लेख को विस्तार देने से पहले विंस्टन चर्चिल को उद्धृत करना चाहूंगा. विंस्टन चर्चिल ने 1946, ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत की आजादी के अधिनियम के खिलाफ बोलते हुए कहा था –
Power will go to the hands of rascals, rogues, freebooters; all Indian leaders will be of low caliber and men of straw. They will have sweet tongues and silly hearts. They will fight amongst themselves for power and India will be lost in political squabbles. A day would come when even air and water would be taxed in India.
हिंदी अनुवाद – सत्त्ता दुष्टों, ठगों और लुटेरों के हाथ चली जायेगी. भारत के नेता निम्न क्षमता वाले, भूंसे के बने लुंजपुंज लोग होंगे. वे बेवकूफी से भरे और मीठी जुबान वाले हैं. वो सत्ता के लिए आपस मे लड़ेंगे और देश छोटी बातों पर ऊंचे सुर में राजनीति का अखाड़ा होगा. एक दिन आएगा जब भारत में हवा और पानी पर भी टैक्स लग जायेगा.
चर्चिल का यह कथन आज 100% सही साबित हुआ है. इस मुल्क को जितना मुगलों-अंग्रेजों ने नहीं लूटा उससे ज्यादा इस देश को नेताओं, अफसरों, बाबाओं, मुल्लाओं, और चंद उद्योगपतियों ने मिलकर लूट डाला है. हर शख्स के लूट के अपने-अपने तरीके हैं लेकिन लूट में कोई कमी नहीं है.
आवाम के चित्कार से उनका कोई सरोकार नहीं है. धार्मिक लुटेरों का अपना एक अलग ही मायाजाल है. धर्म और राजनीति का खतरनाक काकटेल पिलाया जा चुका है. लोग हंसते हुए पी भी रहे हैं. यह काकटेल कितना भयावह और क्रूर है मिडिल ईस्ट से लेकर यहां तक नजर आता है.
इस देश को कभी भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला प्रगतिशील देश बनाने के बारे में सोचा तक नहीं गया. कबीर जैसे संत भी आए. आडंबरों और रूढ़िवादिता के खिलाफ बोलने-समझाने वाले, राहुल सांकृत्यायन और परसाई जैसे लेखक भी लेकिन धर्म के काकटेल के सामने इनकी एक न चली.
देश का Scientific temperament ही खत्म कर दिया गया. कोई बयान दे रहा है कि गाय ऑक्सीजन देती है. शीर्ष पर बैठा कोई व्यक्ति कह रहा है बादलों में राडार काम नहीं करते हैं. कोई कह रहा है कि गाय का गोबर लपेट लेने से न्यूक्लियर रेडिएशन नहीं होता है, गोबर आपको परमाणु बमों के हमले से भी बचा लेगा. अजीब देश हो चुका है.
कोई गोबर में स्नान कर रहा है, कोई पेशाब करती गाय का मूत्र पीकर सिर के चारों ओर छिड़क रहा है, कोई गाय की पीठ सहला कर बीपी शांत कर रहा है, कोई नाखून रगड़कर बाल काले कर रहा है, कोई हवन करवा कर मंगलग्रह पर रॉकेट भेज रहा है और अमेरिका में ट्रंप की सरकार बनवा रहा है. कोरोना से लडने के लिए हवन का धुंआ दे रहा है, यानी पहले से कम ऑक्सीजन लेवल को और कम हो जाने का खतरा मोल ले रहा है. कोई थाली बजा रहा है, शंख फूंक रहा है.
कभी सोचिएगा कि सारी वैज्ञानिक व तकनीकी खोजें पश्चिमी देशों में ही क्यों हुई ? पिछले दिनों मुझे एक प्रख्यात धर्मगुरु मिल गये. दिल्ली में आउटलुक मैगजीन में कार्यरत रहने के दौरान इन बाबा महोदय से मुलाकात हुई थी. बाबा जी के चेले का फोन आया तो मैं मिलने चला गया. बाबा एक कमरे में भगवान विष्णु की तरह चरण फैलाए लेटे थे और लोग उनके चरणों में ‘गर्दभ लोट’ हुए जा रहे थे.
बाबा अपने जिस परमभक्त के घर में ठहरे थे, वहां पहुंचते ही हम और हमारे साथी को बुला लिया गया. बाबा ने सोचा हम दोनों उनके चरण रज लेंगे, ऐसा हुआ नहीं. बाबा को नमस्कार कर हम लोग बैठ गये और बाबा ने भी अपने पैरों को समेटकर धोती के भीतर सरका लिया. बाबा ने आयुर्वेदिक चाय पिलवाई और शुरू हो गये धर्म और संस्कृति पर…
साउथ के किसी मंदिर का जिक्र किया कि उस वक्त अल्ट्रासाउंड मशीन नहीं थी लेकिन हमारे मंदिर के पत्थरों पर ‘फीटल’ (गर्भस्थ शिशु) की आकृति उत्कीर्ण है.
ब्रह्मास्त्र हमारे एक भगवान के पास था, चल जाता तो समुद्र सूख जाता. शून्य और दशमलव हमने दिया, मंत्र चालित विमान हमारे पास था. महाभारत में संजय टीवी और रेडियो जैसी सलाहियत रखते थे…
मैं चुपचाप सुनता रहा, फिर बोला, बतौर भारतीय मुझे उस वक्त ज्यादा गर्व व खुशी होती अगर अल्ट्रासाउंड, रेडियो, टीवी, मिसाइल, परमाणु मिसाइल, वायुयान…इन सब का आविष्कार भारत में हुआ होता. शून्य व दशमलव हमने दिया तो कम्प्यूटर की खोज भारत में होनी चाहिए थी. वायुयान की परिकल्पना हमारी थी तो यंत्र चालित वायुयान भारत की खोज होनी चाहिए थी. रेडियो, टीवी, मिसाइल…सब भारत में खोजा जाना चाहिए था लेकिन सब उल्टा हुआ.
पहले डिजिटल कंप्यूटर का आविष्कार ब्लेज पास्कल द्वारा 1642 ई. में किया गया. इसमें नंबर लगा होता था जिसे डायल करना पड़ता था लेकिन यह केवल जोड़ने का ही कार्य कर सकता था. तथापि 1671 ई. में एक कंप्यूटर का आविष्कार किया गया, जो अंततः 1694 में जाकर तैयार हुआ. इस आविष्कार का श्रेय गॉटफ्राइड वीलहेम वॉन लीबनिज (Gottfried Wilhelm von Leibniz) को जाता है.
लीबनिज ने योज्य अंक की शुरुआत के लिए स्टेप्ड गीयर यंत्रावली का आविष्कार किया, जिसका आज भी उपयोग होता है. साल दर साल कंप्यूटर के विकास का क्रम जारी रहा. 3000 ईसा पूर्व बेबीलोन में अबेकेस का आविष्कार किया गया. 1800 ईसा पूर्व में बेबीलोनवासी ने संख्या समस्या के लिए एलॉगरिथम का आविष्कार किया. 500 ईसा पूर्व में मिस्रवासी ने मणिका एवं तार अबेकस बनाया.
200 ईसा पूर्व में जापान में कंप्यूटिंग ट्रे का उपयोग आरंभ हुआ. 1000 ईसा पूर्व में ऑरिलीक के गरबर्ट या पोप द्वारा नये अबेकस लाया गया. 1617 ई. में स्कॉटलैंड के आविष्कारक जॉन नेपियर ने घटाव के द्वारा भाग करने और जोड़ के द्वारा गुणा करने की प्रणाली के बारे में बताया. 1622 ई. में विलियम आउट्रेड द्वारा स्लाइड रूल विकसित किया गया.
1624 ई. में हीडबर्ग विश्वविद्यालय के विल्हेम सिकार्ड द्वारा प्रथम चतुष्कार्यीय कैलकुलेटर-घड़ी का आविष्कार किया गया. 1642 ई. में पेरिस के ब्लेज पास्कल द्वारा प्रथम अंकीय गणना मशीन बनाया गया. 1780 ई. में बेंजामिन फ्रैंकलिन द्वारा बिजली की खोज की गई. 1876 ई. में अलेग्जेंडर ग्राहम बेल ने टेलीफोन का आविष्कार किया. 1927 ई. में लंदन व न्यूयार्क के बीच प्रथम सार्वजनिक रेडियो टेलीफोन का प्रयोग शुरू हुआ. 1931 ई. में जर्मनी के कोनार्ड ज्यूस ने जेड-1 या प्रथम कैलकुलेटर बनाया.
1936 में अँगरेज एलेन एम. टर्निंग ने एक मशीन बनाया जो गणना योग्य किसी फलन/कार्य के संगणन में सक्षम था. 1937 ई. में बेल टेलीफोन प्रयोगशाला में जार्ज स्टिब्ज ने प्रथम द्विघाती कैलकुलेटर बनाया. 1940 ई. में टेलीविजन से रंगीन प्रसारण का शुभारंभ हुआ. 1940 में बेल प्रयोगशाला द्वारा प्रथम टर्मिनल का निर्माण कर सुदूर प्रसंस्करण प्रयोग शुरू किया गया.
1972 में इंटेल द्वारा 8 बाइट का माइक्रो प्रोसेसर लाया गया. 1976 ई. में पर्किन एल्मर व गाउल्ड एस.ई.एल ने सुपर मिनी कंप्यूटर बाजार में उतारा।. 1977 ई. में एप्पल कंप्यूटर की स्थापना पर एप्पल-2 पर्सनल कंप्यूटर लाया गया. 1992 ई. में माइक्रोसॉफ्ट द्वारा कार्य समूह के लिए विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम का शुभारंभ किया गया.
मिसाइल का आविष्कार वाल्टर डोर्नबर्गर और वर्नर वॉन ब्रौन ने किया था, और पहली बार लंदन, इंग्लैंड पर हमला करने के लिए 1944 में इसका इस्तेमाल किया गया था.
स्कॉटिश इंजीनियर और अन्वेषक जाॅन लाॅगी बेयर्ड
वैज्ञानिकों ने 26 जनवरी, 1926 को ब्रिटेन के लंदन शहर में स्थित रॉयल इंस्टीट्यूशन से लंदन के पश्चिम में स्थित एक स्थान ‘सोहो’ में टेलीविजन संदेशों का सफल प्रसारण करके दिखाया था.
वर्ष 2006 में बेयर्ड को इतिहास के 10 सबसे महान स्कॉटिश वैज्ञानिकों की सूची ‘स्कॉटिश साइंस हाॅल आफ फेम’ में राष्ट्रीय पुस्तकालय, स्कॉटलैंड द्वारा शामिल किया गया. अल्ट्रासाउंड की खोज आस्ट्रेलिया में हुई, इसका आविष्कार सिडनी में हुआ. जाहिर है चिकित्सा की दुनिया में इसने क्रांति ला दी. डिस्पोजेबल सिरिंज का दक्षिण आस्ट्रेलिया की एक खिलौना बनाने वाली कंपनी ने आविष्कार किया. इसके आविष्कार से पहले तक एक ही सिरिंज का कई लोगों के लिए इस्तेमाल होता था जो खतरनाक था.
खैर, देश आजाद हुआ और एक प्रधानमंत्री आया, जिसे विदेशी खोज तकनीक की मदद से गालियां दी गई लेकिन उसने भारत को विज्ञान की ओर ले जाने का प्रयास किया. आजादी के बाद आईटी क्रांति लाया, उसके पीछे पीछे कम्युनिकेशन और सेटेलाइट टेलीविजन आया. फिर दूसरा आया वो न्यू एजूकेशन पालिसी लाया, कम्प्यूटर लाया, संचार के साधन तेजी से विकसित हुए लेकिन किसी ने नहीं सोचा होगा कि इन्हीं संचार के साधनों को नेता, धर्म से जोड़कर पीढ़ियों की साइंटिफिक सोच को ही खा जाएंगे. पत्थर दूध पीने लगे, नदी नहाकर पाप धुलने लगे, मोक्ष बिकने लगा. गंगोत्री से गंगासागर तक धार्मिक पर्यटन ने प्रदूषण को सबसे बुरे स्तर तक पहुंचा दिया.
जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग, सेलब्रिटी, नेता, अभिनेता, पंडे पुजारी सारे एक सूत्र में बंधे हैं – प्रचंड मूर्खता के. एस्ट्रोनमी औऱ ज्योतिष ‘विज्ञान’ हो गए हैं और आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा मजाक की वस्तु. बाबाओं की पार्टी के विधायक, सांसद कोरोना से टपाटप टपक गये, मगर आंखें हैं, खुलने का नाम नहीं ले रही.
बाबाओं ने बताना शुरू कर दिया कि तीसरे महीने ऐसा पुष्य नक्षत्र लगा जो पूरे साढ़े तीन हजार साल बाद आया है, इसमें गहना खरीदना है. नेताजी ने मोहल्ले में कथा और कव्वाली लगवा दी. धर्म के पीछे आया योग गुरु. बन्दे ने सत्ता का ‘पहुंचा’ पकड़ा और डाक्टरों को गरियाने लगा, जबकि इस बाबा की खुद की कम्पनी का सीईओ कोरोना से ही मारा गया.
एक बाबा अंग्रेजी में प्रवचन दिया करता था, कुछ दिन पहले टपक चुका है. दूसरा बाबा तो यूरोप में द्वीप खरीदकर कैलाशा नामक देश बसा चुका है. ये सब भारत भाग्य विधाता हैं. गजब का अन्धविश्वास, विशुद्ध पागलपन है. अमेरिका में एक झरना है उसके ठीक नीचे एक गुफा है उसमें आग जलती रहती है, आस्ट्रेलिया में तमाम ऐसी गुफाएं हैं जहां बर्फ से आकृतियां बनती रहती हैं लेकिन ये सब धर्म की दुकानें नहीं बनीं. यही भारत है जिसे हम विश्वगुरु बनाने चले हैं.
खैर, वो प्रसिद्ध बाबा जिनसे मैं मिलने गया था एक आयुर्वेदिक चाय का लिफ़ाफा मुझे आशीर्वाद स्वरूप देकर इतना ही बोले – ‘कल्याण हो तेरा.’ इसके बाद बाबा के मोबाइल पर कोई फोन आ गया. बाबा विदा लेकर दूसरे कमरे में निकल लिए और मैं व हमारे कैमरामैन मित्र हज़रतगंज की ओर…
- पवन सिंह
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