नेहरू जी की सरकार ने रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए आजीवन पेंशन का प्रावधान किया. पेंशनधारी अटल जी के समर्थन में आए और अटल जी की सरकार ने पेंशन समाप्त कर दी. अटल जी समझ गए थे कि यह पेंशनधारी जब नेहरू की कांग्रेस के न हुए तो मेरे क्या होंगे, इसलिए अटल जी ने पेंशनधारियों को नमक हरामी की सजा दे दी. अब पिछले 17 साल से पेंशनधारी दर दर की ठोकरें खा रहे हैं.
नेहरू जी की सरकार में SC / ST को आरक्षण मिला और वी. पी. सिंह की सरकार में मण्डल कमीशन लागू हुआ. दलित और पिछड़े समाज के लोग बड़ी तादाद में कांग्रेस और समाजवादियों को छोड़कर मोदी जी के साथ आ गए. मोदी जी ने आरक्षण का झगड़ा ही ख़त्म करने की ठान ली. उन्होंने एक एक करके सारे संस्थान बेच दिए. 2024 तक उम्मीद है, देश के सभी सरकारी संस्थान बिक जाएँगे और आरक्षण पर होने वाली बहस हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी.
इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया. बैंककर्मियों को सरकारी नौकर बनाया लेकिन उन्हें सरकारी नौकरी पसंद नहीं आयी. बैंककर्मियों ने पूरे ज़ोर शोर से हर हर मोदी के नारे लगाए. मोदी जी सत्ता में आए और उन्होंने एक एक करके बैंक ही समाप्त करने शुरू कर दिए. अब बैंक ही नहीं बचेंगे तो एहसान भूलने वाले बैंककर्मी भी नहीं बचेंगे.
मध्यम वर्ग ने जितनी तरक़्क़ी मनमोहन सरकार में की उतनी इतिहास में कभी नहीं हुई. इंजिनयरिंग, MBA आदि करते ही 30-40 हज़ार की नौकरी और फिर 1-2 साल में ही सैलरी एक लाख तक पहुँचना आम बात हो गयी. करोड़ों परिवार ग़रीबी रेखा से ऊपर उठकर उनकी सरकार में मध्यम वर्ग में आ गए. खाए पिये लोगों को यह तरक़्क़ी हज़म नहीं हुई और इसी वर्ग ने मोदी मोदी के नारे लगाकर मोदी जी के हाथ में अपनी क़िस्मत सौंप दी.
पिछले सात साल से मोदी जी 18-18 घंटे काम करके मध्यम वर्ग को ख़त्म करने के लिए काम कर रहे हैं, करोड़ों लोग वापस ग़रीबी रेखा में आ गए हैं. उम्मीद है कि 2024 तक बचे हुए लोग भी ग़रीबी रेखा के नीचे आ जाएँगे.
भाजपा ने हमेशा उन लोगों को सुधारने की कोशिश की है, जो एहसान को भूल गए थे लेकिन यह लोग अभी भी पूरी तरह से सुधर नहीं रहे हैं. लगता है, सम्पूर्ण सुधार के लिए मोदी जी के एक टर्म की और ज़रूरत है.
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