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जनसंख्या नियंत्रण कानून 2021 गरीबों के साथ क्रूरतम मजाक

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जनसंख्या नियंत्रण कानून 2021 गरीबों के साथ क्रूरतम मजाक

इधर कुछ दिनों पहले जनसंख्या कम करने के नाम पर ‘टू- चाइल्ड पॉलिसी’ यानी जनसंख्या नियंत्रण कानून 2021 की खबर जोरों पर थी. ये बात आज ही नहीं सैकड़ों साल पहले से चली आ रही है कि सारी समस्याओं की जड़ जनसंख्या वृद्धि है. यानी जनता ही दोषी है. इसीलिए भारत में समय-समय पर यह प्रोपगेंडा चलता रहता है. असल में इसके पीछे की असली मंशा कुछ और ही है.

जनसंख्या वृद्धि के नाम पर नफरत का कारोबार यानी फूट डालो राज करो

ज्यादातर हिन्दुओं के दिमाग़ में ये बात अफीम के नशे की तरह डाल दी गयी है कि सारी समस्याओं का जड़ ये जनसंख्या है. जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से ही बेरोगारी, भुखमरी, गरीबी, सूदखोरी, महंगाई, जमाखोरी आदि कई समस्याएं पैदा होती हैं. साथ ही भारत की जनसंख्या मुसलमानों की वजह से बढ़ रही है. ऐसे ही रहा तो अगले कुछ सालों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेंगे और मुसलमान बहुसंख्यक और तो और भारत को पाकिस्तान बना देंगे. इस गति से मुसलमान ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा कर मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ा रहा है.

दरअसल ये जनता की अपनी सोच नहीं है. शासक वर्ग पूरी तरह से नफरत हमारे दिलों में डाल रहा है, ताकि असली समस्या की तरफ ध्यान ना जाए हमारा और जो नकली समस्या शासक वर्ग ने क्रिएट किया हुआ है उसे ही असली समस्या मानकर हम दिलों में नफरत पालकर एक दूसरे को कोसते रहें.

कोसना तो आम बात ! मौका मिले तो एक-दूसरे को काट डालें ! इतनी नफरत हमारे दिलों-दिमाग में भर दिया है और वही नफरत हम अपने बच्चों में डाल दे रहें हैं और नफरती व्यक्ति कभी भी तरक्की नहीं कर सकता है. इस तरह की नीति के पीछे मंशा नफरती ही है पर दिखने पर सीधे तौर पर तो मंशा नफरती नहीं लगता है. शासक वर्ग की मंशा एकदम साफ है कि फूट डालो और राज करो.

जनसंख्या सम्बन्धी कानून से छोटे लोग होंगे प्रभावित

आखिर सरकार क्यों नहीं बताती है कि कितने ऐसे नौजवान हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं और वे सरकारी भर्ती की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं ? क्या इनकी तादाद इतनी है कि सरकार को क़ानून लाना पड़ रहा है ? दूसरा सवाल कि कुछ ऐसे नौजवान तो होंगे ही जो कई साल से अपनी भर्ती की प्रक्रिया पूरी होने का इंतज़ार कर रहे हैं, इनमें से कितने हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं ? जो लोग पहले से सरकारी सेवा में हैं और जिनके दो से अधिक बच्चे हैं उनका क्या ? यह क़ानून बैक डेट से कैसे लागू हो सकता है कि दो से अधिक बच्चे होने पर प्रमोशन नहीं मिलेगा ? फिर वही सवाल ! क्या सरकार के पास ऐसा कोई डेटा है ? जिससे पता चले कि यूपी सरकार में काम करने वाले कितने ऐसे कर्मचारी हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं ?

तो क्या सभी राजनैतिक दल के ऐसे सांसदों और विधायकों के टिकट काट देगी जिनके दो से अधिक बच्चे हैं ? दूसरे दल की बात तो छोड़ दें ये कानून भारतीय जनता पार्टी और उनके अलायंस लाने को कह रहे हैं तो क्या बीजेपी और उनके सहयोगी सांसदों और विधायकों के टिकट काट देगी जिनके दो से अधिक बच्चे हैं ?

जब भी ऐसे क़ानून की बात होगी तो बड़े नेताओं को इनसे अलग रखा जाता है. गाज गिरेगी तो सिर्फ छुटभैये नेताओं और जनता के ऊपर. अब पंचायत चुनाव छुट भैये नेता ही लड़ेंगे तो पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, अब जब जिसकी औकात पंचायत चुनाव की है वो विधान सभा और लोक सभा का चुनाव क्यों लड़ेंगे ? और यदि लड़ेंगे भी तो टिक भी नहीं पाएंगे ?

जनसंख्या से सरकारी नौकरी का संबंध

क्या सरकारी नौकरियों में इस आधार पर वर्गीकरण किया गया है ? आज सरकारी नौकरी का कोई अता-पता नहीं, लेकिन क़ानून लाएंगे कि दो से अधिक बच्चे तो नौकरी नहीं, ऐसे कह रहें हैं जैसे जिनके दो या दो से कम बच्चे हैं उनको तुरंत ही नौकरी दे देंगे !

एलेक्ट्रानिक मीडिया, प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक हल्ला मचा रहें कि यूपी सरकार एक क़ानून ला रही है और इस प्रस्तावित क़ानून के मुताबिक़ जिनके दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी. जो सरकारी नौकरी में हैं और दो से अधिक बच्चे हैं, उन्हें कई सुविधाएं नहीं मिलेंगी.

यह पढ़कर मैं उन लाखों नौजवानों के बारे में सोच रहा हूं जिनकी शादी सरकारी नौकरी न मिलने के कारण नहीं हुई है. ऐसे बच्चों को तय समय में भर्ती प्रक्रिया पूरी कर नौकरी देने के मामले में यूपी ने क्या प्रगति की है, वहां के नौजवान भलीभांति जानते होंगे, पर सरकार और उनके भक्त मुस्लिम एंगल निकालकर भविष्य में इस लागू होने वाले कानून को जायज ठहराने में लगे हैं.

उत्तर प्रदेश में में सरकारी भर्ती का क्या हाल है ? किसी से छिपा नहीं ! उत्तर प्रदेश में कुल तकरीबन 5 लाख सरकारी नौकरियां ही बची हुई हैं. यूपी ही नहीं आप इसमें दूसरों राज्यों को भी शामिल करें, चाहें किसी की सरकार को. लेकिन सरकार क़ानून लाती है कि दो से अधिक बच्चे होंगे तो सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी. सरकार और उनकी दलाल मीडिया तो ऐसे कह रही है जैसे जिनके दो बच्चे हों उनको तुरंत ही नौकरी दे देगी.

जो सरकार युवाओं को नौकरी नहीं दे पा रही है वो क़ानून ला रही है कि दो से अधिक बच्चे होंगे तो नौकरी नहीं देंगे. लग रहा है जिनके कोई बच्चे नहीं हैं उनकी नौकरी के लिए यूपी सरकार ने काउंटर खोल रखा है. गजब की बकलोली कर रहा ये शासक वर्ग और उसी में उलझ के रह गए हैं हम सब. असल में जनता को असल मुद्दे पर बात ना कर, ये जो नकली मुद्दा का निर्माण किया गया है, उसी पर उलझे रहें.

जनसंख्या नियंत्रण कानून पर मोदी का दोगलापन और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुस्लिम कार्ड

15 अगस्त, 2019 के भाषण में माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आबादी पर नियंत्रण की बात कही थी. कहा था जिनके परिवार छोटे हैं वो देश की तरक़्क़ी में योगदान करते हैं. तीन साल बाद यूपी को ख़्याल आया है कि आबादी नियंत्रण के लिए क़ानून लाया जाए और वो भी देश के लिए नहीं, प्रदेश के लिए. तो उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण से देश के बाकी अन्य राज्य में जनसंख्या वृद्धि रुक जायगी ?

असलियत में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सर पर है, इसीलिए इस जनसंख्या वृद्धि कानून के जरिए मुसलमान कार्ड खेला जा रहा है. माननीय प्रधानमंत्री मोदी भी लगता है कि 15 अगस्त 2019 का भाषण भूल गए हैं, तभी तो इसी एक जुलाई को वे आबादी का गुणगान कर रहे थे. बता रहे थे कि अधिक आबादी ने भारत को अवसर को दिया है. 2014 के समय भी डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी आबादी के लाभांश की बात किया करते थे. अब क्या हुआ…? फेल हो गए तो आबादी को समस्या बताने आ गए…? अब बलि का बकरा कोई ना कोई तो चहिए ही, तो अपनी नाकामी छुपाने के लिए सारा का सारा दोष जनता और जनसंख्या पर मढ़ दो !

जनसंख्या का ताल्लुक गरीबी से है धारणा से नहीं

जैसे-जैसे आर्थिक तरक़्क़ी आती है और शिक्षा बढ़ती है तो स्वतः ही आबादी की रफ़्तार धीमी होती जाती है. भारत में यह धारणा अंग्रेजों के समय से ही बनाई गई है कि मुसलमानों के दो से अधिक बच्चे होते हैं. इसके साथ में एक और धारणा भी बना दी गई कि मुसलमान एक से अधिक चार-चार शादियां कर लेते हैं, जिससे अधिक बच्चे पैदा करते हैं. हर जगह लॉजिक काम नहीं करता और इससे उलट हो जाता है.

शादी कर ज्यादा बीबी रखने से ज्यादा बच्चे नहीं होते हकीकत में क्योंकि अमूमन भौतिक परिस्थितियां नहीं बन पाती ज्यादा बीवी से ज्यादा बच्चे होने के लिए. और यदि ऐसा होता तो जहां भी जिस भी देश में चार बीवी रखने का अधिकार मिला हुआ है वहां तो जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ गयी होती और अभी तक जनसंख्या विस्फोट भी हो गया होता, पर जनसंख्या विस्फोट तो दूर की बात बहुत तेजी से भी नहीं बढ़ी है.

अमूमन देखा गया है कि एक बीवी से ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं, ज्यादा बीवी की अपेक्षा. क्योंकि हमारे सोचने या चाहने से कुछ भी नहीं होता. इन सबके लिए भौतिक परिस्थितियों का होना अनिवार्य है. बगैर भौतिक परिस्थितियों (आन्तरिक और बाह्य भौतिक पारिस्थिति) के बच्चा तो बहुत दूर की बात एक तिनका भी नहीं पैदा हो सकता. किसी भी चीज के उत्पन्न होने के लिए भौतिक पारिस्थिति (आन्तरिक और बाह्य भौतिक पारिस्थिति) का होना अनिवार्य है.

अभी तक सरकार के पास कोई भी ऐसा डेटा नहीं है कि कितने मुसलमान ऐसे हैं जिन्होंने चार शादियां किया हुआ है ? फिर भी इस धारणा को बढ़ावा दिया गया और हम सब अपने दिमाग में शासक वर्ग द्वारा डाली गयी धारणा को सच मान बैठे. जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू परिवारों में भी दो से अधिक बच्चे हैं और कहीं-कहीं तो 7-8-10-12 बच्चे हैं, बेटे की चाह में ! खासकर उन परिवारों में जो गरीब हैं. कई लोगों के परिवार में अधिक बच्चे मिलेंगे. कई-कई के तो 7-8-12 बच्चे तक मिल जाएंगे और ये सब गरीबी से उपजी भौतिक परिस्थियों के कारण है.

आंकड़ों में हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर

अब हम सब जरा आंकड़ों पर गौर करें कि 1951 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 36,10,88,000 थी, जिसमें से हिंदु 30.6 करोड़ (82.1%) और मुस्लिम 3.54 करोड़ (11.99%) थे, बाकी दूसरे धर्मों के लोग थे. विभाजन से पहले भारत की आबादी में 66 प्रतिशत हिन्दू थी. अब आखिरी जनगणना 2011 में हुआ था, जिसके अनुसार भारत की कुल आबादी 125.03 करोड़ थी और उसमें से देश में हिंदुओं की आबादी 96.63 करोड़ है, जो कि कुल जनसंख्या का 79.8 फ़ीसद है. वहीं मुसलमानों की आबादी 17.22 करोड़ है, जो कि जनसंख्या का 14.23 फ़ीसद होता है.

आज वर्तमान 2021 में वेबसाइट world meter के अनुसार भारत की जनसंख्या तकरीबन 139 करोड़ हैं, जिनमें से हिंदुओं की आबादी करीब 111 करोड़, जो कि जनसंख्या का 80% फ़ीसद होता है. मुस्लिमों की आबादी करीब 20 करोड़ हैं जो कि जनसंख्या का 14.8 फ़ीसद होता है, बाकी अन्य हैं.

अब आप गौर करें. आजादी के बाद और विभाजन के बाद की बात करते हैं. इन आंकडों को गौर से देखिएगा तो पाएंगे भारत में मुसलमानों की आबादी हिंदुओं की अपेक्षा शुरू से अब तक कम बढ़ी है, यानी मुसलमान ने कम बच्चे पैदा किए और हिन्दुओं ने ज्यादा. अब जरा इन आंकड़ों पर भी गौर करें –

2001 में मुस्लिमों में प्रजनन दर 4.1 बच्चे प्रति महिला थी जो 2011 में ये तेज़ी से घटकर 2.7 बच्चे प्रति महिला आ गया. वहीं हिन्दुओं में ये 3.1 से घटकर 2.1 हो गया.

घटने की दर मुसलमानों से ज्यादा तेज रहा. यहां भी बाजी मुसलमान मार ले गए. तो अब स्वयं से सोचिए शासक वर्ग हमारे आपके दिमाग में मुसलमान नाम का जहर भरता जा रहा है, वो भी सिर्फ इसलिए कि हमें आपस में लड़ाकर अपनी रोटी सेंक सके और हमें नफरती बना सके. और आगे चलकर यही नफरत हम अपने बच्चों में दे सकें ताकि इनसे बेरोगारी, भुखमरी, गरीबी, सूदखोरी, महंगाई, जमाखोरी आदि समस्याओं पर सवाल ना पूछ सकें. अरे भई जब हमें नफरत से फुर्सत मिले तब ही तो सवाल खड़ा करेंगे !

जनसंख्या और मंहगाई से हिन्दू-मुस्लिम संबंध

अच्छा ये बताएं कि आज ये जो मंहगाई शासक वर्ग ने बढ़ाई हुई है वो क्या सिर्फ मुस्लिम के खिलाफ बढ़ा है ? क्या महंगा खाद्य तेल सिर्फ मुसलमानों को ही मिल रहा है ? क्या महंगी शिक्षा सिर्फ मुसलमानों को मिल रहा है ? क्या महंगा डीजल-पेट्रोल सिर्फ सिर्फ मुसलमानों को मिल रहा है ? क्या महंगा खाद, बीज, कीटनाशक सिर्फ मुस्लिम किसानों को मिल रहा है ?

क्या बसों और रेलगाड़ियों का किराया बढ़ाकर सिर्फ मुसलमानों के जेब पर डाका डाला जा रहा है ? नौकरियां खत्म कर सिर्फ मुसलमानों को नौकरियों से निकाला जा रहा है ? सरकारी अस्पताल को कमजोर बनाकर, निजी अस्पताल को बढ़ावा देकर महंगा चिकित्सा कर सिर्फ मुसलमानों को महंगी स्वास्थ्य व्यवस्था दी जा रही है ? जब फैक्ट्रियां बन्द हो रहीं है तो उन बन्द होती जा रही फैक्ट्रियों से सिर्फ मुसलमानों को नौकरी से निकाला जा रहा है ?

माल्थस के कमीनेपन की उपज है जनसंख्या सिद्धांत

सारी समस्याओं का जड़ ये जनसंख्या है और जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से ही बेरोगारी, भुखमरी, गरीबी, सूदखोरी, महंगाई, जमाखोरी आदि कई समस्याएं पैदा होती हैं. बेरोजगारी की सबसे बड़ी वजह ये जनसंख्या वृद्धि ही बतायी जाती है और ये विचार आज का नहीं है. जनसंख्या वृद्धि ही सारी समस्याओं का जड़ है, यह सिद्धांत सबसे पहले थामस राबर्ट माल्थस ने दिया था.

थॉमस राबर्ट माल्थस जो कि ब्रिटेन का निवासी था और एक अर्थशास्त्री के साथ-साथ पादरी भी था. माल्थस ने 1798 में अपने एक लेख ‘जनसंख्या का सिद्धांत’ (Principle of Population) में बताया कि मानव में जनसंख्या बढ़ाने की क्षमता बहुत अधिक है और इसकी तुलना में पृथ्वी में मानव के लिए जीविकोपार्जन के साधन जुटाने की क्षमता कम है.

माल्थस के अनुसार किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि गुणोत्तर श्रेणी (Geometrical Progression) के अनुसार बढ़ती है, जबकि जीविकोपार्जन में साधन (संसाधन/उत्पादन) समान्तर श्रेणी (Arithmetic Progression) के अनुसार बढ़ते हैं. इसके अनुसार जनसंख्या की वृद्धि 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64, 128, 256…. की दर से बढ़ती है, जबकि जीविकोपार्जन 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9…. की दर से बढ़ते हैं. अतः शीघ्र ही जनसंख्या इतनी अधिक हो जाएगी कि उसका भरण-पोषण लगभग असंभव हो जायेगा और भुखमरी तथा कुपोषण होना अनिवार्य होगा.

माल्थस के अनुसार उत्पादन चाहे कितना भी बढ़ जाए, जनसंख्या की वृद्धि दर उससे सदा ही अधिक रहेगी. अंततः मानव की संख्या भुखमरी, बीमारी, युद्ध, लूट-पाट आदि का शिकार होकर कम हो जाएगी. इस प्रकार खाद्य सामग्री की उपलब्धता मात्र जनसंख्या का सबसे बड़ा नियंत्रक है. जहां अधिक खाद्य सामग्री उपलब्ध होगी वहां मृत्यु दर कम होगी और जनसंख्या स्वतः ही कम हो जाएगी. माल्थस मृत्यु को ही जनसंख्या कम करने का सामान्य उपाय (Positive Cheek) बताते हैं.

माल्थस के इस जनसंख्या के सिद्धांत की कार्ल मार्क्स ने धज्जियां उड़ा दी थी और बड़े निर्ममता के साथ आलोचना की – निरा कमीनापन माल्थस की खास आदत है, इस कमीनेपन पर कोई पादरी ही उतर सकता है, जो मनुष्य की पीड़ा को आदिम पाप का फल बताता है.

अब ये आदिम पाप का फल क्या है ?

ईश्वर ने संपूर्ण सृष्टि की रचना के बाद धरती की मिट्टी से मनुष्य गढ़ा और उसके नथुनों में प्राणवायु फूंक दी. इस प्रकार मनुष्य एक सजीव तत्व बन गया, जिसे ईश्वर ने आदम नाम दिया. इसके बाद ईश्वर ने अदन में एक वाटिका बनाई. अदन की वाटिका में हर तरह के पेड़-पौधे थे. उसके बीचों-बीच जीवन-वृक्ष यानी ज्ञान का वृक्ष बना दिया, जिसे खाने से भले-बुरे के ज्ञान हो जाना था.

ईश्वर ने अदन वाटिका में अपने द्वारा गढ़े मनुष्य आदम को रखा, जो वाटिका की देखरेख करता था और वहां खेती-बाड़ी करता था. ईश्वर के आदेश के अनुसार उसे वाटिका के हर वृक्ष का फल खाने की अनुमति थी, किंतु जीवन-वृक्ष के फल खाने की अनुमति आदम को नहीं थी. ईश्वर ने आदम को स्पष्ट निर्देश दिया और बताया कि यह जो वृक्ष है, पाप का वृक्ष है और उसमें जो फल लगता है वो पाप का फल है. (जबकि वो वृक्ष जीवन-वृक्ष (ज्ञान वृक्ष) था, जिसका फल खाने से भले-बुरे का ज्ञान हो जाता) इसको मत खाना यदि तुमने इस पाप के फल को खाया, तो पाप के भागीदार बनोगे और अन्ततः मर जाओगे.

आदम अकेले हाड़-तोड़ की मेहनत करता था. आदम की निःस्वार्थ भाव से कठिन परिश्रम देख ईश्वर नहीं चाहते थे कि आदम अकेला रहे. ईश्वर का मानना था कि अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं है इसलिए ईश्वर ने आदम के लिए एक उपयुक्त सहयोगी बनाने को सोचा. ईश्वर ने मिट्टी से धरती के सभी पशुओं और आकाश के सभी पक्षियों को गढ़ा और उन्हें आदम के पास ले गए. आदम ने उन्हें नाम दिए, किंतु आदम उसमें से अपने लिए कोई भी उपयुक्त सहयोगी नहीं ढूंढ पाया. तब ईश्वर ने आदम को गहरी नींद में सुला दिया, फिर उसके बाद उसकी पसली निकालकर उसके स्थान पर मांस भर दिया. ईश्वर ने आदम से निकाली पसली से एक स्त्री को गढ़ा और उसके पास ले गया, जिसे हव्वा नाम दिया.

आदम और हव्वा (Adam And Eve) दोनों ही पूरी तरह से नंगे थे किंतु उन्हें एक-दूसरे के सामने लज्जा का अनुभव नहीं होता था क्योंकि उन्हे नंगे होने का ज्ञान ही नहीं था. वे अदन वाटिका में विचरण करते थे. हर वृक्ष का फल खाते थे, किंतु ईश्वर के आदेश के कारण कभी ज्ञान वृक्ष के निकट नहीं जाते थे.

एक दिन एक सांप हव्वा के पास गया. वह ईश्वर के द्वारा बनाए सभी जीव-जंतुओं में सबसे धूर्त था. उस सांप ने पूछा कि तुम लोग नंगे क्यूं रहते हो ? तब हव्वा ने कहा नहीं, हम नंगे नहीं हैं. सांप तुरंत समझ गया कि इन्होंने ज्ञान वृक्ष का फल नहीं खाया है. फिर सांप ने पुनः हव्वा से पूछा कि क्या ईश्वर ने वाटिका के वृक्षों के फल खाने से तुम्हें मना किया है ? हव्वा ने उत्तर दिया, नहीं ! हम वाटिका के सभी वृक्षों के फल खा सकते हैं, परंतु वाटिका के बीचों-बीच स्थित पाप के फल का वृक्ष के फल खाने से ईश्वर ने हमें मना किया है. उन्होंने हमें उसे स्पर्श तक करने से मना किया है. यदि हम उसे खायेंगे, तो पाप लगेगा और मर जायेंगे.

यह बात सुन सांप ने हव्वा पर हंसते हुए कहा कि वो पाप के फल का वृक्ष नहीं है ये तो ज्ञान का वृक्ष है और इसे खाने से तुम नहीं मरोगी, उल्टा तुम्हे भले-बुरे का ज्ञान हो जाएगा. और ईश्वर ने तुम्हें वह फल खाने से इसलिए मना किया है क्योंकि उसका फल खाने से तुम्हारी आंखें खुल जायेंगी, तुम्हें भले-बुरे का ज्ञान हो जायेगा और इस प्रकार तुम ईश्वर के सदृश्य हो जाओगी. उस वृक्ष का फल अति-स्वादिष्ट है, देखो मैने खाया है और मुझे अच्छे-बुरे का ज्ञान है, इसलिए मैं तुम्हे नंगा देख रहा हूं. तुम्हें इस ज्ञान के फल को अवश्य खाना चाहिए.

हव्वा ने सोचा कि उस वृक्ष का फल देखने में अच्छा है, निश्चित ही खाने में स्वादिष्ट होगा और तो और उसे खाने से भले-बुरे का ज्ञान भी प्राप्त होता है, तो वह खाकर देखने में हर्ज़ क्या है ? उसने वह फल तोड़कर खा लिया और आदम को भी दिया. आदम ने भी फल खा लिया. फल खाते ही दोनों की आंखें खुल गई. उन्हें ज्ञान हुआ कि वे नग्न हैं. उन्हें इस अवस्था में एक-दूसरे के सामने लज्जा का अनुभव होने लगा इसलिए अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़ कर उन्होंने अपने लिए लंगोट बना लिए.

उसी समय अदन वाटिका में टहलते हुए प्रभु 1(ईश्वर) की वाणी उन्हें सुनाई पड़ी और वे लज्जा और भय से वृक्षों के पीछे छिप गए. ईश्वर ने आदम को पुकारा, तुम कहां हो आदम ? आदम ने उत्तर दिया, प्रभु मैं नंगा हूं इसलिए तुझसे छिप गया हूं.

ईश्वर ने पूछा, तुम्हें किसने बताया कि तुम नंगे हो ? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया है, जिसे खाने से मैंने तुम्हें मना किया था ? आदम ने उत्तर दिया, प्रभु, आपने जिस स्त्री को मेरे साथ रहने के लिए बनाया, उसी ने मुझे उस वृक्ष का फल लाकर दिया और मैंने वह खा लिया. फिर ईश्वर ने हव्वा से पूछा, क्या तुमने यह किया है ? हव्वा ने उत्तर दिया, सांप ने मुझे फुसला दिया और मैंने उस वृक्ष का फल खा लिया.

तब ईश्वर क्रोधित होते हुए सांप से कहा, तूने यह किया है ? बहुत ही गलत किया है इसलिए तू सभी घरेलू और जंगली जानवरों में शापित होगा. तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी और कीड़े-मकोड़े खायेगा. मैं तेरे और मनुष्य के बीच, तेरे वंश और उसके वंश के बीच शत्रुता उत्पन्न करूंगा. वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उनकी एड़ी कटेगा.

ईश्वर ने क्रोध में हव्वा से भी कहा, मैं तुम्हारी गर्भावस्था का कष्ट बढ़ाऊंगा और तुम पीड़ा में संतान को जन्म दोगी. तुम वासना के कारण पति में असक्त होगी और वह तुम पर शासन करेगा. ईश्वर ने आदम से कहा, चूंकि तुमने अपनी पत्नी की बात मानी है और उस वृक्ष का फल खाया है, जिसे खाने से मैंने मना किया था, इसलिए भूमि तुम्हारे कारण शापित होगी. तुम जीवन भर कठोर परिश्रम करते हुये उससे अपनी जीविका चलाओगे. वह कांटे और ऊंट-कटारे पैदा करेंगी और तुम खेत के पौधे खाओगे. तुम तब तक पसीना बहाकर अपनी रोटी खाओगे, जब तक तुम उस भूमि में नहीं लौटोगे, जिससे तुम बनाये गए हो, क्योंकि तुम मिट्टी हो और आखिर मिट्टी में विलीन जाओगे.

ईश्वर ने आदम और हव्वा के लिए खाल के कपड़े बनाये और उन्हें पहनाया. ईश्वर ने आदम और हव्वा को अदन वाटिका से एक लात मारा और सीधे धरती पर ढकेल दिया. ईश्वर के आदेश की अवहेलना के कारण ही मनुष्य को उस भूमि पर खेती करनी पड़ रही है और कष्ट झेलना पड़ रहा है, जिससे वह बनाया गया था और स्त्री को गर्भावस्था का कष्ट झेलना पड़ा और धरती पर मनुष्य प्रजाति की उत्पत्ति हुई और जनसंख्या वृद्धि होती गई. तो यही है आदिम पाप का फल. यदि आदम और हव्वा ने वो पाप का फल ना खाया होता तो आज इस पृथ्वी पर जनसंख्या वृद्धि ना होती.

भारत में शोषक वर्ग की बेशर्मी और बदनाम जनसंख्या नियंत्रण का सहारा

भारत के लिए भी कोई नई बात नहीं है और यह शोषक वर्ग आज भी बड़ी बेशर्मी से उस झूठ का प्रचार कर रहा है. आजादी के बाद 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने नारा दिया कि गरीबी हटाओ. इसके बदौलत 520 सीटों में 441 उम्मीदवार में से कांग्रेस ने 352 सीट 43.68 फीसदी वोट पाकर जीती. इस चुनाव से पहले कांग्रेस 2 गुटों में बंट गया था पर इसके बावजूद गरीबी हटाओ के नारे की वजह से कांग्रेस ने दो तिहाई से भी ज्यादा सीट से जीती.

1971 के चुनाव के बाद जब गरीबी दूर नहीं हुई तो जनता के बीच से सवाल उठने शुरू हुए कि गरीबी दूर क्यूं नहीं हो रही है ? तब इन्द्रा सरकार ने बताना शुरू कर दिया कि गरीबी की सबसे बड़ी वजह बेरोजगारी है और बेरोजगारी बढ़ने की मुख्य समस्या है जनसंख्या वृद्धि तो फिर जनसंख्या कंट्रोल कर कम की जाए, जिसके लिए नसबंदी प्रोग्राम लेकर आए कि सारी समस्या की जड़ ये जनसंख्या वृद्धि है. जनता भी शासक वर्ग के दुष्प्रचार में फंसकर यही मानती आयी है कि सारी समस्याओं का असली कारण जनसंख्या वृद्धि है.

ये लोगों की सोच में लाने के लिए शासक वर्ग ने करोड़ों रुपया प्रचार-प्रसार में लगाया भी और अरबों-खरबों रूपये परिवार नियोजन पर भी खर्च कर दिया, जिसका नतीजा ये रहा कि जनता के मन में ये चेतना आ भी गयी. जनता के मन में इमरजेंसी और जबरदस्ती नसबंदी का जबरदस्त रोष की वजह से छठे आम चुनाव 1977 में कांग्रेस सत्ता में नहीं आयी, पर अगले आम चुनाव जो कि तीन साल के भीतर 1980 में हुआ और वापस कांग्रेस ने अभी तक में सबसे ज्यादा सीटें 353 सीटें प्राप्त की. क्योंकि जो सरकारी धन पानी की तरह बहाकर लोगों के मन में माल्थस के वाहियात सिद्धांत का प्रचार कर बात बैठाई गई थी कि सारी समस्याओं का असली और प्रधान कारण ये जनसंख्या है. अब भला बेचारी इसमें कांग्रेस क्या करे ?

असलियत में उनके परिवार नियोजन का उद्देश्य जनसंख्या कम करना नहीं था. वे तो इसकी आड़ में जनता के दिमाग में माल्थस के इस झूठ को जनता के दिलो-दिमाग में बैठाना चाह रही थी और अपने इस उद्देश्य में सफल भी रही कि पूंजीवादी व्यवस्था की वजह से गरीबी नहीं है, बल्कि भारत की मेहनतकश जनता ने अधिक बच्चा पैदा कर जनसंख्या वृद्धि कर रही है जिसकी वजह से गरीबी, तंगहाली, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि समस्याएं बढ़ती जा रही हैं.

कांग्रेसी पिच पर खेलती भाजपा सरकार

अब वही खेल पुनः भारतीय जनता पार्टी खेल करने जा रही है और सारी समस्याओं का ठीकरा जनसंख्या वृद्धि को बताकर जनता को दोषी साबित कर खुद पाक-साफ बच निकल रही है. वर्तमान में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी…. अपने चरम पर है, अब इन समस्याओं का कारण किसी ना किसी पर फोड़ना ही है तो खुद को बचाने के लिए कांग्रेस की तरह सारा दोष जनता पर मढ़ देना है ताकी जनता विद्रोह ना कर दे. बल्कि वे खुद को कोसे, ज्यादा हुआ तो अपने मां-बाप को कोसे, पर इस पूंजीवादी तंत्र को नहीं.

जो लोग बेरोजगारी का प्रधान/मुख्य कारण जनसंख्या को मानते हैं, उनके इस धरती पर होने के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार/गुनहगार तो उनके मां-बाप हैं जिनके बदौलत आज वो लोग इस धरती पर जीवित हैं. और वे अपने जन्मदाता को ही दोषी ठहराते हैं ? शर्म आनी चहिए ऐसे लोगों को ! हम-आप यहां जीवित खड़े कुछ बोल रहें हैं तो अपने मां-बाप के बदौलत बोल रहे हैं, अपने मां-बाप के एहसान मानने के बजाए सारा दोष उन्हीं पर दे रहें हैं ? पैदा करें मां-बाप और दवा, पानी, भोजन, कपड़ा, सर के ऊपर छत देकर इतना बड़ा किया और सारा कुसूर मां बाप का ! गजब का दोगलापन है भाई !

जनसंख्या बनाम संसाधन

भारत 1947 में आजाद हुआ था. तब भारत की आबादी थी तकरीबन 33 करोड़ और नवम्बर 1947 में भारत का पहला बजट 171.15 करोड़ का पेश हुआ था. अभी इस साल फरवरी 2021 में बजट 34,83,236 करोड़ का बजट पेश किया गया और वर्तमान में भारत की जनसंख्या 33 करोड़ से बढ़कर 139 करोड़ से ज्यादा हो गयी है. यानी आजादी के बाद अभी तक भारत की जनसंख्या तकरीबन 4 गुना बढ़ी और बजट आजादी के बाद तकरीबन 20 हजार गुना बढ़ा.

अर्थात 1947 के बाद अब तक भारत की जनसंख्या 4 गुना बढ़ी और संसाधन 20 हजार गुना, फिर तो रोजगार भी 20 हजार गुना बढ़नी चहिए, पर रोजगार तो उस क्रम में नहीं बढ़ा. रोजगार गुणात्मक क्रम में तो दूर की बात समान्तर क्रम में भी नहीं बढ़ रही है, उल्टा घट रही है.

भारत में 2014 में कुल 2 करोड़ 14 लाख सरकारी नौकरियां थी और वर्तमान में तो तकरीबन 1 करोड़ के आस-पास सरकारी नौकरियां बची हुई हैं (यदि आपको मेरे इस आंकड़े पर कोई डाऊट हो तो 10 रुपए खर्च कर भारत सरकार से आरटीआई लगा कर पता कर ले) और वो भी धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं. इसके उलट बजट हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है वो भी जनसंख्या बढ़ने के अनुपात से से कहीं ज्यादा, फिर जनसंख्या कैसे जिम्मेदार हुई ? यहां तो माल्थस का सिद्धांत ढेर हो गया और साथ में उलट भी गया – संसाधन गुणात्मक रूप से बढ़े और जनसंख्या समान्तर.

भारत ने आजादी से लेकर अब तक अपने संसाधन 20 हजार गुना बढ़ा लिए पर रोजगार ? असलियत में इस पूंजीवादी व्यवस्था में थोड़े से लोगों द्वारा थोड़े से लोगों के लिए थोड़ा-सा ही उत्पादन होता है इसीलिए थोड़े से लोगों को ही रोजगार मिल पाता है. ये सारे संसाधन थोड़े से लोगों के लिए ही उपलब्ध कराए जाते हैं. यह व्यवस्था बहुसंख्यक जनता को बेरोजगार बनाकर अभाव की जिन्दगी जीने के लिए मजबूर करती है.

जनसंख्या वृद्धि का कारण

भारत में जनसंख्या वृद्धि एक समस्या है, और जनसंख्या वृद्धि का कारण खोजना हो तो जरा उन जातियों/समुदायों को देखें, जिन जातियों/समुदायों में गरीबी ज्यादा है. तो आप पायेंगे कि जहां गरीबी ज्यादा है वहां अशिक्षा भी ज्यादा है. उन जातियों/समुदायों में अशिक्षा की वजह से बच्चे भी ज्यादा पैदा हो रहे हैं इसलिए जनसंख्या वृद्धि से गरीबी नहीं पैदा होती बल्कि गरीबी से ही जनसंख्या वृद्धि होती है.

पूरी दुनिया में जहां भी ग़रीबी नहीं है अथवा बहुत कम है और बेहतर महिला साक्षरता है, वहां प्रजनन दर कम है. भले ही वो मुस्लिम बाहुल्य देश ही क्यों ना हो जैसे तुर्की, ब्रूनेई, क़तर, मालदीव, मलेशिया, बहरीन, कुवैत, यू. ए. ई., लेबनान, ईरान, बोसनिया-हर्ज़ेगोविना, अज़र्बेजान…आदि. ये सब के सब इस्लामिक देश हैं लेकिन इन सब मुस्लिम देशों की प्रजनन दर भारत से कम है और हम दो हमारे दो वाले स्तर से भी कम है. अर्थात धर्म और कानून नहीं तय करता कि कितने बच्चे कौन पैदा करेगा बल्कि ग़रीबी, अशिक्षा, बेरोज़गारी से उपजी भौतिक परिस्थितियां तय करती हैं. यही वह भौतिक परिस्थितियां हैं जो तय करती हैं कि बच्चें ज्यादा पैदा हो या कम.

जब व्यक्ति गरीबी में होता है तो वो सोचता है कि एक-दो बेटों से क्या होगा, यदि एक बेटा नालायक निकल जाए दो दूसरा बेटा काम आएगा, दूसरा नालायक निकल जाए तो तीसरा. इसी तरह तीसरा, चौथा बेटा नालायक निकल जाए तो आगे वाला बेटा बुढ़ापे का सहारा बनेंगे. एक विचार ये भी आता है कि जितने ज्यादा बच्चे बेटे होंगे, वो सब मिलकर कमाएंगे यानी जितने ज्यादा बच्चे उतनी ज्यादा कमाई ! एक विचार ये भी आता है कि ज्यादा बच्चे होने पर कोई लड़ाई नहीं करेगा और करेगा भी तो सारे बच्चे मिलकर लड़ेंगे.

बच्चों में सिर्फ बेटा चहिए बेटी नहीं क्योंकि बेटा ही आगे वंश बढ़ा सकता है बेटी नहीं और बड़ी कमाई तो बेटा ही करेगा. बेटा रहने पर शादी में दहेज मिलेगा जबकि बेटी में देना पड़ेगा और वंश भी नहीं बढ़ा पाएगी. ऐसे बहुत सारे विचार जागरूक ना हो पाने के कारण आते हैं और जागरूकता शिक्षा से आती है. शिक्षा गरीबी के कारण नहीं मिल पाती है. जनसंख्या वृद्धि का एक मुख्य कारण बेटे की चाहत भी है, जिसका मुख्य कारण अशिक्षा है और अशिक्षा गरीबी के कारण और गरीबी असमानता के कारण.

जनसंख्या और शिक्षा का संबंध

कुछ जो अपने को विद्वान समझते हैं और कहते हैं कि जहां चाह, वहां राह. यदि व्यक्ति चाह ले तो शिक्षित हो सकता है, तो मित्र जब तक पेट में अन्न का दाना ना हो तब तक शिक्षा तो दूर की बात खुद के लिए मनोरंजन भी नहीं कर सकते. यहां तक की भगवान की पूजा-पाठ भी करने में मन नहीं लगेगा. इस पर कबीर दास ने बहुत ही सटीक बात कही है- भूखे भजन ना हो गोपाला, ले तेरी कंठी, ले तेरी माला ! तो ये सब समस्याएं असमानता के कारण भौतिक परिस्थितियों से उपजी गरीबी की वजह से है.

आप देखेंगे जहां गरीबी नहीं है वहां लैंगिक भेदभाव जैसा विचार बहुत ही कम आता है. अब उनके नजर में बेटा और बेटी दोनों ही बराबर है. दोनों ही वंश चला सकते हैं और ज्यादा गरीबी होने के कारण भौतिक परिस्थितियां ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए मजबूर कर देती हैं. कहने को तो सरकार लैंगिक-संवेदनशीलता के प्रयास युद्ध स्तर पर कर रही है ताकि लोग बेटे की चाहत में अधिक बच्चे पैदा न करें. सरकार योजनाओं और कागजों में खूब जेंडर इक्वैलिटी पर खूब ढेर सारे कार्यक्रम करती है, और जनता की गाढ़ी कमाई में से अरबो-खरबों रुपया भ्रष्टाचार पर चढ़ावा चढ़ जाता है.

भारत में प्रजनन दर

प्रजनन दर अब भारत में ही देख लीजिए- प्रजनन दर उन राज्यों में 2 बच्चा/महिला से भी नीचे है, जहां लड़कियां औसतन ग्रेजुएशन से अधिक पढ़ी-लिखी हैं. जैसे बिहार में प्रजनन दर 3.2 बच्चे हैं, जहां महिलाओं की निरक्षरता दर सबसे अधिक है. बिहार में साक्षरता दर 70.9% है. जबकि केरल जहां प्रजनन दर 1.7 बच्चे हैं और साक्षरता दर 96.2% है. इसलिए जनसंख्या वृद्धि से गरीबी नहीं पैदा होती बल्कि गरीबी से ही जनसंख्या वृद्धि होती है.

यदि जनसंख्या वृद्धि को रोकना है तो अमीरी और गरीबी की खाईं को पाटना होगा. अत: बच्चे पैदा करने वाले गरीब लोग दोषी नहीं हैं बल्कि गरीबी पैदा करने वाले अमीर लोग ही सारी समस्याओं के लिए दोषी हैं. इसलिए इस अमीरी और गरीबी की बढ़ती हुई खाई को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक देना है.

गरीबी आर्थिक परिस्थितियों का परिणाम

गरीबी बहुत-सी आर्थिक परिस्थितियों का परिणाम है, उसमें से मुख्य कारण संसाधनों के असमान वितरण भी है. असमान वितरण के कारण गरीब और गरीब हो रहा है, तो अमीर साल दर साल अमीर होता जा रहा है. भारत में स्थिति यह है कि 90% संसाधनों पर सिर्फ बमुश्किल मुठ्ठी भर लोगों का कब्जा है, जिनको आप उंगलियों पर गिन सकते हो. इसलिए गरीबी की समस्या को हल करने के लिए स्वयं गरीबी की संकल्पना से परे जाना होगा.

यह जानना काफी नहीं कि कितने लोग गरीब हैं, बल्कि यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि गरीब लोग कितने गरीब हैं और अमीर कितने अमीर ? आज गरीबी रेखा से भी ज्यादा जरुरी अमीरी रेखा को निर्धारित करना है, क्योंकि आज देश के 1 प्रतिशत आबादी के पास 73 प्रतिशत संसाधन (संपत्ति) है, जो विगत एक वर्ष में 21 लाख करोड़ रुपये बढ़ी है.

  • अजय असुर

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