वीडियो देखकर लगता हैं कि C.R.P.F. फोर्स को मानव अधिकारों की शिक्षा देना पड़ेगा. C.R.P.F. फोर्स बस्तर के आदिवासियों की सुरक्षा के लिए या आदिवासियों के साथ अन्याय के लिए ?
यह विडियो लगभग बस्तर के हर पत्रकार के पास है लेकिन किसी ने खबर चलाया नहीं और न ही किसी पत्रकार ने माण्डवी सुक्का, पिता माण्डवी कोसा से पूछा कि C.R.P.F. के जवान तुम्हें क्यों मार रहे हैं ? तुम्हें कहां से पकड़े हैं ? तुम्हें कब छोड़े हैं ?
सुक्का अभी अपने गांव में अपने भाई व परिवार के साथ रहता है. मैं, आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी, जेल रिहाई मंच के सचिव सुजित कर्मा सहित हम सभी माण्ड़वी सुक्का से सिलगेर व तर्रैम के बीच बिठाये हुए C.R.P.F. कैम्फ के विरोध में चल रहे आन्दोलन में मिले थे.
सोनी सोरी ने सुक्का से एक सवाल पुछा कि ‘सिलगेर से टेकलगुड़ा कितना दूर हैं ?’ सुक्का ने बताया ’15-20 किलोमीटर’. दूसरा सवाल था कि ‘आप सभी लोगों को पुलिस कैम्प नहीं चाहिए ?’ सुक्का का जवाब था – ‘नहीं’.
इस विडियो को देख आप समझ गये होगे कि सिलगेर में आदिवासी पुलिस कैम्प का क्यों विरोध कर रहे हैं ? पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन, राज्य शासन पहले आदिवासियों का आत्मविश्वास जीते, किसी की हत्या या डरा कर आप दिल और आत्मविश्वास नहीं जीत सकते.
यू-ट्यूब पर यह वीडियो अपलोड किया था. ‘कम्युनिटी गाइडलाइंस’ का हवाला देते यू-ट्यूब ने हटा दिया. बस्तर अनुसूचित क्षेत्रों में सरकार C.R.P.F. कैम्फ बिठाते जा रही हैं. फोर्स आदिवासियों के साथ मनमानी अत्याचार कर रही हैं. मानव-अधिकार की बात करे तो फोर्स कहती हैं कि ‘हम केंद्र के बल हैं, हमारा क्या उखाड़ लोगे.’ बिचारे भोले भाले आदिवासी किसी से मदद भी नहीं मांग सकते. आज कल तो मदद के लिए भी लोग कीमत मांगते हैं.
आदिवासियों के पास कीमत देने की क्षमता तो नहीं है, इस वजह से पूंजीवाद की नजर आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन पर हैं. आदिवासियो की जीविका जल, जंगल, जमीन है. आदिवासी कीमत के तौर पर अपनी जीविका पूंजीवाद या पूंजीवाद के समर्थकों को नहीं दे सकता. आदिवासी जान दे देगा जल, जंगल, जमीन नहीं देगा.
आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन चाहिए तो आदिवासियों की नक्सल के नाम पर हत्या, बलात्कार और फोर्स के जरिये आदिवासियों के साथ अन्याय करो. आदिवासी सहेगा – सहेगा एक दिन हथियार उठा लेगा, उस दिन फोर्स कहेगी की बस्तर में सबसे ज्यादा नक्सलवाद है.
आदिवासियों के प्रतिनिधि राज्य में राज्यपाल और देश में राष्ट्रपति हैं. आदिवासियों के संरक्षणकर्ता राष्ट्रपति और राज्यपाल हैं लेकिन लगता हैं राज्यपाल और राष्ट्रपति आदिवासियों का विनाश चाहते हैं.
आदिवासियों के मामलों में संयुक्त राष्ट्र या यूरोपियन संगठन हस्तक्षेप करे तो भारत सरकार कहती हैं कि ‘हमारे पास आदिवासियों को न्याय देने की व्यवस्था हैं. आप (हमारे आंतरिक मामलों में) हस्तक्षेप न करे.’ मैं भारत सरकार को सौ मामले बता सकता हूं, आज तक किसी भी मामले में भारत सरकार ने आदिवासियों को न्याय नहीं दिया है.
भारत को आजाद हुए करीब 70 साल हो गये. इन 70 सालों में आदिवासियों के साथ किन-किन मामलों में भारत सरकार ने आदिवासियों को न्याय दिया हैं साक्ष्य प्रस्तुत करें.
इस वीडियो को शायद फेसबुक भी सामाजिक हिंसा बढ़ने का हवाला देकर हटा दें, लेकिन संयुक्त राष्ट्र व यूरोपियन संगठन से आदिवासी समुदाय मदद के लिए गुहार लगाएगा तो भारत सरकार कैसे रोकेंगी ? भारत सरकार आदिवासियों के साथ अन्याय के अलावा कुछ नहीं दे सकती.
जंगल हमारा, जमीन हमारा, जल हमारा, हर चीज हमारी तो व्यवस्था भी आदिवासियों का होना चाहिए. आप कहेंगे आदिवासियों की कौन-सी व्यवस्था है ? आदिवासियों की व्यवस्था जल, जंगल, जमीन से है. समझदार के लिए इशारा काफी हैं. मूलवासी अर्थात आदिवासी, आदिवासी भारत का राजा फिर आप अनुसूचित क्षेत्र में फोर्स को तैनात कर गुलाम कैसे बना रहे हैं ?
- लिंगाराम कोडोपी
Read Also –
9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस : छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 15 आदिवासियों की हत्या
जनजातिवाद का विलुप्त होना ?
आदिवासी – यह नाम तो मत बिगाड़िए
बस्तर में कोहराम : राष्ट्रीय लूट और शर्म का बड़ा टापू
आदिवासी समस्या
सारकेगुड़ा : आदिवासियों की दुःखों से भरी कहानियां
गरीब आदिवासियों को नक्सली के नाम पर हत्या करती बेशर्म सरकार और पुलिस
विकास मतलब जंगल में रहने वाले की ज़मीन छीन लो और बदमाश को दे दो
आदिवासी संरक्षित क्षेत्र और ऑस्ट्रेलिया
पांचवी अनुसूची की फिसलन
आदिवासियों का धर्म
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]