अमर-चित्र कथा की पुरानी प्रतियां मंगाई जा चुकी थी. आइडिया ढूंढने के लिए कि पुराने ज़माने में राजा जनता का हाल पता करने के लिए क्या करते थे. राजा ने सुनते ही डांट दिया. कौन रात भर सर्दी गर्मी बरसात में बैठा रहेगा. युवाओं की टीम ने कई सारे आइडिया दिए मगर सब खारिज हो गए. राजा को रात में निकलना पसंद नहीं आ रहा था.
राजा ने समझाया कि इस शहर के चप्पे-चप्पे पर मेरी तस्वीर लगी है. मेरी मुफ्त योजनाओं की तस्वीर योजनाओं के पहुंचने के पहले घर-घर पहुंच गई है. मैंने मुफ़्त को भी महंगा बना दिया है. लोग सोते-जागते, घूमते-फिरते मेरी ही तस्वीर देखते हैं. इसलिए बाहर निकलते ही पहचाने जाने का ख़तरा है.
राजा की बात सही थी. युवाओं की टीम ने एक छोटी टीम का गठन किया और शहर के दौरे पर भेज दिया. उन्हें शहर का एक ऐसा कोना खोजना था जहां सौ मीटर के घेरे में राजा की तस्वीर न लगी हो. ऐसी एक ही जगह मिली जहां राजा की एक भी तस्वीर नहीं लगी थी. तय हुआ कि यहीं राजा भेष बदल कर बैठेगा.
राजा ने इंकार कर दिया. राजा मन से बात करने लगा. मैं कौन सा भेष बदल कर जाऊंगा ? मैंने हर तरीके के भेष बदल लिए हैं. बदलने के लिए कोई नया भेष नहीं बचा है. मेरा केवल असली चेहरा बचा है जिसे लोगों ने नहीं देखा है. वह भी असली नहीं लगता. मैं भी असली चेहरे को भूल गया हूं. लोगों के पास स्मार्ट फोन होेते हैं. उसमें हर किसी के पास व्हाट्स एप है, फेसबुक है. बहुतों ने मेरी तस्वीर की प्रोफाइल पिक्चर लगाई हुई है. रात को बाहर जाना ठीक नहीं रहेगा. कोई न कोई पहचान लेगा.
राजा अपनी व्यथा किससे कहता कि वह सच जानना चाहता है. झूठ फैलाते फैलाते सच की तलब लगी है. एक युवा ने शरारत में सवाल कर लिया, ‘जब सच ही जानना था तब झूठ का इतना प्रसार क्यों किया ?’ राजा के पास इसका भी जवाब था. उसने कहा कि यह पता लगाना बहुत ज़रूरी है कि जिस सच को मैं जानता हूं, उस सच को शहर में और कितने लोग जानते हैं. अगर उन लोगों से मेरा सच जनता के बीच फैल गया तो मेरा असली चेहरा दिखने लग सकता है. टीम के एक साहसी सदस्य ने मौका देखकर राजा से कहा – ‘कोई आपका सच क्यों जानना चाहेगा ? जब झूठ ही सच हो चुका है तो सच झूठ का क्या बिगाड़ लेगा ? किसी को आपका सच मिल भी जाएगा तो उसे छापेगा कौन ? दिखाएगा कौन ?’
मन की बात में डूबा राजा युवा की इस बात से ख़ुश हुआ लेकिन जल्दी ही उसकी ख़ुशी चली गई क्योंकि उस सवाल ने एक नया जवाब पैदा कर दिया था. राजा ने धीमे स्वर में कहा कि ‘समस्या यह नहीं है कि सच छप जाएगा. समस्या है कि सच रह जाएगा. बचा हुआ सच छपे हुए सच से ज़्यादा ख़तरनाक होता है. जब तक बचा हुआ सच है तब तक हमारे नहीं बचने का अंदेशा है इसलिए मैं जानना चाहता हूं कि मेरे अलावा मेरा सच और कौन कौन जानता है ?’
युवाओं की टीम समझ गई थी. राजा के साथ काम करते-करते उनका अनुभव झूठ को फैलाना का था. उन्हें हमेशा झूठ ही सौंपा गया. सच नहीं दिया गया इसलिए उनका अनुभव सच को लेकर नहीं था. राजा के जवाब से वे समझ गए कि बचे हुए सच का पता लगाना है. फैले हुए झूठ से बचे रहने की चिन्ता नहीं करनी है. अमर-चित्र कथा की पुरानी प्रतियों का बंडल बांधा जाने लगा. कथा-साहित्य के वितरक को लौटाना भी था.
विचार-विमर्श होता रहा. टीम के एक दूसरे सदस्य को ख़्याल आया. उसने तुरंत राजा के मोबाइल फोन पर मैसेज ठेल दिया. राजा जी सच ही जानना है तो गोदी मीडिया से कहते हैं कि वह सच दिखाए. हम घर में ही बैठ कर सारा सच देख लेंगे. इस पर राजा घबरा गया. भागा भागा विचार-विमर्श केंद्र में पहुंच गया. चिल्लाने लगा – ‘नहीं नहीं, ऐसा कदापि नहीं करना. मुश्किल से इन्हें झूठ की लत लगाई है. अब इन्हें सच की लत मत लगाओ. तभी एक महिला सदस्य ने कहा ‘फोन की जासूसी करते हैं.’ विचार-विमर्श केंद्र स्तब्ध हो गया.
केंद्र में मौजूद सभी ने उस महिला की तरफ गर्व भाव से देखा. उसकी प्रतिभा की तारीफ़ हुई. राजा ने उससे पूछा – ‘क्या तुम वही बेटी हो जिसे पढ़ाने के लिए बचाया गया था ? पर तुमने पढ़ा कहां ? तुम जैसी बेटियों को पढ़ाने के लिए शिक्षक तो बचाया ही नहीं गया था.’
महिला ने कहा ‘यह ज्ञान कक्षा का नहीं है, भारत की महान परंपरा से आया है.’ महिला सदस्य के इस राष्ट्रवादी जवाब पर सबने नारे लगाए. भारत माता की जय. आंसुओं की सहस्त्र धाराएं बहने लगी. आइडिया पास हो गया. टेक्नॉलजी की टीम बुलाई गई. वायरस का फार्मूला तैयार हुआ. राजा वायरस बन कर हर दिन सौ फ़ोन में जाएगा. सौ घरों की बात लेकर आएगा.
राजा दिन रात लोगों की बातें सुनने लगा. रात को जब फोन वाला सो रहा होता, राजा जाग रहा होता. राजा सोता नहीं है. यह ख़बर गांव गांव फैल गई. राजा भी ख़ुश हुआ. यह ख़बर किसी को नहीं लगी कि राजा सोता क्यों नहीं है ? जागकर क्या करता है ?
राजा सब देखने लगा. फोन वाला नहा रहा है. फोन वाला खा रहा है. फोन वाला बाहर जाने के लिए पैंट बदल रहा है. फोन वाली साड़ी बदल रही है. फोन वाला फोटो खींच रहा है. फोन वाला बतिया रहा है. फोन वाला बाहर जा रहा है. फोन वाला किसी उद्योगपति से मिल रहा था. फोन वाला राजा का सच ढूंढ रहा है.
उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. घबराहट में राजा ने सच का सेंड बटन दबा दिया. राजा का सच फोन वाले के फ़ोन में पहुंच गया. राजा फ़ोन वाले का जीवन जीने लगा. भूल गया कि वह राजा है. वह फ़ोन वाला बन गया, उसका जीवन जीने लगा.
फोन वाला जिस तरह के कपड़े पहनता, राजा भी उसी तरह के कपड़े पहनने लगा. फोन वाला अपनी दोस्तों को मैसेज भेजता, राजा भी अपनी दोस्त को मैसेज करने लगा. फ़ोन वाला ट्वीट करता तो राजा भी उसी तरह के ट्वीट करने लगा. फोन वाला खाने के लिए जो कुछ आर्डर करता, राजा भी वही आर्डर करने लगा. राजा का हाव-भाव बदलने लगा. वह दूसरों में ख़ुद को ढूंढना छोड़, ख़ुद को ख़ुद में ढूंढने लगा. अब फ़ोन वाला और राजा मिलकर राजा को ढूंढने लगे.
कई दिनों बाद टीम के सदस्यों ने राजा से पूछा – ‘अनुभव कैसा रहा ? क्या क्या देखा ? क्या क्या मिला ?’ जवाब में राजा ने कहा कि – ‘अब मैं वह नहीं हूं जो था. मेरा सच उन लोगों को मिल गया है. मैं ग़लती से उन्हें अपना सच दे दिया. उनकी जासूसी करते करते वो मेरी जासूसी करने लगे.’
महिला सदस्य ने कहा, ‘आप जासूस कमाल के हैं. राजा कैसे बन गए ?’
नोट – प्रेमचंद को याद करते हुए यह कहानी लिखी है. आप भी कहानी ही लिखिए.
- रविश कुमार
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