मंडी

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वहां
सूअर का मांस महंगा हो गया
और यहां
दाल महंगी हो गई

गोकशी की इजाज़त
कुछ गिनती के इज्जतदारों को है

बाजार में
तेल के दाम जो हों
देह
तेल तेल हो रही है

गणित का यह ओलिंपियाड
आसान रहनेवाला नहीं है

आधा खाली और
आधा भरा ग्लास का तरन्नुम बस इतना है
कि
सब्र का बांध जब टूटता है
तराई में तबाही मच जाती है

सुरंग लाशों से पट जाती है

एसयूवी में चलना
एमएसपी का मांगना
जायज या नाजायज है
चुनाव बाद तय होना है

नैतिकता का यही स्वीकृत पैमाना है

फिल्हाल, अर्जुन के लिए
एकलव्य के अंगूठे कटने देते हैं

वोट के पहले
फंड भी तो चाहिए
अब यह उसकी स्वायत्तता है
वह किसके साथ सोए

बात घाटे और लाभ की नहीं
बेचने और
गिरने की है
बात सिंपल सी है

उस प्रवर प्रवचन का जवाब नहीं

जंग जंग होता है
जिस तरीक़े से जीता जाय
बस जीता जाय

खुली मंडी है
बिकने का
गिरने का यहां
सबको समान अधिकार है

कोई चल कर गिरता है
कोई बैठे बैठे
गौरव इस बात में है कि
कौन कितना ऊंचे से नीचे गिरता है
कौन कितना नीचे से ऊंचे में बिकता है

लिबास जितना चमकता हो
पद कद और छत
जितने ऊंचे हों
जहां तक मुझे पता है
सुबह के नाश्ते
दोपहर या रात के खाने में
सोने के बिस्किट तो कतई नहीं होंगे

अन्नदाता का यह पवित्र संबोधन कितना अर्थवान है
अन्नदाता तुम्हारे इस अंतरार्थ को खूब समझता है

  • राम प्रसाद यादव

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