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डा. नरेन्द्र दाभोलकर की एक निर्भीक कविता

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मूर्तियों को पूजने के बजाय
मानवता को पूजता हूं मैं !
काल्पनिक देवताओं को न मानकर,
शफुले साहू अम्बेडकर को पढ़ता हूं मैं !
छाती ठोककर बोलता हूं,
असत्य को नकारने वाला
नास्तिक हूं मैं !

पोथी पुराण पढ़ने के बजाय
शिवाजी को पढ़ता हूं मैं !
पत्थर के सामने क्यों झुकूं ?
जिजाई, सावित्री, रमाई के सामने
नतमस्तक होता हूं मैं !
छाती ठोककर बोलता हूं
असत्य नकारने वाला
नास्तिक हूं मैं !

पसीने की कमाई दानपेटी में डालकर,
ब्राह्मणों के घर नहीं भरता हूं मैं !
प्यासे को पानी, भूखे को अन्न देकर
उनमें ही देव खोजता हूं मैं !
छाती ठोककर बोलता हूं
असत्य नकारने वाला
नास्तिक हूं मैं !

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई के रूप में न जीकर,
मानव बनकर जीता हूं मैं
धर्मों के पाखंडों को न मानकर
मनुष्यता को जपता हूं मैं !
छाती ठोककर बोलता हूं
असत्य नकारने वाला
नास्तिक हूं मैं !

कर्तव्यनिष्ठ मानव से पत्थर को श्रेष्ठ नहीं समझता हूं मैं,
मंत्र, होमहवन, कर्मकांड को पैरों तले रौंदकर
अपने विवेक पर भरोसा रखता हूं मैं,
छाती ठोककर बोलता हूं
असत्य नकारने वाला
नास्तिक हूं मैं !

बिल्ली के रास्ता काटने से रुकता नहीं
सीधे मंजिल पर पहुंचता हूं मैं !
अंधश्रद्धा को मिट्टी में रौंदकर
विज्ञानवाद स्वीकारता हूं मैं !
छाती ठोककर बोलता हूं
असत्य नकारने वाला
नास्तिक हूं मैं !

  • डा. नरेंद्र दाभोलकर
    मराठी से हिन्दी अनुवाद – चन्द्र भान पाल

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