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किसान आंदोलन के निरंतर शांतिपूर्ण विरोध के 8 महीने

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किसान आंदोलन के निरंतर शांतिपूर्ण विरोध के 8 महीने

आठ महीने से लगातार चल रहे किसान आंदोलन समूची दुनिया में अपनी छाप छोड़ रही है. एक ओर भारत सरकार जो असल में मोदी सरकार है और अंबानी-अदानी जैसे कॉरपोरेट घरानों का रखैल बनकर रह गया है आये दिन किसान आंदोलनकारियों के खिलाफ दुश्प्रचार फैलाने का कोई मौका नहीं छोड़ती है.

पुराने मामलों (खालिस्तानी, आतंकवादी, माओवादी जैसे विशेषणों) को दरकिनार भी कर दें तो अब केन्द्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी, जिसे अपना नाम तक शुद्धता से लिखना नहीं आता है, वह किसान आंदोलनकारियों को ‘मवाली’ बता रही है. इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि भारत सरकार की सत्ता ऐसे निर्लज्ज लोगों के हाथों में आ गई है जो स्वयं अनपढ़, अल्पशिक्षित, हत्या-बलात्कार-गुण्डागर्दी, ठगी, हजारों करोड़ रुपये के गबन का आरोपी रहे हैं. अब वह देश के करोड़ों मेहनतकश लोगों को उनकी पहचान बता रहे हैं.

जो स्वयं लूट-खसोट कर लाये गये धनों पर ऐशोआराम की समस्त सुविधाओं को जुटा रखें हैं, वह देश के मेहनतकश आवाम को बता रहे हैं कि तुम्हें कोई सुविधा नहीं लेना है. तुम्हें हमेशा फटे चिथरों में रोते कलपते और हाथ जोड़ते रहना है, कि पिज्जा खाना और एसी कमरे में सोने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है. यह बेहद दिलचस्प नजारा है, जो भारत सरकार और उसके कानूनी-गैर-कानूनी नुमाइंदे आये दिन पेश कर रहे हैं.

बहरहाल, दिल्ली बॉर्डर पर पिछले आठ महीनों से लाखों की तादाद में बैठे किसान आंदोलनकारी सचमुच अगर सरकारी टट्टुओं के अनुसार खालिस्तानी, आतंकवादी, माओवादी, मवाली होते तो मोदी और उसके नुमाइंदों को खम्भों और पेड़ों पर लटके मिलने होने चाहिए, न कि आलिशान महलों में बैठकर नये नये नामों और उपनामों की जुगाली करते होते.

शानदार किसान आंदोलन

कल 26 जुलाई 2021 को, किसान आंदोलन भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर निरंतर विरोध प्रदर्शन के 8 महीने पूरे कर लेगा. इन आठ महीनों में भारत के लगभग सभी राज्यों के करोड़ों किसान विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. विरोध शांतिपूर्ण रहा और हमारे अन्नदाताओं के सदियों पुराने लोकाचार को दर्शाया है.

कठिनाइयों का सामना करने के लिए किसानों की दृढ़ता, अटलता और भविष्य के लिए उनके आशा और संकल्प को दर्शाता है. इस अवधि के दौरान किसानों ने खराब मौसम और दमनकारी सरकार का बहादुरी से सामना किया. एक चुनी हुई सरकार ने – जो मुख्य रूप से किसानों के वोटों पर सत्ता में आई थी – उनके साथ विश्वासघात किया, और किसानों को अपनी आवाज और मांगों को सच्चे, धैर्यपूर्वक और शांतिपूर्ण तरीके से उठाने के लिए विवश होना पडा.

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से आन्दोलन के 241वें दिन आज (25 जुलाई 2021) संयुक्त हस्ताक्षरित प्रेस बयान जारी किया गया है, जिसमें किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव शामिल हैं. उन्होंने कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों ने देश में किसानों की एकता और प्रतिष्ठा को बढ़ाया है और भारतीय लोकतंत्र को गहरा किया है. इस आंदोलन ने किसानों के पहचान को सम्मान दिया है.

जंतर-मंतर पर कल होगी महिला किसान संसद

कल जंतर-मंतर पर किसान संसद का संचालन पूरी तरह महिलाएं करेंगी. महिला किसान संसद भारतीय कृषि व्यवस्था में और चल रहे आंदोलन में, महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाएगी. महिला किसान संसद के लिए विभिन्न जिलों से महिला किसानों का काफ़िला मोर्चे पर पहुंच रहा है.

‘मिशन उत्तर प्रदेश’ कल से लखनऊ में शुरू

मिशन उत्तर प्रदेश की शुरुआत के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के नेता कल लखनऊ जाएंगे. वे वहां आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करेंगे. ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. इस साल की शुरुआत में हुए पंचायत चुनावों में किसान आंदोलन ने अपनी छाप छोड़ी थी, और कई जगहों पर भाजपा उम्मीदवारों को दंडित किया गया था और निर्दलीय उम्मीदवारों को सबसे अधिक सीटें मिलीं थी.

आंदोलन में किसानों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं-भारत सरकार

भारत सरकार का बार-बार यह बयान कि उसके पास मौजूदा आंदोलन में किसानों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं है, बेहद शर्मनाक है और संयुक्त किसान मोर्चा मोदी सरकार के इस कठोर रवैये की निंदा करता है. पंजाब सरकार ने पंजाबी प्रदर्शनकारियों की मौत की आधिकारिक संख्या 220 रखी है. संयुक्त किसान मोर्चा इस संख्या की पुष्टि करने की स्थिति में नहीं है. हालांकि, अगर मोदी सरकार किसान आंदोलन द्वारा रखे गए आंकड़े, जो मौजूदा संघर्ष में अब तक कम से कम 540 मौतों की एक बेहिचक संख्या दिखाती है, को नहीं मानना चाहती है, तो सरकार को कम से कम राज्य सरकार के आधिकारिक आंकड़े को देखना चाहिए. अगर वह ऐसा नहीं करना चाह रही है तो यह भाजपा के किसान विरोधी रवैये को स्पष्ट करता है.

संयुक्त किसान मोर्चा ने सिरसा प्रशासन द्वारा लगभग 525 प्रदर्शनकारियों पर, पुलिस द्वारा गलत तरीके से गिरफ्तार किए गए पांच प्रदर्शनकारियों को रिहा करने की मांग करने के लिए हाल ही में दिल्ली-डबवाली राजमार्ग पर यातायात अवरुद्ध करने के लिए, दर्ज मामलों की निंदा की. वरिष्ठ न्यायाधीशों ने भी स्पष्ट बताया है कि यहां प्रदर्शनकारियों के खिलाफ राजद्रोह का कोई मामला नहीं बनता है. हालांकि गिरफ्तार किए गए पांच किसानों को रिहा कर दिया गया है, विडंबना यह है कि हरियाणा सरकार ने अब 525 किसान, जो मूल रूप से यह कह रहे थे की राजद्रोह का आरोप गलत और अरक्षणीय है, के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.

संयुक्त किसान मोर्चा मांग करता है कि हरियाणा सरकार इन मामलों को तुरंत वापस ले. संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि यह स्पष्ट है कि हरियाणा सरकार ने अभी भी हिसार, टोहाना और सिरसा में गलत तरीके से हिरासत में लिए गए और दर्ज मामलों से कोई सबक नहीं सीखा है. ये ताजा मामले वास्तव में हास्यास्पद और अस्वीकार्य हैं.’

किसानों के कई नए दल विभिन्न विरोध स्थलों पर पहुंच रहे हैं. कल बिजनौर से निकल कर आज एक बड़ी ट्रैक्टर रैली गाजीपुर बार्डर पर पहुंची, साथ ही किसानों में एकता व सौहार्द को मजबूत करने के लिए आज पलवल अनाज मंडी में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया.

भाजपा नेताओं के खिलाफ काला झंडा

पंजाब में, भाजपा नेता बलभद्र सेन दुग्गल को कल फगवाड़ा में किसानों के काले झंडे के विरोध का सामना करना पड़ा. इसी तरह, हरियाणा के भाजपा राज्य इकाई के अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ को हरियाणा के बादली में विरोध का सामना करना पड़ा, जब वे पार्टी की एक बैठक में शामिल होने के लिए वहां पहुंचे थे. हरियाणा के हिसार गांव में, भाजपा नेता सोनाली फोगट को कल वहां एकत्र हुए किसानों के द्वारा विरोध में काले झंडे दिखाए गए. जैसा कि एक दिन पहले रुद्रपुर में हुआ था, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को भी काले झंडे के विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

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ROHIT SHARMA

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