गिरीश मालवीय
कोरोना की दूसरी लहर में जब ऑक्सीजन की कमी को लेकर त्राहि-त्राहि मची हुई थी, तब विशाखापत्तनम स्टील प्लांट में कर्मचारी दिन रात एक कर के ऑक्सीजन का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करने में लगे थे. लेकिन जैसे ही वह दौर खत्म हुआ तुरंत ही इस प्लांट को बेचने पर मोहर लगा दी गई.
मोदी सरकार विशाखापट्टनम स्टील प्लांट को बेच रही है. इस स्टील प्लांट की स्थापना 1977 में हुई थी. राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड या विज़ाग स्टील प्लांट भारत सरकार की 14 नवरत्न कंपनियों में से एक है. यह प्लांट लगभग 65 हज़ार लोगों को रोजगार देता है.
स्टील प्लांट के निजीकरण को लेकर विशाखापट्टनम और आंध्र प्रदेश में लगातार सात महीनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है जो अब दिल्ली पहुंच चुका है. कर्मचारियों का आरोप है कि 2 लाख करोड़ की सम्पत्ति वाले प्लांट को केंद्र सरकार महज़ 32 हज़ार करोड़ में बेच रही है. पूरे विशाखापट्टनम की अर्थव्यवस्था इस पर टिकी है. इसकी वज़ह से इससे जुड़े कई दूसरे उद्योग भी वहां चलते हैं. विशाखापट्टनम स्टील प्लांट 22,000 एकड़ में फैला हुआ है.
दरअसल सार्वजनिक हित के नाम पर स्टील प्लांट निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत सरकार द्वारा लोगों की 22,000 एकड़ से अधिक भूमि का अधिग्रहण किया गया था. इस प्लांट को बनाते वक्त किसानों से बहुत सस्ते दाम पर जमीन खरीदी गई थी. अधिग्रहण के समय किसानों को दी जाने वाली उच्चतम कीमत 20,000 रुपये प्रति एकड़ थी. आज उसी जमीन की कीमत प्रति एकड़ 5 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है. इस पृष्ठभूमि में स्टील प्लांट की कीमत दो लाख करोड़ रुपये से अधिक आंकी जा रही हैं.
यह मात्र एक स्टील प्लांट नहीं है, यह तेलगु अस्मिता का प्रश्न है. इस प्लांट को विशाखापट्टनम में स्थापित करने के लिए एक लंबा संघर्ष हुआ था. 70 के दशक में हुए इस प्लांट के लिए ‘विशाखापट्टनम उक्कू – अंधेरुला हक्कू आंदोलन’ में 32 लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए और सांसदों और विधायकों सहित, 70 विधायकों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था, तब जाकर इस प्लांट की स्थापना हुई थी.
इस वक्त प्लांट में कुल 18 हजार पक्के कर्मचारी हैं और 17000 ठेके पर रखे गए कर्मचारी हैं. इन सबकी नौकरी खतरे में है. संसद में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री भागवत किशन राव ने मंगलवार 3 अगस्त को ये साफ़ कह दिया कि निजीकरण के बाद काम कर रहे कर्मचारियों की ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं है.
यह सिर्फ एक प्लांट नहीं है, विशाखापट्टनम की शान है सभी तेलगु लोगों की भावनाएं इससे जुड़ी है. आज भी आंदोलन में जान गवांने वाले लोगों और उनके नेताओं को शहीदों के रूप में याद किया जाता है और उन्हें सार्वजनिक रूप से श्रद्धांजलि दी जाती है.
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इस देश मे सारे कानून कायदे मुकेश अम्बानी के हिसाब से चलते हैं. वैसे यह मेरा कथन नहीं है. यह कथन वोडाफोन के CEO निक रीड का है, जिन्होंने दो साल पहले बार्सिलोना में हजारों लोगों के सामने कहा था, ‘भारत में पिछले दो साल में टेलीकॉम रेगुलेशन से जुड़े जो भी नियम बने हैं वह रिलायंस जियो को छोड़कर बाकी सभी कंपनियों के खिलाफ हैं.’
क्या आप जानते हैं कि पिछले दिनों उन तमाम बैंकों ने जिन्होंने दिवालिया प्रक्रिया का सामना कर रही अनिल अंबानी की कम्पनी रिलायंस कम्युनिकेशन (R-Com) को कर्ज दे रखा था, उन्होंने सरकार के डिपॉर्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन्स (DOT) से अनुरोध किया है कि वह उसका टेलीकॉम लाइसेंस रद्द ना करे. बैंकों ने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो पूरी दिवालिया प्रक्रिया ही खत्म हो जाएगी.
रिलायंस कम्युनिकेशन (R-Com) ने मोदी सरकार से अनुरोध किया कि उसका लाइसेंस 20 साल के लिए बढ़ाया जाए. हालांकि कंपनी का फोन कारोबार साल 2019 में ही खत्म हो चुका है. यह जानना दिलचस्प है कि यह स्पेक्ट्रम दिया किसे गया ? यह स्पेक्ट्रम मुकेश अंबानी को मिला है या यूं कहें कि हड़प लिया गया है.’
यानी तमाम बैंक मुकेश अंबानी के पक्ष में बैटिंग कर रहे हैं.
इंसॉल्वेंसी कोर्ट NCLT द्वारा रिलायंस जियो इंफोकॉम को दिवालिया कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस के टावर और फाइबर असेट्स का अधिग्रहण करने की अनुमति दी जा चुकी है. रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 46,000 करोड़ रुपए का कर्ज है.
रियालंय जिओ और अनिल अंबानी की रिलायंस टेलीकॉम (आर कॉम) के बीच स्पेक्ट्रम साझा करने का समझौता 2016 में ही हो गया था. डील के अनुसार अनिल अंबानी अपने सारे एसेट टावर, फाइबर केबल और स्पेक्ट्रम आदि जियो के हवाले कर दिए हैं. दरअसल यह डील जियो के लिए बेहद फायदेमंद है.
जियो को 2016 में ये स्पेक्ट्रम न मिलता तो मुंबई, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, बिहार, ओडिशा, असम और पूर्वोत्तर में जियो की 4जी एलटीई कवरेज की क्वॉलिटी बहुत हद तक प्रभावित हो जाती. दिल्ली, महाराष्ट्र और वेस्ट बंगाल में जियो के सब्सक्राइबर्स को सेवाओं में दिक्कत का सामना करना पड़ता लेकिन जब स्पेक्ट्रम यूज कर रहे हैं तो उसका बकाया भी चुकाइये.
पिछले साल टेलीकॉम कंपनियों से एजीआर का बकाया वसूलने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो एयरटेल और आइडिया वोडाफोन पर कोर्ट ने लगभग 1 लाख करोड़ के AGR वसूली का दबाव बनाया. अनिल अंबानी की R-COM पर भी लगभग 25 हजार करोड़ का AGR बकाया था. कायदे से इस बकाया की सारी देनदारी अब मुकेश अम्बानी की थी क्योंकि वही उसके स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि रिलायंस जियो को रिलायंस कम्युनिकेशंस के AGR के बकाए का भुगतान इस तथ्य के प्रकाश में करना चाहिए कि वह 2016 के बाद के स्पेक्ट्रम का उपयोग कर रहा है लेकिन ऐसा कोई आदेश नही दिया.
वैसे भी जब मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए हैं तो वोडाफ़ोन को तो उल्टा कर के टांग दिया जाएगा लेकिन मुकेश अम्बानी की जियो पर कोई आंच नहीं आएगी. अब वो तमाम बैंक जिन्होंने अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशन को कर्ज दिया है वे सरकार से कह रहे हैं कि उनका लाइसेंस जो जियो यूज कर रहा है, उसे 20 साल के लिए और बढ़ा दिया जाए. उन्हें मुकेश अंबानी जी की बहुत चिंता है. उन्हें अपने 30 हजार करोड़ के लोन की कोई चिंता नहीं है जो उन्होंने वोडाफोन आइडिया को दिया हुआ है, उन्हें बस जियो को बचाने में ज्यादा इंटरेस्ट है.
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वोडाफोन आइडिया का बन्द होना मंदी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डालेगा. सबसे बड़ा नुकसान भारतीय बैंकों को होने जा रहा है. वोडाफोन आइडिया पर 8 भारतीय बैंकों का करीब 30 हजार करोड़ रुपया उधार है, ये लिस्ट इस प्रकार है –
- भारतीय स्टेट बैंक – 11,000 करोड़ रुपये
- यस बैंक – 4,000 करोड़ रुपये
- इंडसइंड बैंक – 3,500 करोड़ रुपये
- आईडीएफसी फर्स्ट बैंक – 3,240 करोड़ रुपये
- पंजाब नेशनल बैंक – 3,000 करोड़ रुपये
- आईसीआईसीआई बैंक – 1,700 करोड़ रुपये
- एक्सिस बैंक – 1,300 करोड़ रुपये
- एचडीएफसी बैंक – 1,000 करोड़ रुपये
यस बैंक और आईडीएफसी फर्स्ट बैंक को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. खास बात यह है कि ये दोनों बैंक अभी बैड लोन की समस्या से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. लोन बुक के लिहाज से वोडाफोन आइडिया के डूबने का सबसे ज्यादा असर आईडीएफसी फर्स्ट बैंक पर पड़ेगा, इसकी वजह यह है कि उसकी लोनबुक में वोडाफोन आइडिया के लोन की हिस्सेदारी 2.9 फीसदी है. इसके बाद यस बैंक की लोन बुक में वोडाफोन आइडिया की हिस्सेदारी 2.4 फीसदी है.
पहले ही कई कंपनियों के कर्ज न चुकाने के कारण संकट में चल रहे बैंकिंग सेक्टर के लिए वोडाफोन आईडिया का डिफॉल्ट बड़ा झटका साबित हो सकता है.
इसके अलावा डेट फण्ड भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं. आउटलुक एशिया कैपिटल के डेटा दिखाते हैं कि चार एसेट मैनेजमेंट कंपनियों की स्कीमों ने वोडाफोन आइडिया के डेट पेपर (बॉन्ड) में पैसा लगाया हुआ है. इनमें फ्रैंकलिन टेम्पलटन म्यूचुअल फंड, आदित्य बिड़ला सनलाइफ म्यूचुअल फंड, यूटीआई म्यूचुअल फंड और निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड शामिल हैं.
फ्रैंकलिन टेम्पलटन के पास वोडाफोन आइडिया के कर्ज का 954 करोड़ रुपये है. यह उसके कुल एसेट मैनेजमेंट का 2.95 फीसदी है. आदित्य बिड़ला सनलाइफ के पास फर्म की 518 करोड़ रुपये की डेट प्रतिभूतियां हैं. यह म्यूचुअल फंड हाउस के एसेट बेस का 2.27 फीसदी है. यूटीआई एमएफ और निप्पॉन इंडिया एमएफ की स्कीमों का अभी 415 करोड़ रुपये और 136 करोड़ रुपये टेलीकॉम कंपनी में निवेश है.
यानी न केवल बैंक बल्कि म्यूचअल फंड जारी करने वाली कम्पनिया भी इससे प्रभावित हो रही है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वोडाफोन के दिवालिया होने और बैंकों का कर्ज न चुकाने पर भारत का राजकोषीय घाटा 40 बेसिस पॉइंट बढ़ सकता है. यानी 5 ट्रिलियन इकनॉमी को तो आप भूल ही जाइए, जितनी थी उतनी भी नहीं बचेगी.
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