मैं जानता हूं कि समझौते के बाद काफी किसान पुत्र गुस्से में रहेंगे. मेरा उन्हें एक संदेश है – ‘गुस्सा पालना सीखिये, गुस्से का गुलाम मत बनो.’ केंद्रीय गृहराज्य मंत्री बड़ा पद है, कितनी ताक़त होती है आप समझ नहीं सकोगे. 15 दिनों में गुस्से ने उसका क्या किया ?
मात्र 10 दिन पहले दो दर्जन किसानों द्वारा झंडे दिखाए जाने पर उसके अहंकार का, पद का, बदमाशी का गुस्सा जाग उठा. उसने 25 तारीख को बहुत छोटी-छोटी जनसभाओं मे धमकियां दी – ‘देख लूंगा…, दो मिनुट में सीधा कर दूंगा…., मुझे जानते नहीं MP बनने से पहले मैं क्या था…., अक्ल ठिकाने लगा दूंगा….’ इत्यादि. वो सभाएं उस इलाके में थी जहां हमारे वर्तमान आंदोलन के जबरदस्त मजबूत साथी गुरमनीत मंगत का घर है.
सबको याद होगा कि अम्बाला बॉर्डर से सिंधु बॉर्डर तक डेढ़ सौ किलोमीटर तक कैसे और कितने बैरिकेड तोड़े गये थे. मगर ये बात चंद आंदोलन के भीतरी लोग जानते हैं कि सबसे ज्यादा बैरियर तोड़ने का संघर्ष मंगत जैसे किसानों का था, जो पंजाब हरियाणा की संयुक्त ताक़त के बगैर, बड़े बड़े नेताओं की अगुवाई के बिना, साढ़े चार सौ किलोमीटर तक तिगुने बैरियर-बॉर्डर तोड़ गाजीपुर पहुंचे थे. मंगत ने इन दस महीनों में घर नहीं देखा. पर उसका सारा समय गुजरात, मध्यप्रदेश, असाम, उड़ीसा, बंगाल, पंजाब इत्यादि में बीता.
अब ग्रह राज्य मंत्री ने सभाओं में मंगत का नाम लेकर लखीमपुर छोड़ यूपी से बाहर निकाल देने की धमकी दी. उन्हें हाउस अरेस्ट किया गया. उनके स्कूल को तोड़ने की धमकी दी. FIR की गयी आखिर पुलिस महकमे के सबसे बड़े मालिक का दबाव था. खैर मंगत तो झुकना नहीं था, बस मंगत ने शांत रहते हुए अपने इलाके के किसानों को जागरूक किया. उसी हफ्ते वहां डिप्टी CM मौर्य का प्रोग्राम तय हो गया.
किसान जागरूक थे तो जो खट्टर के साथ कैमला में किया था, वही काम चंद जागरूक किसानों ने वहां कर दिया. गृहमंत्री के घर जाते डिप्टी CM को रोकना, हेलीकाप्टर ना उतरने देना किसानों की बड़ी जीत थी. ज़ाहिर है बाप केंद्रीय मंत्री हो, दबंग रहा हो, पुलिस महकमे के मालिक हो और घर में चंद किसानों से बेइज्जत हो रहा हो तो बेटे मोनू मिश्रा का गुस्सा क्या होगा.
वहां झंडे दिखाने का प्रोग्राम खत्म हो चुका था. गुरुद्वारे से चाय आ गयी थी. ऐलान हुआ कि चाय पीकर किसान घर लौटे. मगर अभी मंत्री के बेटे का गुस्सा मंत्री के ही गले का फंदा बनना बाकी था. बेटा गाड़ियों के काफिले के साथ खुद थार चलाते हुए आंदोलनस्थल पर लौटा. पिस्तौल लोड कर फायर किया. किसानों को कुचला पर सड़क बेहद तंग होने के कारण दो गाड़ियां सड़क से उतर गई.
खुद किसानों ने मंत्री पुत्र के काफिले के एक गुंडे को भीड़ से बचाते हुए पुलिस को हैंड ओवर किया (उसकी वीडियो भी है), मगर वो भी एक खेत में मरा पाया गया. भीड़ ने गुस्से में जो किया वो नहीं होना चाहिए था, पर गोधरा का क्रिया-प्रतिक्रिया के तर्क सिर्फ संघियों का पेटेंट तो है नहीं, लिहाज़ा किसानों ने जो किया मैं उन्हें तब तक बरी करता हूं जब तक इसी आधार पर गुजरात के दंगाइयों को फांसी नहीं होती.
देश किसानों के साथ रहेगा या लाश पर कुदते राष्ट्रवादियों के साथ, समय तय करेगा. योगी प्रशासन कल छह बज़े से हथियार डाल चुका था. लखीमपुर के ही दो थानों की पुलिस वाले थाने छोड़ भागने की अपुष्ट खबरें कल रात हवा में थी. गांव के रास्तों, खेतों से वहां बिना इंटरनेट भी 40 हजार की भीड़ रात 9 बजे तक इकट्ठी हो चुकी थी. बस रात इंटरनेट के कारण विजुअल नहीं आ रहे थे.
रात 11 बजे तक योगी इतने दबाव में थे कि खुद किसी भी सूरत में मामला सुलझाने में लगे थे. जहां आंदोलन का सिर्फ बीज था वहां अब बरगद उगेगा. राज्यमंत्री के राजनीतिक भविष्य पर उसके गुस्से का ग्रहण लग चुका है. चुनावी हार पक्की है. मंगत भाई आज भी अपनी ज़मीन पर शांति के सहारे प्रतिरोध का प्रतीक बनकर खड़ा है.
अब बात इज्जत की. खट्टर ने जो 500-700 लठैतों का गैंग बनाकर किसानों के साथ भिड़ने की अपील की है, उसकी भर्त्सना, कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए, होगी भी. अगर मुख्यमंत्री ही गुंडागर्दी करवाएंगे तो आगे कुछ नहीं हो सकता. ऐसे में जरूरत थी कोई नेता असलियत में लीडर वाला काम करे.
गुरनाम के मुख्यमंत्री को सीधे सीधे लाठी ले के मैदान में दो दो हाथ करने के बयान का मैं समर्थन करता हूं. गुरनाम के आज तक के सौ खून माफ. शेर दिल जवाब दिया है. अपने साथियों की इज्जत के लिए नेता को मजबूत होना ही चाहिये. गुरनाम ज़िंदाबाद.
सब तैयार रहो, नेताओ को घेरों, मुद्दों पर अडिग रहो, आंदोलन सबसे नाजुक दौर में है. सुप्रीम कोर्ट पूछ रहा है आंदोलन क्यों हो रहा है, उसे भी जवाब देंगे. और लास्ट, राजेवाल की बात याद रखो कि आंदोलन शांतिमय रहेगा तो सरकार हारेगी.
– चौधरी राकेश टिकैत (साथी हरिश्चंद्र के सौजन्य से)
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