Home गेस्ट ब्लॉग क्या कारख़ाना मालिक और मज़दूर दोस्त हो सकते हैं ?

क्या कारख़ाना मालिक और मज़दूर दोस्त हो सकते हैं ?

18 second read
0
0
431

क्या कारख़ाना मालिक और मज़दूर दोस्त हो सकते हैं ?

राजा राम एक हौज़री मज़दूर हैं. वे डिज़ाइनर का काम तो करते ही हैं, बल्कि साथ ही ‘मशीन मास्टर’ भी हैं, यानी वे मशीनें लगाने और उनकी मरम्मत का भी काम करते हैं. राजा राम कोई पच्चीस सालों से लुधियाना में काम कर रहे हैं. एक दिन मैं लुधियाना स्थित टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के कार्यालय में बैठा कुछ काम कर रहा था तो राजा राम जी आ गए. बातें करते-करते बात इस विषय पर आ गई कि क्या एक मज़दूर और एक कारख़ाना मालिक कभी दोस्त हो सकते हैं या नहीं. इस बात पर राजा राम ने अपनी एक कहानी सुनानी शुरू कर दी.

वो कहने लगे –

2008 की बात है कि मैं किसी ढाबे पर खाना खाया करता था. एक दिन मित्तल हौज़री का मज़दूर मनोज मास्टर, जो वहाँ कटिंग का काम करता था, मेरे पास आया और कहने लगा कि मास्टर जी मैं जिस मशीन पर काम करता हूँ, वह खराब हो गई है. अगर आप उसे ठीक कर दें, तो मेरा काम चल पड़ेगा और आपको कमीशन भी मिल जाएगा. मनोज मास्टर वहां बहुत परेशान था, क्योंकि उसे वहां ठीक से पैसे नहीं मिलते थे.

एक दिन मैंने अपने छोटे भाई हरीलाल को मशीन साफ़ करने के लिए मनोज मास्टर के साथ उसके कारख़ाने भेज दिया. हरीलाल ने मशीन साफ़ कर दी. दूसरे दिन मैं उस कारख़ाने में गया और मशीन ठीक कर दी. एक डिज़ाइन भी निकाल दिया. मैं डिज़ाइन का नमूना लेकर मालिक के पास दिखाने ले गया और उन्हें वह पसंद आया. वह मशीन मैंने ठीक कर दी थी, जिसका सौदा छः हज़ार में होने जा रहा था. मालिक को मेरा काम पसंद आया और उन्होंने मेरे काम से ख़ुश होकर मुझे वहीं काम करने के लिए कहा.

मैं डिज़ाइन तैयार करता और वह डिज़ाइन कारख़ाने में बनाया जाता. और जब माल तैयार होकर बाज़ार में जाता तो उसके लिए व्यापारियों की लाइन लग जाती. इस तरह सीजन धड़ाधड़ काम चला. जब दिसंबर में सीजन बंद हुआ, तो मैं अपना पूरा हिसाब लेने के लिए मालिकों के पास गया. उस समय दोनों भाई अश्वनी और विकास दफ़्तर में बैठे थे.

जब मैं दफ़्तर में दाख़ि‍ल हुआ तो दोनों मालिक अपनी कुर्सियां छोड़कर खड़े हो गए. दोनों मालिकों ने मेरी एक-एक बांह पकड़ी और अपने दफ़्तर की नरम कुर्सी पर बड़े प्रेम में बिठाया. इसके बाद वह मुझे कहने लगे कि ‘मास्टर जी आप मज़दूर नहीं, आप हमारे बड़े भाई हो, आप हमसे इसी तरह कारख़ाना चलाने का वादा करो. कारख़ाना चलाने के लिए जितने पैसों की ज़रूरत पड़ी हम लगाएंगे. आपके पास दिमाग़़ है और हमारे पास पैसा. आप भी कमाइए और हम भी कमाएंगें.’

इसके कुछ दिनों बाद ही मालिकों ने दो नई जापानी मशीनें ख़रीदी और मैंने उन्हें फिट कर दिया. उस समय मालिक मेरी इतनी कदर करते थे कि जब मुझे देख लेते तो ख़ुद दौड़कर हाथ मिलाते थे और कहते थे कि ‘आप मास्टर के रूप में कभी नहीं रहोगे, आप हमेशा हमारे बड़े भाई के रूप में रहोगे.’ पहले उनका कारख़ाना छोटा था. धीरे-धीरे उनका काम आगे बढ़ने लगा, कारख़ाना आगे बढ़ने लगा. आज वे मालिक अरबों में खेल रहे हैं. आसपास के मकान और कारख़ाने ख़रीदते जा रहे हैं.

एक दिन मैं अपनी जगह पर बैठा बीड़ी पी रहा था. यह सन् 2017 की बात है. वैसे मैं पहले से ही बीड़ी पीता रहा हूं और जिस जगह पर मैं बैठकर बीड़ी पीता हूं, वहां एक डिब्बा लगाया हुआ है. उस दिन बड़े बाबू का लड़का मेरे पास आया और मुझे गालियां देने लगा. यहां तक कि मुझे कारख़ाने से निकल जाने के लिए भी कहने लगा. मैं उसकी शिकायत लेकर बाबू के पास गया, लेकिन बाबू ने मेरी कोई बात तक नहीं सुनी बल्कि कहने लगा कि ‘कोई बात नहीं, कुछ नहीं होता, उसका नया ख़ून है.’

इस घटना के बाद उस लड़के की जि़द्द हो गई कि इस मास्टर को कारख़ाने से बाहर निकालो और दूसरा मास्टर लेकर आओ. इससे पहले जब इनका काम थोड़ा था, तब मेरे सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते थे. और आज पैसे का इतना अहंकार हो गया है कि गाली देने से पहले सोचते तक नहीं. आज अगर मैं उनसे कुछ पैसे एडवांस मांग लूं, तो देते नहीं, क्योंकि उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं रहा.

कई बार मेरे मन में ख़याल आता है कि मेरे देखते-देखते मालिकों ने इतनी तरक़्क़ी कर ली और मैं आज भी उसी बेहड़े के उसी कमरे में रह रहा हूं. मैं जो भी चीज़ कारख़ाने में बनाता हूं, उसका सारा पैसा मालिक की जेब में जा रहा है. अगर भगवान न करे, मुझ पर कोई मुसीबत आ जाए, तो मुझे मेरे मालिकों पर पूरा यक़ीन है कि वे मुझे एक पैसा भी नहीं देंगे. आज की तारीख़ में उनके मन में यह बात चल रही है कि कैसे भी हो इस मास्टर को कारख़ाने से बाहर किया जाए और किसी और को इसकी जगह रख लिया जाए.

राजा राम की इस कहानी से यह स्पष्ट हो जाता है कि मालिक और मज़दूर कभी दोस्त नहीं हो सकते. मालिक कई बार मज़दूर से अधिक-से-अधिक काम निकलवाने के लिए उसके साथ दोस्ती का ड्रामा करते हैं. मज़दूर कई बार उनकी बातों में आ जाते हैं. सोचने लग जाते हैं कि मालिक कितना अच्छा है. लेकिन जब पूंजीपति का काम निकल जाता है, जब उसे उस मज़दूर की ज़रूरत नहीं रहती, जब वह मज़दूर उसे किसी-न-किसी कारण बोझ लगने लगता है, तो मज़दूर के सामने मालिक का असली रूप आ जाता है. फिर मज़दूर की आंखें खुलती हैं कि भाई, बेटा, बाप बनाने की सारी बातें झूठ-फरेब थी.

पहले जिन मज़दूरों के मुंह से यह बात सुनने को मिलती थी कि मेरा मालिक मुझे कहता है कि तू मेरा भाई है, मेरा घर का एक सदस्य है, वग़ैरा-वग़ैरा, उनमें से बहुत से मज़दूरों का मालिकों ने लॉकडाउन में पैसा दबा लिया है.

असल में पूंजीपति और मज़दूर के हित एक-दूसरे के विरोधी हैं. एक का फ़ायदा दूसरे का नुक़सान है. मालिक की हमेशा यह कोशिश रहती है कि मज़ूदर उसकी हां में हां मिलाए. कभी वेतन में बढ़ोतरी, छुट्टी-बोनस, सुरक्षा के प्रबंध या अन्य कोई अधिकार ने मांगे, बल्कि कम-से-कम पैसे में अधिक-से-अधिक काम करे. जितना अधिक मज़दूर को मिलेगा, उतना ही मालिक का मुनाफ़ा घटेगा.

मुनाफ़ा पूंजीपति की जिंन्दगी है, उसकी जान है. मुनाफ़ा चलता है तो उसकी सांसें चलती हैं. जैसे ही किसी-न-किसी कारण, आर्थिक मंदी या मज़दूरों की हड़ताल के चलते मुनाफ़ा रुकता है, उसकी सांसें रुकने लगती हैं. इसलिए वह मुनाफ़े की सुरक्षा के लिए, इसे अधिक-से-अधिक बढ़ाने के लिए, मज़दूरों की मेहनत की तीखी-से-तीखी लूट करने में दिलचस्पी रखता है.

इसके लिए चाहे उसे मज़दूर पक्षधर होने का ड्रामा करना पड़े, चाहे सरकार से मज़दूर विरोधी क़ानून बनवाने पड़ें, अधिकारों के लिए संघर्षशील मज़दूरों का पुलिस-गुंडों से दमन करवाना हो, वह हर ढंग इस्तेमाल करने के लिए तैयार रहता है और इस्तेमाल करता है. यह पूंजीपति वर्ग का चरित्र है. जब तक पूंजीपति वर्ग इस धरती पर रहेगा, इसका यह चरित्र भी रहेगा. पूंजीपति वर्ग के इस चरित्र के ख़ात्मे का अर्थ है – ख़ुद पूंजीपति वर्ग का ख़ात्मा. उत्पादन से साधनों पर निजी मालिकाने का ख़ात्मा.

इसलिए मज़दूरों को कभी भी पूंजीपतियों से दोस्ती की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. पूंजीपतियों द्वारा उनसे दोस्तियों, रिश्तेदारियों के ड्रामों में कभी यक़ीन नहीं करना चाहिए. पूंजीपतियों से मज़दूरों की तथाकथित दोस्ती का हमेशा ही मज़दूरों को नुक़सान होता है. यह भले ही व्यक्तिगत स्तर पर हो, भले ही राजनीतिक-सामाजिक स्तर पर हो.

मज़दूरों का भला इसी में है कि वे इस बात को अच्छी तरह पल्ले बांध लें कि पूंजीपति और मज़ूदर एक-दूसरे के दुश्मन वर्ग हैं. मज़दूरों को निर्मम ढंग से यह दुश्मनी निभानी होगी. एकजुट होकर अपने फ़ौरी मांग-मसलों के लिए तो पूंजीपति वर्ग और इनकी हुकूमत के खिलाफ़ संघर्ष लड़ना होगा, बल्कि इतनी ज़्यादा समझदारी, एकजुटता, ताक़त हासिल करनी होगी कि पूंजीवादी व्यवस्था का ही ख़ात्मा किया जा सके.

ऐसे समाज का निर्माण किया जा सके जहां इंसान के हाथों इंसान की लूट न हो. जहां इंसान से इंसान की दुश्मनी का कोई आधार न रहे. जहां सभी मनुष्य एक-दूसरे के दोस्त हों.

  • जगदीश ( एक मील मजदूर )

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…