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न्यू इंडिया की नयी संस्कृति : जब भी मुंह खुले धड़ाधड़ धड़ाधड़ सिर्फ झूठ बोलो

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नये भारत (न्यू इंडिया) में ये नयी संस्कृति भी बन रही है कि जब भी मुंह खुले धड़ाधड़ धड़ाधड़ सिर्फ झूठ बोलो. और इसीलिये एक गुजराती आदमी जिसके खून में व्यापार है, वो पिछले 7 सालों से 70 साल का हवाला देकर धड़ाधड़-धड़ाधड़ झूठ पर झूठ बोले जा रहा है, फिर चाहे वो लाल किला हो या संसद भवन या फिर चुनावी भाषण अथवा देश के नाम संबोधन.

जैसे सच बोलने के लिये राजा हरिश्चंद्र को याद रखा जाता है, वैसे ही झूठ बोलने के लिये इस सफ़ेद दाढ़ी वाले को याद रखा जायेगा. जनता के खून-पसीने की कमाई से 30 हजार रूपये किलो वाले मशरूम को काजू की रोटियों के साथ खाकर भी वो बड़ी बेशर्मी के साथ खुद को फकीर कहते हुए हर जगह अपना लुच्चापन दिखाता है और सही तथ्यों और आंकड़ों को नकारता जाता है. और अब तो उसने मूलभूत सिद्धांतों को भी नकारना शुरू कर दिया है.

मैं खुन में व्यापार वाले उस सफ़ेद ढाढी वाले झूठे आदमी को ये बताना चाहता हूं कि जब से (2014) उसने देश पर कब्ज़ा किया है, उसकी गलत नीतियों और फैसलों (नोटबंदी, जीएसटी, सरकारी कम्पनियां बेचना, लॉकडाऊन और दूसरी भी मनमानियों से) देश की हालत ख़राब और अर्थव्यवस्था डूबती जा रही है. और वो सफ़ेद दाढ़ी वाला झूठा आदमी उस डूबती हुई अर्थव्यवस्था के दूसरे सिरे पर खड़ा होकर चिल्ला रहा है कि ‘देखो अर्थ व्यवस्था ऊपर जा रही है.’

जबकि डूबते हुए जहाज का दूसरा सिरा हमेशा ऊंचा उठा हुआ ही दिखायी देता है, जो उसके पहले सिरे के डूबने का द्योतक होता है. अगर आप भी इस सत्य को नजरअंदाज कर रहे हैं तो डूबते हुए जहाज की परिकल्पना कीजिये और देखिये कि ये अर्थ-व्यवस्था का उभार नहीं बल्कि दूसरे सिरे से गर्त में डूबती जा रही अर्थ-व्यवस्था है, जो डूबने की प्रक्रिया में है और जल्दी ही डूब जायेगी.

जब से देश की कमान उस गुजराती खून के व्यापारी के हाथ में आयी है, न सिर्फ देश बल्कि प्रत्येक आम देशवासी के विकास की रफ्तार भी थम-सी गयी है. तेजी से बढ़ते हुए देश और देशवासी रेंगने पर मजबूर हो गये हैं. सरकारी कम्पनियां बेशर्मी से बेची जा रही है, सरकारी नौकरियों को कम कर दिया गया है और निजी रोजगार के लघु उपनिवेशों तक को ख़त्म कर दिया गया है और इसी का नतीजा है बढ़ती बेरोजगारी.

कोरोना काल में बिना किसी नीतिगत योजना के लॉकडाउन लगाकर और उसके बाद मनमाने रूप में अनलॉक करके देश की रफ्तार पर भी पूरी ताकत से ब्रेक लगा दिये गये हैं बल्कि ये कहूं हैंड ब्रेक लगा दिये गये हैं. आज की डेट में 75% देश बेरोजगार हो चुका है लेकिन उस झूठे आदमी के झूठ बोलने की रफ्तार उसकी बढ़ती दाढ़ी से भी ज्यादा तेज है.

हमेशा याद रखिये – ‘प्रासाद शिखरं स्थोपि काक: कि गुरुड़ायते’ अर्थात् जैसे महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो सकता, वैसे ही इस झूठे आदमी के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से देश का विकास नहीं हो सकता. अर्थात इस झूठे आदमी में और कौए में कोई फर्क नहीं है.

  • पं. किशन गोलछा जैन

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