गिरीश मालवीय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज 27 सितंबर को यूनिक डिजिटल हेल्थ कार्ड लॉन्च कर रहे हैं. लेकिन मजे की बात यह है कि इसके तहत बनने वाली यूनिक हैल्थ आईडी, कोरोना वेक्सीन लगाने के साथ ही बनाई जा चुकी है. आधार नम्बर से कोरोना टीके का रजिस्ट्रेशन कराने का मतलब ही यूनिक हेल्थ आईडी क्रिएट करना था.
इतिहास से एक शानदार सबक यह है कि सरकारें आपात स्थिति के दौरान हासिल की गई शक्तियों को आसानी से नहीं छोड़ती हैं. सरकारें महामारी का इस्तेमाल डेटा इकट्ठा करने के बहाने के रूप में भी कर सकती हैं, जिसका भविष्य में दुरुपयोग किया जा सकता है.
अब जरा देखिए न, कोरोना महामारी के दौरान हमसे बिना पूछे हमारा UHID क्रिएट कर दिया गया. जब हमने अपने आधार कार्ड के साथ कोविन पोर्टल या ऐप पर रजिस्टर किया तभी यह आईडी क्रिएट हो गयी.
सबसे कमाल की बात यह है कि इस UHID के तहत लोगों की धार्मिक मान्यताओं, सेक्सुअल ओरिएंटेशन और राजनीतिक रुचियों की जानकारी हासिल करने की छूट भी दी गई है. साफ है कि ऐसा डेटा नागरिकों की प्रोफाइलिंग करने और उन पर नजर रखने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
यानी UHID का ‘निगरानी उद्देश्यों के लिए एक सत्तावादी राज्य द्वारा दुरुपयोग’ किया जा सकता है. जिस डिजिटल हेल्थ मिशन की आज घोषणा मोदी आज करने जा रहे हैं उसके तहत बनाई गई स्वास्थ्य डेटा नीति के मसौदे के दस्तावेज़ में एजेंसी ने बताया कि इसमें लिए जाने वाले डेटा में ‘व्यक्तिगत और संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा’ शामिल है.
‘संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा’ के रूप में वर्गीकृत डेटा बिंदुओं के अंतर्गत एक व्यक्ति के आनुवंशिक और बायोमेट्रिक रिकॉर्ड के रूप में इसके वित्तीय विवरण, उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, यौन जीवन, चिकित्सा रिकॉर्ड, लिंग और कामुकता, जाति, धार्मिक और राजनीतिक विश्वास भी शामिल हैं.
आखिर इस सब डेटा को हैल्थ आईडी बनाने के नाम पर क्यों इकट्ठा किया जा रहा है, और वो भी हमसे बिना पूछे ?
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