तुम हमारी परछाई से भी दूर रहते हो
इस डर से की कहीं
हम गलती से भी छू न ले तुम्हें
और तुम हो जाओ अपवित्र
इसके बावजूद
हम तुम्हारी घृणा और गंदगी से भरी दुनिया को
सुंदर और स्वस्थ रखने के लिए
उतर रहे हैं सदियों से गंदगी के उस अंधेरे खोह में
जिसने निगल ली हैं हमारी कई पीढ़ियां
जिसकी जहरीली गैसों से आये दिन हम मारे जाते हैं एक नामालूम-सी मौत
या तिलतिल कर मरते हुये जीने के लिए हैं अभिशप्त
हमारा जीवन शोषण का एक लम्बा इतिहास है
जिस सभ्यता पर गर्व करते हो
उसका एक घृणित यथार्थ
जिसे तुम जानना तक नहीं चाहते
क्योंकि तुम्हारी आंखों में हम मनुष्य की तरह नहीं
बल्कि कीचड़ की तरह आते हैं
किसलिए आते हैं ?
किसके लिए आते हैं ?
अलसुबह तुम्हारे जागने से पहले
और फैल जाते हैं पूरी दुनियां के तमाम् उन कोनों में
जहां तुम देखने से भी कतराते हो
इसलिए न कि तुम चल सको बिना नाक में रूमाल रखे
शान से उठाये हुये अपनी नाक देश के नक्शे में
घूम सको बेफिक्र कहीं भी अपने परिवार के साथ
या रह सको इत्मीनान से घर में
या फिर तुम्हारे बच्चे रख सके
बेखौफ अपने नन्हें-नन्हें पांव
इस साफ धरती पर
क्या इस बीच कभी
ख्याल नहीं आता, हमारे परिवार का तुम्हें ?
कभी झांको हमारी आंखों में
हमारे घर के बर्तनों में
हमारे जीवन में
एक गहरा अंधेरा वहां भी मिलेगा
जिसमें तुम्हारें सारे खूबसूरत उजाले
अपनी आंखें फोड़ लेगें
क्या कभी ख्याल नहीं आता ?
कि यह दुनिया जितनी तुम्हारी है
उससे कहीं ज्यादा हमारी
जो तुम्हें एक साफ हवा में सांस लेने के लिए
अपनी सांसों को गंदगी और जहरीली गैसों के हवाले कर देते हैं
यह जानते हुये कि हमारे पीछे हमारा परिवार है निराधार
अगर यह शहादत नहीं लगती है मेरे दोस्त
और हमारी मौत किसी भी शहीद से कम लगती हैं तुम्हें
तो आओ, सिर्फ एक बार आओ
सिर्फ एक बार, मेरे दोस्त
उतरकर देखो हमारे साथ
उस गंदगी में
लगाकर देखो डुबकी
वैसे ही जैसे तुम गंगा में लगाते हो
तुम्हें उसके बाद खुद से और इस दुनिया से घृणा हो जायेगी
घृणा हो जायेगी उस जीवन से
जिसे हम जीते आ रहे हैं चुपचाप
तुम्हारी नफरत और उपेक्षा को झेलते हुए सदियों से
हमारे हिस्से में न कोई सम्मानजनक जीवन है न ही मृत्यु
मृत्यु
जिससे तुम सबसे ज्याद डरते हो
उससे याराना है हमारा
और क्यों न हो, जरा तुम ही सोचो
अगर रोज तुम्हें जीना पड़े ऐसा जीवन
जो मृत्यु से भयावह हो
तो तुम मृत्यु से नहीं
जीवन से डर जाओगे
तुम नाचना तो दूर
भूल जाओगे गाना तक
शायद गुनगुनाना भी
लेकिन
हम गाते हैं और नाचते भी हैं
मदमस्त होकर सबकुछ भूलकर
क्योंकि हम दुख से लड़ने के आदी हो गये हैं
सुख हमारे जीवन में ऐसे आता है
जैसे कड़ी धूप में टपकता हो पेड़ से कोई पानी का बूंद
और दुख एक खारे समुद्र की तरह
उफनता रहता है भीतर
जब दुख और मृत्यु का डर खत्म हो जाये
तब क्या बच जाता है करने के लिए ?
तुम्हें सोचना चाहिए मेरे दोस्त
और डरना भी।
(सफाई कर्मियों के संघर्ष को समर्पित )
- अंजन कुमार
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]