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ये मोदी का न्यू इंडिया है

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कृष्ण कांत

न्यूजलॉन्ड्री और न्यूज​क्लिक पर आयकर विभाग ने छापा मारा. ये छापा क्यों मारा गया, ये आयकर विभाग को नहीं पता था. आयकर विभाग ने एनडीटीवी को बताया कि ‘ये ‘सर्वे’ था, न कि ‘छापेमारी.’ ‘सर्वे’ के दौरान अधिकारी संस्थान के वित्तीय रिकॉर्ड्स खंगालते हैं लेकिन कोई चीज जब्त नहीं करते हैं.’ मतलब इन दोनों संस्थानों पर कोई आरोप नहीं था. आयकर वाले मीडिया दफ्तरों में पिकनिक मनाने आए थे. दोनों संस्थानों में सुबह शुरू हुआ ये कथित सर्वे देर रात तक चला. एडिटर्स गिल्ड ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र पर घातक हमला बताया है.

दबंग लोगों को किसी को धमकाना होता है तो अपने पंटर लोग को भेज देते हैं. पंटर जाता है. गाली गलौज करता है. दो चार हाथ जमाता है. धमकी देता है. वापस आ जाता है. लगता है कि आयकर विभाग भी किसी का पंटर है, जिसे छोटे-छोटे मीडिया संस्थानों को धमकाने का आदेश मिला है.

न्यूजलॉन्ड्री एक छोटा-सा मीडिया संस्थान है. कम और अच्छी खबरें छापता है. जाहिर है कि इन खबरों में सरकार की आलोचना होती है. सरकार की आलोचना सरकार को बर्दाश्त नहीं है. 2014 में भी आयकर विभाग न्यूजलॉन्ड्री पर छापा मार चुका है.

कोरोना के वक्त देश भर में अराजकता मच गई. कारण जो भी रहे हों, लेकिन दैनिक भास्कर और भारत समाचार ने मुखरता से कवर किया. उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था लेकिन थोड़े ही दिन में छापा पड़ गया. आजकल भास्कर की क्लिपिंग वायरल होनी बंद हैं. भास्कर और भारत समाचार के ​खिलाफ किसी तरह के अपराध साबित हुए हों, या बड़े आरोप हों, ये अब तक पता नहीं चल सका है.

फरवरी में न्यूजक्लिक पर भी छापा पड़ा. न्यूजक्लिक छोटा संस्थान है. फॉलोइंग भी कम ही है, लेकिन यह संस्थान भी सरकार की आलोचना करता है. उस पर दोबारा छापा पड़ गया. इस पर पहले ईडी का छापा पड़ा था. संस्थान दिल्ली हाईकोर्ट गया और वहां से राहत मिल गई. अब चूंकि ईडी पर हाईकोर्ट ने दखल दे दी तो आयकर पहुंच गया है.

सबसे पहले सरकार बनते ही एनडीटीवी पर स्ट्राइक करते हुए एक दिन का बैन लगाया था. द वायर पर अब तक कई मुकदमे हो चुके हैं. यह भी ध्यान रखिए कि हजारों करोड़ के बड़े-बड़े संस्थानों में ये ‘सर्वे’ नहीं हो रहे हैं क्योंकि उन्हें झुकने का इशारा किया गया और वे जमीन पर लोटने लगे. वे सात साल से लोट रहे हैं.

यह आकार में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां सरकार मीडिया से कह रही है कि पांव में घुंघरू बांध लो और हमारे दरबार की कनीज बन जाओ, वरना खैर नहीं है. मीडिया के अधिकार सिर्फ उतने ही हैं जितने हमें आपको मिले हैं यानी अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार. अगर मीडिया के मुंह में ताला लगाया जा रहा है तो समझिए कि भारत में नागरिकों के बोलने की आजादी को खत्म किया जा रहा है.

कहा जा रहा है कि ये न्यू इंडिया है. न्यू इंडिया के नाम पर क्या आप ऐसे देश की कल्पना करते हैं जहां तानाशाही हो ? जहां आजाद मीडिया न हो ? जहां बोलने की आजादी न हो ? जहां सरकार से सवाल न किए जा सकें ? जहां नेताओं से सवाल न पूछे जा सकें ?

हजारों लाखों लोगों के संघर्षों और शहादतों के बाद मिला लोकतंत्र आपसे छीना जा रहा है. लोकतंत्र नहीं होगा तो आप आजाद नागरिक नहीं होंगे. तानाशाही में आजाद नागरिक नहीं होते, सिर्फ गुलाम होते हैं.

एनडीटीवी, द वायर, न्यूजलॉन्ड्री, न्यूजक्लिक, दैनिक भास्कर, भारत समाचार… अब अगला कौन ? अगला नंबर आपका है. अगर मुंह में जबान है तो आपका भी नंबर जल्दी आएगा. इंतजार कीजिए. दशकों की लड़ाई के बाद मिली आजादी का जनाजा निकलते देखिए और गर्व कीजिए.

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किसानों से हम पत्रकार चाहते हैं कि हम उनके बारे में अनाप-शनाप बकें, फिर भी वे हमारी बोलने की आजादी का सम्मान करें. सरकार से हम इतना भी नहीं मांग पाते कि हमें स्वस्थ आलोचना का अधिकार होना चाहिए.

मीडिया खुलकर जनता के विरोध में सरकार का समर्थन करता है फिर अपनी खातिर लोकतंत्र का पर्दा लगाना ही क्यों है ? अगर लोकतंत्र चाहिए तो उसकी धज्जियां उड़ाईं किसने ? जनता का साथ छोड़कर पोलिटिकल एजेंडा परोसने का तमाशा जनता ने नहीं शुरू किया, उसने बस भरोसा करना बंद कर दिया है.

किसानों की तरफ से कोई एक हरकत अप्रिय या अभद्र हो सकती है, लेकिन 9 महीने के आंदोलन पर छाई चुप्पी से ज्यादा क्रूर नहीं है. चाहे सीएए विरोधी आंदोलन हो, चाहे किसान आंदोलन हो, मीडिया ने जनता की तरफ से एक बार भी नहीं पूछा कि सैकड़ों मौतों के बाद भी सरकार क्रूरतापूर्ण रवैया क्यों अपना रही है?

मीडिया हर बार सरकारी फ्रिंज के साथ खड़ा हुआ है और हर असहमति को आतंकवाद और देशद्रोह बताया गया है. मीडिया ने जिस हद तक जाकर मर्यादा भंग की है, जनता उस हद तक चली गई तो ये देश नहीं चल पाएगा.

किसानों को लोकतंत्र याद दिलाने का मैं समर्थन करता, अगर इस देश में लोकतंत्र के सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोगों ने लोकतंत्र की जरा भी मर्यादा रखी होती. सरकार, कॉरपोरेट और झमीडिया का गठबंधन जिस हद तक पहुंच गया है, दुआ कीजिए कि आम जनता वहां तक न जाए.

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देश तेजी से कंगाल हो रहा है. तीन लोगों की संपत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है. यह कोई पूर्वग्रह या धारणा नहीं है. यह तथ्य है. हम तक जितनी सूचनाएं आ रही हैं, उनके मुताबिक, पिछले सात सालों में अंबानी, अडानी और डेढ़ लोगों की पार्टी बीजेपी की संपत्तियां दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही हैं लेकिन देश की जनता लगातार गरीब हो रही है.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने अपनी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया है कि 2019 में पचास प्रतिशत से ज्यादा कृषि परिवार कर्ज में डूबे थे. प्रत्येक कृषि परिवार पर औसतन 74,121 रुपये का कर्ज था. रिपोर्ट के मुताबिक छह साल पहले यानी 2013 में कर्ज में डूबे हर परिवार पर 47,000 रुपये बकाया था. 2019 में कर्ज की यह राशि 57 प्रतिशत बढ़ गई. यानी जो कर्ज में डूबे थे उन पर 57 फीसदी कर्ज और बढ़ गया. इस दौरान लोगों की आय में मामूली बढ़ोत्तरी तो हुई है, लेकिन कर्ज और बढ़ गया है.

ये हाल 2019 का है जब देश नोटबंदी का दूरगामी असर का आनंद प्राप्त कर रहा था. उसके बाद क्या हुआ, आपको मालूम ही है. बेरोजगारी ने 45 सालों का रिकॉर्ड तोड़ा. भारतीय बाजार के सभी कोर सेक्टर ध्वस्त हुए. उसके बाद कोरोना आया. कोरोना आने के बाद विकास का करैला नीम चढ़ गया.

महंगाई और बेरोजगारी तो बढ़ी ही, जो लोग पहले से काम कर रहे थे उनके भी रोजगार छिन गए. अनुमानत: 15 से 20 करोड़ लोगों का काम छिन गया. अर्थव्यवस्था माइनस में चली गई. एक साल में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए.

अब हालात ये हैं कि जिस देश में तीस पैंतीस करोड़ गरीबी रेखा से नीचे थे, वहां पर अब 80 करोड़ लोग सरकारी मुफ्त राशन पर जिंदा हैं. जब वे कह रहे थे कि हम तुम्हारा विकास करेंगे, तब इसका अर्थ ये था कि हम ​तुम्हारे हाथ में कटोरा थमा देंगे. जिनको लग रहा है कि विकास हो रहा है, वे भी जल्दी ही दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए घोड़ा खोल देंगे.

मसला ये नहीं है कि राशन कौन खाता था, मसला ये है 35 करोड़ गरीबों की संख्या 80 करोड़ कैसे पहुंच गई ? मसला ये है कि करोड़ों लोगों को इस हालत में किसने पहुंचाया कि वे अपना पेट तक न भर सकें ? आज 130 करोड़ में से 80 करोड़ मुफ्त सरकारी राशन पर ज़िंदा रहने को क्यों मजबूर हैं ? देश को इस हाल में किसने पहुंचाया ?

2015 के आसपास देश में गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों की संख्या करीब 35 करोड़ थी. सिर्फ पिछले 1 साल में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए. सरकार 80 करोड़ को मुफ्त राशन देने का दावा करती है. 130 करोड़ में से 80 करोड़ को आपने जीने लायक नहीं छोड़ा.

जाहिर है कि ये काम अकबर-बाबर ने नहीं किया, यह महान कारनामा 2015 के बाद हुआ है. वे आपको अब्बा जान और कब्रिस्तान में उलझा रहे हैं ताकि इस बात का जवाब न देना पड़े कि आज 130 करोड़ में से 80 करोड़ को ज़िंदा रखने के लिए मुफ्त राशन क्यों देना पड़ रहा है ?

वे आपसे कह रहे हैं कि जिस बात पर उन्हें शर्म से डूब मरना चाहिए, उस बात पर आप गर्व कीजिए. आप गर्व कीजिए कि आपको बरसों से उल्लू बनाया जा रहा है और हिन्दू-मुस्लिम में उलझे रहिए.

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ROHIT SHARMA

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