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प्रीडेटर नरेंद्र मोदी

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प्रीडेटर नरेंद्र मोदी

गिरीश मालवीय

‘प्रीडेटर नरेंद्र मोदी.’ यह मैं नही कह रहा हूं, यह दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की राय है. RSF ने ऐसे 37 राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों के नाम प्रकाशित किए हैं, जो उसके मुताबिक ‘प्रेस की आज़ादी’ पर लगातार हमले कर रहे हैं.

इस सूची में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन, म्यांमार के तख्तापलट नेता मिन आंग हलिंग, ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग शामिल हैं. यानी दुनिया के बड़े तानाशाहों की लिस्ट में नरेंद्र मोदी का नाम भी बड़ी इज्जत से शामिल किया गया है.

आरएसएफ के महासचिव क्रिस्टोफ डेलोयर इस रिपोर्ट की भूमिका में लिखते हैं ‘इन प्रीडेटर (शिकारियों) में से प्रत्येक की अपनी शैली है. कुछ तर्कहीन और मनमाने आदेश जारी करके आतंक का शासन लगाते हैं. अन्य लोग कठोर कानूनों के आधार पर सावधानीपूर्वक बनाई गई रणनीति अपनाते हैं. इन शिकारियों के लिए अब एक बड़ी चुनौती उनके दमनकारी व्यवहार के लिए उच्चतम संभव कीमत चुकाना है. हमें उनके तरीकों को नया सामान्य नहीं बनने देना चाहिए.’

RSF की वेबसाइट पर भारत की स्वतंत्र पत्रकारिता की वास्तविक स्थिति को बयान करता और एक लेख मिलता है, जिसमें कहा गया है कि ‘उन पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है, जो अपना काम ठीक से करने की कोशिश कर रहे हैं. वे पत्रकारों के खिलाफ पुलिस की हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा घात लगाकर हमला करने और आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा उकसाए गए प्रतिशोध सहित हर तरह के हमले का सामना करते हैं.’

‘2019 के वसंत में आम चुनावों के बाद से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने भारी जीत हासिल की, मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादी सरकार की लाइन पर चलने का दबाव बढ़ गया है. हिंदुत्व का समर्थन करने वाले भारतीय, वह विचारधारा जिसने कट्टरपंथी दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवाद को जन्म दिया, सार्वजनिक बहस से ‘राष्ट्र-विरोधी’ विचारों की सभी अभिव्यक्तियों को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं. उन पत्रकारों के खिलाफ सोशल नेटवर्क पर समन्वित घृणा अभियान छेड़े गए, जो उन विषयों के बारे में बोलने या लिखने की हिम्मत करते हैं, जो हिंदुत्व के अनुयायियों को परेशान करते हैं और इसमें संबंधित पत्रकारों की हत्या के लिए कॉल शामिल हैं.’

RSF सालाना प्रेस फ्रीडम इंडेक्स जारी करता है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया की आज़ादी को मापने का एक पैमाना समझा जाता है. इस इंडेक्स में नरेंद्र मोदी का भारत पिछले चार सालों से लगातार नीचे खिसकता जा रहा है. वह साल 2017 में 136वें, साल 2018 में 138वें, साल 2019 में 140वें और पिछले साल 142वें नंबर पर पहुंच गया. यह भारत की स्वतंत्र पत्रकारिता के इतिहास का सबसे बुरा दौर है आपातकाल से भी बुरा.

भारत के पासपोर्ट की गिरती प्रतिष्ठा

कुछ सालों पहले तक अंधभक्त बड़े गर्व से बताया करते थे कि ‘मोदीजी के आने से भारतीय पासपोर्ट की ताकत कई गुना बढ़ गयी है. भारतीय पासपोर्ट धारकों को लोग गर्व के भाव से देखते हैं. मोदी राज में भारत का पासपोर्ट नयी ऊंचाइयों पर पुहंच गया हैं.’ लेकिन यह सब व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का ज्ञान है.

असलियत यह है कि जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं. साल दर साल भारत के पासपोर्ट की प्रतिष्ठा गिरती ही जा रही है. आज हेनले पासपोर्ट इंडेक्स की जो खबर आई है. उससे पता चला है कि ताजा सूची में 2020 की अपेक्षा भारत छह पायदान फिसलते हुए 90वें स्थान पर चला गया है. साल 2020 में भारत का स्थान 84वां था. वर्ष 2018 में भारत 81वें स्थान मिला था.

इससे पहले की रैंकिंग भी जान लीजिए. 2006 में भारत 71वें नंबर पर था. 2014 में भी जब मोदी सत्ता में आए थे तब भी भारत की रैंकिंग 77 वी थी लेकिन अब सीधे 90वें नम्बर पर पहुंच गया है.

किस देश के पासपोर्ट पर कितने देश मुफ्त और आसानी से वीजा देते हैं, उसके आधार पर यह रैकिंग तय की जाती है. जिस देश के पासपोर्ट पर सबसे ज्यादा देश वीजा ऑन एराइवल की सुविधा देते हैं, उस देश का पासपोर्ट ज्यादा शक्तिशाली (पॉवरफुल) माना जाता है. इस लिस्ट में सबसे शक्तिशाली पासपोर्ट जापान का है. जापान का पासपोर्ट दुनिया भर के 193 देशों के लिए वीजा-मुक्त या वीजा-ऑन-अराइवल की सुविधा देता है. भारतीय नागरिकों को 58 देश बिना वीजा के ही प्रवेश देते हैं. अब बताईये ! डंका बज रहा है कि नहीं ?

बदहाल मध्यम वर्ग

कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने भारतीय परिवारों की बचत को ध्वस्त कर दिया है. सबसे बुरी हालत इस वक्त मिडिल क्लास की है. इन दिनों कई मिडिल क्लास परिवार उधार ले-लेकर अपना काम चला रहे हैं. एक रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि भारतीय परिवार पर कर्ज बढ़ा है. यह वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 37.3 फीसदी तक पहुंच गया है. यह इससे पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में 32.5 प्रतिशत था.

परिवार के कर्ज का अनुमान बैंकों, हाउसिंग फाइनांस कंपनी, गैर-बैंकिंग फाइनांस कंपनियों के लिए उसकी देनदारियों का जीडीपी में जो अनुपात है, उससे लगाया जाता है. इस बार एक वित्त वर्ष में लगभग 5 प्रतिशत का उछाल आया है. यह स्थिति खतरनाक है क्योंकि भारतीय परिवार की बचत घट रही हैं. रोजगार में लगे लोगों की संख्या भी घटी है.

इन सब परिस्थितियों के लिए मोदी सरकार के गलत आर्थिक निर्णय ही जिम्मेदार है. पारिवारिक कर्ज का स्तर जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से बढ़ रहा है. लेकिन वास्तव में इसकी शुरुआत नोटबन्दी जो 8 नवम्बर 2016 से हुई है.

इस साल अप्रैल में पर्सनल लोन में 12.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वाहन के लिए लिये गए कर्ज में 11.7 प्रतिशत की वृद्धि, क्रेडिट कार्ड के जरिए लिये गए कर्ज में 17 प्रतिशत की और सोने के जेवरों को गिरवी रखकर लिये गए कर्ज में 86 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि देखी गयी है.

पहले जो लोन लिए जाते थे वह कंज़्यूमर ड्यूरेबल पर लिए जाते थे. इससे इकनॉमी को भी गति मिलती थी. अप्रैल में कंज़्यूमर ड्यूरेबल के लिए लिये जाने वाले पर्सनल लोन में 18 प्रतिशत की कमी आई.

यानी अधिकांश लोन इलाज के खर्च में, घर का खर्चा चलाने में, मकान दुकान का किराया भरने में इस्तेमाल हो रहे हैं. दूसरी लहर के दौरान लिए गए कर्ज चुकाने का असर उपभोग पर पड़ेगा. यानी आर्थिक वृद्धि का पूरा चक्र ही मंद हो रहा है.

मिडिल क्लास इस बार कर्ज के ऐसे भंवर में फंसा है जिसमें से उसका निकलना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है. आप देख ही रहे हैं कि आर्थिक तंगी से उपजे तनाव में कई परिवारों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है. ऊपर से पेट्रोल डीजल के महंगे दामों के कारण महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही हैं. मिडिल क्लास के लिए आने वाला दौर चुनौतियां से भरा हुआ है.

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