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लाॅकडाऊन : बहाना और, निशाना और

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लाॅकडाऊन : बहाना और, निशाना और

भारतीय हुक्मरानों को ‘कोरोना महामारी’ नाम का ड्रामा करते हुए एक साल से ऊपर हो गया है. कोरोना के बहाने जनविरोधी दमनकारी हुकूमतों द्वारा जनता को दिए गए ज़ख़्म अभी भरे भी नहीं थे कि ‘कोरोना की दूसरी लहर’ के उभार का हौवा खड़ा करने की कोशिश की जा रही है. केंद्र और राज्य सरकारें, पूंजीवादी मीडिया, पूरे ज़ोर-शोर से कोरोना का हौवा फैला रहे हैं. सरकारों द्वारा कोरोना के बहाने जनता पर नए सिरे से अनेकों दमनकारी पाबंदियां थोपी जा रही हैं.

यह बात दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि ‘कोरोना की दूसरी लहर’ का हौवा खड़ा करना और इसके बहाने पाबंदियां थोपना शासकों की कोरी साज़िश है. लूटेरे-दमनकारी शासकों का मक़सद जनता के हक़ की आवाज़ कुचलना है, जो विशेष रूप से इस वक़्त जारी कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ संघर्ष को कुचलना चाहते हैं. कोरोना टेस्टों और वैक्सीन के गोरखधंधे को सफल बनाना भी शासकों का एक अहम मक़सद है.

पिछले साल की शुरुआत में जनता कोरोना के हौवे से सचमुच ही डर गई थी. तब तो बड़े-बड़े जनपक्षधर ‘बुद्धि‍मान’ तक हुक़्मरानों के चक्करों में आ गए थे और ख़ुद जनता को भयभीत करने में मशरूफ़ रहे, जनता के ख़िलाफ़ और हुक़्मरानों के पक्ष में काम करते रहे. (कुछ तो शायद अभी भी कोरोना-फोबिया का शिकार हैं या ग़लती मानने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे, ‘महा-बुद्धि‍मान’ जो ठहरे !). धीरे-धीरे इस ड्रामे की पोल खुलती गई और जनता कोरोना भय से बाहर आ गई. लेकिन अब कोरोना का हौवा फिर से खड़ा करने की हुक़्मरानों की नापाक़ कोशिशें सफल होती दिखाई नहीं दे रहीं.

जनता अब अगर कोरोना के बहाने थोपी जा रही पाबंदियां जिस हद तक मान भी रही है, उसका कारण कोरोना का डर नहीं बल्कि सरकार द्वारा किए जा रहे जुर्माने, ज़बरन टेस्ट और अन्य ज़ोर दमनकारी कार्रवाइयां हैं. इसके विपरीत जनता में इसे लेकर व्यापक रोष है जिसका संगठित इज़हार भी हो रहा है. पंजाब, चंडीगढ़ में छात्र संगठन शिक्षा संस्थाओं को बंद करने के ख़िलाफ़ लगातार संघर्ष कर रहे हैं. पंजाब के आठ छात्र संगठनों ने शिक्षण संस्थाओं को बंद करने के ख़िलाफ़ संघर्ष छेड़ दिया है.

26 मार्च को कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ भारत बंद के दौरान पंजाब में नौजवान भारत सभा ने कोरोना ड्रामे और पाबंदियों के ख़िलाफ़ रोष प्रदर्शन किए हैं. मज़दूरों-किसान संगठन भी इस मुद्दे पर आवाज़ उठा रहे हैं. बरनाले के एक गांव दिवाना में छात्रों के परिजनों ने स्कूल बंद करने के ख़िलाफ़ रोष प्रदर्शन किया है.

वैसे तो कोरोना का भय पैदा करने की अन्य देशों की तरह भारतीय हुक़्मरानों की कोशिशें कभी भी ख़त्म नहीं हुईं, लेकिन इस साल फ़रवरी में ये कोशिशें फिर से तेज़ कर दी गई हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 23 फ़रवरी को घोषणा की कि भारत में कोविड-19 की नईं किस्में मिली हैं (ब्रिटिश, दक्षिण अफ़्रीकी और ब्राजीली). केंद्र सरकार द्वारा यह घोषणा होते ही पंजाब के ‘फ़ौजी’ मुख्यमंत्री ने हुक़्म जारी कर दिया कि 1 मार्च से चारदिवारी के बाहर 200 और चारदिवारी के अंदर केवल 100 लोगों को ही इकट्ठा होने की इजाज़त है. टेस्टों की संख्या फिर से बढ़ाने का हुक़्म हो गया है. कहा गया है कि 15 संपर्क प्रति कोरोना-ग्रस्त व्यक्ति के हिसाब से टेस्ट किए जाएं.

6 मार्च को जालंधर, कपूरथला, और नवाशहर में रात का कर्फ़्यू लगा दिया गया जो यह लेख लिखे जाने तक एक दर्जन ज़िलों तक बढ़ा दिया गया है. कर्फ़्यू का वक़्त जो 6 मार्च को रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक किया गया था, बढ़ाकर रात के 9 बजे से सुबह 5 बजे तक कर दिया गया है. अनेकों कंटेनमेंट इलाक़े बना दिए गए हैं. मास्क पहनना लाज़िमी कर दिया गया है. मास्क ना पहनने वाले लोगों पर भारी जुर्माने किए जा रहे हैं, उनके ज़बरन कोरोना टेस्ट किए जा रहे हैं.

एक और बड़ा बेइंसाफ़ी भरा क़दम उठाते हुए पंजाब सरकार ने 31 मार्च तक सभी शिक्षण संस्थाओं को बंद रखने का हुक़्म जारी कर दिया है. पंजाब के लोगों में कोरोना का ज़रा भी डर नहीं है, लेकिन इन पाबंदियों का दायरा और समय सीमा और बढ़ने की आशंका ने लोगों को चिंताओं से भर दिया है. पंजाब के लोग राज्य सरकार को जमकर कोस रहे हैं.

अन्य राज्यों की सरकारों ने भी कोरोना के बहाने क़िस्म-क़िस्म की पाबंदियां जनता पर थोपी हैं. मिसाल के तौर पर मध्य प्रदेश की सरकार ने कई शहरों में रविवार को पूर्णबंदी के हुक़्म जारी कर दिए हैं. महाराष्ट्र में सख़्त पाबंदियां लगाई गई हैं. इस राज्य में शादियों में 50 व्यक्तियों से अधिक शामिल नहीं हो सकते; मॉल, बाज़ार, सिनेमा हाॅल 50 प्रतिशत क्षमता से काम करेंगे.

हर रोज़ कोरोना के फैलाव के नए-नए दावे किए जा रहे हैं. नई-नई क़िस्में ढूंढ़कर लाई जा रही हैं. कोरोना ड्रामा करने के लिए सामग्री इकट्ठा की जा रही है. कोरोना का डर फैलाने के लिए तरह-तरह के घटिया तरीक़े अपनाए जा रहे हैं.

नई पाबंदियों के लिए केंद्र और राज्य सरकारें बढ़ते कोरोना मामलों और मौतों के आंकड़े पेश कर रही हैं लेकिन कोरोना काल के सवा साल के दौरान यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि यह महामारी नहीं है, बल्कि एक आम बीमारी है. इससे निपटने के लिए सरकार को किसी भी तरह की पाबंदियों की ज़रूरत नहीं. सिर्फ़ गंभीर बीमारियों से जूझते लोगों, जिनमें बड़ी संख्या में बुजुर्ग शामिल हैं, को इसके संक्रमण से बचाने की ज़रूरत थी और है जैसे कि उन्हें अन्य वायरसों के संक्रमण से बचाने की ज़रूरत होती है.

कोरोना के लिए विशेष रूप में नहीं बल्कि इसके समेत अन्य सभी छोटी-मोटी बीमारियों के लिए ज़रूरी है कि सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करे. लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया, बल्कि सारा ज़ोर इसका हौवा खड़ा करने और तरह-तरह की दमनकारी पाबंदियों पर लगा दिया गया. इस कारण लोगों का आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक तौर पर भारी नुक़सान हुआ है. सरकार के नाजायज़, दमनकारी क़दमों के कारण कोरोना से भी कहीं अधिक मौतें ग़ैर-कोरोना बीमारियों से और भुखमरी, हादसों आदि की वजह से हुई हैं.

कोरोना से हुई मौतों को कहीं अधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता रहा है. ग़ैर-कोरोना मौतों को कोरोना-मौतों के खाते में डाल दिया जाता रहा है. कोरोना-पोजिटिव मृतक व्यक्ति ज़रूरी नहीं कि कोरोना के चलते ही मरा हो (यह भी ज़रूरी नहीं कि कोरोना-पोजिटिव बताया गया व्यक्ति सचमुच ही कोरोना-पोजिटिव हो), बल्कि इसकी संभावना तो बेहद कम होती है लेकिन ‘कोरोना-पोजिटिव’ बताए गए हर व्यक्ति की मौत को कोरोना-मौत के खाते में डाला गया है.

लेकिन तोड़े-मरोड़े, झूठे आंकड़ों से कोरोना का हौवा ज़्यादा देर तक क़ायम नहीं रखा जा सकता है. लोगों ने ज़मीनी स्तर पर देख लिया है कि जिस महाविनाशकारी कोरोना महामारी फैल जाने के दावे किए गए थे, वह एक आम बीमारी है.

भारत समेत पूरी दुनिया में आंकड़ों में कोरोना केसों और मौतों का बढ़ना-घटना शासकों की मर्ज़ी पर निर्भर करता रहा है. जब यह आंकड़ा ऊपर ले जाना होता है, तब टेस्टों की संख्या बढ़ा दी जाती है और जब घटाना होता है तब टेस्टों की संख्या घटा दी जाती है. जब पंजाब में नगर निगमों, काउंसिलों के चुनाव थे, तब कोरोना ख़तरनाक नहीं था. कैप्टन अमरिंदर सिंह की पोती की शादी में कोरोना किसी को कुछ नहीं कह रहा था. पोती की शादी के अगले दिन से पंजाब में एकठों में लोगों की संख्या सीमित करने के हुक़्म जारी कर दिए गए. पश्चिमी बंगाल और अन्य राज्यों में चुनाव हैं. भाजपा और अन्य पार्टियां यहां बड़ी-बड़ी रैलियां कर रही हैं, लेकिन यहां कोरोना के मामले नियंत्रण में हैं.

बिहार में चुनाव हुए, हज़ारों-लाखों की भागीदारी वाले इकट्ठा होते रहे. ना कोई मास्क, ना कोई शारीरिक दूरी, फिर भी कोरोना नहीं फैला. राज्यों, शहरों, गांवों में खुले संपर्क हैं लेकिन कहीं कोरोना अधिक है, कहीं कम है इसलिए, केंद्र और राज्य सरकारों के कोरोना ड्रामे की पोल खुल चुकी है. झूठे, लूटेरे, दमनकारी शासक एकदम नंगे हो चुके हैं.

पिछले साल जब भारत में कोरोना के बहाने लॉकडाउन-कर्फ़्यू जैसे क़दम केंद्र और राज्य सरकारों ने उठाए थे, उस वक़्त देश में ‘नागरिकता संशोधन क़ानून’, ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ और ‘राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर’ के ख़िलाफ़ प्रचंड आक्रोश था. देश-भर में हज़ारों लाखों की भागीदारी वाली रैलियाँ, रोष प्रदर्शन जारी थे. आज़ाद भारत में उस वक़्त तक का यह सबसे बड़ा ऐतिहासिक जनांदोलन था. ग़रीबी, बेरोज़गारी, सेहत, शिक्षा, औरतों और दलितों के अधिकारों आदि मुद्दों पर जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था. ऐसे वक़्त में भारतीय पूंजीवादी शासकों के लिए कोरोना संकटमोचक बनकर सामने आया और नाजायज़ लॉकडाउन कर दिया गया.

कोरोना के बहाने सरकार के इन दमनकारी क़दमों के कारण करोड़ों मज़दूर दर-बदर हुए. करोड़ों मज़दूरों को बेरोज़गारी झेलनी पड़ी. छोटे-मोटे काम-धंधों वाले लोगों को बड़े स्तर पर तबाही झेलनी पड़ी. लोगों को मिलने वाली थोड़ी-बहुत स्वास्थ्य सुविधाओं के भी ठप हो जाने, आर्थिक हालात के खराब होने, भुखमरी की हालत में धकेले जाने और अन्य कारण कोरोना से कहीं ज़्यादा मौतें ग़ैर-कोरोना बीमारियों से हो गईं.

पहले दौर की कोरोना पाबंदियों ने जन आवाज़ को कुचलने में केंद्र की फासीवादी सरकार और राज्यों की विभिन्न सरकारों की बड़ी स्तर पर मदद की है. नागरिकता हक़ों पर हमले के ख़िलाफ़ आंदोलन को कुचल दिया गया. मज़दूर वर्ग के क़ानूनी श्रम हक़ों पर डाके के लिए देसी-विदेशी पूंजीपतियों को श्रम क़ानूनों में जिन संशोधनों का बेसब्री से इंतज़ार था, उन्हें एक झटके में अंजाम दे दिया गया. श्रम विभाग और श्रम अदालतों के बचे-खुचे ढांचे का और भी बेड़ा गर्क कर दिया गया.

सरकारी संस्थाओं के निजीकरण की नीति तेज़ी से लागू की गई है. मज़दूर वर्ग की संगठित ताक़त को नुक़सान पहुंचाया गया। मज़दूर वर्ग की लूट-खसोट के लिए पूंजीपति वर्ग को पहले से भी ज़्यादा मुआफि़क हालात हासिल हो गए. शिक्षण संस्थाओं के बंद होने के चलते छात्रों का पढ़ाई का और आर्थिक नुक़सान तो हुआ ही, उनकी संगठित ताक़त को कमज़ोर करने में भी हुक़्मरानों को मदद मिली है और इस प्रकार उनके हक़ों पर हमला तेज़ किया गया है.

नई शिक्षा नीति लागू कर दी गई. इस दौरान राष्ट्रीयताओं के अधिकारों को कुचला गया है. कश्मीर और उत्तर पूर्व में जारी राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों पर हमला तीखा करने का मौक़ा भारतीय शासकों को मिला है. मोदी हुकूमत ने राज्यों के हक़ों को कुचलते हुए केंद्रीकरण की नीति को तेज़ी से आगे बढ़ाया है. ‘हिंदू राष्ट्र’ के फासीवादी एजंडे को बल मिला है.

पंजाब में शहरों-क़स्बों के स्थानीय चुनाव फ़रवरी 2020 में होने थे. यदि ये चुनाव उस समय होते तो जनद्रोही नीतियों के कारण कांग्रेस को नुक़सान झेलना पड़ता. कोरोना के बहाने कैप्टन सरकार ने ये चुनाव एक साल तक लटकाए. कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बदले राजनीतिक माहौल का फ़ायदा लेने के लिए इस साल यह चुनाव करा दिए गए. मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार कोरोना के बहाने स्थानीय चुनावों का अमल रोक कर खड़ी है, क्योंकि जनविरोधी नीतियों के कारण और विशेषकर कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ संघर्ष के चलते इसे नुक़सान झेलना पड़ेगा. इस तरह भी हुक़्मरानों ने कोरोना का फ़ायदा उठाने की कोशिश की है. लेकिन स्थानीय चुनाव रुके रहने के चलते शहरों, क़स्बों, गांवों में पानी, साफ़-सफ़ाई, सीवरेज, गलियों, सड़कों की हालत खराब होने के चलते लोगों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा है.

कोरोना पाबंदियों के दौरान ही जून 2020 में मोदी सरकार अध्यादेशों के रूप में तीन नए कृषि क़ानून लेकर आई, जिन्हें सितंबर 2020 में बाकायदा क़ानूनों के रूप में संसद में पारित कर दिया गया. इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ उठे ऐतिहासिक जनांदोलन का भारतीय हुक़्मरानों ने कभी अंदाज़ा भी नहीं लगाया था. मोदी हुकूमत के सभी समीकरण उलटे पड़ गए. सारी चालबाज़ियां, दमन के बावजूद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विशाल जनसंघर्ष जारी है (जिसमें मुख्य भागीदारी किसानों की है).

इस आंदोलन को साबोताज़ करने के लिए, इसे कुचलने के लिए सरकार ‘कोरोना की दूसरी लहर’ लेकर लाई है और तरह-तरह की पाबंदियां थोपना शुरू कर दिया है. कोरोना पाबंदियों के पहले दौर में मोदी हुकूमत से भी दो क़दम आगे बढ़कर पंजाब की कैप्टन सरकार ने जनता का दमन किया था और अब भी इसने यही रुख़ अपनाया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि कैप्टन सरकार का कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ संघर्ष को समर्थन झूठा है.

कोरोना महामारी के ख़ात्मे के नाम पर टेस्टों और टीकाकरण मुहिम के ज़रिए अथाह मुनाफ़ा कमाने का गोरखधंधा पूंजीवाद के हाथ लगा है. इसके लिए भी ज़रूरी है कि कोरोना का नया उभार दिखाया जाए. जुटानों पर रोक और अन्य तरह-तरह की पाबंदियां, इन पाबंदियों को लागू करने के लिए दमन, टीकाकरण मुहिम, दमन टेस्टों आदि को जायज़ ठहराने के लिए किए जा रहे कोरोना ड्रामे को बख़ूबी निभाने के लिए शिक्षण संस्थाओं को बंद करने, मास्क ज़रूरी करने जैसे क़दम हुक़्मरानों के लिए ज़रूरी थे.

आने वाले दिनों में हुक़्मरान अपने जनविरोधी इरादों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कोरोना के बहाने उठाए जा रहे दमनकारी क़दमों का दायरा और बढ़ा सकते हैं. यदि ऐसा होता है तो पहले ही भयानक लूट, दमन, बदहाली, दुख-तक़लीफ़ें झेल रहे लोग और अधिक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक हमले के तहत आएंगे. जनता को बिना देर किए कोरोना के नाम पर किए जा रहे ड्रामे, जनविरोधी इरादों के तहत शासकों द्वारा थोपी जा रही नाजायज़ पाबंदियां, किए जा रहे दमन के ख़िलाफ़ संघर्षों के मैदान में उतरना होगा.

  • रणबीर

(प्रस्तुत आलेख मुक्ति संग्राम बुलेटिन के 6 अप्रैल 2021 में प्रकाशित किया गया था.)

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One Comment

  1. Md. Belal

    June 20, 2021 at 3:50 pm

    बीमारी तो बेसक है। इससे कोई इनकार नही किया जा सकता है। लेकिन ये कोरोना वायरस उतना भी जानलेवा नही है जितना इसे बना कर लोगो को डराया और खौफ का माहौल बनाया जा रहा है।
    कहा जाता है। दुनिया मे हर एक बीमारी का इलाज है। पर डर की बीमारी एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज़ नही।
    कोरोना से हुई अधिकतर मौते इस बात की गवाह है कि उनका इलाज़ सही सुविधाओं से नही हो पाया। कहि हॉस्पिटलों में बेड नही, तो कही ऑक्सिजन नही, कही वेंटिलेटर नही, कहि डॉक्टर नही, कहि सही देख भाल नही सही खाने पीने की सुविधा नही।
    ऐसे में मौतों का आंकड़ा और बढ़ता गया।
    साथ ही बढ़ते मौतो से घबड़ाए लोग 1 मास्क की जगह 3 मास्क लगाने लगे जिससे उनके शरीर मे ऑक्सिजन लेवल कम होने लगा कमज़ोरी आने लगी, फीवर जैसा लगने लगा, सर्दी, आँख भारी लगना, खासी ऐसे कई मर्ज़ होने लगे। और लोगो पर इसका फिजिकल और साइकोलोजिकल असर पड़ने लगा।
    डॉक्टर्स तक इससे महफूज़ नही रह पाए।
    कोरोना से बचने का सबसे बेहतर उपाय है खुद को फिजिकली और मेंटली मजबूत रखे।
    क्योंकि कोई ये नही तो कोई भी मास्क या वैक्सीन काम नही आएगा।
    मैने और मेरी PWYD की टीम ने 2020 पूरे कोरोना में काल मे बीमारी के बीच ज़रूरतमंद लोगो तक राशन पहुचाया।
    2021 में भी हमलोगों ने लोगो की मदद की। और मैं कोरोना से मारने वाले के मट्टी मंज़िल में भी गया।
    अल्लाह का करम है कि हम सभी लोग सही सलामत है।

    Reply

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