रविश कुमार, अन्तर्राष्ट्रीय पत्रकार
प्रधानमंत्री मोदी का झोला लेकर चल देने का सपना साकार हो रहा है. मोदी झोला लेकर चल नहीं पाए तो लोग चलेंगे मोदी झोला लेकर. 2016 मे उन्होंने कहा था कि ‘वे तो फ़कीर हैं, झोला लेकर चल देंगे.’ पांच साल बाद उनका यह सपना पूरा हो रहा है.
आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री सपना भी अपने लिए नहीं, जनता के लिए देखते हैं. झोला लेकर चलने की बात उन्होंने जनता के लिए कही होगी. उनकी दूरदर्शिता को विपक्ष नहीं समझ सका तो इसमें प्रधानमंत्री मोदी की ग़लती नहीं है. जल्दी ही आप करोड़ों लोगों को झोला लेकर चलते हुए देखेंगे, जिस पर प्रधानमंत्री की बड़ी-बड़ी तस्वीर छापी गई है.
उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ ग़रीब हैं तो विकास कहां हुआ है, जापान में ? प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश में अन्न महोत्सव की शुरुआत की है. इसके उपलक्ष्य में अख़बारों में विज्ञापन दिए गए. विज्ञापन के कोने में लिखा है कि 15 करोड़ लोगों को लाभ मिलेगा यानी 15 करोड़ लोगों को 25 किलो अनाज मुफ़्त दिए जाएंगे. ये वो लोग हैं जिन्हें सरकार 3-2 रुपये गेहूं और चावल देती है. इस योजना का नाम ग़रीब कल्याण योजना है.
उत्तर प्रदेश की आबादी 23 करोड़ है और 15 करोड़ मुफ़्त अनाज पर आश्रित हैं. प्रदेश की ग़रीबी का हाल देखिए कि सरकार अनाज एक झोले में दे रही है. उस झोले के बारे में भी अलग से विज्ञापन में बताया गया है कि 25 किलोग्राम भारत क्षमता वाले थैलों के साथ राशन का वितरण होगा. क्या उत्तर प्रदेश में इतनी ग़रीबी है कि एक झोला भी हीरे की तरह दिया जा रहा है ? इस झोले पर प्रधानमंत्री की तस्वीर छपी है ताकि लोगों को ग़रीबी याद रहे और मोदी भी.
इसी तरह खुद प्रधानमंत्री ने बताया है कि गुजरात में ग़रीब कल्याण योजना का लाभ 3.5 करोड़ लोगों को मिल रहा है. गुजरात की आबादी 7 करोड़ है. पचीस साल से भाजपा की सरकार है और जहां नरेंद्र मोदी 14 साल मुख्यमंत्री रहे हैं.
तो यह विकास का कौन सा मॉडल है जिसमें लोगों का जीवन स्तर नहीं सुधरता है ? विकास का फ़ोटो मॉडल है. आपने देखा होगा कि गांधीनगर रेलवे स्टेशन को फ़ाइव स्टार बनाया गया है ताकि आपको निकास दिखे. गांधीनगर कोई बहुत व्यस्त स्टेशन नहीं है, इसके अलावा सुंदर बनाने के नाम पर कई स्टेशनों को चमकाया जा रहा है ताकि आप केवल देखने में व्यस्त रहें कि विकास हुआ है और उसके बाद मुफ़्त अनाज लेने की लाइन में लगे रहें तो वहां भी झोले पर मोदी जी दिख जाएं.
प्रधानमंत्री मोदी की सरकार अलग-अलग राज्यों में अन्न महोत्सव मना रही है. इस महोत्सव के विज्ञापन में बताया गया कि यूपी में 15 करोड़ लोगों को इसका लाभ मिलेगा और 25 किली की भार क्षमता वाला थैला मिलेगा. 23 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ लोग ग़रीब कल्याण योजना पर आश्रित हैं जिन्हें मोदी झोला दिया जाएगा, जो मोदी झोला लेकर चलते नज़र आएंगे.
मध्य प्रदेश में भी अन्न महोत्सव शुरू हो रहा है जिसका टाइम्स ऑफ इंडिया मे विज्ञापन छपा है. यह अख़बार दंभ भरता है कि उसके पाठक अमीर उपभोक्ता हैं. इसमें मर्सिडिज़ और करोड़ों के फ्लैट के विज्ञापन छपते हैं. इसके पन्नों पर ग़रीब कल्याण योजना का विज्ञापन देखकर गर्व महसूस हुआ. भारत की ग़रीबी अंग्रेज़ी हो गई है. अंग्रेज़ी में ग़रीबी का विज्ञापन आ रहा है. अगर मोदी न होते तो ग़रीबों को यह दर्जा कभी हासिल नहीं होता.
मैं बात मध्य प्रदेश के विज्ञापन की कर रहा हूं. उत्तर प्रदेश के विज्ञापन से अच्छा है. उत्तर प्रदेश के विज्ञापन में भी मोदी के चेहरे वाले थैले की तस्वीर थी, मगर बहुत छोटे से घेरे में. मध्य प्रदेश ने अपने ग़रीबों को दिए जाने वाले थैले की तस्वीर बड़े बड़े घेरे में छापी है और दो जगह छापी है. एक तस्वीर में आप थैले का सामने का हिस्सा देखते हैं, जिसमें केवल मोदी की तस्वीर है और एक तस्वीर में आप थैले का पीछे का हिस्सा देखते हैं, जिसमें मोदी के साथ शिवराज सिंह चौहान भी हैं. आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश के करोड़ों ग़रीब मोदी थैला लेकर चलते नज़र आएंगे.
मध्य प्रदेश ने उत्तर प्रदेश की तुलना में एक और चतुराई की है. उत्तर प्रदेश ने सीधे लिख दिया कि 15 करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना का लाभ मिलेगा. उत्तर प्रदेश ने बेहद महीन घेरे में 15 करोड़ लोगों की बात लिखी थी, फिर भी मेरी नज़र पड़ गई और पता चल गया कि यह प्रदेश मूलत निर्धन प्रदेश है, जिसकी साठ फीसदी आबादी ग़रीब है.
मध्य प्रदेश ने पूर्ण संख्या की जगह परिवारों की संख्या बताई. 1 करोड़ 15 लाख परिवारों को लाभ मिलेगा और इसे प्रमुखता से बताया है. दो विज्ञापनों में एक संकट दिखाई दे रहा है. ग़रीब कल्याण योजना का जश्न भी बनाना चाहते हैं लेकिन कितने ग़रीब हैं इसकी संख्या छिपाना भी चाहते हैं लेकिन संख्या बाहर आ ही जा रही है. यह योजना सरकार की बड़ी कामयाबी है तो दूसरी तरफ इस कामयाबी का पर्दाफाश भी है.
इस हिसाब से मध्य प्रदेश की साढ़े आठ करोड़ आबादी में से करीब पौने छह करोड़ लोग ग़रीब हैं, तभी तो प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के लाभार्थी हैं. गुजरात की आबादी 7 करोड़ है लेकिन उस अमीर माने जाने वाले राज्य में भी 3.5 करोड़ लोग ग़रीब योजना पर आश्रित हैं.
दोनों ही राज्यों में बीजेपी की पचीस साल से सरकार चल रही है. इन पचीस सालों में वहां ग़रीबों की संख्या बढ़ी ही है. लोगों के आर्थिक जीवन में कोई सुधार नहीं हुआ है. ग़रीब कल्याण योजना चीख-चीख कर बता रही है कि मोदी के सात सालों के दौरान ग़रीबी बढ़ी है. लोग ग़रीब हुए हैं. निम्न मध्यम वर्ग को कहां तो मध्यम वर्ग में जाना था लेकिन वे वापस ग़रीबी में चले गए हैं.
इन दो राज्यों में पचीस साल राज करने का मौक़ा मिला. मध्य प्रदेश में तो एक व्यक्ति मुख्यमंत्री हैं. गुजरात में नरेंद्र मोदी चौदह साल मुख्यमंत्री रहे और विकास के झूठे दावों के आधार पर एक फर्ज़ी मॉडल का प्रचार हुआ जिसका नाम गुजरात मॉडल है. यह कैसा मॉडल है जहां के विकास में आधी से अधिक आबादी ग़रीब हो जाती है और मुफ्त अनाज का रास्ता देख रही है.
भारत में इस वक्त ग़रीबी इतनी है कि आप दो रुपये किलो की दर को बढ़ा कर सिर्फ पांच या दस रुपये कर देंगे तो हाहाकार मच जाएगा. लोग यह भी नहीं ख़रीद पाएंगे. ग़रीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ लाभार्थी हैं जो ग़रीब हैं या जो पिछले साल में ग़रीब हुए हैं.
एक तरफ ग़रीबी बढ़ रही है दूसरी तरफ विकास के नाम पर उन चीज़ों पर ख़र्च हो रहा है जो देखने में भव्य हों. गांधीनगर में फाइव स्टार रेलवे स्टेशन बना, यह प्राथमिकता की बात है. आम लोग रेलवे के किराए से परेशान हैं. उनके जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है लेकिन महंगाई के साथ किराये का भी बोझ काफी बढ़ा है. इस तरह से जनता परेशान है लेकिन उसे भव्य स्टेशन का सिनेमा दिखाया जा रहा है.
आज कल रेल मंत्री रेलगाड़ियों में ऐसी बोगी की तस्वीर ट्विट करते हैं जिसके चारों तरफ बड़े शीशे लगे हैं ताकि देखने का अनुभव बदल जाए और आपको लगे कि
कुछ विकास हुआ है. इसी तरह जगह-जगह इमारतें बन रही हैं जिनकी ज़रूरत इस ग़रीब देश को तुरंत तो नहीं हैं मगर इन्हें भव्य बनाया जाएगा और आपसे कहा जाएगा कि आप विकास देख रहे हैं. आप देखते हुए उस विकास को महसूस तो कर पाएंगे लेकिन उसमें शामिल नहीं होंगे इसलिए सरकार की हर योजना दिखने पर ज़ोर देती है.
अब यह ग़रीब कल्याण योजना हर जगह दिखाई देगी. जब करोड़ों लोग प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर वाले झोले को लेकर चलते हुए दिखाई देंगे, तब उन झोलों पर मोदी ही चल रहे होंगे, तभी उनका सपना साकार हुआ है. लोगों को ग़रीब बनाकर उन्हें अपना झोला थमा कर ख़ुद सत्ता में बने रहने का यह आइडिया शानदार है.
विज्ञापन एक रणनीति है. इसे बनाते समय तय किया जाता है कि किस समूह को लक्षित करना है. युवाओं को या वृद्धों को या आम जनता को. अंग्रेज़ी में छपे अन्न महोत्सव के इस विज्ञापन का लक्षित समूह अंग्रेज़ी का पाठक है जिसमें से न के बराबर ही इस योजना का लाभार्थी होगा और होगा भी तो इस ग़रीबी में टाइम्स ऑफ इंडिया ख़रीदता होगा.
योजना का लक्षित समूह कोई और है और विज्ञापन का लक्षित समूह कोई और. पचीस किलो बैग भी दिया जाएगा जो घर पहुंच कर दूसरे काम में उपयोग होगा और चुनाव तक एक प्रचार सामग्री के रूप में मौजूद रहेगा. चुनाव शुरू होने और आचार संहिता लागू होने से पहले ऐसी चालाकियों में प्रधानमंत्री मोदी पूर्ववर्ती नेताओं से आगे निकल चुके हैं. इस आयोजन और अभियान को लेकर कितना ख़र्च होगा पूछना बेकार है.
साल भर से ग़रीब कल्याण योजना चल रही है. इस अभियान से ही एक नया अभियान निकाला गया है जिसका नाम अन्न महोत्सव है. मोदी सरकार में अभियानों का सृजन होता रहता है. फिर उस अभियान से नए अभियान की उत्पत्ति होती है. उज्ज्वला 2 शुरू होने जा रही है. आज यूपी में अन्न महोत्सव शुरू हो रहा है. यह महोत्सव ग़रीब कल्याण योजना की ही उत्पत्ति है. संतति है. देश भर में चल रही इस योजना का महोत्सव यूपी में इसलिए मन रहा है क्योंकि वहां चुनाव है.
दुनिया में कहीं भी टीके के प्रमाण पत्र पर देश के प्रमुख की तस्वीर नहीं है, भारत में है. बहुत से लोग इससे परेशान थे कि प्रमाणपत्र पर मोदी जी की फोटो क्यों है ? अब उन्हें इससे ख़ुश होना चाहिए कि घर-घर में खूंटी पर मोदी जी झोला बन कर टंगे होंगे. मोदी जी ही झोला ले कर तो नहीं चल सके लेकिन यह बहुत बड़ी बात है कि वे झोला बन कर चल रहे होंगे, बस फ़कीर मोदी जी नहीं होंगे. फ़कीर वो जनता होगी जो हर दिन मोदी झोला लेकर चलती नज़र आएगी, कहीं पहुंचने के लिए नहीं बल्कि लौट कर उसी ग़रीबी में आने के लिए.
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