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स्वरा भास्कर : ज़रूरी आवाज़ को एक पल में नकारना सही नहीं

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किसी को भी ख़ारिज कर देना बहुत आसान है. मतलब इससे अधिक आसान कुछ नहीं है. एक तरफ़ मनोज मुंतशिर जैसे लोग, कैलाश खेर, विवेक ओबेरोय से लेकर आधा बॉलीवुड या तो मोदी के चरणों में लोट गया है या एकदम सुन्न शांत पड़ा है और चुप होकर देख रहा है.

वहीं स्वरा भास्कर लगभग हर मौक़े पर मुखर रहीं, हर मुद्दे पर सरकार से सवाल किए. हिंदुत्व की चरमपंथी विचारधारा को भी खुलकर नकारा, CAA-NRC आंदोलन के नाज़ुक दौर में भी वे आम जनता के साथ रहीं, लेकिन अपने घर का गृह पूजन कर लेने भर की एक घटना की वजह से उन्हें कैंसल कर दिया गया. जबकि घर ख़रीदना अपने जीवन का सबसे खूबसूरत पल होता है, उसके अलावा उन्हें किस पद्धति से अपने घर में प्रवेश करना है इसकी आज़ादी उन्हें संविधान देता है और हर प्रगतिशील विचार देता है.

स्वरा ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे किसी एक आदमी को भी कोई चोट लगी हो, नुक़सान हुआ हो. धर्म की आज़ादी उनका अपना मसला है. वे कितना धर्म मानती हैं ये भी उनका अपना मसला है. वे धर्म की किन-किन चीजों को अपनाती हैं ये भी उनका अपना निजी मसला है.

लेकिन महत्वपूर्ण बात ये जानना है कि क्या उन्होंने किसी को कोई ठेस पहुँचाई ? क्या कोई असंवैधानिक काम किया ? क्या कोई क्राइम किया ? क्या कुछ ऐसा किया जिससे किसी के सम्मान में कोई कमी आई हो ? क्या ऐसा कुछ किया जिससे किसी और के अधिकार में कोई कमी आई हो ? इन सबका जवाब ज़ीरो है.

हर मुद्दे पर जनता के साथ खड़ी रहने वाली एक नौजवान अभिनेत्री को हमने एक पल में नकार दिया. ठीक है वे अधिक तार्किक हो सकती थी, वे और अधिक चिंतनशील हो सकती थी, वैचारिक रूप से और मंझी हुई हो सकती थी, लेकिन इससे वे कोई अपराधी नहीं हो जाती.

स्वरा जैसे उन तमाम लोगों को सलाम जिन्होंने अपनी सहूलियतें छोड़कर, अपने आराम छोड़कर इस सांप्रदायिक सरकार के ख़िलाफ़ खड़ा होना चुना है. वे RSS-भाजपा जैसे विशाल साम्राज्य के ख़िलाफ़ खड़ी हैं और खुलकर खड़ी हैं. ये ही इसका सबूत है कि वे प्रगतिशील हैं, चिंतक हैं, सुधारवादी हैं. वरना ऐसा क्या कारण है कि वे भी बाक़ी लोगों की तरह सरकार और RSS की चाटुकारिता नहीं करती ?

सबको मालूम है इसका उनके करियर पर क्या नुक़सान और क्या फ़ायदे हो सकते हैं. RSS जैसा संगठन ऐसे लोगों को अपनी पलकों पर बिठाने के लिए आतुर है. ये बड़े लोग हैं, खूब पैसा शोहरत है, शांत भी रह सकती थी. हमारी तरह इन्हें कोई दिक़्क़त नहीं है जो इनका बोलना ज़रूरी ही होता. मोदी मोदी भी कर सकतीं थी, मगर स्वरा ने हमेशा रीढ़ की हड्डी बनाए रखी. इतनी मुखर, ज़रूरी आवाज़ को एक पल में नकारना सही नहीं.

  • श्याम मीरा सिंह

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