सौमित्र राय
भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की हुई बातचीत को लेकर किसी पेडिग्री मीडिया में कोई ख़बर/कोई बहस है ? क्या सोशल मीडिया पर कोई सरकार से इस पर सवाल पूछ रहा है ? नहीं, क्योंकि हम चीन की सेना यानी पीएलए के मंसूबों को उतना ही जानते हैं, जितना अपने चाइनीज स्मार्टफोन को. इसके बाद हमारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जवाब दे जाता है.
आपको बता दूं कि कल (10 अक्टूबर) की बातचीत नाकाम होने के बाद चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने जंग की धमकी दे दी है. इसके बाद से ही समूचे विदेश और रक्षा मंत्रालय की पतलून गीली है. यकीनन, चीन के साथ तो जंग होगी ही, अगले 2 साल में कभी भी लेकिन यह जंग बहुआयामी, सीमित अवधि में बहुत तेज़ और निर्णायक होगी.
आज ही अमेरिका ने ऐलान कर दिया है कि वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मामले में चीन से पिछड़ गया है. किसी भी देश के लोकतंत्र को जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने में मीडिया का बड़ा रोल है लेकिन जब मीडिया खुद सरकारी टुकड़ों पर भौंक रही हो तो देश का बेड़ा गर्क होना तय है.
खैर, पीएलए के पश्चिमी थिएटर कमांड ने आज साफ कहा है कि चीन की सेना को पीछे हटाने की भारत की मांग ग़ैरवाज़िब और वास्तविकता से परे है. यानी चीन हमारी सरहद में जहां तक घुस आया है, वह उसकी ही ज़मीन है. हम तो बिक चुके हैं. भारत की सेना का बयान देखिये – कह रहे हैं कि वे यानी चीन की सेना यहां टिकने के लिए आई है.
चीन ने साफ़ कहा है कि वह भारत के ‘अहंकार भरे’ गैर वाज़िब मांगों को मान नहीं सकता और उसे भारत के एक और हमले के लिए तैयार रहना चाहिए. ये तो आपको भी मालूम है कि पूर्वी लद्दाख में सीमा पार बहुत कुछ हो रहा है. ज़्यादा चीनी जवान, एयर बेस, तंबू-बम्बू और ढेर सारा बंदोबस्त.
भारत कह रहा है – हम तैयार हैं. चीन ने भी आज कह दिया- हमें तैयार रहना होगा.
लेकिन जब जंग होगी तो कैसी होगी ? पूर्व फौजियों का कहना है कि यह स्पेस ऐज की जंग का नमूना होगी. कोई नहीं जानता कि यह कैसी होगी, क्योंकि चीन उतना ही बताता है, जो ख़ौफ़ पैदा करे. लेकिन, नरेंद्र मोदी का न्यू इंडिया यहां कहां खड़ा है ?
चीन से 30 साल पिछड़ा हुआ. आर्थिक तौर पर दिवालिया होने की कगार पर- सब कुछ बेच चुका, कूटनीतिक रूप से अलग-थलग, सामाजिक रूप में जाति, नस्ल, धर्म, सम्प्रदाय में बंटा और राजनीतिक रूप में एकाधिकारवादी सत्ता. बहुत से सैन्य रणनीतिकारों का मानना है कि ये जंग 15 से 20 दिन में ही निर्णायक मोड़ पर पहुंचेगी. जिस मोदी सरकार से कश्मीर न संभल पा रहा हो, उससे आप जीत की उम्मीद करते हैं ?
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यह चिंता फिर उभरने लगी है कि भारत को कैलाश पर्वतश्रृंखला की चोटियों से अपने सैनिकों की वापसी पर सहमत नहीं होना चाहिए था क्योंकि यह उसे चीन पर बढ़त दिला रहा था. जब कैलाश रेंज हाइट्स से भारतीय सैनिकों की वापसी पर सहमति की खबरें आईं तभी विभिन्न रक्षा विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की थी और भारत के इस कदम को अदूरदर्शी बताया था.
भारत को कैलाश रेंज हाइट्स नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि अपनी इस बढ़त का इस्तेमाल चीन को पूर्वी लद्दाख के उन सभी इलाकों से उसके सैनिकों की वापसी को मजबूर करने के लिए किया जा सकता है, जहां-जहां उसने अतिक्रमण किया है.
भारत ने चीन के साथ जो डील की है, उसमें ज्यादातर बफर जोन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के भारतीय इलाकों में ही बनाए गए हैं. साफ है कि गलवान घाटी में पेट्रोलिंग पॉइंट्स 14 और गोगरा के पास पेट्रोलिंग पॉइंट्स 17ए और पेंगोंग झील इलाकों में भारतीय सैनिक भी पेट्रोलिंग नहीं कर पाएंगे, जिसे भारत अपना इलाका मानता है.
पीएलए भारतीय सैनिकों को पिछले साल से ही अपने पारंपरिक पेट्रोलिंग पॉइंट्स पीपी-10, 11, 11ए, 12 और 13 के साथ-साथ देमचॉक सेक्टर में ट्रैक जंक्शन चार्डिंग निंगलुंग नाला (CNN) तक जाने नहीं दे रही है. चीनी सैनिकों ने इन इलाकों के रास्ते रोक रखे हैं. भविष्य में भी इन इलाकों को खाली करने पर चीन के साथ बात नहीं बनी तो मोदी सरकार की तरफ इस बात को लेकर उंगली जरूर उठेगी कि उसने पहले अपना इलाका खाली करवाने के बजाय कैलाश रेंज हाइट्स पर कब्जे की रणनीतिक बढ़त क्यों खो दी ?
यह सवाल मेरे जैसे कई लोगों ने बहुत पहले उठाया था और अब पेडिग्री मीडिया ने भी कहना शुरू किया है कि सरकार ने बड़ी ग़लती कर दी. अब पछताए का होत या तो लड़ो या अपना स्वाभिमान, आत्मगौरव और संप्रभुता गंवाओ. भारत इन तीनों को तेजी से खो रहा है.
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