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पेगासस जासूसी कांड : निजता के अधिकार और जनतंत्र पर हमला

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जन अभियान, बिहार (9 घटक संगठन – जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी, नागरिक अधिकार रक्षा मंच, सर्वहारा जन मोर्चा, जनवादी लोक मंच, कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया, सीपीआई (एमएल), एमसीपीआई (यू), सीपीआई (एमएल) – न्यू डेमोक्रेसी, सीपीआई (एमएला – एस आर भाई जी) द्वारा 12 सितम्बर, 2021 को गांधी संग्रहालय, पटना में आयोजित परिचर्चा में पढ़ा गया पर्चा, यहां प्रस्तुत है –

पेगासस जासूसी कांड : निजता के अधिकार और जनतंत्र पर हमला

पेगासस ग्रीक पौराणिक कथा का एक देवता है, जो है तो घोड़ा लेकिन पक्षियों की तरह आकाश में उड़ सकता है. हिंदू पौराणिकता में जिस तरह हनुमान में उड़ने की क्षमता थी कुछ वैसा ही चमत्कारी है पेगासस. इजरायल की साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ने अपने स्पाइवेयर का नामकरण इसी पौराणिक देवता के नाम पर किया है. इसका इस्तेमाल जासूसी के लिए किया जाता है. इसे किसी के फोन पर इस तरह लगाया जा सकता है कि फोन के मालिक को पता ही नहीं चले कि उसके फोन का हर उपकरण किसी और के द्वारा पूरी तरह नियंत्रित हो चुका है.

इस स्पाईवेयर को इस तरह तैयार किया गया है कि वह किसी के फोन में एक बार इंस्टॉल हो जाने के बाद खुद का मेंटेनेंस भी कर सकता है और जब ऑपरेटर के पहचान खुल जाने की नौबत आती है तो खुद को नष्ट भी कर सकता है. फ्रांस की गैर व्यवसायी मीडिया ‘फॉरबिडेन स्टोरीज’ के अनुसार यह स्पाइवेयर इस समय दुनिया भर के 50,000 लोगों पर विभिन्न सरकारों के लिए नजर रख रहा है.

पेगासस मात्र निगरानी उपकरण नहीं है बल्कि यह एक साइबर हथियार है. इसके जरिए भारत समेत दुनिया के 40 देशों के राजनेताओं, पत्रकारों, वकीलों, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, आला अधिकारियों, बड़े कारोबारियों आदि के फोन टेप किए जा रहे हैं.

नागरिकों की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़े इस मसले पर ला मोंद, वाशिंगटन पोस्ट, द गार्डियन, द वायर, फ्रंटलाइन, रेडियो फ्रांस जैसे दुनिया के जाने-माने संस्थान मिलकर काम कर रहे हैं. इन मीडिया समूहों को एमनेस्टी इंटरनेशनल की तकनीकी सेल का सहयोग मिल रहा है. मीडिया समूहों के इस अभियान को ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ के नाम से जाना जा रहा है.

इस स्पाइवेयर के उपयोग / दुरुपयोग का सबसे निकृष्ट उदाहरण सऊदी अरब है जिसकी सरकार ने इसका इस्तेमाल अपने इस्तांबुल में रह रहे एक आलोचक पत्रकार जमाल खाशोगी का सफाया करने के लिए किया था. उसने खाशोगी की पत्नी और महिला मित्र के फोनों पर स्पाइवेयर लगाया और खाशोगी को फंसाकर इस्तांबुल के अपने दूतावास में बुलाया, जहां उसे सऊदी अरब के एजेंटों ने मार दिया और उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर संदूक में भरकर ले गए.

इसी तरह की एक और हृदय विदारक घटना दुबई की है, जहां की शाहजादी शेख लतीफा अपने पिता की पकड़ से भाग कर गोवा आ रही थी. पिता पेगासस के सहयोग से उसकी जासूसी करवा रहा था. भारतीय तट से 20 किलोमीटर दूर तटरक्षकों ने उसे पकड़ा और इसके पिता के एजेंटों के हवाले कर दिया. अपने पिता से त्रस्त उस औरत ने गुहार लगाई कि ले जाने से पहले मुझे गोली मार दो. बाद में शेख लतीफा का क्या हुआ कुछ पता नहीं चल पाया.

भारतीय राजनीतिक गलियारे में पेगासस जासूसी कांड एक प्रमुख मुद्दा बन चुका है. जजों, पत्रकारों, वकीलों, नौकरशाहों, सैनिक बलों, खुफिया एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों में सक्रिय कार्यकर्ताओं के शिकार होने की रिपोर्टों के बाद देश में इसे लेकर बेचैनी दिखी है और इन बेचैनियों ने देश की सर्वोच्च अदालत के दरवाजे पर दस्तक देना शुरू कर दिया है.

प्रथम सुनवाई में सर्वोच्च अदालत ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि ‘अगर रिपोर्ट सही है तो यह गंभीर मामला है. सरकार को इसपर जवाब देना चाहिए.’ जो खुलासा हुआ है उसके मुताबिक भारत के दो मंत्रियों, 40 से अधिक पत्रकारों, विपक्ष के तीन नेताओं, उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश, उद्योगपतियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत 300 से अधिक लोगों की जासूसी की जा रही है.

एनएसओ का दावा है कि वह यह सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकारों और सरकारों की मान्य एजेंसियों को बेचती है. इसलिए स्वाभाविक सवाल है कि क्या भारत सरकार या उसकी मंजूरी से किसी खुफिया व सुरक्षा एजेंसी ने इसे एनएसओ से खरीदा है ? सरकार इस सवाल का जवाब देने से बच रही है या हकलाते हुए आधी-अधूरी सफाई दे रही है और जांच कराने की मांग से कन्नी काट रही है.

वहीं फ्रांस सहित दूसरे देशों से खबर आ रही है कि वहां इस मामले की जांच शुरू हो चुकी है. इजरायल ने मंत्रियों के समूह को समीक्षा करने का निर्देश जारी किया है. गृह मंत्री अमित शाह इस मामले में देश को क्रोनोलॉजी समझा रहे हैं. कह रहे हैं कि जासूसी की रिपोर्ट जारी होने के समय को संसद में विपक्ष के हंगामे से जोड़कर देखने की जरूरत है.

इसके उलट सच्चाई यह है कि जासूसी कांड का उद्भेदन करने वाले कई ऐसे पुराने पत्रकार हैं जो एनएसओ ग्रुप व उसके द्वारा निर्मित स्पाइवेयर की गतिविधियों पर वर्षों से नजर रखे हुए हैं. इन समाचार समूहों के प्रतिनिधियों की बैठक कोविड की कहर के दौरान ही मई 2021 में हुई, जिसमें यह तय हुआ कि 18 जुलाई, 2021 तक जितने फोन नंबरों के असली धारकों का पता चल सके व उनके फोन की फॉरेंसिक जांच हो सके, उसे कर लेना है और इस जासूसी कांड का पर्दाफाश कर देना है.

इसलिए गृहमंत्री का यह कहना कि संसद का मानसून सत्र शुरू होने के ठीक पहले इसका खुलासा करना एक षड्यंत्र है, सरासर गलत है. क्योंकि सत्र शुरू होने की तारीख जून में तय की गई जबकि पेगासस प्रोजेक्ट ने यह तारीख मई की बैठक में ही तय किया था.

यह जासूसी कांड न सिर्फ निजी जिंदगी को प्रभावित कर रहा है बल्कि संविधान और कानून को भी तार-तार करने के लिए काफी है. किसी भी व्यक्ति की जासूसी इतनी आसानी से कैसे हो जाती है और सरकार को इसकी भनक तक नहीं लगती ? क्या अब निजता का अधिकार महज ढोंग बनकर रह गया है ? सवाल उठेगा और उठना लाजिमी है क्योंकि यह सीधे तौर पर व्यक्ति के मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला है.

संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात कही गई है. इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता. इसी अनुच्छेद में लोगों को निजता का अधिकार दिया गया है. यह अधिकार साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में दिया था. टेलीफोन पर बातचीत भी निजता के अधिकार के अंतर्गत ही आती है.

सुप्रीम कोर्ट ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1996) केस में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए फोन टैपिंग को निजता के अधिकार का हनन माना. कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को इससे संबंधित कमिटी बनाने का भी निर्देश दिया. इसके बाद फोन टैपिंग में कुछ सुधारात्मक व कठोर प्रावधान भी किए गए.

इस निर्णय के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने के. एलडी. नागाश्री बनाम भारत सरकार (2006) के केस में भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1985 की धारा 5(1) और धारा 5(2) के तहत पब्लिक इमरजेंसी तथा लोकहित में फोन टैपिंग को सही ठहराया और इसे वैध करार दिया. इसके बाद रायला एम भुवनेश्वरी बनाम फुलेंद्र रयाला (2008) के केस में सुप्रीम कोर्ट ने पति द्वारा पत्नी के फोन टैपिंग को अमान्य और अवैध करार देते हुए कड़ी टिप्पणी की कि यह कानून के साथ-साथ पत्नी के अधिकारों का हनन है.

जब निजता के अधिकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट इतनी सूक्ष्मता से निर्णय दे सकता है तो कोई भी संस्था और कंपनी कैसे किसी व्यक्ति की निजता को प्रभावित करने का अधिकार रखता है ? इस बात को समझने की जरूरत है. कोई भी संस्था या सरकार देश के कानून से ऊपर नहीं हो सकती है. यह भी सच है कि इन निजता के अधिकारों के हनन व उल्लंघन के आरोप लगते रहते हैं. प्राय: सभी कालखंडों में सरकार, पुलिस एवं खुफिया एजेंसियों द्वारा इसके अनुचित उपयोग चर्चा में रहे हैं.

टोरंटो स्थित सिटीजन लैब के विशेषज्ञ रोनाल्डो डायवर्ट ने गत वर्ष प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘रीसेट रिक्लेमिंग द इंटरनेट फॉर सिविल सोसाइटी’ में स्पष्ट रूप से लिखा कि भारत में बहुद्देशीय स्पाइवेयर के मामले किसी भी देश की तुलना में बहुत अधिक हैं और भारतीय पुलिस तथा अन्य एजेंसियां एनएसओ द्वारा निर्मित स्पाइवेयर का बड़ी मात्रा में दुरुपयोग करती हैं. सिटीजन लैब के ही बिल मारजैक ने ‘द वायर’ को ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ के लिए यहां तक कहा कि कई तकनीकी जांच के बाद यह स्पष्ट है कि भारत की खुफिया एजेन्सी रॉ और आईबी दोनों पेगासस का इस्तेमाल कर रहे हैं.

मोदी शासन की, चाहे वह मुख्यमंत्रित्वकाल की बात हो या प्रधानमंत्रित्वकाल का वर्तमान दौर हो, पुलिस, अर्धसैनिक बल, जासूसी एजेंसियां, सरकारी दमन, न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग, पैसे का इस्तेमाल, मुख्य विशेषता रही है. पिछले सात साल के दौरान जब-जब मोदी सरकार के किसी फैसले या काम को लेकर सवाल उठे हैं या किसी मामले को लेकर वह आरोपों से घिरी है तब-तब उसकी ओर से उसका सुसंगत जवाब देने की बजाय यही कहा गया कि सरकार को बदनाम करने के लिए ऐसा किया जा रहा है. कभी-कभी तो वह अपने विवादास्पद कामकाज पर उठने वाले सवालों को देश की प्रतिष्ठा या देशभक्ति से भी जोड़ देती है.

प्रधानमंत्री, तमाम मंत्री और सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ता सवाल उठाने वालों को देशद्रोही तक करार दे देते हैं. राफेल खरीद, पनामा पेपर्स, पुलवामा हमला, बालाकोट एयर स्ट्राइक, नये संसद भवन और सेंट्रल विस्टा का निर्माण आदि तमाम मामलों में सरकार का यही रवैया रहा है. वर्तमान पेगासस मामले में भी यही हो रहा है.

सरकार जो कह रही है उसके हिसाब से अगर मान भी लिया जाए कि भारत सरकार या उसकी किसी खुफिया या राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने यह सॉफ्टवेयर नहीं खरीदा है और भारत सरकार ने किसी की जासूसी नहीं कराई है तो भी यह तो सच लगता ही है कि लोगों की जासूसी हुई है या उसका प्रयास हुआ है. दुनिया के दूसरे देशों में भी जासूसी का खुलासा हुआ है और उन देशों ने अपने यहां जांच भी शुरू करा दी है. इसलिए भारत में पेगासस से जासूसी मामले में जो खुलासा हुआ है उसकी जांच होनी चाहिए ताकि पता चले कि किसने जासूसी कराई और उससे देश को क्या नुकसान हुआ है ?

इस मामले की जांच देश की राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा और देश के सम्मान के लिए जरूरी है. सरकार ने जासूसी का सॉफ्टवेयर नहीं खरीदा है और इसे बेचने वाली कंपनी का दावा है कि वह सिर्फ सरकारों को ही यह सॉफ्टवेयर बेचती है तो इसका मतलब है कि किसी दूसरे देश ने इजरायल की संस्था एनएसओ से यह सॉफ्टवेयर खरीदा है और उससे भारत में जासूसी कराई है. अगर ऐसा हुआ है तो यह और भी ज्यादा चिंता की बात है.

यहां गौर करने वाली बात है कि सरकारें आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देते हुए निगरानी और दमन तंत्र को मजबूत करने के दावे करती हैं लेकिन सूची में जारी नामों से साफ है कि वैसे सामाजिक कार्यकर्ता इसके मुख्य निशाने पर हैं जो जातिवाद, संप्रदायवाद, मजदूरों- मेहनतकशों की समस्याओं, महिला सुरक्षा, राजकीय दमन आदि के मसले पर आवाज उठाते हैं, जनता को गोलबंद करते हैं, आंदोलन व संघर्ष करते हैं. वैसे जनपक्षधर पत्रकार जो सरकार की बेरुखी, दमन, कुकर्मों को जाहिर कर जन-जन तक पहुंचाते हैं, इसके मुख्य निशाने पर हैं.

इस मामले की जांच की मांग सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं कर रहे हैं बल्कि भाजपा के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी अपनी पार्टी की सरकार से इस मामले में जांच कराने की मांग की है. उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाए हैं. स्वामी ने इस सिलसिले में सबसे महत्वपूर्ण सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिवालय के बजट को लेकर उठाया है.

उनके मुताबिक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिवालय का बजट 2015-16 में 33 करोड़ था जिसे 2017 – 18 में बढ़ाकर 333 करोड़ कर दिया गया. स्वामी के मुताबिक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने 300 करोड़ रुपये साइबर सिक्योरिटी के लिए आवंटित कराए. उनका सवाल है कि सरकार के प्रवक्ता बताएं कि 300 करोड़ कहां खर्च हुए ?

गौरतलब है कि 2017-19 के साल में ही भारत में पेगासस के इस्तेमाल से जासूसी कराने का खुलासा हुआ है. यह भी ध्यान देने लायक बात है कि 2017 के मार्च व जुलाई में अजीत डोभाल व नरेन्द्र मोदी ने इजरायल का महत्वपूर्ण दौरा किया था. संभव है इसी समय यह डील पक्की हुई हो.

2019 के आखिर में जब पहली बार पेगासस जासूसी किए जाने और व्हाट्सएप हैक होने की खबर आई थी तो उस समय के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मसले पर संसद में जो कहा था लगभग वही बात नये सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन कही है. दोनों मंत्रियों ने अलग-अलग समय में एक ही बात कही.

उनकी बातों का लब्बोलुआब यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए फोनों को टेप किया जाना (interception) एक विधिवत कानूनी प्रावधान है. ऐसा कहकर उन्होंने इस कृत्य को कानूनी मान्यता प्रदान करने की कोशिश की. उनके जेहन में शायद टेलीग्राफ एक्ट 1885 का सेक्शन 5 (2) और इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट रहा होगा जो गृह मंत्रालय की अनुमति से पब्लिक इमरजेंसी में निश्चित अवधि के लिए दो फोन के बीच हुई बातचीत को रिकार्ड करने का अधिकार सुरक्षा एजेन्सियों को देता है पर यहां बात फोन को हैक करने की है यानी उसकी तमाम गतिविधियों पर नजर रखने की है, जो गैरकानूनी है. जबकि देश यह जानना चाहता है कि भारत सरकार ने पेगासस खरीदा है या नहीं और भारत में फोन टेप करने वाली सरकारी एजेंसियां पेगासस का इस्तेमाल करती हैं या नहीं ?

जहां तक साक्ष्य नजर आ रहे हैं भारत सरकार ने पेगासस स्पाइवेयर खरीदा है और उन हर संभव लोगों, जो सत्ता के लिए किसी भी तरह की चुनौती हो सकते हैं, की जासूसी के लिए इस्तेमाल किया है. कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगी लोकतंत्र के आधारभूत मूल्यों की लगातार अवहेलना कर रहे हैं.

लोकतंत्र में बहुमत का अहंकार अंततः पतन की ओर ले जाता है. भारत जैसे विशाल देश को गैर-लोकतांत्रिक तरीके से नियंत्रित करने की कोशिश आत्मघाती साबित होगी. नागरिकों की सुरक्षा सरकार का दायित्व है. अगर नागरिकों की सुरक्षा में किसी प्रकार की चूक होती है तो यह सरकार की विफलता का ही परिचायक है.

आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वह निश्चित ही जनतंत्र के लिए घोर संकट का दौर है जिसमें तथाकथित जनतांत्रिक सरकार द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी और असहमति के स्वर के गला घोंटने का कुचक्र चलाया जाता है. सरकार नागरिकों से बोलने, लिखने-पढ़ने, शासन व्यवस्था की जनविरोधी नीतियों का प्रतिकार करने और अपनी बात कहने के लिए किसी मंच-संगठन से जुड़ने के अधिकार को कुचल देना चाहती है.

आज पूरे मुल्क में खत्म होते रोजगार, कमजोर पड़ते व्यापार, खस्ताहाल अर्थव्यवस्था एवं सांप्रदायिक शक्तियों के उभार से बदहाली की स्थिति हो गई है. आज देशी और विदेशी पूंजी का गठजोड़ अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में दिखाई पड़ रहा है.

वर्तमान समय में लगभग तमाम सार्वजनिक कंपनियों के विनिवेशीकरण में जबरदस्त तेजी आई है. मुद्रीकरण के द्वारा उन्हें बेचा जा रहा है. स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, सिंचाई, व्यापार, सड़क, रेल, हवाई व जहाज रानी परिवहन, बीमा व दूरसंचार आदि सेवाओं का धड़ल्ले से निजीकरण किया जा रहा है. परिणाम सामने है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के रिपोर्ट के अनुसार 2020 से अप्रैल 2021 तक 12.6 करोड़ लोगों के हाथ से रोजगार छीनकर उन्हें बेमौत मरने के लिए छोड़ दिया गया है, जिनमें 9 करोड़ लोग ऐसे हैं जो दिहाड़ी मजदूर हैं. कृषि, जो आज भी देश की कुल आबादी के 60% लोगों की आजीविका का मुख्य साधन बना हुआ है, को कॉरपोरेट कंपनियों का चारागाह बनाया जा रहा है.

दूसरी तरफ घोर पूंजीपक्षीय चार लेबर कोड के माध्यम से पूरे देश के मजदूरों-मेहनतकशों के संघर्ष से प्राप्त अधिकार को छीना जा रहा है, वहीं उनके प्रतिरोध को दबाने हेतु रोज नये कानून बनाये जा रहे हैं.

तीन काले कृषि कानूनों के विरोध में किसान लगभग एक साल से राजधानी दिल्ली के बॉर्डरों पर डेरा डाले हुए हैं पर पूंजीपतियों के तलवे सहलाने वाली सरकार इनकी समस्या का निदान करने की बजाए ऑंखों पर पट्टी बांधे हुए है.

दरअसल दुनिया के सभी आतताई और बर्बर शासक इस मनोरोगी हद तक शक्की और डरे हुए होते हैं कि अपने आसपास वालों पर भी भरोसा नहीं करते और दमन के नये-नये तरीकों को आजमाने लगते हैं. सामने आया पेगासस जासूसी कांड इसी डर और शक का परिणाम तथा इनकी मजबूरी है जो जनतंत्र का गला घोटने की दिशा में बढ़ता एक बड़ा कदम है. सत्ता को यह कतई बर्दाश्त नहीं कि कोई उनके सामने सच बोलने का साहस करे.

दरअसल शोषण, दमन व लूट पर आधारित व्यवस्था की परेशानी यह है कि अनगिनत गिरफ्तारियों, जेल में प्रशासनिक हत्या, दमन के कई रूप अपनाये जाने, यहां तक फर्जी मुठभेड़ों में अनेक लोगों के मारे जाने के बाद भी आमजन के आन्दोलन व प्रतिरोध के स्वर घटने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं.

लगातार घट रही परिघटनाएं निश्चित तौर पर एक देशव्यापी जन आन्दोलन की आहट दे रही हैं. ऐसे में जन अभियान, बिहार सभी प्रगतिशील, जनतांत्रिक, क्रांतिकारी शक्तियों से अपील करता है कि हम सब सरकार द्वारा जनता को तबाह करनेवाली नीतियों का पर्दाफाश करें तथा मजदूर-किसान, छात्र-नौजवान के पक्ष में खडे़ होकर छंटनी, तालाबन्दी, उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण की पूंजीपरस्त नीतियों की खिलाफत हेतु देशव्यापी जनान्दोलनों की लहर पैदा करें, पेगासस जैसे अनेक गुप्त एजेन्डों का उद्भेदन करें और विभिन्न माध्यमों से प्रतिरोध की आवाज को बुलन्द करें.

सभा में पढ़े जा रहे पर्चे –

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