पहले यूनिक हैल्थ आईडी, उसके बाद स्वामित्व कार्ड, फिर श्रमिक आईडी, फिर पेंशनर्स के लिए डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट और अब यह नए किसान आईडी कार्ड. एक बात बताएंगे कि इन सब की जरूरत क्या है ? जब आधार कार्ड सभी का बना हुआ है, क्या आधार कार्ड पर ही किसान, श्रमिक की एंट्री नहीं डाली जा सकती थी ? दरअसल सरकार को यह सारा डेटा उठाकर देशी विदेशी कम्पनियों के हाथों करना है. ये सब नयी विश्व व्यवस्था New World Order की तैयारी है, जिसके लिए हर आदमी का, उसके व्यवसाय से संबंधित, उसके स्वास्थ्य से संबंधित ऑथोराइज़्ड डेटा चाहिए.
गिरीश मालवीय
भास्कर के कई संस्करणों में फ्रंट पेज पर पहली खबर है कि ‘विदेशी कंपनियों की पहुंच में होगा किसानों के जमीनों का डेटा’. अब शायद आपको समझ आ जाए कि 2019 नवम्बर में बिल गेट्स के भारत दौरे का क्या उद्देश्य था ? साथ ही आपको किसान नेता राकेश टिकैत की वह बात भी समझ में आ जाए जिसमें उन्होंने कहा था ‘मोदी सरकार को बड़ी-बड़ी कंपनियां चलाती हैं.’ क्या अब भी आपको यह कोई कांस्पिरेसी थ्योरी लग रही है ? यहां साफ साफ दिख रहा है कि मोदी सरकार किसके इशारे पर नाच रही है.
फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद के बहाने विदेशी कंपनियां भारतीय बाजार में पैठ बढ़ाने में लगी है. अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और सिस्को सिस्टम्स जैसे विदेशी टेक्नोलॉजी दिग्गजों और जियो प्लेटफॉर्म्स व आईटीसी जैसी देशी कंपनियों को सरकार यह डेटा देने जा रही है. एक बात अच्छी तरह से जान लीजिए कि डेटा आने वाली नयी विश्व व्यवस्था में वही रोल निभाएगा, जो आज के जमाने मे कच्चे तेल का है. कहा भी गया है कि ‘data is the new oil.’ जिसके पास इसका कंट्रोल है वो ही राजा होगा.
मोदी सरकार पूरी तरह से इन विदेशी कम्पनियों के हित में काम कर रही हैं. बिल गेट्स दो साल पहले हुई कृषि सांख्यिकी पर नई दिल्ली में होने वाली ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में मुख्य वक्ता थे. यह कॉन्फ्रेंस यूएन के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ), यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, वर्ल्ड बैंक, मिलिंडा एंड गेट्स फाउंडेशन और अन्य एजेंसियों के साथ पार्टनरशिप में भारत के कृषि मंत्रालय ने आयोजित की थी. इस कांफ्रेंस का विषय था – ‘सतत विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए कृषि में बदलाव की सांख्यिकी.’
बिल गेट्स का उद्बोधन कृषि उत्पादन के लिए नए डिजिटल उपकरणों के उपयोग और कृषि के सर्वाेत्तम आंकड़ों की आवश्यकता के आसपास ही केंद्रित था. और अब जो खबर आई है वो इसी कृषि सांख्यिकी सम्मेलन में जो डिसीजन लिए गए थे, उसकी ही घोषणा है.
इसी सम्मेलन के छह महीने बाद आश्चर्यजनक रूप से मोदी सरकार वह तीन विवादास्पद कृषि कानून लेकर के आयी है, जिसके खिलाफ देश भर के लाखों किसान पिछले 10 महीने से सड़कों पर हैं. इन कानूनों के जरिए कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जा रहा है. ये विदेशी कंपनियां खेती करेंगी और किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बनकर रह जाएगा क्योंकि उसके डेटा पर आधिपत्य सरकार ने विदेशी कंपनियों को सौंप दिया है.
यह कानून किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है लेकिन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई बात नहीं करता. यह क्लॉज भी इन्हीं विदेशी कंपनियों के कहने पर डाला गया है. भास्कर की खबर में पंजाब के किसान सुखविंदर सिंह सभरा बताते हैं कि इस तरह से डेटा देना छोटे और कमजोर किसानों को नुकसान पहुंचा सकता है. कंपनियों को पता चल जाएगा कि उपज कहां अच्छी नहीं है. वे वहां के किसानों से सस्ते में खरीदेंगी, फिर ऊंचे दामों पर बेचेंगी.’
राकेश टिकैत कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में अडानी एग्री फ़ूड ने इस साल सेब के रेट 16 रुपये कम कर दिए. जब सरकार पूछती है कि नुकसान क्या है तो किसान बिल में जो कांट्रैक्ट फार्मिंग है, वह यही तो है. किसान को कमजोर किया जा रहा है, ताकि वह अपनी जमीन बेचने को मजबूर हो जाए.
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ये जितनी भी नयी-नयी आईडी या कार्ड बना रहे है न, ये सब इस नये दौर की गुलामी के नए सर्टिफिकेट हैं. कल खबर आयी है कि सरकार किसानों को 12 अंकों की यूनिक आईडी जारी करने जा रही हैं. सरकारी अधिकारी कह रहे हैं कि हमने विशेष किसान आईडी बनाना शुरू कर दिया है और एक बार जब हम 8 करोड़ किसानों के डेटाबेस के साथ तैयार हो जाएंगे, तब हम इसे लॉन्च करेंगे. ध्यान दीजिएगा कि इस कुल डेढ़ साल के कोरोना काल में मोदी सरकार ने कितनी सारी अलग-अलग आईडी बनाने की स्कीम लांच की है.
शुरुआत करते है हेल्थ आईडी कार्ड से. सबसे पहले ये यूनिक हैल्थ आईडी लाए जिसे वेक्सीन लगवाने के साथ ही जेनरेट किया जा रहा है. इसके साथ ही वेक्सीन का डिजिटल सर्टिफिकेट भी लॉन्च किया गया. मरीज का पूरा मेडिकल रिकॉर्ड इस हेल्थ आईडी कार्ड में स्टोर होगा.
उसके बाद यह स्वामित्व योजना लेकर के आए, जिसके अंतर्गत गांवों में आवासीय संपत्ति को अलग से मार्क किया जा रहा है. दरअसल गांवों में खेती की जमीन की तो खसरा खतौनी उपलब्ध है लेकिन आवासीय संपत्ति का रिकॉर्ड नहीं है इसलिए केंद्र सरकार की ओर से ‘स्वामित्व स्कीम’ की शुरुआत की गई, इस स्कीम के तहत गांवों में ड्रोन से मैपिंग की जाती है.
फिर पिछले महीने यह श्रमिक आईडी लेकर के आए हैं, जिसके अंतर्गत केंद्रीय श्रम विभाग असंगठित क्षेत्र के करीब 38 करोड़ मजदूरों के लिए 12 अंकों का यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (UAN) और ई-श्रम कार्ड जारी करेगा, जो पूरे देश में मान्य होगा.
इसके अलावा कुछ दिन पहले ही सरकार ने पेंशन पाने वालों के लिए डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने की बाध्यता लागू कर दी है. 1 अक्टूबर, 2021 से पेंशन का नया नियम लागू होने जा रहा है. पेंशनर्स के लिए इस नियम को मानना बेहद जरूरी होगा. अब डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट (Digital Life Certificate) देश के सभी हेड पोस्ट ऑफिस के जीवन प्रमाण सेंटर यानी कि JPC में जमा कराए जा सकेंगे.
यानी पहले यूनिक हैल्थ आईडी, उसके बाद स्वामित्व कार्ड, फिर श्रमिक आईडी, फिर पेंशनर्स के लिए डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट और अब यह नए किसान आईडी कार्ड. एक बात बताएंगे कि इन सब की जरूरत क्या है ? जब आधार कार्ड सभी का बना हुआ है, क्या आधार कार्ड पर ही किसान, श्रमिक की एंट्री नहीं डाली जा सकती थी ?
दरअसल सरकार को यह सारा डेटा उठाकर देशी विदेशी कम्पनियों के हाथों करना है. ये सब नयी विश्व व्यवस्था New World Order की तैयारी है, जिसके लिए हर आदमी का, उसके व्यवसाय से संबंधित, उसके स्वास्थ्य से संबंधित ऑथोराइज़्ड डेटा चाहिए.
5जी के कारण दुनिया तेजी से बदलने वाली है. अब इंटरनेट ऑफ थिंग्स का जमाना आने वाला है. इसमें आर्टिफिशियल इंटलीजेंस अपने चरम पर होगा. मशीनें ही आपस में बात कर निर्णय ले सकने की क्षमता से लैस होगी कि किस आदमी को कहां भेजना है ? वो क्या काम करने में सक्षम है ? यह सब कुछ गिनी-चुनी कम्पनियां ही डिसाइड करेगी. यह नए-नए आईडी उसी के लिए बनाए जा रहे हैं.
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सरकार पूछती है कि नुकसान क्या है तो किसान बिल में जो कांट्रैक्ट फार्मिंग है, वह यही तो है
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