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जो जितना भ्रष्ट होता है, वह उतनी ही देर पूजा करता है

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जो जितना भ्रष्ट होता है, वह उतनी ही देर पूजा करता है

Kanak Tiwariकनक तिवारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, छत्तीसगढ़

छुट्टियां घोषित हर वर्ष होती हैं. फेहरिश्त में संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का पालन किया जाता है. मसलन हिन्दू त्यौहारों के लिए सात, मुस्लिम त्यौहारों के लिए 4, ईसाई पर्वों के लिए एक, जैन पर्वों के लिए एक, सिख धर्मं के नाम पर एक, दलित नेताओं के नाम पर दो, राष्ट्रीय पर्वों के लिए दो, बुद्ध धर्म के नाम पर एक सार्वजनिक छुट्टियां होती हैं. कबीर और गांधी जयंतियों पर भी छुट्टियां होती रहती हैं, वे सबके कोटे में हैं. ऐच्छिक छुट्टियां भी हैं. उनमें शासकीय कर्मचारी छुट्टियां ले सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की छुट्टियां भी होती हैं. दशहरा, दीपावली, शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन अवकाश भी होते हैं.

छुट्टियों में सुप्रीम कोर्ट सबसे भाग्यशाली है. वहां गर्मी की छुट्टियां कुछ कम दो माह की होती हैं. दशहरा, दीवाली और शीतकाल मिलाकर फिर डेढ़ माह. रविवार और शनिवार जोड़ लें तो दो माह. हाई कोर्ट में कोई पांच माह तक का अवकाश. इतनी छुट्टियां स्कूली बच्चों को नहीं मिलतीं, जिन्हें छुट्टियां मिलने से बेहद खुशी होती है. एक ही दिन हाई कोर्ट में छुट्टी तो जिला न्यायालय में काम होता है. किसी शनिवार को अदालत में काम तो शासकीय कार्यालय में छुट्टी होती है. अलग-अलग सम्भागों और जिलों के कमिश्नर, कलेक्टर अपने क्षेत्राधिकार में छुट्टी घोषित करते हैं. अति और कम महत्वपूर्ण व्यक्तियों के निधन पर छुट्टियां मिलती हैं. काम के घंटों के दरम्यान लंच भी होता है. दो तीन बार चाय होती ही है. लम्बे टेलीफोन होते हैं. स्वेटरें बुनी जाती हैं. रिश्तेदार, नातेदार, दोस्त मिलने आते हैं. अचानक मैयतों, अस्पतालों में जाना पड़ता है. इन सब कर्तव्यों को निपटाने के बाद वक्त बचता है, उसे काम के घंटे कहा जाता है. बिचारे चौथाई से ज्यादा नहीं हो पाते.

प्रसिद्ध अंग्रेज विचारक अल्डुअस हक्सले ने टिप्पणी की थी – ‘भारतीयों ने निठल्लेपन की कला से निजात नहीं पाई है.’ उनका कहना था भारतीय समय को दैनिक, मासिक और मौसमी आवृत्तियों में ही मापते हैं. उनके लिए घड़ी का महत्व नहीं होता ! दफ्तरों, न्यायालयों, विधायिकाओं में काम होता भी है, तो बातें ज्यादा होती हैं, काम कम. अंग्रेज जानबूझकर फाइलों में प्रशासन व्यवस्था प्रणाली थोप गया. उसे मालूम था हमारे हुक्मरान अंग्रेजों की तरह फाइलों को ध्यान और धीरज से कभी नहीं पढ़ेंगे इसलिए लोगों को न्याय नहीं मिलेगा. इससे उन्हें अंग्रेजों की याद आएगी.

गांधी जी बुनियादी तालीम प्रणाली में किसान पुत्रों के लिए दीपावली के आसपास लम्बी छुट्टियों की वकालत करते थे. उनका सोच था स्कूल, काॅलेज के किसान पुत्र फसल कटाई के समय रहेंगे. इससे कृषिकर्मियों की कमी नहीं होगी. वैसा कुछ नहीं हुआ. शिक्षाशास्त्री यह भी कहते हैं ग्रीष्मकालीन अवकाश के बदले स्कूल, काॅलेज, दफ्तर, कचहरी सुबह लगाए जाएं. बिजली संकट और आर्थिक आपाधापी में कितने परिवार एयर कंडीशनर लगवा पाते हैं या लाट साहबों की अनुकृति में पहाड़ों पर सपरिवार जाते हैं ? अंग्रेजों के आने के पहले गर्मियों की लम्बी छुट्टियां नहीं होती थी. पहाड़ों पर शगल मनाने के पूंजीवादी चोचले भी ब्रिटिश हुकूमत की देन हैं. नवधनाड्य वर्ग में जीवन के प्रति लास्य और सार्वजनिक जीवन के प्रति हिंसा का भाव छुट्टियों की कूटनीति से भी उपजा है.

छुट्टियों का हाल भी कैसा है ? एक जनवरी वाले नववर्ष की पूर्व रात्रि पर देश नशे में बहकता, थिरकता है. क्लबों, होटलों, रेस्तराओं वगैरह में महंगे टिकट काफी अग्रिम बुक कराने पड़ते हैं. सूखते पेट और चमड़ी के इस देश में मांसलता हावी हो जाना चाहती है. कुरबानियों के त्यौहार के नाम पर रात्रि भोज आयोजित हो रहे हैं. तुर्रा यह कि राजनेता इन्हें अपनी अपनी छवि को उज्जवल करने के नाम पर इस्तेमाल कर रहे हैं. बेचारे धार्मिक पर्व हैं कि इस्तेमाल हो रहे हैं. जिस अमर महानायक ने सलीब पर बिंधकर इंसानी प्रेम को बचा लिया. उसके जन्मदिन पर कितनी आंखें नम होती हैं ?

दूसरे धर्म के पर्वों पर बाकी लोग क्या करते हैं ? मसलन हिन्दू किसी मरियम जैसी पवित्र माता से ईदी मांगते हैं ? मुसलमान दीवाली की पूजा पर शामिल किए जाते हैं ? कड़ा परसाद खाने की ईसाइयों की इच्छा क्या नहीं होती ? पवित्र गोमतेश्वर के महा-मस्तकाभिषेक से आचमन करने कौन कौन जाते हैं ? देश के अधिकांश लोग छुट्टियों के दिन त्यौहारों की पवित्रता से बेखबर टेलीविजन से चिपके रहते हैं. कुछ यार दोस्तों के साथ मौज मस्ती करते हैं. कुछ पिकनिक, सैर सपाटे और सोते रहने में मशगूल होते रहते हैं. दफ्तरी लोग तो दफ्तर में काम नहीं कर पाने का ढोंग करते हैं. उसके बदले फाइलें घर लाई जाती हैं. गोपनीयता भंग करते हुए ‘डील‘ भी की जाती है और छुट्टियों का सम्मान बढ़ाया जाता है.

राष्ट्रीय पर्वों की दुर्गति है. स्वतंत्रता दिवस पर अमूमन पानी बरसता है. कौन पिचपिच में पड़े. दे गए होंगे अंग्रेज आजादी भरी बरसात में. नेताओं की छबि से बचने लोग दूरदर्शन के बुद्धू के बक्से में फिल्में या पसंदीदा सीरियल देखते हैं. गणतंत्र दिवस कड़कड़ाती सर्दी का पर्व हो जाता है. सुबह राष्ट्रपति भाषण देते हैं. अधिकांश लोग गर्म, गुदगुदे बिस्तर में सोते पड़े नज़र आते हैं. रस्मअदायगी बतौर आयोजित कार्यक्रमों में अक्सर नाश्ते का भी इंतजाम किया जाता है सरकारी व्यय पर. इससे सरकार की प्रतिबद्धता उजागर होती है. कार्यक्रमों की सफलता की गारंटी भी मिल जाती है. जब से तिलक, नेहरू, सरदार पटेल, विवेकानंद, सुभाष बोस वगैरह छुट्टियों की सूची से कटे हैं, तबसे उनकी जयंतियों के दिन उनकी तस्वीरें ढूंढ़ने की जहमत आयोजकों को नहीं उठानी पड़ती.

कुछ सामाजिक पर्व छुट्टियां कम होने के कारण महत्वहीन होते जा रहे हैं. सभी बहनें मायके वाले शहर में ही नहीं ब्याही जातीं. कोई भाई रक्षाबंधन मनाना ही चाहे तो तीन दिनों की छुट्टी तो चाहिए. विवाहित बहन वृक्ष से टूटी टहनी की संस्कृति होती है. रक्षाबंधन सामाजिक सामासिकता का मनोवैज्ञानिक पर्व है. इससे हवाई जहाज, रेल्वे, बसों में राजस्व भी बढ़ता है. छत्तीसगढ़ में बकौल भवानीप्रसाद मिश्र दो मौसम होते हैं – गर्मी और बहुत गर्मी. प्रदेश में पंद्रह सत्रह दिनों के हाई कोर्ट अवकाश की क्या जरूरत ?

न्यायपालिका की सर्वोच्च संस्था में सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है, बाकी सेवाओं में साठ वर्ष. यहां अनुभव की जरूरत होती है, शायद इसीलिए. अधिक छुट्टियां होने से लाखों मुकदमे अनिर्णीत हैं. सरकारी अफसर खुद गलत सलत फैसले लेते हैं और मुसीबतज़दा को सलाह देते हैं कोर्ट चला जाए. इससे तो मुकदमे और इन्सानी समस्या की ही छुट्टी हो रही हैं.

वक्त है कि कुछ काम किया जाए. छुट्टी के औरस पुत्र को दौरा कहते हैं. दफ्तर से बचना हो तो दौरा करो. दौरे से बचना हो तो माननीय मंत्रीजी के साथ दौरा करो, बल्कि उनके निवास पर डटे रहो. छुट्टी की औरस पुत्री को मीटिंग कहते हैं. जब टेलीफोन करो, साहब मीटिंग में व्यस्त होते हैं. वे अपनी कुलशीला नौकरी का चरित्र निर्माण करते हैं और अंग्रेज कौम के प्रति अहसानमंद होते हैं. छुट्टी के नटखट छोटे छौने का नाम बाथरूम है. काम करते पकड़े जाने का खतरा हो, तो बाथरूम ही बचाता है. अफसर के लिए आधा घंटा या घंटा. माननीय मंत्रीजी के लिए छः घंटा, बाबू साहब के लिए बार बार दस मिनट के अंतराल. एक और नवजात शिशु भी छुट्टी की गोद आया है. जो जितना भ्रष्ट होता है, वह उतनी ही देर पूजा करता है.

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