राहुल गांधी ने ट्विटर को लेकर यह आरोप लगाया कि यह अमेरिकी कंपनी पक्षपातपूर्ण है. यह भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में दखल दे रही है तथा सरकार के कहे मुताबिक चल रही है. उन्होंने यह दावा भी किया कि ट्विटर की ओर से जो किया गया है, वह भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला है.
दरअसल ट्विटर ही नहीं बल्कि हर सोशल मीडिया कंपनी अमेरिकी हित को सबसे ऊपर रखती है और उसी के हिसाब से देश की राजनीतिक परिदृश्य में अपनी दखलंदाजी करती है.
कुछ साल पहले जब फेसबुक से जुड़े मामलों की जांच अमेरिकी कांग्रेस में की जा रही थी तो क्रिस्टोफर वायली जो एक डेटा साइंटिस्ट, साइकोलॉजिकल प्रोफाइलिंग के एक्सपर्ट ओर कैंब्रिज एनालिटिका के रिसर्च हेड थे, उन्होंने खुलासा किया था कि बड़े पैमाने पर अफ्रीका में उनकी कम्पनी ने सरकारों को अस्थिर करने का काम किया है.
उस वक़्त ट्वीटर हैंडल (हाइंडसाइटफ़ाइल्स) ने कुछ ऐसे गोपनीय दस्तावेज़ों का ख़ुलासा किया था, जिनमें बताया गया था कि ब्रिटिश कंपनी स्ट्रेटेजिक कम्यूनिकेशन लेबोरेटरीज़ (एससीएल) ने अनेक देशों के चुनाव में दख़ल दिया था. कुख्यात कैंब्रिज़ एनालिटिका इसी ग्रुप की सहयोगी कंपनी थी.
एनालिटिका में अमेरिकी धनिक रॉबर्ट मर्सर का भी पैसा लगा था, जो लंबे समय से दक्षिणपंथी समूहों को वित्तीय मदद देते रहे हैं. एनालिटिका के जरिये मर्सर ने यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के अभियान- ब्रेक्ज़िट- तथा डोनल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान में मदद की थी.
यानी इन सोशल मीडिया कम्पनियों के जरिए तीसरी दुनिया के देशों में ऐसे गुप्त संगठन जिनके पास डेटा को समझने और हासिल करने की ताकत होती है, अब चुनावों को और राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं.
वही फेसबुक से हटाई गई डाटा साइंटिस्ट सोफी झांकी की वेबसाइट अचानक बंद कर दी गई. इसका कारण यह था कि उन्होंने अपने वेबसाइट पर फेसबुक के खिलाफ मेमो लिखा था जिसे हटाने के लिए सोशल मीडिया के दिग्गज कंपनी लगातार दबाव डाल रही थी, इंकार करने पर उन्हें यह नतीजा भुगतना पड़ा.
कंपनी में आखिरी दिन लिखें 8000 शब्द के मेमो में उन्होंने आरोप लगाए था कि फेसबुक चुनाव पर असर डालने वाले फेक अकाउंट की पहचान और उन पर सख्ती को लेकर सुस्त है. इसने करीब 25 देशों के नेताओं को प्लेटफार्म की सियासी दुरुपयोग और लोगों को गुमराह करने की छूट दी है. इन्होंने फेसबुक का असली चरित्र बताने पर क्या-क्या मुश्किलें झेली, उन्हीं के शब्दों में हम यहां बयान कर रहे हैं जिसे दैनिक भास्कर ने अपने अखबार में प्रकाशित किया था.
बकौल सोफी झांकी –
मैंने 2018 में फेसबुक ज्वाइन की थी. 3 साल के कार्यकाल में मैंने विदेशी नागरिकों द्वारा नागरिकता को लेकर लोगों को गुमराह करने के लिए बड़े पैमाने पर हमारे प्लेटफार्म का दुरुपयोग करते देखा. कंपनी ने ऐसे फैसले लिए जो राष्ट्राध्यक्षों को प्रभावित करते हैं.
विश्व स्तर पर कई प्रमुख राजनेताओं के खिलाफ सोशल मीडिया पर कैंपेनिंग चलवाये जिससे विशेष पार्टी को फायदा हुआ. दुनिया के शीर्ष नेताओं ने सियासी फायदे के लिए फर्जी अकाउंट का इस्तेमाल किया, लोगों को गुमराह कर आलोचकों को दूर रखने की कोशिश की गई.
मैंने पूरा वक्त उन फर्जी खातों की पहचान करने में लगाया, जो दुनिया भर में चुनावी नतीजों में हेरफेर कर सकते थे. मेरे पास इस बात के पर्याप्त सबूत है कि ब्राजील चुनाव के दौरान लाखों की तादाद में फर्जी पोस्ट हुई है. अजरबैजान की सरकार ने विरोध से निपटने के लिए हजारों फर्जी अकाउंट का इस्तेमाल किए. स्पेन के स्वास्थ्य मंत्रालय को को कोरोना के दौरान सहयोगात्मक हेरफेर से फायदा हुआ.
मेक्सिको, बोलिविया, अफगानिस्तान हर जगह ऐसा हुआ. बार-बार आगाह करने के बावजूद कंपनी ने कुछ नहीं किया. मैं शुरू से ही यह जिम्मेदारी अकेले लेकर चल रही थी. सब जानते थे कि यह गलत है पर कोई समाधान निकालने को तैयार नहीं था. यह मेमो कंपनी नेतृत्व पर दबाव बनाने का आखरी मौका था.
मुझे चुप कराने के लिए ₹48,000 का सेवरेंस पैकेज (निकालने संबंधी) का ऑफर भी किया गया, पर मैंने अपने बोलने की आजादी से समझौता नहीं किया. मेमो में भी लिखा था और आज भी कहती हूं कि मेरे हाथों में खून लगा है. इस मुकाम पर आकर हाथ खड़े कर देना अपनी पहचान के साथ विश्वासघात करने जैसा होगा. 2020 में मुझे अयोग्य बता कर निकाल दिया गया, अब मेमो हटवा कर कंपनी खुद को पाक-साफ बताने में जुटी है.
एक खबर के अनुसार मोदी के ट्विटर फॉलोअर्स की संख्या 7 करोड़ हो गयी. संबित पात्रा बधाई दे रहे हैं लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश में आज भी ट्विटर यूजर्स की संख्या लगभग 4 करोड़ के आसपास है लेकिन मोदी जी के निजी ट्विटर अकॉउंट कुल ट्विटर फॉलोअर्स की संख्या संख्या 7 करोड़ पार कर गयी है.
दरअसल सच यह है कि मोदी के 60 फीसदी से ज्यादा ट्विटर फॉलोवर्स फर्जी हैं. कुछ साल पहले डिजिटल एजेंसी ट्विप्लोमेसी ने ट्विटर ऑडिट कर एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया में सबसे ज्यादा फेक फॉलोवर्स वाले नेता है. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी के 60 फीसदी से ज्यादा ट्विटर फॉलोवर्स फर्जी हैं.
अगर आप ध्यान से देखे तो 2014 के आम चुनाव के पहले बीजेपी और कांग्रेस के समर्थकों ने राहुल गांधी को ‘पप्पू’ तो नरेंद्र मोदी को ‘फेंकू’ के नाम से ट्रेंड कराया. यह सब फर्जी अकॉउंट के जरिए किया जाता है. इन एकाउंट को मशीनों द्वारा बनाया और ऑपरेट किया जाता है, जिसे बॉट कहा जाता है. नेताओं के फॉलोअर्स की संख्या चौगुनी आठ गुनी करने में बॉट का महत्वपूर्ण योगदान होता है.
इन महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ ही अगर हम पैगासस मालवेयर जासूसी प्रकरण को भी सामने रखकर देखें तो भारत में बनी केन्द्र की मोदी सरकार एक असंवैधानिक सरकार है, जिसको अविलंब बर्खास्त कर नया चुनाव कराया जाना चाहिए.
यह समझना में कोई आश्चर्य नहीं कि सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइट्स और पैगासस जासूसी प्रकरण से बनी केन्द्र की यह मोदी सरकार आखिर देश की जनता के प्रति क्यों जवाबदेह नहीं है. जनता की मतों से चुनी जाने वाली सरकार किसी भी सूरत में देश के चंद औद्योगिक घरानों के प्रति इतनी वफादार नहीं हो सकती कि वह औद्योगिक घरानों के फायदों के लिए लाखों लोगों को मौत की घाट उतार देने में जरा भी न हिचकिचाये.
(गिरीश मालवीय के एक पोस्ट से कुछ अंश लिया गया है.)
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