मोदी राज में हर कार्य ऐतिहासिक होता है. इससे कम तो बिल्कुल नहीं. पेट्रोल की कीमत अगले वर्ष 200 रूपये पार होने जा रहा है जो भी ऐतिहासिक ही होगा. उसी तरह भारत-पाकिस्तान के बीच खेले गये क्रिकेट विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम का शून्य विकेट से पाकिस्तान के हाथों पराजय भी ऐतिहासिक ही है, जो पिछले 70 साल के इतिहास में पहली बार हुआ है, जैसा कि मोदी और गोदी हर मामले को पहली बार होना बताता है.
क्रिकेट मैच शुरू होने के पहले गिद्ध मीडिया इस क्रिकेट कप में भारतीय क्रिकेट टीम की संभावित जीत को मोदी की जीत कहकर भुनाया जा रहा था, लेकिन ज्यों ही इस मैच में भारत की ऐतिहासिक हार सामने आयी, भाजपा आईटी सेल तत्क्षण सक्रिय हो गया, और बताया जाने लगा कि जो कोई भी देश में पटाखा चलायेगा, भारत की इस ऐतिहासिक हार को देखते हुए उसे गद्दार माना जायेगा. इस बेबकूफ को यह भी नहीं पता है कि देश में चन्द दिनों बाद ही दीपावाली और छठ पर्व मनाया जाने वाला है, जहां पटाखे ही नहीं दीप भी जगमगायेंगे.
बहरहाल, इस ऐतिहासिक हार का उत्सव वे सभी मना रहे हैं जो इस हार में अरबों-खरबों की कमाई किया है, मसलन, कनाडियन नागरिक अक्षय कुमार, गृहमंत्री अमित शाह का बेटा जय शाह वगैरह. इस ऐतिहासिक कमाई में आम जनता के हाथों में केवल गद्दार और देशद्रोही बनना ही लिखा है, जो दीपावली और छठ के उत्सव को भी माताम में बदलने का संघी एजेंट आह्वान कर रहा है.
बीते सात सालों में इस देश की जनता देशद्रोही, खालिस्तानी, पाकिस्तानी, चोर, गुण्डा, हैवान, शैतान, मवाली सब बन गई है. भारत के प्रसिद्ध पत्रकार रविश कुमार क्रिकेट के इस खेल के बाद खीची गई एक तस्वीर के बहाने भारत-पाकिस्तान के संबंध की पड़ताल कर रहे हैं, जो इस प्रकार है.
इस तस्वीर को देखा तो ख़ूब गया है मगर जी भर किसी ने नहीं देखा. यह तस्वीर फैज़ की नज़्म-सी है. हारे हुए विराट का हाथ रिज़वान के कंधे पर है. विराट के चेहरे पर विजय की मुस्कान है. विराट के हाथ रख देने भर से रिज़वान का कंधा पिघल गया है. बाबर जैसे गले से लिपटने को तैयार है मगर कदम ठिठके से हैं. इक़बाल बानो की आवाज़ कहीं से चली आ रही है.
हम कि ठहरे अजनबी, इतनी मदारातों के बा’द,
फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बा’द।
ज़माने से खो चुकी आश्नाई एक मुलाक़ात में हासिल नहीं हो सकती. कई और मुलाक़ातों की ज़रूरत होगी. विराट और रिज़वान की जैसे मुलाक़ात तो हुई मगर बात नहीं हो सकी. बाबर जैसे इक़बाल बानो को ही सुन रहा हो –
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार,
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद।
ज़माने तक लड़ने के बाद दो पड़ोसी किसी वजह से मिल जाते हैं तो इसी तरह नज़र मिला कर नहीं मिलाते हैं, जैसे किसी तरह उस अतीत से पीछा छुड़ा लेना चाहते हों, जिसमें न जाने ख़ून की कितनी गहरी नदियां बहती हैं मगर रिश्ता भी तो ख़ून का ही है. मैंने अपने जीवन में ऐसी कई तस्वीरें देखी हैं. झगड़े के बाद बच्चे की शादी में एक हुए रिश्तेदार एक दूसरे से नज़रे बचाते हुए कैसे बाराती के लिए मेज़ लगा रहे होते हैं. दोस्त से ज़्यादा दोस्त होने लगते हैं.
बहुत दिनों की बंद हो चुकी बातचीत के बाद जब किसी पुराने दोस्त के घर जाना होता था तो इसी तरह हर चीज़ पर पहले की तरह हाथ धर देने की इच्छा होती थी जैसे विराट ने रिज़वान के कंधे पर रखा था. कुछ बहाने खोज कर उसके हाथ से सामान लेकर वहां रख देने के लिए जी दौड़ पड़ता था. बहुत से दोस्तों के बीच नज़र हटा कर उससे बात कर लेना और और नजर मिलाते मिलाते नज़र हटा लेना. बहुत तकलीफ होती थी, दोस्ती तोड़ कर दोस्त होने में.
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए- दिल ने मोहलत न दी,
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते, मुनाजातों के बाद
यहां कोई किसी को रोक नहीं रहा है. रुक रहे हैं मगर बढ़ भी रहे हैं. आप इस तस्वीर को ठीक से देखिए. हम इस तस्वीर को भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की वास्तविकता से अलग कर नहीं देख सकते. लेकिन इसे देखते ही एक अलग सी वास्तविकता बन जाती है. कुछ देर पहले इसी स्टेडियम में खेल भावना के नाम पर मुट्ठी भींचते और चीखते दर्शकों का चेहरा काफी ख़तरनाक लगा था. लग रहा था कि क्रिकेट इन्हें वहशी बना रहा है.
यहां से निकलने के बाद एक चौके और एक छक्के पर मुट्ठी तानने वाले ये लोग अपने पड़ोसी को देख इसी तरह मुट्ठी तानते होंगे. अपने हमवतन को किसी का चौका और छक्का समझने लगे हैं. मुझसे देखा नहीं गया. पांच मिनट में ही टीवी बंद कर दिया.
ज़माने बाद क्रिकेट देखने की कोशिश की लेकिन दर्शकों को देख कर लगा कि एक शालीन खेल किस तरह से उनके भीतर उपद्रवी होने की संभावना को मान्यता दे रहा है. वैसे भी अब क्रिकेट में क्रिकेट कम दिखता है, जैसे न्यूज़ में न्यूज़ कम दिखती है. हर चौके के बाद विज्ञापन आ जाता है.
आप इस तस्वीर को थोड़ी देर देख लीजिए. जल्दी ही भारत और पाकिस्तान के बीच नफरतों की आंधी इसे उड़ा ले जाने वाली है. भारत और न्यूज़ीलैंड के खिलाड़ियों के साथ इसी तरह की तस्वीर होती तो खेल भावना की रुटीन तस्वीर मानी जाती लेकिन यह तस्वीर क्रिकेट भर की नहीं है. ऐसी तस्वीरें लंबी तरस के बाद बूंद की तरह टपकती और धूप खिलने के बाद ओस की बूंदों की तरह ग़ायब हो जाती हैं. झूठी हैं मगर सच्ची हैं.
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