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भारत देश एक भयानक लूट के दौर से गुज़र रहा है

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भारत देश एक भयानक लूट के दौर से गुज़र रहा है

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता

यहां डाल-डाल पर सोने की चिडियां करती हैं बसेरा, और बाकी के मुल्कों में हाड़ मांस की चिडियां बसेरा करती हैं. ये देश है वीर जवानों का, बाकी के देश डरपोक बुड्ढों के हैं. मेरे देश की धरती सोना उगले, बाकी के देशों की धरती सिर्फ अनाज उगलती है. यहां राम अभी तक है नर में नारी में अभी तक सीता है, बाकी के देश में नर और नारी तुच्छ जीव हैं. होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफ़ाई रहती है, बाकी के देशों के लोगों के होठों पे झूठ और दिल में गंदगी रहती है. काले-गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है, बाकी के देशों के लोगों के बीच में जात पात का नाता है.

अब इन बच्चों वाली बातों से बाहर निकलो यार. सारी दुनिया में तुम्हारे जैसे ही इंसान रहते हैं. कब तक खुद को धोखा देते रहोगे ? कब तक भ्रम में रहोगे ? हमारे देश में भयानक जाति का भेदभाव है. हम लोगों की बस्तियां जला देते हैं, हम अपने जंगलों को नष्ट कर रहे हैं और जंगलों की रक्षा करने वालों को पुलिस से मरवा रहे हैं. हम औरतों को पेट में मार रहे हैं, सड़कों पर बेइज्ज़त कर रहे हैं. नौजवानों की बेरोज़गारी सबसे अधिक है. बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं. इन सब कमियों को स्वीकार करो और इन्हें ठीक करने की कोशिश करो. झूठे घमंड से कोई फायदा नहीं होता.

भारत देश एक भयानक लूट के दौर से गुज़र रहा है. भारत के जंगल, खदानें, समुन्दर के तट, नदियां सब बेचा जा रहा है. लोग इसका विरोध कर रहे हैं. वो लोग विरोध कर रहे हैं जो वहां रहते हैं. इसमें आदमी औरतें बच्चे सभी शामिल हैं. विरोध करने वालों को जेलों में डाला जा रहा है. आदिवासियों के संघर्ष का समर्थन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में डाला जा रहा है. इनमें वकील लेखक मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं.

छत्तीसगढ़ की सोनी सोरी और झारखंड की दयामनी बारला को तो हम जानते हैं लेकिन हजारों ऐसी आदिवासी किसान महिलाएं हैं जो अभी भी जेलों में बंद हैं, जिन्हें कोई नहीं जानता. हजारों ऐसी महिला किसान हैं जिनके साथ भारतीय सुरक्षा बलों ने बलात्कार किये. भारत के मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कबूल किया कि सोलह महिलाओं के पास उन्हें प्राथमिक साक्ष्य मिले जिससे यह साबित होता है कि उनके साथ सुरक्षा बलों के सिपाहियों ने बलात्कार किये.

फादर स्टेन स्वामी जिन्हें हाल ही में भारतीय राज्य ने शहीद कर दिया, उनका कसूर क्या था ? यही ना कि उन्होंने जेलों में बंद चार हज़ार आदिवासियों की सूची जारी कर दी थी, जिन्हें फर्ज़ी मुकदमें बना कर बरसों से जेलों में सड़ाया जा रहा है.

भारत के राष्ट्रपति को भारत के संविधान ने आदिवासियों का संरक्षक नियुक्त किया है. राष्ट्रपति बिना सरकार से पूछे आदिवासियों के मानवाधिकार जीवन और आजीविका को खतरे में देख कर किसी भी कानून का आदिवासी क्षेत्रों में लागू होने पर रोक लगा सकता है.

राष्ट्रपति किसी भी ऐसी परियोजना को रोकने का आदेश दे सकता है, जिससे आदिवसियों के जीवन आजीविका या समुदाय की परम्पराओं के मिटने का खतरा हो लेकिन आज़ादी के बाद से आज तक एक भी राष्ट्रपति ने ऐसा नहीं किया. आजादी के बाद सबसे पहले बने दामोदर वैली बांध के झारखंड के आदिवासी आज तक पुनर्वास का इंतज़ार कर रहे हैं.

आप कहेंगे कि क्या देश को बिजली नहीं चाहिए ? ठीक है आपको बिजली चाहिए, आपने आदिवासियों को उजाड़ दिया. आपका अधिकार बिजली पर है लेकिन आदिवासी को दुबारा बसा दिया जाय, उसकी जीविका की जिम्मेदारी किसकी है ?

जब आजादी आ रही थी गांधी ने कहा था कि अगर भारत अंग्रेज़ी विकास का माडल चुनेगा तो उसे अपने ही देशवासियों से युद्ध करना पड़ेगा. अंग्रेज़ी विकास का माडल कहता है विकसित वही है, जिसके पास ज्यादा हो. लेकिन प्रकृति ने सबको बराबर दिया है. आपके पास ज्यादा तभी हो सकता है जब आप दुसरे के हिस्से का भी ले लें. दूसरा देगा नहीं तो आप उसे छीनेंगे. छीन आप तभी सकते हैं जब आपके पास ताकत हो.

कहा जाता था अंग्रेज़ी राज में कभी सूरज नहीं डूबता, एक अंगरेज़ ने लिखा. यह भी सच है अंग्रेज़ी राज में कभी खून नहीं सूखता. अंगरेज़ अपने इस विकास के माडल को बनाये रखने के लिए सारी दुनिया में युद्ध करते थे.

गांधी ने कहा था अगर भारत इस अंग्रेज़ी विकास के माडल को अपनाएगा तो वह किस पर हमला करेगा ? गांधी ने कहा लिख कर रख लो एक दिन आप अपने ही गांवों पर हमला कर देंगे. वो हमला जारी है.

आज हमारे सुरक्षा बलों के सिपाही सबसे ज्यादा कहां हैं ?वो आदिवासी इलाकों में हैं. वो वहां क्या करने गये हैं ? वो वहां ज़मीनों पर कब्ज़ा करने गये हैं. ज़मीनों पर कब्ज़ा किसके लिए किया जा रहा है ? क्या देश की गरीबी दूर करने के लिए ? नहीं, पूंजीपतियों की तिजोरी भरने के लिए.

सिपाही भी गरीब किसान का बच्चा है. जिस आदिवासी को वह मार रहा है, वह भी गरीब किसान है. किसान किसान को मार रहा है, पूंजीपति फायदा उठा रहा है. यही है पूंजीवाद का किसान पर हमला. किसानों के हाथों में बंदूकें पकड़ा दी हैं कि मारो एक दुसरे को, फायदा हम उठाएंगे.

आज जो युद्ध आदिवासी इलाकों में चल रहा है, वह युद्ध एक दिन पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में भी दिखाई देगा. इन सूबों में भी सीआरपीएफ बिठाई जायेगी और जमीनों पर पूंजीपतियों का कब्जा कराया जाएगा. यहां के किसानों को भी आपस में युद्ध में झोंका जाएगा. पूंजीवाद बिना हिंसा के ना फ़ैल सकता है, ना जिंदा रह सकता है. आदिवासी अपनी पूरी ताकत से इसके खिलाफ लड़ रहा है.

हाल फिलहाल भी सिल्गेर में आदिवासी फौजी तैनाती के खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं. इसमें चार आदिवासियों को गोली से भून दिया गया, जिसमें एक गर्भवती महिला किसान भी शामिल थी. आदिवासी कार्यकर्ता हिडमे को कुछ ही महीनें पहले गिरफ्तार कर युएपीए लगा कर जेल में डाल दिया गया है.

हम सब जानते हैं कि यह पूंजीवादी लूट मानवाधिकार, लोकतंत्र, संविधान सबको कुचल देगी. हम अपने सामने देख रहे हैं कि पूंजीवाद ने गुंडों को सत्ता पर बैठा दिया है और देश के भले के लिए काम करने वाले लोगों को जेल में डाल दिया गया है. जनता को बेरोजगार बना दिया गया है. काम धंधों को ख़तम कर दिया गया है. एक एक करके बैंकों को खाली किया जा रहा है और उन्हें दिवालिया घोषित किया जा रहा है.

सरकार ने घोषित किया कि आपके घर में रखे पैसे अवैध हैं. सरकार ने व्यवस्था की जिससे बैंक में रखा पैसा पूंजीपति लूट ले. यानी आपकी ज़मीन कानून बना कर और सीआरपीएफ के दम पर छीन ली जायेगी. आपकी नौकरी भी पूंजीपति का मुनाफा बढाने के लिए ख़त्म कर दी जायेगी. आपका पैसा भी पूंजीपति हडप कर जाएगा. जो इस सबके खिलाफ आवाज़ उठाएगा, उसे युएपीए लगा कर जेल में डाल दिया जाएगा. यह सब साफ़ साफ़ हो रहा है. लाखों किसान इसके खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं.

करोड़ों मजदूर बेरोजगार हो चुके हैं. करोड़ों पढ़े लिखे नौजवान नौकरी खो चुके हैं. हाल ही में एक बीमारी में सरकार ने जनता को कैसे सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया था वह हमने देखा. स्कूली पढ़ाई बंद हो चुकी है. इस व्यवस्था में आपके लिए कुछ नहीं बचा है. ना पढ़ाई, ना इलाज, ना नौकरी, ना काम धंधा बल्कि आपका कमाया हुआ पैसा भी यह लूट लेंगे, आपकी ज़मीन भी छीन लेंगे.

कमाल देखिये फिर भी एक तबका इस व्यवस्था का समर्थक है. उसके लिए समस्या मुसलमान या दलितों को मिलने वाला आरक्षण है. हमारी लड़ाई ही गलत दिशा में है. समस्या मुसलमान या आरक्षण नहीं है. हमें अपनी लड़ाई को सही दिशा में मोड़ना पड़ेगा, तभी हम आने वाली पीढ़ियों को बचा सकेंगे.

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