”पिछले तीन सालों में हम बीजेपी और आरएसएस के 20 कार्यकर्ताओं को (कर्नाटक राज्य में) खो चुके हैं … आप हमारे कार्यकर्ताओं पर जुल्म ढ़ाना बन्द कीजिये. एक बार हम सत्ता में आ गये तो सारे मामलों की छान-बीन करेंगे और आपको जेल भेजेंगे. ये हिन्दू विरोधी सरकार वोट बैंक की राजनीति कर रही है. ये स्थापित हो चुका है कि सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त है, के विरुद्ध कर्नाटक सरकार ने सभी मामले वापस लिए जा चुके है. कर्नाटक की सिद्धरामय्या सरकार भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के कारण आमजन से पूरी तरह कट चुकी है.” उक्त बातें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कर्नाटक में आसन्न चुनावों के मद्देनजर 75 दिनों तक जारी रहने वाली परिवर्तन यात्रा की चित्रदुर्गा से शुरुआत करते हुए कही.
बीजेपी हर राज्य में जहां कांग्रेस की सरकारें है और निकट भविष्य में चुनाव होनेे हैं, उन सरकारों पर निम्न आरोप लगा कर चुनावी अभियान की शुरुआत करती है –
1 – हिन्दू विरोधी
2 – राष्ट्रविरोधी
3 – भ्रष्टाचारी
4 – वोट बैंक की राजनीति
देश में हिन्दू धर्मावलम्बियों का बाहुल्य है. बीजेपी खुद को अल्पसंख्यकों के मुकाबले बहुसंख्यक हिन्दू धर्मावलम्बियों की हितैषी पार्टी बताती है, ये स्थापित तथ्य है. देश में शिवसेना का प्रभाव क्षेत्र चूंकि महाराष्ट्र तक ही सीमित है, के मुकाबले एकमात्र हिन्दू हित की पोशाक, देशव्यापी पार्टी बीजेपी ही है इसलिए समूचे अल्पसंख्यकों के सिर राष्ट्रविरोधी, हिन्दू विरोधी होने की तोहमत लादने और “राई बरोबर मामले के प्रकाश में आने पर उसे पहाड़ यानी “तिल का ताड़” बना बहुसंख्यक हिंदुओं के सामने परोसने के लिए, संवाद के हर उपलब्ध श्रोत की उसकी पूरी क्षमता का दोहन करने के पुख्ता प्रबंध करने में बीजेपी की दक्षता के मुकाबले कांग्रेस कहीं ठहरती ही नहीं है.
एक कहावत है – “नामी चोर पकड़ा जाय, नामी शाह कमा खाये”. कांग्रेस की स्थिति “नामी चोर” वाली बन गई है और भ्रष्टाचार के आरोपों में आकंठ डूबी बीजेपी की “नामी शाह” वाली. हालांकि 2 जी मामले में क्लीन चिट मिलने के बाद कांग्रेस को जो भ्रष्टाचार में अपनी निर्लिप्तता का जिस ताकत से आक्रामक प्रचार करना था, वो भी कहीं दिखा नहीं. इसका सबसे बड़ा कारण मीडिया घरानों का बीजेपी से आर्थिक हित साधन होना चर्चाओं में है और दूसरा, कांग्रेस को आक्रामक प्रचार के लिए जितना उपयोग सोशल मीडिया का करना था, वो भी वह नहीं कर पाई. रही बात वोट बैंक राजनीति की तो इस तोहमत का कारण भी अल्पसंख्यकों के प्रति कांग्रेस का घृणा की राजनीति से दूर रहना ही है. कुल मिलाकर बीजेपी बहुसंख्यकों में अल्पसंख्यकों के प्रति स्वाभाविक घृणा फैलाने और उसका भरपूर राजनैतिक लाभ उठाने में पूरी तरह कामयाब है.
बीजेपी विरोधी जो खुद लुंज-पुंज अवस्था में है, के लिए वर्तमान में अनचाहे ही सही, कांग्रेस ही एक मात्र देशव्यापी राजनैतिक मंच है, जिस पर वे खड़े हो सकते हैं. यही फिलहाल कांग्रेस के पक्ष में है, जो राजनीति का धनात्मक चेहरा न होते हुए भी कांग्रेस के पुनर्जीवित होने केे लिए आशा की किरण है.
– विनय ओसवाल
देश के प्रतिष्ठित राजनैतिक विश्लेषक