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गोदी मीडिया मोदी सरकार द्वारा पोषित एक राष्ट्रीय शर्म है

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गोदी मीडिया मोदी सरकार द्वारा पोषित एक राष्ट्रीय शर्म है

रविश कुमार

विदेश यात्रा के आरंभ में प्रधानमंत्री का हवाई जहाज़ पर सवार होना
राष्ट्र-राज्य की कुछ परंपराएं स्थापित हो जाती हैं तो चलती ही रह जाती है. उन परंपराओं के महत्व के बने रहने या नहीं बने रहने में किसी की दिलचस्पी नहीं होती है. मैं उस तस्वीर को ध्यान से देखने लग जाता हूं जो प्रधानमंत्री के विदेश दौरे के आरंभ में ली जाती है. मैं इसे किसी भी विदेश यात्रा की आरंभिक तस्वीर कहता हूं. हवाई जहाज़ की सीढ़ियां चढ़ते और चढ़ने के बाद मुड़ कर हाथ हिलाने की तस्वीर विदेश यात्रा की प्रमाणिक तस्वीरों में से एक हो चुकी है. क्यों यह तस्वीर इतनी ज़रूरी है, इसके बारे में अंदाज़ा ही लगा सकता हूं. क्या सभी देश के प्रधानमंत्री विदेश जाने पर ऐसी तस्वीरें खिंचाते हैं ? क्या वे भी दौड़-दौड़ कर या तेज़ चलकर हवाई जहाज़ में सवार होते हैं ? इस प्रश्न का ठोस उत्तर मेरे पास नहीं है. भारत में यह परंपरा 2014 से पहले की है. सभी प्रधानमंत्री की विदेश जाने की तस्वीर होगी. इन तस्वीरों का अकादमिक पाठ होना चाहिए. अंदाज़ा लगाना चाहिए कि ये तस्वीरें क्या कहती हैं.

सही में प्रधानमंत्री विदेश जा रहे हैं, यह रही जाने की तस्वीर. प्रधानमंत्री हवाई जहाज़ से ही विदेश जा रहे हैं, यह रही हवाई जहाज़ में सवार होने से पहले की तस्वीर. प्रधानमंत्री हवाई जहाज़ के भीतर ही बैठे हैं. इस तरफ की सीढ़ी से चढ़कर दूसरी तरफ की सीढ़ी से उतर नहीं गए हैं ! यह रही जहाज़ के भीतर बैठे होने की तस्वीर. भारत में कई लोग झूठ बोलते हैं कि विदेश गए थे. लोग साबित करने के लिए टिकट और सूटकेस का टैग बचाकर रखते भी हैं. क्या इन आशंकाओं का जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री के हवाई जहाज़ में सवार होने की तस्वीर होती है ? नहीं नहीं. प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर गए हैं, इस पर शक कैसे किया जा सकता है ? फिर इन तस्वीरों के ज़रिए कोई राष्ट्र अपनी जनता से क्या कहना चाहता है ? क्या यह तस्वीर इस ग्रंथी का प्रदर्शन करती है कि विदेश जाना बहुत बड़ी बात है ? लेकिन प्रधानमंत्री के लिए तो यह सामान्य बात है, जब चाहें तब जा सकते हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि सत्ता की शक्ति प्रदर्शन में हवाई जहाज़ पर चढ़ने की तस्वीर का एक ख़ास स्थान है, तभी हवाई जहाज़ पर चढ़ते वक्त प्रधानमंत्री ख़ास फुर्ति से चढ़ने लगते हैं. आराम से भी चढ़ सकते हैं. अब तो हर हवाई अड्डे पर ऐसी लिफ्ट आ गई है जिस पर पैदल चलते हुए आप सीधे हवाई जहाज़ में प्रवेश कर जाते हैं. मेरी समझ में नहीं आया कि भारत के प्रधानमंत्री के लिए यह सुविधा क्यों नहीं उपलब्ध है ? क्या लिफ्ट से बने गलियारे से जाते हुए की तस्वीरों से सत्ता-शक्ति का कम प्रदर्शन होगा या विदेश यात्रा सामान्य सी लगने लगेगी ? सुरक्षा कारणों से सीधे जहाज़ तक पहुंचने की बात समझ आती है लेकिन सुरक्षा कारणों से ही इस तरह की अलग लिफ्ट बन भी सकती है ताकि किसी को न दिखे कि प्रधानमंत्री कब आए और कब सवार हो गए.

आज के दौर में हर दिन हज़ारों हवाई जहाज़ उड़ते उतरते हैं. शक्ति प्रदर्शन के लिए प्रधानमंत्री के हवाई जहाज़ का चित्र-प्रदर्शन इतना ज़रूरी क्यों है ? फिर जब प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों और राज्यों के दौरे पर जाते हैं तब ऐसी तस्वीरें देखने को नहीं मिलती है ? पता ही नहीं चलता कि कैसे जहाज़ में सवार हो गए. गंतव्य पर नीचे उतरे हुए प्रधानमंत्री का राज्यपाल और मुख्यमंत्री स्वागत करते नज़र तो आते हैं लेकिन सीढ़ियां चढ़ने के बाद जहाज़ में प्रवेश करने से पहले पीछे मुड़कर हाथ हिलाने वाली तस्वीर नहीं आती है.

विदेश यात्रा से पहले की इन तस्वीरों का गहरा प्रभाव पड़ता होगा. लौट कर आने के वक्त की भी ऐसी तस्वीर होती है. अमरीकी राष्ट्रपति के जहाज़ एयरफोर्स वन पर कितनी ही डाक्यूमेंट्री बनी है. शायद उसे लेकर जो जिज्ञासा रही होगी उसके आलोक में भी दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्षों के हवाई जहाज़ दंतकथाओं का रुप लेने लगे हों. क्या अमरीकी प्रभाव में ऐसी तस्वीरें पैदा की जाने लगी हैं ? तब तो तुरंत इसका प्रतिकार करना चाहिए. आखिर ये भारतीय प्रधानमंत्रियों के विदेश दौरे की अनिवार्य परंपरा कैसे बनी ? क्यों चली आ रही है ?

किसी को इस तरह की ऐसी तस्वीरों के इतिहास का अध्ययन करना चाहिए. इन तस्वीरों से हर बार कवि क्या कहना चाहता है, पता होना चाहिए. अगर कोई देश महाशक्ति बन चुका है या है तो फिर इस तस्वीर से उसकी शक्ति में क्या ख़ास जुड़ जाता है ? इन सब बातों का उत्तर मिलता तो कितना कुछ जानने को मिलता, आनंद आता.

ट्रंप के बाद अब बाइडन के सामने भी गोदी मीडिया को लेकर अपमानित होना पड़ा मोदी को

‘मुझे लगता है कि वे प्रेस को यहां लाने जा रहे हैं. भारतीय प्रेस अमरीकी प्रेस की तुलना में कहीं ज़्यादा शालीन है. मैं सोचता हूं, आपकी अनुमति से भी, हमें सवालों के जवाब नहीं देने चाहिए क्योंकि वे बिन्दु पर सवाल नहीं करेंगे.’ इस कथन को ध्यान से पढ़िए. इसके ज़रिए अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने भारतीय मीडिया के शर्मनाक पक्ष को उजागर करने के साथ-साथ भारत के प्रधानमंत्री को भी अपमानित कर दिया. जिस गोदी मीडिया को तैयार करने में प्रधानमंत्री मोदी ने सात साल मेहनत की है, उसे लेकर उन्हें कहीं बधाई तो नहीं मिलेगी. मैंने पहले भी कहा कि आप दुनिया के किसी भी मंच पर भारत में बने लड्डू से लेकर लिट्टी तक का शान से प्रदर्शन कर सकते हैं लेकिन गोदी मीडिया को लेकर नहीं कर सकते. गोदी मीडिया मोदी सरकार द्वारा पोषित एक राष्ट्रीय शर्म है. सबको पता है कि भारत का मीडिया ग़ुलाम हो चुका है.

सबसे दु:खद बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने बाइडन की इस बात पर तुरंत हां में हां मिला दिया. वे भारतीय प्रेस का बचाव नहीं कर सके. सवालों से अपने लिए सुरक्षा के बदले उन्होंने इस अपमान को स्वीकार कर लिया. बाइडन ने भारतीय मीडिया की तारीफ नहीं कि बल्कि उसकी ग़ुलामी और बदमाशी को इस तरह से कह दिया कि सुना है आपका लड़का बहुत अच्छा है. काफी चर्चे हैं उसके. मजबूरी में पिता इस तारीफ़ को स्वीकार कर लेता है ताकि बात यहीं पर ख़त्म हो जाए और किस बात के चर्चे हैं, उसकी चर्चा न शुरू हो जाए.

किसी प्रेस को सभ्य और शालीन कहे जाने का यही मतलब है कि गोदी मीडिया हो चुके भारतीय प्रेस का सवालों से क्या लेना देना और यह तो बैठक से बाहर किए जाने पर ऐतराज़ भी नहीं करेगा. बाइडन ने बता दिया कि मोदी ख़ुद को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेता कहते हैं लेकिन कभी अमरीकी प्रेस का सामना करके देखिए. मोदी ने चुनौती स्वीकार नहीं की. यह क्षण भारत की विदेश नीति से संबंधित घटनाओं का सबसे शर्मनाक क्षण है. मैं गोदी मीडिया का आलोचक हूं, फिर भी मैं मानता हूं कि इस मीडिया की आलोचना के ज़रिए बाइडन ने भारत के प्रधानमंत्री का अपमान किया और प्रधानमंत्री मोदी ने उसे स्वीकार किया. यह टिप्पणी दुनिया के मंच पर भारत की गरिमा को चोट पहुंचाती है. यह ख़ुश होने वाली बात नहीं है. बशर्ते भारत ने तय कर लिया है कि अब अपमान को ही सम्मान की तरह लिया जाएगा.

बाइडन ने प्रधानमंत्री के उस भय को उजागर भी कर दिया कि प्रेस इस बैठक के अलावा भी कुछ पूछ सकता है. अगर प्रधानमंत्री मोदी में आत्मविश्वास होता तो कहते कि आने दीजिए प्रेस को. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं कह सके कि भारत का मीडिया छक्के छुड़ा देता है. यह अमरीकी प्रेस से कहीं ज़्यादा मुखर और स्वतंत्र है. कैसे कह देते ? गोदी मीडिया को झूठ की मशीन बनाने का सच वही आदमी कैसे कह दे जिसने उसे झूठ की मशीन में बदला है. बाइडन-मोदी की बीस मिनट की बैठक अगर ऐतिहासिक टाइप थी तो प्रेस दो चार सवाल कर लेता तो क्या हो जाता ? यह भी तय हो सकता था कि सवाल जवाब केवल बैठक से संबंधित होता. नेता ऐसा करते भी हैं और यह स्वीकृत भी है.

अमरीका ने अपनी तरफ से प्रेस को बाहर नहीं किया होगा, अवश्य ही भारत की तरफ से प्रयास हुआ होगा कि प्रधानमंत्री मोदी को प्रेस से दूर रखना है. क्या इस यात्रा के पहले अंदरखाने होने वाली तैयारियों के दौरान इन बातों से भारत की प्रतिष्ठा धूमिल नहीं हुई होगी कि इतने बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री आ रहे हैं और अधिकारी इस जुगाड़ में लगे हैं कि किसी तरह उन्हें प्रेस के सवालों से सुरक्षित किया जाए ?

‘द वायर’ ने लिखा है कि बीस मिनट की इस बैठक में कोई सवाल-जवाब नहीं हुआ. इसका फैसला पहले ही हो चुका था कि प्रेस नहीं होगा. बाइडन ने अपने तरीके से यह बात सार्वजनिक कर दी. वरना विश्व गुरु भारत के प्रधानमंत्री कह सकते थे कि आने दीजिए प्रेस को, उन्हें दिक्कत नहीं है. 2015 में लंदन में डेविड कैमरुन और प्रधानमंत्री मोदी ने सवाल जवाब का सामना किया था, उसके बाद से प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी ऐसी प्रेस कांफ्रेंस के लिए हां नहीं कहा जिसमें सवाल पहले से तय न हों. मोदी विदेशों में भी प्रेस का सामना नहीं कर पाते हैं. भारत में सात साल से प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है.

इसी तरह 2019 में पूर्ववर्ती राष्ट्रपति ट्रंप ने एक भारतीय पत्रकार के सवाल के जवाब में कह दिया था कि ‘आपके पास तो महान रिपोर्टर हैं. काश मेरे पास भी ऐसे रिपोर्टर होते. मैंने सुना है कि आप किसी से भी बेहतर कर रहे हैं. आपको ऐसे रिपोर्टर कहां से मिलते हैं ? यह तो शानदार चीज़ है.’ भारतीय प्रेस को लेकर प्रधानमंत्री मोदी दूसरी बार अपमानित हुए हैं. भारतीय प्रेस अपमानित नहीं हुआ है क्योंकि उसके भीतर से इस तरह का बोध समाप्त हो चुका है. गोदीकरण के दौर पर उसने अपनी सारी पेशेवर नैतिकताएं नाले में बहा दी हैं.

अगर भारत कहीं से भी ख़ुद को किसी बन चुकी या बन रही महाशक्ति के रुप में प्रदर्शित करना चाहता है तो सबसे पहले उसे अपने ही बनाए शक्तिविहीन लंपट गोदी मीडिया से छुटकारा पाने का अभ्यास करना होगा. मैं हमेशा कहता हूं कि यह विदेश नीतियों में आ रहे बदलाव को देखने और दिखाने नहीं गया है बल्कि बताने गया है कि हमने वहां भी जाकर साहब के लिए भांड का काम कर दिया है. भारत की जनता चाहे किसी भी बात पर गर्व कर ले, वह अपने मीडिया और संस्थानों पर गर्व नहीं कर सकती है. अगर गर्व करेगी तो अपने ही ज़ायके का प्रदर्शन करेगी कि उसे चिरकुट मीडिया ही पसंद है.

भारतीय मीडिया इस अपमान का प्रतिकार भी नहीं कर सकता बल्कि बाइसन की इस बात को सीधे सीधे रिपोर्ट भी कर रहा है जैसे कोई ऐतिहासिक बात हो गई. वैसे यह ऐतिहासिक ही है. जिस प्रेस की पहचान दुनिया में ग़ुलाम की हो चुकी हो, जहां सवाल पूछने पर पत्रकार गिरफ्तार होते हों, छापे पड़ जाते हों, उस प्रेस के बारे में अगर ऐसे नहीं कहा जाएगा तो कैसे कहा जाएगा. आप इस सच्चाई को नक़ली गर्व और गौरव की आड़ में नहीं छुपा सकते हैं.

इस प्रेस पर कौन गर्व कर सकता है, जिसे विदेश यात्राओं को कवर करने के नाम पर यही दिखता है कि मोदी मोदी हो रहा है या नहीं ? अच्छी बात है कि वहां रहने वाले भारत के लोग अपने प्रधानमंत्री को देखने आते हैं लेकिन विदेश यात्रा का कवरेज़ सिर्फ इसी बात तक सिमट कर रह जाए, अच्छा नहीं है. वहां रहने वाले भारतीयों को भी भारत के बारे में जो जानकारी है वो इसी गोदी मीडिया के ज़रिए है जिसमें सूचना नाम की चीज़ नहीं होती. तो वह भी वही जानते हैं जो गोदी मीडिया जानता है. हर बार टेस्ट करने की ज़रूरत नहीं है कि गोदी मीडिया ने लोगों को जिस भ्रम में रखा है वह बना हुआ है या नहीं. वह बना रहेगा कई साल तक.

एक चैनल के वायरल हुए वीडियो से पता चला कि स्वागत में विश्व हिन्दू परिषद के लोग आए हैं. विश्व हिन्दू परिषद के लोगों को इस पर गर्व करना चाहिए कि उनके आने से ही प्रधानमंत्री मोदी की अमरीकी यात्रा की लोकप्रियता सुनिश्चित होती है. बजरंग दल को भी ग्लोबल हो जाना चाहिए ताकि जब भी प्रधानमंत्री मोदी दूसरे देश में जाएं उनके लोग हवाई अड्डे या होटल के बाहर जमा हो जाएं और गोदी मीडिया गांव-गांव में देख रहे भारतीय दर्शकों को बता सके कि विदेश में प्रधानमंत्री कितने लोकप्रिय है !अपनी ही पार्टी और अपने ही नागरिकों बुलवाकर बुलाकर विदेश में लोकप्रिय होने का यह देसी फार्मूला ग़ज़ब ही है. बजरंग दल को अपना टैग लाइन रखना चाहिए, विदेशों में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता की गारंटी देने वाला बल, बजरंग दल.

प्रधानमंत्री मोदी को समझना चाहिए कि गोदी मीडिया उनकी सुपर पावर लगने वाली विदेश यात्राओं पर पानी डाल देता है. विदेश नीति की बारीकियों को समझना, उसके भीतर की चाल और चतुराई को उजागर करना, गोदी मीडिया के बस की बात नहीं है. इस बार चर्चा चली कि अमरीका के प्रेस में भारत के प्रधानमंत्री के दौरे को कोई करवेज नहीं दिया गया है. कोई चर्चा ही नहीं है. हमेशा से ही ऐसा रहा है. पहले की विदेश यात्राओं को बड़े अख़बारों में जगह नहीं मिली है. भारत से ज़्यादा दूसरे देशों को मिल जाती है. यह कोई अच्छी बात नहीं है लेकिन इस पर बहस होनी चाहिए कि ऐसा क्यों है ?

इस पर भी बात होनी चाहिए कि गोदी मीडिया के लिए मोदी की सामान्य विदेश यात्रा भी ऐतिहासिक ही क्यों है ? अगर यह यात्रा ऐतिहासिक थी तो एक बार आप और गोदी मीडिया फिर से अपना कवरेज देख ले कि क्या उस तरह से व्यापक संदर्भ में वह इस यात्रा को पेश कर पाया है ? अपना कवरेज देख ले फिर अमरीकी प्रेस में कवरेज नहीं होने को लेकर कोसा जाए.

हर बात में महाशक्ति बनने की तलाश करने वाले इन ऐंकरों को पता नहीं कि भारत अस्सी करोड़ ग़रीब लोगों का देश है. यहां के नौजवानों के पास नौकरी नहीं है. इसकी अर्थव्यवस्था डूब चुकी है. सात साल के लंबे कार्यकाल की इस कामयाबी से आप कब तक नज़रें चुराएँगे ? यहां एक भी यूनिवर्सिटी पढ़ने लायक नहीं है. खुद मंत्रियों के बच्चे उसी अमरीका की शानदार यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं. जिसके पास पैसे नहीं है वह भी कर्ज़ लेकर अपने बच्चों को बाहर भेज रहा है ताकि यहां की घटिया यूनिवर्सिटी से अपने बच्चों को बचा सके. यहां लोगों के मरने पर संख्या छिपाई जाती है और जिन्हें टीका नहीं लगता है उन्हें भी टीका लगने का सर्टिफिकेट मिल जाता है, फिर प्रोपेगैंडा होता है कि भारत महान हो गया.

अच्छे कपड़े पहन लेने से और ख़राब हिन्दी बोलने से आप ऐंकर हो सकते हैं, पत्रकार नहीं. जब आप भारत में पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं तो केवल वाशिंगटन की सड़कों पर उतर जाने से आप पत्रकार नहीं हो सकते. बेशक विदेश नीति को लेकर भारत और दुनिया के सामने भारतीय नज़रिए को रखने की ज़रूरत है लेकिन नेता के आगे पीछे भांड की तरह नाच कर वह नज़रिया नहीं रखा जा सकता है. आप पाठक चाहें इस गोदी मीडिया का जितना समर्थन कर लें लेकिन आपको पता है कि गोदी मीडिया भारत के मुकुट का एक धब्बा है. यह मोती नहीं है. यह आप नागरिकों की समझ पर निर्भर करता है कि आप कब तक इसके झांसे में बने रहेंगे. ख़ुद ग़ुलाम बन चुका यह मीडिया आपको एक नेता के झूठ का ग़ुलाम बना रहा है, बाक़ी आपकी मर्ज़ी.

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