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मोदी के विकास मतलब है गैस, डीजल और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि

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मोदी के विकास मतलब है गैस, डीजल और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि

गिरीश मालवीय

सुरसा के मुंह को भी मात दे रही पेट्रोल डीजल और घरेलू गैस सिलेंडर की कीमतें. इस महीने अक्टूबर के मात्र 17 दिन में ही पेट्रोल सवा चार रुपये प्रति लीटर और डीजल पौने पांच रुपये प्रति लीटर महंगा हो गया है. घरेलू गैस सिलेंडर अब एक हजार के आसपास मिल रहा है. राहुल गांधी ने सही कहा था कि इनके लिए GDP बढ़ने का मतलब है गैस, डीजल और पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि.

मोदी सरकार ने बर्बाद किये जनता के टैक्स के 1500 करोड़ रुपये

देश की वैक्सीन खरीद नीति अब कई सवालों से घिर गई है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने 2022 तक वैक्सीन की कमी की पूर्ति का दावा करते हुए कहा था कि दिसम्बर 2021 तक वैक्सीन को 216 करोड़ डोज प्राप्त करने की बात की थी. इस प्लान में 30 करोड़ बायो ई सबयूनिट, 5 करोड़ जायडस कैडिला डीएनए, 20 करोड़ नोवा, 6 करोड़ जिनोवा वैक्सीन अगस्त से दिसंबर 2021 तक उपलब्ध होगी.

यानी फ़ाइजर, मोडर्ना ओर स्पूतनिक जैसी प्रतिष्ठित वैक्सीन जिन्हें अनुमति दी जा चुकी है, उन्हें छोड़कर बिल्कुल नयी कम्पनियों से वैक्सीन के सौदे किये गए, जिनके न थर्ड ट्रायल का पता था और न सेफ्टी एफिकेसी डाटा का ? इन नयी वेक्सीन पर जनता का पैसा बर्बाद किया गया.

खबर आई है कि देश में कोरोना वायरस के खिलाफ चल रहे टीकाकरण अभियान में बायोलाजिकल ई के टीके की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन टीके से ही टीकाकरण का बड़ा काम पूरा हो जाएगा.

जून 2021 में बायोलाजिकल ई कंपनी ने एडवांस दिए जाने की शर्त पर वादा किया था कि वह इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत मिलने के पहले ही इतने डोज बनाकर रख लेगी और इजाजत मिलते ही सरकार को सप्लाई कर देगी.

अब अक्टूबर में मोदी सरकार यह नहीं बता रही हैं कि बायोलाजिकल ई कंपनी को 30 करोड़ बायो ई सबयूनिट वैक्सीन खरीदने के लिए जो 1500 करोड़ एडवांस दिया गया था, उसका क्या करेगी ?

सरकार यह भी नही बता रही है कि जिस वैक्सीन की प्रभावी क्षमता को लेकर पर्याप्त आंकड़े ही उपलब्ध नहीं थे, उसे 1500 करोड़ एडवांस देने की जरूरत क्या थी ? और यह एडवांस किसके दबाव में दिया गया ? आपको याद ही होगा कि भारत में बिल गेट्स की प्रतिनिधि बनी हुई वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कांग ने इन वैक्सीन की खरीद के पक्ष में बयानबाजी की थी.

पेट्रोल डीजल पर टैक्स लगाकर सरकार वैक्सीन के खर्च की भरपाई कर रही है ?

पेट्रोल डीजल पर टैक्स लगाकर सरकार वैक्सीन के खर्च की भरपाई कर रही है ? यह बात अंधभक्तो की मुंह से आपने भी सुनी होगी. कुछ दिन पहले यही बात पेट्रोलियम व नेचुरल गैस, रामेश्वर तेली ने भी की है कि ईंधन की उच्च कीमतें, एक तरह से फ्री में मिली वैक्सीन की भरपाई है.

9 अक्टूबर को असम में केन्द्रीय मंत्री तेली ने कहा, ‘ईंधन की कीमतें अधिक नहीं हैं, लेकिन इसमें टैक्स शामिल है. फ्री वैक्सीन तो आपने ली होगी, पैसा कहां से आएगा ? आपने पैसे का भुगतान नहीं किया है, इसे इस तरह से एकत्र किया गया.’
आइये समझ लेते हैं कि इस बात में कितनी सच्चाई है !

देश की वयस्क आबादी कुल 84 करोड़ लोगों की बताई जाती है. वैक्सीन चाहे वह कोविशील्ड हो या कोवेक्सीन बल्क खरीद में सरकार को लगभग 150 रु. की एक डोज पड़ती है. कुल डोज खरीद लगभग 168 करोड़ है. इसमें यदि और खर्च भी जोड़ लें तो पूरे देश को वैक्सीन लगाने पर 50 से 60 हजार करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है.

यह खर्च कहां से आ रहा है ?

यह खर्च कहां से आ रहा है वो भी समझ लीजिए. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को अपने बजट भाषण में कहा था, ‘मैंने 2021-22 के बजट अनुमान में कोविड-19 वैक्सीन के लिए 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. यदि आवश्यकता पड़ी तो मैं आगे भी फंड उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हूं.’

एक बात अच्छी तरह से समझ लीजिए कि यह राशि सभी राज्यों को टीकाकरण के लिए ‘ऋण/अनुदान’ के लिए निर्धारित की गई है. टीके के लिए 35,000 करोड़ रुपये का आवंटन बजट में राज्यों को हस्तांतरित करने के लिए किया गया है यानी आखिर में यह सारा खर्च राज्यों के माथे मांडा जाएगा

अब पेट्रोल डीजल पर केंद्र सरकार को टैक्स से कितनी आमदनी हो रही है वो भी जान लीजिए. कोरोना से पहले केन्द्र सरकार पेट्रोल पर 19.98 रुपये और डीजल पर 15.83 रुपये का टैक्स वसूलती थी, जिसे पिछले साल उसने बढ़ाकर क्रमश: 32.90 रुपये और 31.80 रु कर दिया.

वित्त वर्ष 2020-21 में पेट्रोल-डीजल पर केंद्र सरकार की तरफ से वसूले जाने वाले टैक्स में 88 फीसदी का उछाल आया. आरटीआई से मिले ब्यौरे के मुताबिक 2019-20 में पेट्रोलियम पदार्थों पर करो से होने वाली कुल आय 2,88,313.72 रुपये थी, जबकि 2020-21 में पेट्रोलियम पदार्थों से सरकार ने 4,13,735.60 करोड़ रुपये कमाए हैं. यानी खर्च 50 हजार करोड़ कर रहे हैं और उसके नाम पर वसूली 2 लाख करोड़ की हो रही है.

यहां ये भी जान लीजिए कि 2019-20 के औसतन 60.47 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले 2020-2021 में उससे 15.55 डॉलर कम दाम पर क्रूड खरीदा गया था. यानी यहां भी सरकार को बचत हुई लेकिन उसका फायदा जनता को न देकर टैक्स बेतहाशा बढ़ाया गया. देश का मीडिया भी इतना नाकारा हो गया है कि इस तरह की सच्चाई आपके सामने रखने के बजाए सरकार की जुबान ही बोलता रहता है.

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ROHIT SHARMA

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