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एक आस्तिक से बातचीत

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एक आस्तिक से बातचीत

आस्तिक – आप अच्छे इन्सान हैं लेकिन एक ही बुराई है, आप नास्तिक हैं, भगवान को नहीं मानते.

मैं – मैं भगवान को उतना ही मानता हूं, जितना तुम अल्लाह को मानते हो.

आस्तिक – मैं अल्लाह को नहीं मानता, मैं भगवान को मानता हूं.

मैं – मैं भगवान को उतना ही मानता हूँं, जितना मुस्लिम भगवान को मानते हैं.

आस्तिक – हद करते हो. मुस्लिम भगवान को नहीं मानते, वोह तो अल्लाह को मानते हैं.

मैं – हिन्दू अल्लाह को नहीं मानते, मुस्लिम भगवान को नहीं मानते, सब हिन्दू-मुस्लिम नास्तिक हैं.

आस्तिक – नास्तिक कैसे हुए ?

मैं – अगर भगवान को न मानने वाले भी नास्तिक नहीं, अल्लाह को न मानने वाले भी नास्तिक नहीं तो मैं नास्तिक कैसे हो गया ?

आस्तिक – क्या करोड़ों लोग मूर्ख हैं, जो भगवान को मानते हैं ?

मैं – विश्व की आबादी 780 करोड़ है, सिर्फ़ 100 करोड़ लोग भगवान को मानते हैं, 680 करोड़ लोग नहीं मानते. अल्लाह को 180 करोड़ लोग मानते हैं, 600 करोड़ लोग नहीं मानते. गॉड को 240 करोड़ लोग मानते हैं, 540 करोड़ लोग नहीं मानते.

जिस भगवान को विश्व के 87 फ़ीसदी लोग नहीं मानते, जिस अल्लाह को विश्व के 77 फ़ीसदी लोग नहीं मानते, जिस गॉड को 69 फ़ीसदी नहीं मानते, उसे मैं भी नहीं मानता.

आस्तिक – भगवान, अल्लाह, गॉड जितने भी नाम हैं, वोह सब एक ही शक्ति के नाम हैं.

मैं – एक इन्सान के अगर 100 नाम हों तो इन्सान का करैक्टर नहीं बदल जाता. भगवान, अल्लाह, गॉड वगैरह का करैक्टर ही अलग-अलग है. एक को ख़ुश करो तो दूसरा नाराज़ हो जाता है. सबकी पसंद-नापसंद अलग है.

एक को पूजा-पाठ पसंद है, दूसरे को पसंद नहीं. कोई मांसाहारी है तो कोई शाकाहारी. अल्लाह तो दूसरा नाम लेने वालों को दोज़ख़ में जलाता है. सबके अपने अपने पर्सनल स्वर्ग-नरक हैं.

आस्तिक – ये सब झूठी बातें हैं, वह एक ही है.

मैं – भगवान, अल्लाह, गॉड एक ही हैं तो तुम अल्लाह को क्यों नहीं मानते ? मुस्लिम भगवान को क्यों नहीं मानता ? क्यों डरते हो कि दूसरा नाम लेने से अपने वाला नाराज़ हो जायेगा ? क्यों भगवान वाला अल्लाह को झुठ कहता है और अल्लाह वाला भगवान को झूठ कहता है ?

आस्तिक – तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती.

मैं – समझ आ जाती तो तुम भी नास्तिक होते. वैसे तुम अब भी नास्तिक हो.

आस्तिक – मैं नास्तिक नहीं हूं.

मैं – दुनिया में हज़ारों काल्पनिक शक्तियां हैं, तुम सिर्फ़ एक को सच मानते हो. मैं एक को भी नहीं मानता, तेरे मेरे में एक का ही फ़र्क़ है.

आस्तिक – आपका मतलब, कोई शक्ति नहीं है ?

मैं – कोई अलौकिक शक्ति नहीं है. ये सब अज्ञानता से पैदा हुई कल्पनायें थी. बाद में झूठे, मक़्क़ार लोगों ने इन कल्पनाओं का फ़ायदा उठाया.

सच में कोई अलौकिक शक्ति होती तो वह एक होती और यूनिवर्सल सच होती. वह सूरज की तरह रौशन होती. उसके लिये तुम बहस नहीं करते. उसे साबित नहीं करना पड़ता, वह प्रत्यक्ष और प्रमाणित होती.

आस्तिक – कोई शक्ति नहीं है तो धरती-आसमान कैसे बन गये ? इन्सान कैसे बन गये ?

मैं – यू-ट्यूब पे ज्ञान-विज्ञान के कुछ वीडियो देख लो, जवाब मिल जायेंगे.

आस्तिक – कोई ज़रूरत नहीं, मैं विज्ञान को नहीं मानता.

मैं – विज्ञान से जुड़ी सब चीज़ों का सिर्फ़ 10 दिन त्याग कर दो, फिर विज्ञान को मानने लगोगे.

आस्तिक – (उठकर जाते हुये) कोई तो शक्ति होगी, जिसने दुनिया बनाई.

मैं – अपने बच्चों से पूछ लेना कि दुनिया कैसे बनी ? बच्चे भी बता देंगे, स्कूल की क़िताबों में लिखा होता है.

सोचते कुछ नहीं, समझते कुछ नहीं, बोलते बहुत हैं. दीन-धर्म में, इन्सान ही कम हैं, तोते बहुत हैं.

  • मानव राज

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ROHIT SHARMA

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