गिरीश मालवीय
हाइपरइन्फ्लेशन महंगाई का सर्वोच्च स्तर होता है. इसमें वस्तुओं की कीमत बहुत ज्यादा मात्रा में बढ़ जाती है तथा मुद्रा की क्रय शक्ति बहुत ही कम हो जाती है. पिछले कुछ साल में जिस तरह से बेतहाशा महंगाई बढ़ी है, उससे यह तस्वीर भारत के संदर्भ में सच भी हो सकती है. यह प्रथम विश्व युद्ध के जर्मनी की तस्वीर है. जर्मनी के ऊपर अन्य देशों का भारी कर्ज था. इस कर्ज को उतारने के लिए उसने बेतहाशा मुद्रा छापी लेकिन जर्मनी साल 1923 में अपना बकाया नहीं चुका सका.
इस घटना से देश पर महंगाई का संकट घिर गया और महंगाई दर 29,500 फीसदी प्रतिमाह पहुंच गई. हर 3 से 4 दिनों के अंतराल पर सामानों की कीमत दोगुनी हो जाती थी. एक समय तो यह हालत हो गयी थी कि करंसी नोट बच्चों को खेलने के दिए जाते थे. जर्मनी में उस वक्त करंसी नोट को जलाकर लोग आग तापते थे क्योंकि वह लकड़ी से ज्यादा सस्ते पड़ते थे.
आपको जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि भारत में भी पिछले डेढ़ साल में आरबीआई ने नोट छाप-छाप कर ढेर लगा दिए है. कोरोना के दौर वाले पिछले 15 महीनों में देश में करेंसी का मूल्य और प्रसार काफी तेजी से बढ़ा है. 3 जनवरी, 2020 को देश में करेंसी का कुल मूल्य 21.79 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन मार्च 2021 तक आरबीआई द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी का चलन बढ़कर 28.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया हैं.
इसका साफ मतलब है कि पिछले सालों से कई गुना ज्यादा पिछले डेढ़ सालों में करंसी नोट छापकर बाजार में उतारे गए हैं और हम देख रहे हैं कि इसके परिणाम अच्छे नहीं हैं. पिछले कुछ सालों से रुपये की क्रय शक्ति घट रही है. जब किसी मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी आने के फलस्वरुप वस्तुओं के दामों में वृद्धि हो जाती है तो इस स्थिति को ही महंगाई या मुद्रास्फीति या इन्फ्लेशन कहते हैं. और भारत में महंगाई इस वक्त चरम पर है.
हमारे यहां के बड़े बड़े विद्वान अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि रिजर्व बैंक को और ज्यादा करंसी छापनी चाहिए. सरकार को खर्च बढ़ाना चाहिए लेकिन वे भूल रहे हैं कि दरअसल नोट छापकर सरकारी खर्च बढ़ाने से अर्थव्यवस्था में उत्पादन तो बढ़ता नहीं है, क्योंकि इसमें वक्त लगता है, लेकिन नकदी हाथ में आते ही मांग तत्काल बढ़ जाती है. ज्यादा मांग और कम आपूर्ति के कारण महंगाई बढ़ने लगती है जो अंततोगत्वा अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह साबित होती है.
आम आदमी के रसोईघर का खर्च पिछले कुछ सालों में 50 प्रतिशत तक बढ़ गया है जबकि उसकी आवक घट रही है, रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं और खर्च बढ़ रहा है. महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ रही है हम हाइपरइन्फ्लेशन की तरफ बढ़ते दिख रहे हैं.
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]