लोकल ट्रेन से उतरते
हमने सिगरेट जलाने के लिए
एक साहब से माचिस मांगी,
तभी किसी भिखारी ने हमारी तरफ हाथ बढ़ाया,
हमने कहा ‘भीख मांगते शर्म नहीं आती ?’
ओके, वो बोला
‘माचिस मांगते आपको आयी थी क्या ?’
बाबूजी ! मांगना देश का करेक्टर है,
जो जितनी सफ़ाई से मांगे
उतना ही बड़ा एक्टर है,
ये भिखारियों का देश है.
लीजिए ! भिखारियों की लिस्ट पेश है,
धंधा मांगने वाला भिखारी
चंदा मांगने वाला
दाद मांगने वाला
औलाद मांगने वाला
दहेज मांगने वाला
और तो और वोट मांगने वाला
हमने काम मांगा तो लोग कहते हैं चोर है,
भीख मांगी तो कहते हैं, कामचोर है,
उन्हें कुछ नहीं कहते,
जो एक वोट के लिए,
दर-दर नाक रगड़ते हैं,
घिस जाने पर रबर की खरीद लाते हैं,
और उपदेशों की पोथियां खोलकर,
महंत बन जाते हैं.
लोग तो एक बिल्ले से परेशान हैं,
यहां सैकड़ों बिल्ले खरगोश की खाल में
देश के हर कोने में विराजमान हैं.
हम भिखारी ही सही,
मगर राजनीति समझते हैं,
रही अख़बार पढ़ने की बात तो
अच्छे-अच्छे लोग, मांग कर पढ़ते हैं,
समाचार तो समाचार,
लोग बाग पड़ोसी से,
अचार तक मांग लाते हैं,
रहा विचार ! तो वह बेचारा,
महंगाई के मरघट में,
मुद्दे की तरह दफ़न हो गया है.
समाजवाद का झंडा,
हमारे लिए कफ़न हो गया है,
कूड़ा खा रहे हैं और बदबू पी रहे हैं,
उनका फोटो खींचकर
फिल्म वाले लाखों कमाते हैं
झोपड़ी की बात करते हैं
मगर जुहू में बंगला बनवाते हैं.
हमने कहा ‘फिल्म वालों से तुम्हारा क्या झगड़ा है ?’
वो बोला
‘आपके सामने भिखारी नहीं
भूतपूर्व प्रोड्यूसर खड़ा है
बाप का बीस लाख फूंक कर
हाथ में कटोरा पकड़ा !’
हमने पांच रुपए उसके हाथ में रखते हुए कहा
‘हम भी फिल्मों में ट्राई कर रहे हैं !’
वह बोला, ‘आपकी रक्षा करें दुर्गा माई
आपके लिए दुआ करूंगा
लग गई तो ठीक
वरना आपके पांच में
अपने पांच मिला कर दस
आपके हाथ पर धर दूंगा !’
- शैल चतुर्वेदी
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