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2021 भौतिकी नोबेल पुरस्कार : सुकोरो मनाबे , क्लाउस हैसलमेन तथा जिओर्जिओ परीसी

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2021 भौतिकी नोबेल पुरस्कार : सुकोरो मनाबे , क्लाउस हैसलमेन तथा जिओर्जिओ परीसी

आशीष श्रीवास्तव
सूचना प्रौद्योगिकी में 22 वर्षों से कार्यरत. विज्ञान पर शौकिया लेखन : विज्ञान आधारित ब्लाग ‘विज्ञान विश्व’ तथा खगोल शास्त्र को समर्पित ‘अंतरिक्ष.’ एक संशयवादी (Skeptic) व्यक्तित्व.

वर्ष 2021 का भौतिकी नोबेल पुरस्कार पृथ्वी के वातावरण और ग्लोबल वार्मिंग पर केंद्रित है, इस बार यह पुरस्कार सुकोरो मनाबे, क्लाउस हैसलमेन तथा जिओर्जिओ परीसी को दिया जा रहा है. 5 अक्टूबर 2021 भारतीय समयानुसार दोपहर 3:20 को यह घोषणा की गई.

तीन वैज्ञानिकों ने इस बार का भौतिकी नोबेल साझा किया है, यह पुरस्कार जटिल प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए दिया गया है. सुकोरो मनाबे तथा क्लाउस हैसलमेन ने पृथ्वी के वातावरण और उसपर मानवता के प्रभाव के ज्ञान की नींव रखी है. जिओर्जिओ परीसी द्वारा अव्यवस्थित तथा अनियमित घटनाओं के क्षेत्र में क्रांतिकारी खोज की है, जिसके लिए उन्हें पुरस्कृत किया गया है.

रॉयल स्वीडिश विज्ञान अकादमी ने इस पुरस्कार का आधा भाग संयुक्त रूप से प्रिंसटन विश्वविद्यालय अमरीका के सुकुरों मनाबे (Syukuro Manabe) तथा मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मिटीऑरोलोजी हैमबर्ग जर्मनी के क्लाउस हैसलमेन (Klaus Hasselmann) को पृथ्वी के वातावरण, वातावरण मे परिवर्तन के मापन और ग्लोबल वार्मिंग के पूर्वानुमान के भौतिकीय मॉडल के निर्माण के लिए दिया गया है.

इस पुरस्कार का दूसरा भाग सेपीएंजा विश्वविद्यालय रोम इटली के जिओर्जिओ परीसी (Giorgio Parisi) को परमाणु से लेकर अंतरग्रहीय भौतिकी प्रणालियों में अव्यवस्था और विचलन की परस्पर क्रिया की खोज के लिए दिया गया है. सारी जटिल प्रणालियों में बहुत से आपस में प्रतिक्रिया करने वाले घटक होते है. इन सारे घटकों और प्रणालियों का अध्ययन पिछली दो सदियों में वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, इन प्रणालियों को गणितीय रूप से दर्शाना मुश्किल रहा है. इन प्रणालियों में असंख्य घटक हो सकते है या वे किसी अप्रत्याशित कारक द्वारा नियंत्रित हो सकते है. ये प्रणाली मौसम जैसे अव्यवस्थित या अराजक भी हो सकती है, जिसमें किसी भी एक कारक के मान में हल्का-सा परिवर्तन बाद की स्थितियों में बहुत अधिक बदलाव ला सकता है.

मौसम जैसी प्रणाली के लिए कहा जाता है कि ब्राजील मे तितली के पंखों की फड़फड़ाहट से टेक्सास मे तूफान भी आ सकता है, जिसे बटरफ्लाई इफेक्ट कहा जाता है. इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने ऐसी जटिल प्रणालियों के अध्ययन और उनमें लंबी अवधी में संभावित विकास के अध्ययन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

सार संक्षेप

पृथ्वी का वातावरण एक ऐसी ही अत्यधिक जटिल प्रणालियों मे से एक है. मनाबे और हैसलमेन ने वातावरण के भौतिक गणितीय माडेल के निर्माण मे महत्वपूर्ण क्रांतिकारी आरंभिक नींव निर्माण का कार्य किया है. परीसी ने जटिल प्रणाली सिद्धांत संबंधित अनेक समस्याओं के हल के लिए सैद्धांतिक समाधानों पर कार्य किया है.

सुकीरों मनाबे ने दर्शाया कि वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड की बढ़ी हुई मात्रा से पृथ्वी की सतह पर तापमान बढ़ा है. 1960 के दशक में उन्होंने पृथ्वी के वातावरण के माडेल के निर्माण कार्य मे योगदान दिया और वे विकिरण संतुलन और उसके द्वारा वायु द्रव्यमान के ऊर्ध्वाधर स्थानांतरण के मध्य सम्बन्ध खोजने वाले पहले व्यक्ति थे. उनके इस कार्य से मौसमी माडेल निर्माण की नींव का निर्माण हुआ.

इसके दस वर्ष पश्चात क्लाउस हैसलमेन ने वातावरण और मौसम को जोड़ने वाला माडेल बनाया. इस माडेल ने दर्शाया कि किस तरह से वातावरण के अव्यवस्थित और अराजक होने के बावजूद मौसमी मॉडल में बदलाव की गणना की जा सकती है और सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं.

उन्होंने ऐसी विधियों की खोज की जिसके द्वारा मौसम में प्राकृतिक तथा मानवीय हस्तक्षेप द्वारा पड़ने वाले विशिष्ट संकेतों और हस्ताक्षरों को पहचाना जा सकता है. उनकी इन्हीं विधियों से प्रमाणित किया गया कि पृथ्वी पर बढ़ते तापमान के लिए मानव द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड उत्तरदायी है.

1980 के आसपास जिओर्जिओ परीसी ने जटिल प्रणालियों में छुपे हुए पैटर्न की खोज की. उनकी खोज जटिल प्रणाली सिद्धांत के अध्ययन में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. उनकी खोजों के द्वारा किसी पूर्णतः अव्यवस्थित जटिल पदार्थ या घटना को समझना और उससे संबंधित भिन्न-भिन्न कारकों की व्याख्या संभव हुई है. इन खोजों का प्रयोग भौतिकी के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र जैसे गणित, जीव विज्ञान, तंत्रिका विज्ञान और मशीन लर्निंग होता है.

जीवन के लिए ग्रीन हाउस प्रभाव महत्वपूर्ण है

दो सदी पहले फ्रेंच वैज्ञानिक जोसेफ़ फोरियार (Joseph Fourier) ने पृथ्वी की सतह तक पहुंचने वाले सूर्य विकिरण और सतह द्वारा परावर्तित विकिरण के द्वारा ऊर्जा संतुलन का अध्ययन किया था. उन्होंने इस संतुलन प्रक्रिया में वातावरण की भूमिका समझी थी; पृथ्वी की सतह पर आने वाला सूर्य विकिरण परावर्तित हो कर अदृश्य ऊष्मा के रूप में वातावरण द्वारा अवशोषित होता है, जिससे वातावरण ऊष्म होता है.

वातावरण की इस भूमिका को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं जिसके द्वारा सूर्य द्वारा प्राप्त सारी ऊर्जा वापिस अंतरिक्ष में ना जाकर कुछ मात्रा में पृथ्वी पर बची रहती है, इसी ऊष्मा के कारण पृथ्वी पर जीवन संभव है.

फोरियार द्वारा आरंभ किए गए इस कार्य का एक भाग शेष था, पृथ्वी पर आने वाले कम तरंग दैर्ध्य (शॉर्टवेव) के सौर विकिरण तथा परावर्तित होने वाले अधिक तरंग दैर्ध्य के अवरक्त विकिरण के मध्य संतुलन का अध्ययन. इस सम्बन्ध में बाद में बहुत से मौसम वैज्ञानिकों ने दो सदियों तक अध्ययन किया, बहुत सी नई जानकारी जोड़ी गई. वर्तमान मौसमी मॉडल अत्यधिक शक्तिशाली उपकरण है जबकि ना केवल मौसम को समझने में सहायक है, वे यह भी दर्शाते हैं कि मानवीय गतिविधियों से किस तरह ग्लोबल वार्मिंग बढ़ी है.

ये सभी मॉडेल भौतिकी के नियमों से बंधे हैं और वे मौसम के पूर्वानुमान लगाने वाले पुराने मॉडेलों के संवर्धित रूप हैं. हम मौसम की व्याख्या विभिन्न मौसमी कारकों जैसे तापमान, वर्षा मात्रा, नमी, वायु गति, बादलों की उपस्थिति के रूप करते हैं जो कि सागर और भूमि पर होने वाली घटनाओं पर निर्भर करता है.

मौसमी मॉडेल विभिन्न कारकों के विभिन्न मानों से गणना की गई सांख्यिकीय गुण धर्मों जैसे औसत मान, स्टैंडर्ड डेवीएशन , अधिकतम और न्यूनतम मानों जैसे कारकों के आधार पर बनाया जाता है. ये मॉडेल यह नहीं बता सकते कि 10 दिसंबर 2022 को दिल्ली में कैसा मौसम रहेगा, लेकिन यह अवश्य बात सकता है कि दिसंबर 2022 में दिल्ली में औसत बारिश , अधिकतम और न्यूनतम तापमान कितना रहेगा.

कार्बन डाई ऑक्साइड की भूमिका का निर्धारण

पृथ्वी पर जीवन के लिए ग्रीनहाउस प्रभाव आवश्यक है. पृथ्वी पर तापमान विभिन्न ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड , मीथेन, जलबाष्प और कुछ अन्य गैसों द्वारा नियंत्रित होता है जोकि विकिरण को पहले अवशोषित और बाद मे उत्सर्जित करते हैं, इस दौरान आसपास की वायु और नीचे की धरती उष्ण होती है.

ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी के वातावरण का एक नन्हा भाग है, जोकि 99% नाइट्रोजन और आक्सीजन से निर्मित है. कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा केवल 0.04% है. सबसे अधिक ग्रीनहाउस प्रभाव जलवाष्प द्वारा बनता है. हम वातावरण में जलवाष्प की मात्रा का नियंत्रण नहीं कर सकते हैं लेकिन हम कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा नियंत्रित कर सकते हैं.

वातावरण में जलवाष्प की मात्रा तापमान पर निर्भर करती है और उसके द्वारा एक फ़ीडबैक प्रणाली निर्मित होती है क्योंकि अब जलवाष्प से तापमान नियंत्रित होता है. वातावरण में अधिक कार्बन ड़ाई ऑक्साइड से अधिक तापमान होगा, जिससे वातावरण में अधिक जलवाष्प टीकी रहेगी, इससे ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ेगा, इससे तापमान और बढ़ेगा. यदि कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा कम होती है, कुछ जलवाष्प संघनित होगी और तापमान कम होगा.

इस पहेली में कार्बन डाई ऑक्साइड के महत्वपूर्ण भाग को नोबेल पुरस्कार विजेता स्वीडिश वैज्ञानिक स्वानते अरहेनियस (Svante Arrhenius ) ने हल किया था. उन्हीं के एक सहयोगी मौसम वैज्ञानिक निलस एकलोहम ने 1901 में ‘ग्रीन हाउस’ शब्द का प्रयोग किया था.

19वीं सदी के अंत में अरहेनियस ने ग्रीन हाउस प्रभाव के पीछे की भौतिकी समझ ली थी, जिसके अनुसार उत्सर्जित विकिरण की मात्रा विकिरण करने वाले पिंड के तापमान (T) के चतुर्थ घात (T⁴) के समानुपाती होती है. पिंड का तापमान जितना अधिक होगा, उत्सर्जित विकिरण का तरंगदैर्ध्य उतना ही कम होगा. सूर्य की सतह का तापमान 6,000°C है और उत्सर्जन दृश्य प्रकाश के वर्णक्रम में होता है. पृथ्वी की सतह का तापमान 15°C है और उससे विकिरण अवरक्त वर्णक्रम में होता है, जिसे हम देख नहीं सकते हैं. यदि वातावरण इस उत्सर्जन को अवशोषित ना करें तो पृथ्वी की सतह का तापमान –18°C से अधिक नहीं होगा.

अरहेनियस वास्तविक रूप से हिमयुग के पीछे के कारकों का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे, हिमयुग की घटना के प्रमाण उसे समय पाए गए थे. वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा आधी कर दे तो नए हिमयुग का आगमन हो सकता है. यदि कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा दोगुनी कर दे तो तापमान मे 5–6°C की बढ़ोतरी होगी. एक सदी पहले की गई यह गणना वर्तमान गणना के समीप है.

कार्बन डाई ऑक्साइड के प्रभाव का क्रांतिकारी आरंभिक माडेल

1950 के दशक में जापानी भौतिक वैज्ञानिक सुकुरों मनाबे युद्ध की विभीषिका से प्रभावित जापान को छोड़कर अमरीका आए. उनका लक्ष्य अरहेनियस द्वारा 70 वर्ष पहले किये गए अध्ययन जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड के अधिक स्तर द्वारा अधिक तापमान के संबंध को समझना था. अरहेनियस का मुख्य केंद्र विकिरण संतुलन था. मानबे ने 1960 के दशक में इस मॉडल में वायु द्रव्यमान का संवहन (convection) प्रक्रिया द्वारा ऊर्ध्वाधर स्थानातरण (vertical transport) और जलवाष्प की गुप्त ऊष्मा (latent heat) को भी जोड़ा.

इन गणनाओं को आसान बनाने के लिए उन्होंने इस मॉडेल को छोटा कर एक आयामी बनाया- जिसमें उन्होंने वातावरण में 40 किमी ऊंचाई के एक ऊर्ध्वाधर कालम को लिया लेकिन उसमें भी उन्हें सैकड़ों घंटों तक कम्यूटर पर विभिन्न गणना करनी पड़ी, जिसमें वे विभिन्न गैसों की भिन्न मात्राओं का प्रयोग कर मॉडेल को जांचते रहे. सतह के तापमान पर ऑक्सीजन और नाइट्रोजन का न्यूनतम प्रभाव है, जबकि कार्बन डाई ऑक्साइड का प्रभाव स्पष्ट है. इस मॉडेल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा दोगुनी करने पर तापमान 2°C बढ़ा.

Source: Manabe and Wetherald (1967) Thermal equilibrium of the atmosphere with a given distribution of relative humidity, Journal of the atmospheric sciences, Vol. 24, Nr 3, May.

इस मॉडेल ने यह तय कर दिया कि तापमान में वृद्धि कार्बन डाई ऑक्साइड में वृद्धि के कारण है क्योंकि इस मॉडेल ने दर्शाया था कि जमीन के समीप तापमान बढ़ेगा जबकि ऊपरी वातावरण में तापमान कम होगा. यदि सौर विकिरण में बदलाव तापमान में वृद्धि के लिए जिम्मेदार होते तो यह वृद्धि हर ऊंचाई पर समान होती.

आज से साठ वर्ष पहले कंप्यूटर आज की तुलना में हजारों गुना धीमे थे, इसलिए यह मॉडेल सरल रखा गया था लेकिन इस मॉडल ने सबसे महत्वपूर्ण कारक और उसके प्रभाव को सफलतापूर्वक पकड़ लिया था. मनाबे कहते हैं कि आप प्रकृति की जटिलता से स्पर्धा नही कर सकते है, आपको उसे सरल कर ही समझना होगा. आप जल की हर बूंद की भौतिकी नहीं जान पाएंगे. इस एक आयाम वाले मॉडल का विस्तार बाद में तीन आयामों वाले माडल में हुआ, जिसे मनाबे 1975 में प्रकाशित किया जोकि मौसम को समझने में एक और मील का पत्थर था.

मौसम अव्यवस्थित अराजक है

मनाबे के दस वर्ष पश्चात क्लाउस हैसलमेन ने वातावरण और मौसम को जोड़ने में सफलता पाई, जिसके लिए उन्होंने मौसम में त्वरित और अव्यवस्थित परिवर्तनों को मात देने का तरीका खोज निकाला. त्वरित और अव्यवस्थित परिवर्तनों के कारण गणना कठिन होती थी. हमारे ग्रह पर बहुत से मौसमी क्षेत्र है क्योंकि सौर ऊर्जा का वितरण भी अव्यवस्थित है, यह असमांगी वितरण भौगोलिक और समय दोनों रूप में है.

पृथ्वी गोलाकार है, जिससे उच्च अक्षांशों पर विषुवत की तुलना में कम सूर्य किरणें पहुंचती है. इसके अलावे पृथ्वी अतिरिक्त झुका हुआ है जिससे सूर्य ऊर्जा के वितरण में वर्ष की भिन्न अवधियों मे परिवर्तन होते रहता है. उष्ण वायु और शीत वायु के घनत्व मे अंतर भिन्न अक्षांशों के मध्य, सागर और धरती के मध्य अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा का स्थानांतरण करता है, जिससे हमारी धरती का मौसम निर्धारित होता है.

हम जानते हैं कि अगले दस दिनों से अधिक के मौसम का पूर्वानुमान लगाना एक चुनौती है. दो सौ वर्ष पहले फ्रेंच वैज्ञानिक लापलास (Pierre-Simon de Laplace) ने कहा था कि यदि उन्हें ब्रह्मांड में हर कण की स्थिति और गति ज्ञात हो तो वो भूतकाल और भविष्यकाल दोनों की गणना करने मे सक्षम होंगे. सैद्धांतिक रूप से यह सही होना चाहिये क्योंकि न्यूटन के तीन सदी पुराने गति के तीन नियम वातावरण मे वायु स्थानांतरण पर भी लागू होते है, ये नियम आपको निश्चित मान देते हैं, जो कि आकस्मिक नहीं होते हैं.

लेकिन इसे मौसम पर सीधे सीधे लागू नहीं कर सकते है, इसके पीछे कारण यह है कि वायु तापमान, दबाव, नमी और वायु दिशा का वातावरण में हर बिन्दु पर सटीक मापन असंभव है. इसके अतिरिक्त ये समीकरण रैखिक नहीं है, इन कारकों के आरंभिक मान में एक नन्हा-सा हेरफेर मौसम में अप्रत्याशित बदलाव ला देगा.

इसके अनुसार ब्राजील में एक तितली के पंखों की फड़फड़ाहट से टेक्सास में चक्रवाती तूफान आ सकता है, इसे बटरफ्लाय प्रभाव कहते हैं. प्रायोगिक रूप से इसका सीधा अर्थ है कि लंबे समय के लिए मौसमी भविष्यवाणी करना असंभव है. मौसम अराजक, अव्यवस्थित है. 1960 में अमरीकी मौसम वैज्ञानिक एडवर्ड लारेंज (Edward Lorenz) द्वारा की गई इस खोज ने एक नई गणित की शाखा बनाई जिसे केआस थ्योरी (chaos theory) कहते हैं.

अव्यवस्थित आंकड़ों का विश्लेषण कैसे हो ?

शायद हम अब से कुछ दशकों या सदी पश्चात विश्वसनीय मौसमी मॉडेल बना सके, भले ही वातावरण के अव्यवस्थित घटकों का समावेश हो. 1980 के आस पास क्लाउस हैसलमेन ने दर्शाया कि किस तरह से अव्यवस्थित रूप से परिवर्तित होते हुए वातावरण के कारकों में त्वरित बदलाव होते हुए आंकड़ों के रूप में रखा जा सकता है, इस खोज ने लंबे समय के लिए मौसमी परिवर्तनों के अनुमान के लिए ठोस वैज्ञानिक आधार दिया. इसके बाद उन्होंने वैश्विक तापमान पर मानव के प्रभाव को पहचानने की विधियों की खोज की.

1950 के दशक में हैमबर्ग जर्मनी में हैसलमेन ने अपने शोध छात्र के रूप में द्रव यांत्रिकी (fluid dynamic) का अध्ययन किया था. उसके पश्चात उन्होंने सागरीय लहरों और धाराओं के लिए सैद्धांतिक मॉडेल बनाए. उसके बाद वे कैलिफोर्निया चले गए और चार्ल्स किलिंग (Charles David Keeling) के साथ सागर विज्ञान (oceanography) पर कार्य आरंभ किया.

किलिंग ने 1958 के आसपास हवाई स्थित मोना वेधशाला में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा के मापन पर सबसे लंबी अवधि तक कार्य किया था. किलिंग द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड के मापन और उसकी मात्रा में आने वाले परिवर्तनों को दर्शाने वाले किलिंग आरेख (Keeling Curve) ने हाइसेलमन की मदद की.

अव्यवस्थित और अनियमित वातावरण के आंकड़ों से मौसमी मॉडेल बनाने की तुलना किसी कुत्ते को घुमाने से की जा सकती है. कुत्ता अपने पट्टे को छुड़ाकर भाग सकता है, आगे जा सकता है, पीछे जा सकता हैं, दायें या बाएं जा सकता है, आपके पैरों के आसपास घूम सकता है. अब आप कुत्ते के पैरों के निशानों से यह कैसे पता कर सकते हैं कि आप चल रहे थे या खड़े थे ? आप तेज चल रहे थे या धीमे थे ? कुत्ते के पैरों ने निशान वातावरण में बदलाव है, जबकि आपकी चाल मौसमी गणना. अव्यवस्थित और अनियमित वातावरण के आंकड़ों से मौसमी अनुमान लगाना संभव है भी या नहीं ?

इसके अतिरिक्त एक और परेशानी है कि मौसम में बदलाव लाने वाले कारकों में भी परिवर्तन की मात्रा भी समय के साथ परिवर्तित होती है, ये तीव्र हो सकती है जैसे वायु गति या वायु तापमान, या बहुत धीमी जैसे पिघलती बर्फ की तहे या उष्ण होते हुए सागर.

उदाहरण के लिए सागर के तापमान में एक डिग्री के लिये हजारों वर्ष लग सकते हैं, लेकिन वातावरण में यह कुछ सप्ताह में हो सकता है. वातावरण में तीव्र बदलाव वाले कारकों का समावेश एक निर्णायक युक्ति थी, जिसने गणना में यह दर्शाया कि ये अव्यवस्थित अनियमित आंकड़े किस तरह से मौसम में बदलाव को प्रभावित करते हैं.

हैसलमेन ने स्टोकेस्टिक मौसमी मॉडल बनाया, जिसमें यह अनियमितता, अव्यस्तता मॉडेल में ही समाविष्ट थी. उनके इस मोडेल के लिए प्रेरणा अलबर्ट आइन्स्टाइन के ब्राउनियन गति के सिद्धांत पर थी, जिसे अनियमित सैर के रूप में देखा जा सकता है. इस सिद्धांत के द्वारा हैसलमेन ने दर्शाया कि त्वरित रूप से परिवर्तित होते हुए वातावरण से वास्तविकता में सागर में धीमे बदलाव होते हैं.

मानव प्रभाव का विवेकी विश्लेषण

मौसमी बदलावों के मॉडेल के निर्माण के पश्चात हैसलमेन ने मौसम प्रणाली पर मानव के प्रभाव के निर्धारण की विधियों का निर्माण किया. उन्होंने पाया कि इस मॉडेल के साथ निरीक्षण और सैद्धांतिक मान्यताओं में इतनी जानकारी है कि संकेतों और अनियमित आंकड़ों के गुणधर्मों का निर्धारण हो सके.

उदाहरण के लिए सौर विकिरण मात्रा, ज्वालामुखीय कण या ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में परिवर्तन अपने विशिष्ट संकेत या हस्ताक्षर छोड़ जाते है, जिन्हें अलग कर सकते हैं. इन हस्ताक्षरों को पहचानने की विधि को मानव प्रभाव द्वारा मौसम प्रणाली में होने वाले परिवर्तनों में भी अलग किया जा सकता है. हैसलमेन ने इस तरह से मौसमी बदलाव में होने वाले अन्य अध्ययनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जिसने स्वतंत्र निरीक्षणों द्वारा मौसमी बदलाव पर मानव प्रभाव के हस्ताक्षर अलग किए.

मौसमी मॉडेल को समय के साथ परिवर्धित किया जाता रहा है, जिसमें मौसमी घटकों की आपसी प्रतिक्रियाओं की नई प्रक्रियाओं को जोड़ा जाता रहा है, इनमें उपग्रहों द्वारा मापन और वातावरणीय निरीक्षणों का समावेश है. इन मॉडेलों ने स्पष्ट रूप से 19वीं सदी के मध्य से तेज होते हुए ग्रीन हाउस प्रभाव को दर्शाया है, जिसके अनुसार वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा 40% बढ़ी है. पृथ्वी के वातावरण में इतनी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड पिछले कुछ लाख वर्षों में नहीं रही है. तापमान का मापन दर्शाता है कि पिछले 150 वर्ष में पृथ्वी का तापमान 1°C बढ़ गया है.

मनाबे और हैसलमेन ने मानवता के लाभ के लिए कार्य किया है. उन्होंने कुछ प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर दिया है –

  • क्या पृथ्वी गरम हो रही है ? हां.
  • क्या तापमान में बढ़ोत्तरी ग्रीन हाउस गैसों के कारण है ? हां.
  • क्या यह प्राकृतिक कारणों से है ? नहीं.
  • क्या मानव निर्मित उत्सर्जन इसका कारण है ? हां.
Source: Hegerl and Zweirs (2011) Use of models in detection & attribution of climate change, WIREs Climate Change.

अव्यवस्थित प्रणालीयों के लिए विधियां

1980 के आसपास जिओर्जिओ परीसी ने अपनी खोजों से यह प्रमाणित किया कि किस तरह से कुछ अनियमित घटनाओं का नियंत्रण कुछ गुप्त नियम करते हैं. उनका यह कार्य वर्तमान में जटिल प्रणाली सिद्धांत (theory of complex systems) में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है.

जटिल प्रणालियों के आधुनिक अध्ययन की नींव 19वीं सदी के उतरार्द्ध मे जेम्स सी. मैक्सवेल, लुडविग बोल्टझमन और जे. विलार्ड गिब्स द्वारा विकसित सांख्यिकीय यांत्रिकी (Statistical mechanics) में है. सांख्यिकीय यांत्रिकी का विकास गैस या द्रव जैसी प्रणालियों की व्याख्या के लिए हुआ था, जिनमें अत्यधिक संख्या में कणों का समावेश होता है.

इन विधियों में इन कणों के अनियमित गतिविधियों को गणना में शामिल करना होता है, जिसमें हर कण के स्वतंत्र प्रभाव की बजाय उन कणों के औसत प्रभाव से गणना की जाती है. उदाहरण के लिए किसी गैस का तापमान उसके गैस कणों की ऊर्जा का औसत मान होता है. सांख्यिकीय यांत्रिकी अत्यधिक सफल तकनीक है, क्योंकि वह गैस और द्रव के बड़े पैमाने के गुणों की व्याख्या सूक्ष्म स्तर पर करती है जैसे तापमान और दबाव.

गैस में कणों को ऐसी नन्ही गेंदों के रूप में माना जा सकता है जो उड़ती रहती है, जिनकी गति बढ़ते तापमान के साथ बढ़ती है. जब तापमान कम होता है या दबाव बढ़ता है तब ये गेंदे संघनित होकर पहले द्रव बनती है, उसके बाद ठोस. यह ठोस अधिकतर क्रिस्टल रूप में होता है, जिसमें परमाणु नियमित पैटर्न के रूप में व्यवस्थित होते हैं लेकिन यदि यह बदलाव तेजी से हो तो तो ये गेंदे अनियमित पैटर्न बनाती है जिनमें और कम तापमान या अधिक दबाव से भी बदलाव नहीं आता है. यदि प्रयोग को दोहराया जाए तो गेंदे एक नया पैटर्न बनाती है, भले ही सारा प्रयोग पुनरावर्ती हो. ये परिणाम भिन्न क्यों है ?

जटिलताओं का अध्ययन

ये संघनित गेंदे साधारण कांच और दानेदार पदार्थ जैसे रेत का सबसे सरल मॉडेल है. लेकिन परिसी के वास्तविक अध्ययन का विषय एक दूसरे तरह का पदार्थ था, स्पिन कांच. यह एक विशेष तरह का धात्विक मिश्रण है जिसमें लौह परमाणु अनियमित तरह से तांबे के परमाणुओं के ग्रिड में मिश्रित रहते हैं. इसमें लोहे के परमाणु अत्यल्प होते हैं लेकिन वे मिश्रधातु के चुंबकीय गुणों को पूरी तरह से बदल देते हैं. इसमें हर लौह परमाणु एक चुंबक के जैसे व्यवहार करता है, जोकि अपने पास के अन्य लौह परमाणु से प्रभावित होता है. साधारण चुंबक में सारे लौह परमाणु की चुंबकीय दिशा एक ही होती है, लेकिन स्पिन ग्लास में इन की दिशा अनियमित होती है. इन परमाणुओं को एक जैसी दिशा कैसे मिले ?

अपनी पुस्तक में परिसी ने लिखा है कि स्पिन ग्लास का अध्ययन शेक्सपियर के नाटकों में मानवीय त्रासदी के अध्ययन के जैसा है. यदि आप दो व्यक्तियों से मित्रता करना चाहते हैं और वे दोनों एक दूसरे से नफरत करते हो तो आपके लिए यह एक निराशाजनक स्थिति होगी. एक गणितीय तरीका था जिसमें हर भाग की प्रतिकृति बनाई जाए. लेकिन यह तरीका गणित में ठीक से कार्य करता था लेकिन भौतिकी में कार्य नहीं करता था.

1979 में परिसी ने स्पिन ग्लास समस्या के हल के लिए प्रतिकृति (replica) तरीका खोज निकाला. उन्होंने इन प्रतिकृति में एक छुपी संरचना खोजी जिसे गणितीय रूप से व्यक्त किया जा सकता था. परिसी के इस हाल को गणितीय रूप से प्रमाणित करने में कई बरस लग गए. इसके बाद इस विधि से कई अन्य अनियमित प्रणालियों पर इस तरीके का प्रयोग किया गया और यह विधि जटिल प्रणालियों के अध्ययन में भी एक मील का पत्थर प्रमाणित हुई.

परिसी ने इसके अतिरिक्त की अन्य प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन किया, जिसमें अनियमित प्रक्रियायें ढांचे के निर्माण, विकास में निर्णायक भूमिकायें निभाती है. इन घटनाओं में हिमयुगों की आवृत्ती जैसी घटनाएं है. क्या अव्यवस्थित प्रणालियों के लिए एक सामान्य गणितीय समीकरण बनाया जा सकता है ?

स्पिन ग्लास के लिए हल खोजा जा चुका है, लेकिन अन्य जटिल प्रणाली अब भी है. लेकिन परिसी ने प्रमाणित किया है कि सरल व्यवहार से ही जटिल संयुक्त व्यवहार बनते हैं.

रोचक तथ्य

  • 1901 से 2020 तक 114 भौतिकी नोबेल पुरस्कार दिए जा चुके हैं.
  • 47 बार भौतिकी नोबेल पुरस्कार एक ही वैज्ञानिक को मिला है अर्थात इन मौकों पर पुरस्कार किसी अन्य वैज्ञानिक के साथ साझा नहीं दिया गया.
  • अब तक चार महिलाओं ने भौतिकी नोबेल जीता है. 1903 में मेरी क्यूरी (Marie Curie), 1963 में मारिया गोएपर्ट मेयर (Maria Goeppert-Mayer), 2018 मे डोना स्टिकलैन्ड (Donna Strickland) तथा 2020 मे एन्डरीया गीज (Andrea Ghez) को यह पुरस्कार मिला है.
  • जॉन बारडीन (John Bardeen) ने यह पुरस्कार दो बार जीता है.
  • 1915 में लारेंस ब्रेग (Lawrence Bragg) ने अपने पिता के साथ जब भौतिकी नोबेल जीता तो उनकी उम्र केवल 25 वर्ष थी जोकि सबसे कम है.
  • 96 वर्ष की उम्र मे यह पुरस्कार पाने वाले आर्थर आसटीन (Arthur Ashkin) सबसे वृद्ध व्यक्ति थे.

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