयोग होता था जिसमें एक ही अणु सक्रिय होता था, दूसरा व्यर्थ होता था, कभी कभी दूसरे व्यर्थ अणु के दुष्प्रभाव भी होते थे. इसका एक सबसे बुरा उदाहरण 1960 का थैलेडोमाईड (thalidomide), जिसमें एक अवांछित दर्पण प्रतिकृति अणु से गर्भस्थ भ्रूणों पर गंभीर दुष्प्रभाव देखे गए थे.

ऑरगनोकेटेलिसिस्ट के प्रयोग से अब वैज्ञानिक असममितिया अणुओं की ढ़ेर सारी मात्रा सरलता से बना सकते हैं, जिसके लिए उन्हें इसके पहले जटिल कारखाने चाहिये होते थे.

ऑरगनोकेटेलिसिस्ट के प्रयोग से एन्जाइटी के इलाज की दवा पैरोक्सएटीन, एन्टीवायरल दावा ऑसेलटेमीवीर का निर्माण आसानी से हो रहा है.

सरल आइडिया की कल्पना सबसे अधिक कठिन होती है

अब ऑरगनोकेटेलिसिस्ट के सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे. यह सरल और आसान है लेकिन यह सस्ता सरल और आसान आइडिया इसके पहले किसी ने क्यों नहीं सोचा ? क्योंकि सरल आइडियों की कल्पना सबसे अधिक कठिन होती है.

रोचक तथ्य

  • 1901 से 2020 तक रसायन में 112 नोबेल पुरस्कार दिए गए हैं.
  • 63 रसायन नोबेल व्यक्तिगत रूप से दिए गए हैं.
  • अब तक 7 महिला वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार दिया गया है.
  • फ्रेडरिक सेंगर (Frederick Sanger) ने यह पुरस्कार दो बार 1958 तथा 1980 में जीता है.
  • 1935 मे फ्रेडरिक जुलीयट (Frédéric Joliot) ने सबसे कम उम्र (35 वर्ष) में यह पुरस्कार जीता था.
  • जॉन बी गुडेनो (ohn B. Goodenough) ने सबसे अधिक आयु 97 वर्ष में यह पुरस्कार जीता था.

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ROHIT SHARMA

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