मेरे एक मित्र जो तकनीशियन हैं, और अपना बिजनेस चलाकर स्व-रोजगार में जुटे हुए हैं, बताते हैं कि अब वे बाइक से चलना छोड़ चुके हैं. अब वह पैदल ही आ और जा रहे हैं. क्यों के जवाब में उनका ईशारा पेट्रोल की बढ़ी हुई मंहगाई में पेट्रोल न खरीद पाने की अपनी अक्षमता को बताया. सरसों तेल महंगा हुआ तो लोग उबाल कर सब्ज़ी बनाने लगे हैं. मंहगाई अभी और बढ़ेगी, जैसे जैसे देश की तमाम संसाधन तीन घरानों की निजी मिल्कियत बनती जायेगी. अन्तराष्ट्रीय मैग्सेसे अवार्ड विजेता पत्रकार रविश कुमार सिलसिलेवार तरीके से लिखते हैं.
महंगाई के कारण महानगरों में भयंकर हालात होंगे, जहां हर चीज़ कमाई से अधिक महंगी है. लोग जितना कमाते हैं वो खाने के लिए कम पड़ जाता है. गैस का सिलेंडर हज़ार रुपये से अधिक का हो गया है. बाक़ी चीज़ें भी महंगी हुई है. लोग और ग़रीब हुए होंगे. इस ग़रीबी का असर हर तरह के विकास पर पड़ेगा. भोजन से लेकर पढ़ाई तक पर. यह महंगाई कोई मामूली नहीं है और न मौसमी, कई महीनों से टिकी हुई है और बढ़ती जा रही है.
सरसों तेल महंगा हुआ तो लोग उबाल कर सब्ज़ी बनाने लगे हैं. 2014-15 से खाद्य तेल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मिशन लांच हुआ. नतीजा आपके सामने है. इस महंगाई में ज़रूर कोई जमाख़ोर है जो अरबों बना रहा है ताकि चुनाव में ख़र्च हो सके.
2022 आ ही गया, किसानों की आय दुगनी हुई ? नहीं, पर लाठियां हो गईं
आवाज़ उठाने वाला हर वर्ग किसानों की गति पाता है लेकिन हर वर्ग से अलग हैं किसान. सरकार की उपेक्षा, नफ़रत और हिंसा झेलते हुए नौ महीने से आंदोलन पर टिके हैं. सरकार के अनुसार अगर ये अमीर किसानों का आंदोलन है तो भी बड़ी बात है. भारत में अमीरों ने कभी इतना लंबा आंदोलन नहीं किया और न उनकी औक़ात रही है सरकार से टकराने की.
अगर ये आंदोलन ‘कुछ’ किसानों का आंदोलन है तब भी यह बड़ी बात है. नौ महीने से ये ‘कुछ’ किसान आंदोलन पर डटे हैं, तरह-तरह के कार्यक्रम करते हैं, पुलिस की लाठियों का मुक़ाबला करते हैं. अभी तक इस आंदोलन से जुड़े 500 से अधिक किसानों की अलग-अलग कारणों से मौत हो चुकी है. इतना आसान नहीं है. एक सवाल है फिर भी है कि किसानों को किसान क्यों नहीं समझती है मोदी सरकार ?
सरकार अभी अपनी ज़मीन बेच रही है, जल्दी ही आपकी ज़मीन बेचेगी
हिन्दी प्रदेशों के नौजवानों के बीच कश्मीर में प्लॉट ख़रीदने का सपना बेच कर बेरोज़गार रखने का जुगाड़ शानदार है. दो साल में कश्मीर घाटी में किसी ने प्लॉट नहीं ख़रीदा. दो के ख़रीदने की बात आई लेकिन कहा जा रहा है जम्मू में ख़रीदा गया है. जम्मू कश्मीर में कौन-सा उद्योग निवेश करने गया है आप जानते होंगे. सरकार को पता है कि हिन्दी प्रदेश की देखने और सोचने की क्षमता समाप्त हो चुकी है.
तो हिन्दी प्रदेशों को सांप्रदायिकता के दरवाज़े में बंद कर सरकार अपना सामान बेचने जा रही है. अपनी ज़मीन बेचेगी. बाज़ार में मांग नहीं होने के कारण जो कंपनियां निवेश नहीं कर रही हैं, वो निवेश के नाम पर सारी ज़मीन ख़रीदेंगी और अपनी संपत्ति बढ़ा लेंगी. सरकार आपसे कहेगी कि उसका टार्गेट पूरा हो गया.
आप सरकार के टार्गेट के पीछे कंपनियों के टार्गेट को न देख पाएंगे और न समझ पाएंगे. बाद में ये कंपनियां इलेक्टोरल बॉन्ड के चोर दरवाज़े से चंदा दे देंगी जिससे गोदी मीडिया पर विज्ञापन चलेगा और गोदी ऐंकर गोद में फलेगा फूलेगा. आप नहीं रहेंगे पिछड़ेपन के हिन्दी प्रदेश में.
भाजपा समर्थकों के लिए ख़ुशख़बरी, बीजेपी की आय सबसे ज्यादा
एक बॉन्ड आया था – इलेक्टोरल बॉन्ड. झांसा दिया गया कि ‘यह पारदर्शी है.’ लोग बैंक को पैसा देंगे और बैंक पार्टी को बॉन्ड देगा लेकिन पता नहीं चलेगा कि किसने कितना पैसा दिया. देने वाले का नाम ग़ायब. सबने ताली बजाई कि वाह अच्छा नियम आया है. नितिन सेठी जैसे पत्रकारों ने इसके खेल पर जान लगाकर रिपोर्टिंग की लेकिन जनता ने कहा हम तो ताली बजाएंगे.
नतीजा ? बीजेपी को कुल 76 प्रतिशत बॉन्ड मिले हैं. 2019-20 में बीजेपी को 3400 करोड़ से अधिक दान मिले हैं. जितने चंदे मिले हैं उसमें सबसे अधिक बीजेपी को मिले हैं. देने वाले का नाम बैंक के पास होगा ही. वो सफ़ेद कमाई का पैसा दे रहा है या काली कमाई का कौन जानता है ? लेकिन बैंक के ज़रिए कौन जान जाता होगा कि दूसरे दलों को चंदा कौन दे रहा है, यह इस देश में जानना आसान नहीं है. वैसे जब जनता की कमाई घटी हो और पार्टी को बढ़ी हो तो कम से कम इसी का दोस्त मानों.
ठगों से ठगी बना रोजगार
फैमिली ग्रुप में सियासी ठगी करने वाले रिटायर्ड लोगों को भी ठग लिया दो ठगों ने. सांप्रदायिकता के पारिवारिक और सामाजिक प्रसार में सेवा से रिटायर हुए अंकिलों का बहुत बड़ा हाथ है. व्हाट्स एप के फ़ैमिली ग्रुप के ये रिटायर्ड लोग दिन भर सांप्रदायिक मैसेज फार्वर्ड करते रहते हैं. ज़्यादातर की यही हालत है. सरकार के सारे झूठ को सच साबित करने में इनका बड़ा योगदान है.
कोई युवा परेशान हैं कि फ़ैमिली ग्रुप के इन रिटायर्ड लोगों का क्या किया जाए ? क्योंकि ज़्यादातर किसी पद से रिटायर हुए हैं. चाचा, मामा, मौसा भी लगते हैं और कहने की ज़रूरत नहीं कि पिता लोग किसी से पीछे रहते हैं. युवा संकट में रहते हैं कि इनसे अचानक अनादर से कैसे बात करें जो हिन्दू मुस्लिम नेशनल सिलेबस के फार्वर्ड प्रचारक बन गए हैं. आप अपनी फ़ैमिली के ग्रुप में चेक करेंगे तो आईटी-सेल के हिन्दू मुस्लिम सिलेबस को ठेलने वाले रिटायर्ड लोग ही मिलेंगे.
देश के लोकतांत्रिकता को हिन्दू मुस्लिम रंग में ढालने वाले ये रिटायर्ड लोग इतने समझदार होते तो उनसे इतनी बड़ी ठगी नहीं होती. एक नहीं दस हज़ार रिटायर लोगों को ठग कर दो लोगों ने सौ करोड़ कमा लिए हैं. सबसे पहले ये रिटायर्ड लोग राजनीति में ठगे गए लेकिन ख़ुद ठग बनकर रिश्तेदारों को ठगने लगे.
व्यापक तौर पर देखें तो सबसे पहले रिटायर्ड लोगों की ही जमात राजनीति में ठगी गई और रिश्तेदारों को ठगने लगी. अध्ययन करना चाहिए कि ठगे गए इन दस हज़ार रिटायर्ड लोगों में से कितने लोग खुद को सियासी मामलों में सबसे समझदार मानते हैं और हिन्दू मुस्लिम सामग्री का प्रसार करते हैं ? ठगे गए लोगों में किस पृष्ठभूमि के लोग ज़्यादा हैं ?
मैं इंस्टा पर ठग समाचार का संकलन करता हूं. इन समाचारों से समाज में हज़ारों लोगों की बेवक़ूफ़ी और दो चार ठगों की प्रतिभा का अंदाज़ा मिलता है. इसका भी कि आर्थिक मामलों में लोग कितने नासमझ हैं. उनकी तादाद इतनी है कि ठग उनसे पचास हज़ार से लेकर लाखों रुपये ऐंठ लेता है. ठग समाचार से एक पैटर्न का पता चलता है. इन समाचारों से ठगी की व्यापकता का भी पता चलता है. भारत में हर दिन न जाने कितने लोग ठगे जा रहे हैं, इसकी जनगणना होनी चाहिए.
सोचिए सिर्फ़ दो ठगों ने दस हज़ार लोगों को ठग लिया. जब ठग दो हों तो उनकी प्रतिभा को कभी कम मत आंकिए, ख़ुद को होशियार न समझें.
विपक्ष दाम घटाने के लिए नहीं, दाम बढ़ाने के लिए आंदोलन करे
मध्यमवर्गी सपनों पर क़हर बरपा हुआ है. उम्मीद है हालात कुछ बेहतर होंगे. बड़े उद्योगपतियों को लोन पर कितनी राहत मिलती है लेकिन मिडिल क्लास का मकान तुरंत नीलाम हो जाता है. मिडिल क्लास को भी राहत दी जा सकती थी. किसी सांसद को संसद में सवाल करना चाहिए कि सरकारी बैंकों ने पिछले दो साल में कितने मकान नीलाम किए हैं ?
इस तबाही से एक ही चीज़ राहत दे सकती है – हिन्दू मुस्लिम नेशनल सिलेबस. गोदी मीडिया, व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी और आईटी सेल उपलब्ध तो करा रहा है फिर भी सरकार को ही अपनी तरफ़ से नेशनल सिलेबस का गुटका छपवा कर घर-घर बांटना चाहिए.
मैंने देखा है कि हिन्दू मुस्लिम करते हुए लोग बहुत गौरव और आनंद के भाव से भर जाते हैं. मैं भले इसका आलोचक हूं लेकिन यह भी देखा है कि लोग इसमें आकंठ डूबे हैं. सांप्रदायिकता इनके लिए उच्च नैतिक मूल्य है. ये लोग काफ़ी सुखी हैं. मकान नीलाम हो रहा है, नौकरी नहीं है तो क्या हुआ, इसका सुख तो है.
आज लोग बहुत पाकर भी खुश नहीं है लेकिन ये लोग सौ रुपया लीटर पेट्रोल ख़रीद कर, बेरोज़गार रह कर, मकान नीलाम करवा कर भी खुश हैं तो इस ख़ुशी को मान्यता देनी पड़ेगी. यह सामान्य बात नहीं है. मैं मज़ाक़ में कहता हूं कि सरकार 220 रुपया लीटर पेट्रोल का भाव कर देगी तो लोग और खुश होंगे लेकिन यह मज़ाक़ नहीं है.
विपक्ष को अगर राजनीति में प्रासंगिक रहना है तो दाम घटाने के लिए नहीं, दाम बढ़ाने के लिए आंदोलन करे. घर बिकेगा तो लोग ख़ुश होंगे और विपक्ष को भी थोड़ा वोट देंगे. यह दौर आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का है. चार लोगों को सब मिले इसके लिए सारा देश भूखा सोने को तैयार है.
अगर मुद्रीकरण निजीकरण नहीं है तो निजीकरण क्या है
सीधे बेचना नहीं कहना चाहते इसलिए मुद्रीकरण कह रहे हैं. गैस पाइप लाइन और फ़्रेट कॉरिडोर को बिछाने और बनाने में जनता का पैसा लगा, बनते ही प्राइवेट हाथ में दे दिया गया. सरकार को भरोसा है कि प्रेस अब इन मामलों का पता नहीं लगाएगा और न छापेगा इसलिए इसके हल्ला हंगामे के बीच जनता की संपत्ति प्राइवेट सेक्टर को दे दो.
ध्यान से देखेंगे तो इसके ज़रिए पहले से जो काम हो रहा था, उसे भी मंज़ूरी दे दी गई है ताकि पता न चले. कौन सरकार की सौ पेज की पुस्तिका की एक-एक पंक्ति पढ़ेगा ? जो उसका बयान होगा वही लोगों तक पहुंचेगा. बाक़ी आप हिन्दू मुस्लिम नेशनल सिलेबस के विद्यार्थी अब इस मामलों को समझने के लायक़ ही कहां बचे हैं.
टैक्स के पैसे से अमीर को और अमीर, ग़रीब को और ग़रीब बनाने का खेल है मुद्रीकरण
क्या आप जानते हैं कि कौन सी प्राइवेट कंपनी गैस पाइप लाइन बिछाने का काम करती है ? जिसका इस क्षेत्र में अनुभव हो ? इस क्षेत्र में सरकार से बड़ी कोई कंपनी नहीं है. सरकारी कंपनी के अफ़सरों और कर्मचारियों ने दिन रात लगा कर इस देश में हज़ारों किलोमीटर गैस पाइप लाइन बिछाई और अब इसे किन कंपनियों को दिया जाएगा ?
क्या आप जानते हैं कि टेलीकॉम सेक्टर में कौन-सी प्राइवेट कंपनी इस समय बेहतर हालत में है ? वोडाफ़ोन भयंकर घाटे में है. एयरटेल भारती भी कई हज़ार करोड़ के घाटे में चल रही है तो बच गई कौन कंपनी ? और यह जो कंपनी है, जिसे अंत में BSNL का अपार संसाधन मिलेगा. ये हमेशा सरकार के संसाधन से ही क्यों आगे बढ़ती है ? इस कंपनी का कोई एक उत्पाद बता दीजिए जिसमें सरकार की मदद न हो या जनता के पैसे से तैयार संसाधनों की भूमिका न हो ? ज़ाहिर है उसी कंपनी को सब मिलेगा.
आप हिन्दू मुस्लिम और जाति में लगे रहिए. नौकरी ख़त्म हो चुकी है, है भी तो कम वेतन का, जिस पर आप किसी तरह से जी पाते हैं और आप भूखे न मर सके इसलिए वापस यही सरकार जनता के पैसे से आपको सब्सिडी देती है, मुफ़्त अनाज देती है. तीन लोग को देश की दौलत देकर बाक़ी 80 करोड़ ग़रीबों को अनाज पहुंचा कर आपके सामने सीना ठोकती है कि सबके खाते में अनाज और पैसा पहुंच रहा है.
जनता के जिस पैसे से अच्छे स्कूल और अस्पताल बनते, पेंशन मिलती उस पैसे से अमीर को और अमीर किया जा रहा है और उसी पैसे के छोटे से हिस्से को ग़रीब के खाते में 500-1000 डाल कर अहसान जताया जा रहा है.
पूंजीवाद में कहा जाता है कि यह सबको आगे बढ़ने का मौक़ा देता है. जब तक यह लोकतांत्रिक और पारदर्शी होता है, तब तक तो मिलता है लेकिन जैसे ही कुछ लोग पर्दे के पीछे से सारी पूंजी पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं – यह क्रोनी पूंजीवाद हो जाता है.
प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]