हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी चिन्तक
सबसे पहले सरकार आपको बताती है कि जंगल सरकार का है. फिर सरकार कहती है आदिवासी ने इस जंगल पर गैरकानूनी कब्ज़ा कर लिया है. फिर सरकार आदिवासी को निकालने के लिये वन विभाग को भेजती है. वन विभाग की मदद के लिये पुलिस को भेजती है. पुलिस आदिवासी को पीटती है, पैसा छीनती है, उसकी बेटी से बलात्कार करती है. आदिवासी विरोध करता है. फिर सरकार सीआरपीएफ को जंगल में भेजती है.
जब आदिवासी और सीआरपीएफ में टकराव होता है तो सरकार कहती है ये लोग देशद्रोही हैं, सरकार से लड़ रहे हैं. फिर जब सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी जनता को बताते हैं कि सरकार गलती पर है तो सरकार इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल देती है और कहती है यह लोग भी आतंकवादी हैं.
जंगलों से दौलत को लूट-लूट कर बेइंतेहा दौलतमंद बनने के बाद जब पूंजीपति सरकारों को अपनी उंगलियों पर नचाते हैं, वह आपकी समस्याओं की तरफ ध्यान भी नहीं देते, तब आपको यह समझने में मुश्किल होती है कि आखिर यह सरकार आपकी तरफ ध्यान क्यों नहीं दे रही ?-एक-एक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए आपके परिवार के सदस्य बिना पानी की मछली की तरह तड़प तड़प कर मर जाते हैं और दाढ़ी बढ़ा कर ऋषि मुनि का भेष धरकर एक बेशर्म प्रधानमंत्री घोषणा करता है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा !
इस पूरे लूट के खेल की तरफ आपका ध्यान न जाए इसलिए हिंदू मुस्लिम की लड़ाई की तरफ आपका ध्यान भटकाया जाता है. लेकिन जो इनका असली काम है वह है मुल्क की दौलत पर कब्जा करना. राजनीति असल में अर्थनीति है. पैसे के लिए, पैसे के द्वारा, पैसे का खेल ही राजनीति है.
बस्तर में पुलिस औरतों को, बच्चों को, बूढ़ों को मार डालती है और कहती है कि यह माओवादी कमांडर थे. देश कोई सवाल नहीं करता. अदालत इनकी तरफ देखती भी नहीं..मैं अभी तक साढे पांच सौ मामले कोर्ट को सौंप चुका हूं, एक में भी आज तक इंसाफ नहीं मिला.
2 साल पहले एक मामला हुआ था. एक आदिवासी युवती को बलात्कार करने के बाद गोली मार दी गई थी. पुलिस ने युवती की लाश की फोटो प्रकाशित की थी. उस युवती को नक्सलियों की वर्दी पहनाई गई थी. वर्दी पर न तो खून लगा हुआ था, ना एक भी गोली का छेद था. पैंट इतनी लंबी थी कि उसको नीचे से दो तीन बार फोल्ड किया गया था. कोई बच्चा भी देखकर समझ सकता था कि पुलिस ने कितनी बेवकूफी से काम किया है.
पुलिस हर जगह इसी तरह की बदमाशी पूर्ण हरकतें करती है. पिछले महीने की लखनऊ की घटना ले लीजिए. पुलिस ने दावा किया कि उसने दो मुस्लिम को पकड़ा है, जो प्रेशर कुकर और रिक्शे की बैटरी का इस्तेमाल करके बम बनाते थे, वह भी अलकायदा के लिए. इनसे पूछो कि गधों अलकायदा को क्या बमों की कमी है कि वह लखनऊ के रिक्शेवाले से कहेगी कि तू हमको बम बना कर दे.
अब आप फोटो देखिए. बम डिफ्यूजल स्कवाड वाला वर्दी पहने हुए है. उसके पीछे एक पुलिस वाला बिना हेलमेट, बिना किसी सुरक्षा के चिपक कर फोटो खिंचवा रहा है क्योंकि उस पुलिस वाले को पता है कि बम डिफ्यूजल स्क्वाड वाली वर्दी पहने हुए पुलिस वाले के हाथ में जो है, वह एक साधारण प्रेशर कुकर है बम नहीं. और नजदीक में ही खड़े होकर फोटो खींचने वाले मीडिया कैमरे वालों को भी पता है कि यह सारी कहानी फर्ज़ी है और वहां कोई बम नहीं है इसीलिए वह लोग बिल्कुल नजदीक खड़े होकर फोटो खींच रहे हैं. अगर यह सचमुच का बम होता तो इसके इतने नजदीक इनमें से कोई भी नहीं आता.
सरकार बदमाश है, पुलिस गुलाम है, मीडिया गरीब है दो पैसे में बिक जाती है और जनता कुचली जा रही है, पीटी जा रही है, लूटी जा रही है. किसान पीटा जा रहा है, मजदूर पीटा जा रहा है, अल्पसंख्यक पीटा जा रहा है, दलित पीटा जा रहा है, आदिवासी पीटा जा रहा है. पीटने वाला एक ही है, मार खाने वाले अलग-अलग है.
जब एक को पीटा जाता है तो दूसरे से कहा जाता है तुम चुप रहो. जब मुसलमान को पीटा जाता है तो बाकी लोगों से कहा जाता है यह आतंकवादी है, पाकिस्तानी है, इसका साथ मत दो. जब आदिवासी को पीटा जाता है तो कहा जाता है ये नक्सली है, हमारा विकास नहीं होने दे रहे. जब किसान को पीटा जाता है तो कहा जाता है यह खालिस्तानी है. और हम इतने स्वामी भक्त हैं कि सरकार में बैठे इन गुंडों, बदमाशों, बेईमानों, अपराधियों की हर बात को सच्ची और ईश्वरीय वाणी समझते हैं. हमारी दुर्गति हमने खुद ही की हुई है. पिट सब रहे हैं पर अलग-अलग.
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