हिमांशु कुमार, गांधीवादी चिंतक
हिन्दुओं को इस बात से बड़ी दिक्कत है कि लोग उनका धर्म छोड़ कर दूसरे धर्म में जा रहे हैं. इसकी असल वजह हिन्दू धर्म की संकीर्णता और घृणा है. हिन्दू आपस में ही एक दूसरे से नफरत करते हैं. दलितों की बस्तियां हिन्दू ही जलाते हैं, कोई मुसलमान या इसाई जलाने नहीं आते. लक्षमणपुर बाथे, शंकर बिगहा, बथानी टोला में दलितों के सामूहिक जनसंहार किसने किये ? हिन्दुओं ने ही ना. जब आप अपने ही धर्म वालों को मारोगे, जलाओगे, नीच कहोगे तो वो आपके पीछे- पीछे क्यों लगा रहे ? लेकिन आपकी दादागिरी की कोई हद ही नहीं है.
आप विधान सभा में अपने बहुमत का दुरूपयोग करके धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बना लेते हो लेकिन खुद में सुधार के बारे में कोई कोशिश नहीं करते. बल्कि जो सुधार की कोशिश करते हैं, उसे मार डालते हो. नरेंद्र दाभोलकर, गोविन्द पंसरे, गौरी लंकेश, कलबुर्गी को किस लिए मारा गया ? कट्टरता और अंधविश्वास का विरोध करने की वजह से ही ना ? तो आप अपने में सुधार लाना नहीं चाहते. आपकी सारी कोशिश यह रहती है कि मुसलमानों को सुधार दो. अरे भाई सुधार अपने भीतर किया जाता है. दूसरे से जबरदस्ती नहीं की जाती..यही धर्म की शिक्षा है.
आप तो अपनी बहुओं की भी इज्जत नहीं करते. सोनिया गांधी को कौन गाली देता है ? भारतीय संस्कृति का ढोल पीटने वाले ही ना. किस देश में बहुएं जलाई जाती हैं, नाम बताइये ? किस देश में लड़कियों को पेट में ही मार दिया जाता है, नाम बताइये ? देश का नाम छोडिये, किस धर्म में फ़ैली हुई है यह क्रूरता ? अब याद आया ? लेकिन आप स्वीकार करने की बजाय मुझे ही गलियां देंगे. आप अगर स्वीकार कर लें तो सुधार की दिशा में जा सकते हैं. लेकिन आपकी आंखों पर नफरत की पट्टी बांध दी गई है. जिससे आपको सच दिखना बंद हो चुका है.
नीचे एक विडिओ है. एक विदेशी लडकी भारतीय लड़के से शादी करके बड़े शौक से साड़ी पहन कर मन्दिर जाना चाहती थी लेकिन उसे मन्दिर नहीं जाने दिया गया. इससे उस लडकी के मन में आपके धर्म को लेकर इज्जत बढ़ी होगी क्या ? या उसने सोचा होगा कि हिन्दू कितने मूर्ख और नफरत करने वाले होते हैं ? जागो हिन्दू जागो. नफरत भगाओ खुद को बचाओ वरना तुम्हारी दास्तां तक ना होगी दस्तानों में.
एक विदेशी लडकी भारतीय लड़के से शादी करके बड़े शौक से साड़ी पहन कर मन्दिर जाना चाहती थी लेकिन उसे मन्दिर नहीं जाने दिया गया.
मैं, रंजीत और देश बचाने की लड़ाई
‘आप भगवान और धर्म को मानते हैं क्या ?’ रंजीत ने मुझसे पूछा.
मैंने कहा – ‘पहले मानता था, अब नहीं मानता.’
रंजीत खुश होकर बोले – ‘तब तो आप मेरे जैसे हैं, मैं भी नहीं मानता.’
रंजीत ने अपने हाथ पर बना ‘ऊँ’ का टैटू दिखाते हुए मुझसे कहा कि – ‘जब मैं धर्म कर्म को मानता था तो यह टैटू बनवाया था. अब कभी-कभी नास्तिकता पर बहस करते समय लोग मेरे इस टैटू पर सवाल उठाते हैं तो मैं कमज़ोर पड़ जाता हूं.’
मैने रंजीत को समझाया कि – ‘इसमें कमज़ोर पड़ने की क्या बात है ? अगर आप जन्म से इसलिये नास्तिक हैं क्योंकि आपके माता पिता नास्तिक हैं तो इसमें आपकी कोई ख़ासियत नहीं है. फिर तो आप भी हिन्दु मुसलमानों जैसे हो गये जिन्हें अपने मां बाप के धर्म को अपनाना पड़ता है. लेकिन अगर आप जन्म से धार्मिक थे और बाद में तर्क और बुद्धि का इस्तेमाल करने के बाद ईश्वर और धर्म के झूठे प्रचार से आज़ाद हो जाते हैं तो आप की कोशिशों का कुछ महत्व है.’
रंजीत बताने लगे कि – ‘नास्तिक बनने के बाद मैं बहुत हल्का फुल्का महसूस करता हूं. अब मेरे दिमाग पर पहले की तरह यह बोझ नहीं रहता कि भगवान मेरा कुछ बुरा ना कर दे. अब मुझे पता है कि वही होगा जो मैं करूंगा.’
रंजीत 23 साल के युवा हैं और उन्हें जिम्मेवारी दी गई कि वह मुझे झारखण्ड के दुमका की सभा के बाद बिहार की भागलपुर की सभा तक पहुंचा दें. रंजीत के ऊपर अभी पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज की हुई है. झारखण्ड की तत्कालिन भाजपा सरकार ने रंजीत के ऊपर सैनिकों के विरूद्ध बगावत फैलाने, साम्प्रदायिक अशांति फैलाने, षडयंत्र रचने जैसे आरोप लगा कर रंजीत को डराने के लिये पुलिस को पीछे लगा दिया था.
इनका अभी अपराध यह था कि रंजीत और अन्य कई युवा कार्यकर्ताओं ने एक सभा करने का फैसला किया. सभा में भाजपा द्वारा फैलाई जा रही साम्प्रदायिकता और आदिवासियों की ज़मीनें छीनने के मुद्दे पर चर्चा करना तय किया गया. इस सभा में मुझे, सोनी सोरी, जेएनयू अध्यक्ष मोहित पाण्डेय, दयामनी बारला आदि को बुलाना तय किया गया. सिर्फ इस सभा की योजना बनाने के जुर्म में पुलिस ने रंजीत और उनके साथियों के विरुद्ध इतने संगीन धाराओं के आरोप लगा दिये. इन आरोपों में उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती थी.
रंजीत हंसते हुए कह रहे थे कि ‘मेरी तो ज़िंदगी अभी शुरू ही हुई है और सरकार मुझे उम्रकैद देना चाह रही है.’ असल में रंजीत के इलाके में अडानी नामक एक उद्योगपति को सरकार 1700 एकड़ ज़मीन दे रही थी. रंजीत और उनके साथी अडानी द्वारा इस ज़मीन हड़प के खिलाफ रैली, धरना करते रहते हैं.
मैने पूछा – ‘आप इस राह पर कैसे आये ?’
रंजीत ने बताया – ‘हम लोग दलित हैं. मेरे पिताजी गोड्डा शहर में जूते बनाकर बेचते थे लेकिन सरकार ने वह दुकान तोड़ दी. एक बार एक भाजपा नेता और ठेकेदार से विवाद के कारण रंजीत को पुलिस पकड़ कर ले गई और रात भर हवालात में रखा.’ इसके बाद डरकर चुप बैठ जाने की बजाय रंजीत ज़ुल्म के खिलाफ और भी मुखर हो गये.
एक मुस्लिम महिला का बच्चा चोरी होने के बाद थानेदार ने उस महिला से कहा कि रिपोर्ट लिखने के लिये क्यों कह रही हो ? तुम लोग तो दस-दस बच्चे पैदा करते हो, जा और बच्चे पैदा कर लो.
रंजीत तब तक अम्बेडकर स्टूडेन्ट यूनियन संगठन का गठन कर चुके थे. रंजीत और उनके साथियों ने थानेदार और थाने को घेर लिया. इतने लोगों को देखकर थानेदार सहम गया और दो दिन में बच्चा ढूंढ कर उसकी मां शबाना को सौंप दिया. लेकिन पुलिस और स्थानीय भाजपा नेता रंजीत के वजूद और उनके कामों से डरने लगे. एक दिन रंजीत किसी काम से बाज़ार गये थे, थानेदार दो जीप भरकर सिपाही लेकर आया और रंजीत को उठाकर थाने ले गया.
शहर भर में शोर मच गया. सुबह होते ही पुलिस द्वारा रंजीत को छोड़ देना पड़ा. अब फिर से रंजीत पर यह नया मुकदमा बनाया गया था. इस नये मामले में जेएनयू के छात्र बीरेन्द्र और सामाजिक कार्यकर्ता मुस्तकीम समेत 7 सामाजिक कार्यकर्ताओं को फंसाया गया है.
मैं यह सब सुन रहा था. बस चल रही थी. बाहर झारखण्ड के जंगल, पहाड़ और नदियां सामने आती जा रही थी और पीछे छूट रही थी. मैं सोच रहा था इस ज़मीन और देश के रखवाले ये दलित आदिवासी और मुसलमान युवा हैं ? या हाथ में कलावा बांध कर माथे पर तिलक लगाकर मुसलमानों, इसाइयों, दलितों, आदिवासियों को गाली बकने वाले तथाकथित राष्ट्रवादी युवक इस देश और इस जनता के रक्षक हैं ?
मैं आज लौट जाऊंगा लेकिन रंजीत मेरे दिल में हमेशा रहेंगे और यह विश्वास दिलाते रहेंगे कि देश को बचाने की लड़ाई बन्द नहीं होगी.
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